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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 598
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
47
इ꣢न्द्र꣣ वा꣡जे꣢षु नोऽव स꣣ह꣡स्र꣢प्रधनेषु च । उ꣣ग्र꣢ उ꣣ग्रा꣡भि꣢रू꣣ति꣡भिः꣢ ॥५९८॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯ । वा꣡जे꣢꣯षु । नः꣣ । अव । सह꣡स्र꣢प्रधनेषु । स꣣ह꣡स्र꣢ । प्र꣣धनेषु । च । उग्रः꣢ । उ꣣ग्रा꣡भिः꣢ । ऊ꣣ति꣡भिः꣢ ॥५९८॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र वाजेषु नोऽव सहस्रप्रधनेषु च । उग्र उग्राभिरूतिभिः ॥५९८॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्र । वाजेषु । नः । अव । सहस्रप्रधनेषु । सहस्र । प्रधनेषु । च । उग्रः । उग्राभिः । ऊतिभिः ॥५९८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 598
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में इन्द्र नाम से परमेश्वर और राजा से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
हे (उग्र) शत्रुओं पर प्रचण्ड (इन्द्र) शत्रुविदारक जगदीश्वर अथवा राजन् ! आप (वाजेषु) संकटों में (सहस्रप्रधनेषु च) और सहस्रों का संहार करनेवाले घोर देवासुर-संग्रामों में (उग्राभिः) उत्कट (ऊतिभिः) रक्षा-शक्तियों से (नः) हम धार्मिकों की (अव) रक्षा कीजिए ॥४॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है। ‘उग्र, उग्रा’ में छेकानुप्रास है ॥४॥
भावार्थ
जीवन में पग-पग पर आये हुए संकटों में, बाह्य तथा आभ्यन्तर भीषण संग्रामों में, योगमार्ग में उपस्थित व्याधि, स्त्यान, संशय आदि विघ्नों में और राज्य में उत्पन्न राज्यविप्लव, शत्रु द्वारा चढ़ाई आदि में वीर परमेश्वर और राजा हमारी निरन्तर रक्षा करते रहें ॥४॥
पदार्थ
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तू (उग्रः) तेजस्वी हुआ (उग्रेभिः-ऊतिभिः) अपनी तेजस्वी रक्षाविधियों के द्वारा (वाजेषु) इन्द्रिय विषयरूप साधारण संघर्ष प्रसङ्गों में (च) और (सहस्र-प्रधनेषु) बहुत बार होने वाले कामादि सम्बन्धी मानस संग्रामों में (नः-अव) हमारी रक्षा कर।
भावार्थ
निश्चय तेजस्वी परमात्मा अपनी तेजस्वी रक्षाविधियों के द्वारा भोग संघर्षों में और सहस्र बार सताने वाले कामादि सम्बन्धी मानस संग्रामों में हमारी रक्षा किया करता है, अतः उसकी उपसना करनी चाहिए॥४॥
टिप्पणी
[*47. “स्वगं एव लोको विश्वेदेवाः” [जै॰ १.३३५]।]
विशेष
ऋषिः—मधुच्छन्दा वैश्वामित्र (सर्वमित्र आचार्य से सम्बद्ध मधुर इच्छा वाला)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
विषय
उदात्त रक्षण
पदार्थ
