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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 591
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - विश्वे देवाः छन्दः - एकपात् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
    40

    इ꣣मं꣡ वृष꣢꣯णं कृणु꣣तै꣢꣫क꣣मि꣢न्माम् ॥५९१

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣣म꣢म् । वृ꣡ष꣢꣯णम् । कृ꣣णुत । ए꣡क꣢꣯म् । इत् । माम् ॥५९१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं वृषणं कृणुतैकमिन्माम् ॥५९१


    स्वर रहित पद पाठ

    इमम् । वृषणम् । कृणुत । एकम् । इत् । माम् ॥५९१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 591
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1;
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    हिन्दी (4)

    विषय

    अगली ऋचा का देवता ‘विश्वेदेवाः’ है। उनसे प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे परमात्मा, जीवात्मा, मन, बुद्धि आदि सब देवो, सब विद्वान् गुरुजनो तथा राज्याधिकारियो ! तुम (इमम्) इस (माम्) मुझको (एकम् इत्) अद्वितीय (वृषणम्) मेघ के समान धन, अन्न, सुख आदि की वर्षा करनेवाला (कृणुत) कर दो ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे परमात्मा और शरीर में स्थित, समाज में स्थित तथा राष्ट्र में स्थित सब देव परोपकारी हैं, वैसे ही उनसे प्रेरणा लेकर मैं भी निर्धनों के ऊपर धन, अन्न आदि की वर्षा करनेवाला, अनाथों का नाथ और दूसरों के दुःख को हरनेवाला बनूँ ॥६॥

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    पदार्थ

    हे विश्वेदेवो—प्राणो! (इमं माम्) इस मुझे (उत) अपि—हाँ! (वृषणम्-एकम्-इत् कृणुत) सुखवर्षक केवल स्वस्वरूप में अवश्य कर दो।

    भावार्थ

    हे मेरे प्राणो! सुखों की प्राप्ति के लिये मैं पराधीन होकर न रहूँ और न ऐसे इन्द्रिय सुख का व्यसन रहे जो मेरे केवल स्वरूप से पृथक् कर दे, अपितु वे सुख मेरे चेतन स्वरूप के दास रहें, मैं उनका दास न बनूँ, हाँ वास्तविक स्वस्वरूप में आकर जो परमात्मा का आनन्द है, उसे ही उसके आधार पर अपने अन्दर सींचता रहूँ “परं ज्योतिरुपसम्पद्य स्वेन रूपेणाभिनिष्पद्यते” [छान्दो॰ ८.१२.३]॥६॥

    विशेष

    ऋषिः—वामदेवः (वननीय परमात्मदेव जिसका है ऐसा उपासक)॥ देवता—विश्वेदेवाः (प्राण१)॥ छन्दः—एकपदा गायत्री॥<br>

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    विषय

    शक्ति का पुञ्ज बन जाएँ

    पदार्थ

    यह ‘एकपाद जगती' छन्द का मन्त्र है। एक ही चरण में इसमें सारे ब्रह्माण्ड की याचना हो गई है। 'वृद्धा-जरती - न्याय' के अनुसार यहाँ एक ही वाक्य मे सब-कुछ माँग लिया गया है। ‘मैं अपने युवा पुत्रों को सोने के पात्रों में प्रातराश करती पाऊँ । इस वाक्य में वृद्धा ने १. मृत पति का नवजीवन २. अपना यौवन ३. उत्तम सन्तान व ४. सम्पत्ति सभी वस्तुएँ माँग ली। इसी प्रकार प्रस्तुत मन्त्र में 'वामदेव गोतम' सभी दिव्य गुणों को तथा प्रशस्त इन्द्रियों को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करता है

    (इमं माम्) = इस मुझे–गत मन्त्र के उत्तरार्ध में संकेतित प्रयत्न करनेवाले मुझे (इत्) = निश्चय से (एकं वृषणम्) = अद्वितीय शक्तिशाली (कृणुत) = कर दो - बना दो। शक्ति के साथ सब गुणों का निवास है। गुण [virtue] वीरत्व है और दुर्गुण [evil] - अवीरता। शक्ति संयम साध्य है और संयम सब गुणों का मूल है। शक्ति होने पर सब दिव्य गुण आ जाते हैं। इस बात का संकेत प्रस्तुत मन्त्र के 'विश्वे देवाः' देवता से भी हो रहा है। याचना शक्ति की है विषय 'सब दिव्य गुणों की प्राप्ति' है। शक्ति से ही सब दिव्य गुणों को आ- कर हमें 'वामदेव' बनाना है। यह सुन्दर दिव्य गुणोंवाला वामदेव प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि है। 'इसकी सब इन्द्रियाँ पवित्र हैं', अतः यह गोतम है।

    भावार्थ

    प्रभु ‘तेजपुञ्ज' हैं। मुझे तेजस्वी बनाएँ। मैं भी 'तेजपुञ्ज' बनने का प्रयत्न करूँ।
     