इन्द्रियों का अधिष्ठाता जीव जब इन्द्रियों को वश करने का प्रयत्न करने लगता है तो उसे यह अनुभव होता है कि यह मन तो अत्यन्त चञ्चल है। इसे वश में करना सम्भव नहीं है। इसलिए हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली, सब शत्रुओं का द्रावण करनेवाले प्रभो! (वाजेषु) = वासनाओं के साथ होनेवाले संग्रामों में [When we wage war against them] (नः) = हमारी (अव) = रक्षा कीजिए। इन्द्रियाँ और मन विषयों के प्रति रागवाले होकर उनकी ओर भागते हैं और मैं उन्हें रोकता हूँ। आप मेरी रक्षा करेंगे तभी मैं इन्हें रोक पाऊँगा। (च) = और (सहस्रप्रधनेषु) = सैकड़ों प्रकार से मेरा विदारण करनेवाले इन संग्रामों में (उग्र) = तेजस्वी प्रभो! (उग्राभिः) = उत्कृष्ट (ऊतिभिः) = रक्षणों से आप हमें (अव) = सुरक्षित कीजिए | विषय प्रबल हैं, = परन्तु आपके सम्पर्क में आकर मैं प्रबल हो जाता हूँ। 'काम' प्रद्युम्न = उत्कृष्ट बलवाला है। यह प्रिय लगता है, परन्तु आप प्रियतम हैं। आपके साथ होने पर सब वैषयिक आनन्द तुच्छ हो जाता है और मैं उसका शिकार नहीं होता।
विषयों की प्राप्ति के लिए की जानेवाली सब कुटिलताओं से ऊपर उठकर मैं 'मधुच्छन्दा वैश्वामित्र' हो जाता हूँ। वस्तुतः काम व्यापक होकर विश्वप्रेम का रूप धारण कर लेता है । वही आदर्श जीवन होता है।
भावार्थ
प्रभुकृपा से मैं अध्यात्म संग्रामों में विजयी बनूँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( इन्द्र ) = परमेश्वर ! ( उग्रः ) = उम्र स्वभाव के आप ( उग्राभिः ऊतिभिः ) = अति वेगवाली शक्तियों द्वारा ( वाजेषु ) = ज्ञानों और बलों के कार्यों में और ( सहस्रप्रधनेषु च ) = बलशाली सहस्रों अनों के एकत्र होने के अवसरों, या युद्धों में ( न: ) = हमारी ( अव ) = रक्षा करो।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथेन्द्रनाम्ना परमेश्वरो नृपतिश्च प्रार्थ्यते।
पदार्थः
हे (उग्र) शत्रुषु प्रचण्ड (इन्द्र) रिपुविदारक जगदीश्वर राजन् वा ! त्वम् (वाजेषु) संकटेषु। वाज इति संग्रामनाम। निघं० २।१७। (सहस्रप्रधनेषु२ च) घोरेषु देवासुरसंग्रामेषु च। सहस्राणि असंख्यातानि प्रधनानि निधनानि येषु तानि सहस्रप्रधनानि घोरयुद्धानि तेषु। (उग्राभिः) उत्कटाभिः (ऊतिभिः) रक्षणशक्तिभिः (नः) धार्मिकान् अस्मान् (अव) रक्ष ॥४॥३ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः। ‘उग्र, उग्रा’ इत्यत्र छेकानुप्रासः ॥४॥
भावार्थः
जीवने पदे पदे समायातेषु संकटेषु, बाह्याभ्यन्तरेषु भीषणसंग्रामेषु, योगमार्गे समुपस्थितेषु व्याधिस्त्यानसंशयादिषु विघ्नेषु राष्ट्रे चोद्बुद्धेषु राज्यविप्लवशत्रुसंनाहादिषु वीरः परमेश्वरो नृपतिश्चास्मान् सततं रक्षेत् ॥४॥
टिप्पणीः
१. ऋ० १।७।४, साम० ७९८, अथ० २०।७०।१०। २. (सहस्रप्रधनेषु) ‘सहस्राणि असंख्यातानि प्रकृष्टानि धनानि प्राप्नुवन्ति येषु तेषु चक्रवर्तिराज्यसाधकेषु महायुद्धेषु’ इति ऋ० १।७।४ भाष्ये द०। सहस्रशब्दः कर्दमादीनां च। फि० सू० ५९ इति मध्योदात्तः। बहुव्रीहौ पूर्वपदप्रकृतिस्वरत्वम् इति तत्रैव सा०। ३. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं परमेश्वरपक्षे व्याचष्टे।
इंग्लिश (2)
Meaning
O Invincible God, protect us with Thy unsurpassable safeguards, in ordinary battles and mighty struggles !
Translator Comment
$ सहस्रप्रधनेषुः Mighty struggles in which thousands of horses and elephants are won.
Meaning
Indra, lord of light and omnipotence, in a thousand battles of life and prize contests, protect us with bright blazing ways of protection and advancement. (Rg. 1-7-4)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (इन्द्र) હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! તું (उग्रः) તેજસ્વી બનીને (उग्रेभिः उतिभिः) પોતાની તેજસ્વી રક્ષા વિધિઓ દ્વારા (वाजेषु) ઇન્દ્રય વિષયરૂપ સાધારણ સંઘર્ષ પ્રસંગોમાં (च) અને (सहस्र प्रधनेषु) અનેકવાર થનારા કામ આદિ સંબંધી માનસ સંગ્રામોમાં (नः अव) અમારી રક્ષા કર. (૪)
भावार्थ
ભાવાર્થ : નિશ્ચય તેજસ્વી પરમાત્મા પોતાની તેજસ્વી રક્ષા વિધિઓ દ્વારા ભોગ સંઘર્ષોમાં અને હજારોવાર-અસંખ્યવાર સંતાપ આપનાર કામ આદિ સંબંધી માનસ સંગ્રામોમાં અમારી રક્ષા કર્યા કરે છે, તેથી તેની ઉપાસના કરવી જોઈએ. (૪)
उर्दू (1)
Mazmoon
نیکی اور بدی کی جنگ میں ہمارے محافظ بنیں
Lafzi Maana
ہے اِندر! ہر وقت اندر چلنے والے دیو اسُر سنگرام (نیکی بدی کی جنگ) میں اور ہزاروں ایسے سنگراموں میں آپ ہماری رکھشا کیجئے۔ آپ بُرائیوں کو روندنے کے لئے اُگر روپ ہیں، انہی طوفانی طاقتوں کے ذریعے ہماری حفاظت کیجئے۔
Tashree
دیوا سُر سنگرام کے جھگڑے، چلتے رہتے گھر کے تگڑے، اِن سے ایشور ہمیں بچاؤ، اپنا اُگر روپ دکھلاؤ۔
मराठी (2)
भावार्थ
जीवनात पदोपदी येणाऱ्या संकटात, बाह्य व आभ्यंतर भीषण संग्रामात, योगमार्गात उपस्थित व्याधी, स्त्यान, संशय इत्यादी विघ्नात व राज्यात उत्पन्न राज्य विप्लव, शत्रूद्वारे चढाई इत्यादीमध्ये वीर, परमेश्वर व राजा यांनी निरंतर आमचे रक्षण करत राहावे ॥४॥
विषय
इन्द्र नावाने परमेश्वराला व राजाला प्रार्थना
शब्दार्थ
हे (उग्र) शत्रूसाठी प्रचण्ड भयानक (इन्द्र) शत्रुनाशक परमेश्वर, अथवा हे राजा, तुम्ही (वाजेषु) विपत्तीमधे (सहस्त्रप्रधनेषुच) आणि ज्यात सहस्त्राचा संहार होतो, अशा देवासुर-संग्रामामधे (उग्राभिः) अत्यंत उग्र अशा आपल्या (ऊतिभिः) रक्षण-सामर्थ्याने (नः) आम्हा धार्मिक जनांची/प्रजाजनांची (अव) रक्षा करा.।।४।।
भावार्थ
जीवनात पावला-पावलावर येणाऱ्या संकटांत, बाह्य आणि आभ्यंतर भीषण-संग्रामात, योगमार्गात आड येणाऱ्या व्याधी, स्त्यान, संशय आदी विघ्नांत तसेच राज्यात उत्पन्न विप्लव, शत्रु-आक्रमण आदी प्रसंगी वीर परमेश्वर आणि राजा यांनी आमची रक्षा करावी (ही प्रार्थना)।।४।।
विशेष
या मंत्रात अर्थश्लेष अलंकार आहे. ‘उग्र,उग्रा’मधे छेकानुप्रास आहे ।।४।।
तमिल (1)
Word Meaning
இந்திரனே ! உக்கிரனே! உன் உக்கிரமான உதவிகளால் போர்களிலும் ரத கஜ துரக பதாதி சண்டைகளிலும் எங்களை ரட்சிக்கவும்.
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