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे प्राणो ! विद्वानो ! ( इमं मां ) = इस मुझ ( एकं ) = अकेले को ( वृषणं ) = सब सुखों का वर्षण करने हारा ( कृणुत इत् ) = बनादो । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - वामदेव:।

    देवता - विश्वेदेवाः।

    छन्दः - एकपदा गायत्री । 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विश्वेदेवाः देवताः। तान् प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे विश्वेदेवाः परमात्मजीवात्ममनोबुद्ध्यादयः, सर्वे विद्वांसो गुरुजनाः, राज्याधिकारिणश्च ! यूयम् (इमम्) पुरो दृश्यमानम् (माम्) प्रार्थिनम् (एकम् इत्) अद्वितीयमेव (वृषणम्) धनान्नसुखादीनां मेघवद् वर्षकम् (कृणुत) सम्पादयत ॥६॥

    भावार्थः

    यथा सोमः परमात्मा, शरीरस्थाः समाजस्था राष्ट्रस्थाः सर्वे देवाश्च परोपकारिणः सन्ति, तथा तेषां सकाशात् प्रेरणां गृहीत्वाऽहमपि निर्धनानामुपरि धनान्नादीनां वृष्टिकरो दीनानामाश्रयोऽनाथानां नाथः परदुःखविद्रावकश्च भूयासम् ॥६॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, make me the helpless one, the accomplisher of all desires!

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    Meaning

    I am one, even alone. May the heavenly powers inspire me, this self, to rise to the strength, nobility and generosity of the great.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : હે વિશ્વેદેવો-પ્રાણો (इमं माम्) આ મને (उत) પણ હાં ! (वृषणम् एकम् इत् कृणुत) સુખવર્ષક કેવળ સ્વસ્વરૂપમાં અવશ્ય કરી દો. (૬)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે મારા પ્રાણો ! સુખોની પ્રાપ્તિને માટે હું પરાધીન ન બની રહું તથા એવા ઇન્દ્રિય સુખનું વ્યસન પણ ન રહે, જે મને કેવળ સુખ દૂર કરી નાખે, પરંતુ તે સુખ મારા ચેતન સ્વરૂપનું દાસ બની રહે, હું તેનો દાસ ન બનું, હાં, વાસ્તવિક સ્વરૂપમાં આવીને જે પરમાત્માનો આનંદ છે, તેને જ તેના આધાર પર પોતાની અંદર સિંચતો રહું. (૬)
     

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    عارفوں کو ایشور کی ہدایت

    Lafzi Maana

    بدی اور نیکی میں فتح حاصل کرنے والے عابدو! اِن فتوحات کے لئے سُکھوں کی بارش برسانے والے مُجھ خداوند کریم کو ہی اپنا واحد سچا دوست اور رہنما سمجھو!

    Tashree

    ہے عارفو ملی ہے جو تُم کو کامرانی، بخشیش ہے یہ میری تُم پہ ہے نگہبانی۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जसे परमात्म्यामध्ये व शरीरामध्ये स्थित देव तसेच समाजात व राष्ट्रात स्थित सर्व देव परोपकारी आहेत. मीही त्यांच्याकडून प्रेरणा घेऊन निर्धनावर धन, अन्न इत्यादींचा वर्षाव करणारा, अनाथांचा नाथ व दुसऱ्यांचे दु:ख नाहीसे करणारा बनेन ॥६॥

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    विषय

    विश्वेदवाः देवता। त्यांना प्रार्थना

    शब्दार्थ

    हे परमात्मा, जीवात्मा, मन, बुद्धी आदी सर्व देवगणहो, सर्व विद्वान गुरूजनहो आणि राज्याचे सर्व अधिकारी गण हो, तुम्ही (इमम्) या (माम्) मला (एकम् इत्) अद्वितीय (वृषणम्) मेघाप्रमाणे धन, अन्न, सुख आदीची वृष्टी करणारा (कृणुत) करा ( मी सर्व गरजवंतांना माझे सर्व काही देईन, असे करा)

    भावार्थ

    जसे परमेश्वर सर्वोपकारी आहे, जसे शरीरातील, समाजातील आणि राष्ट्रातील सर्व देवता परोपकारी आहेत, तद्वत त्यांच्यापासून प्रेरणा घेऊन मीदेखील निर्धन मनुष्यांवर धव, अग आदींची वृष्टी करणारा व्हावे, अनाथांचा नाश व्हावे आणि इतरांचे दुःख दूर करणारा व्हावे (अशी मी कामना वा असा निर्धार करीत आहे.)।।६।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    நீங்கள் ஏகமான சோமனை விருப்பம் போல் வர்ஷிப்பவனாகச் செய்யவும். இச்செயல்களை சிறப்புடனாகச் செய்யவும்.

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