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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 600
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - वायुः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
    23

    नि꣣यु꣡त्वा꣢꣯न्वाय꣣वा꣡ ग꣢ह्य꣣य꣢ꣳ शु꣣क्रो꣡ अ꣢यामि ते । ग꣡न्ता꣢सि सुन्व꣣तो꣢ गृ꣣ह꣢म् ॥६००॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि꣣यु꣡त्वा꣢न् । नि꣣ । यु꣡त्वा꣢꣯न् । वा꣣यो । आ꣢ । ग꣣हि । अय꣢म् । शु꣣क्रः꣢ । अ꣣यामि । ते । ग꣡न्ता꣢꣯ । अ꣣सि । सुन्वतः꣢ । गृ꣣ह꣢म् ॥६००॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नियुत्वान्वायवा गह्ययꣳ शुक्रो अयामि ते । गन्तासि सुन्वतो गृहम् ॥६००॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नियुत्वान् । नि । युत्वान् । वायो । आ । गहि । अयम् । शुक्रः । अयामि । ते । गन्ता । असि । सुन्वतः । गृहम् ॥६००॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 600
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 2;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र का वायुदेवता है। वायु नाम से परमात्मा का आह्वान किया गया है।

    पदार्थ

    हे (वायो) वायु के सदृश अनन्त बलवाले, सबको शुद्ध करनेवाले, सबके जीवनाधार, प्राणप्रिय परमात्मन् ! (नियुत्वान्) नियन्त्रण और नियोजन के सामर्थ्यवाले आप (आ गहि) मुझे नियन्त्रण में रखने तथा सत्कर्मों में नियुक्त करने के लिए आइए। (अयम्) यह (शुक्रः) पवित्र तथा प्रदीप्त ज्ञान, कर्म और भक्ति का सोमरस (ते) आपके लिए (अयामि) मेरे द्वारा अर्पित है। आप (सुन्वतः) ज्ञान, कर्म और भक्ति का यज्ञ करनेवाले यजमान के (गृहम्) हृदय-रूप गृह में (गन्ता) पहुँचनेवाले (असि) हो ॥६॥

    भावार्थ

    ज्ञानयज्ञ, कर्मयज्ञ और भक्तियज्ञ सम्मिलित होकर ही परमात्मा की कृपा प्राप्त कराते हैं ॥६॥

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    पदार्थ

    (वायो) हे अध्यात्म जीवनप्रद परमात्मन्! तू (नियुत्वान्) मुमुक्षुजनों का आधार तथा सर्वेश्वर होता हुआ “वायुर्देवानां विशां नेता नियुतो देवानां विशः” [काठ॰ १२.१३] “नियुत्वान्-ईश्वरनाम” [निघं॰ २.१२] (आगहि) आ—प्राप्त हो (ते) तेरे लिये (शुक्रः-अयामि) निर्मल उपासनारस “शुक्रः-निर्मलः सोमः” [श॰ ३.३.३.६] “वायवायाहि दर्शत इमे सोमा अरं कृताः” [ऋ॰ १.२.१] ‘इति यथा’ मेरे द्वारा नियत है—समर्पित है (सुन्वतः-गृहं गन्तासि) उपासनारस के निष्पादन करने वाले उपासक के हृदयसदन को प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    हे अध्यात्मजीवनप्रद परमात्मन्! तू सर्वेश्वर मुमुक्षुजनों का आधार होता हुआ मेरे हृदयसदन में आ जा, तेरे लिये उपासनारस समर्पित है, तुझे निश्चय आना होगा॥६॥

    विशेष

    ऋषिः—गृत्समदः (मेधावी और परमात्मा की उपासना में तृप्त)॥ देवता—वायुः (अध्यात्म जीवनदाता परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    पदार्थ

    (‘वायुरनिलममृतमथेदम्) = शरीर को धारण करनेवाला आत्मा 'वायु' है। इसके इन्द्रियरूप घोड़े ‘नियुत’ कहलाते हैं - जिन्हें पाप से पृथक् करना है [यु=अमिश्रण] और पुण्य से जोड़ना है [यु=मिश्रण]। ‘मतुप्' प्रत्यय भी प्रशस्त अर्थ में यहाँ आया है। प्रभु इसे सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि हे (वायो नियुत्वान्) = प्रशस्त इन्द्रियरूप घोड़ोंवाले! तू (आगहि) = हमारे समीप आ। (अयम्) = यह मैं ते तेरे लिए (शुक्रः) = शुद्धस्वरूप का कर्त्ता होकर (अयामि) = तुझे प्राप्त होता हूँ। जीव प्रयत्न करता है तो उसे प्रभु का साहाय्य प्राप्त होता है। जीव प्रभु की ओर चलता हे तो प्रभु भी उसे प्राप्त होते हैं। जीव इन्द्रियों को शुद्ध करने का प्रयत्न करता है तो प्रभु भी उसकी शुचिता करनेवाले होकर उसे प्राप्त होते हैं। प्रभु से मिलकर जब यह शोधन-क्रिया चलती है तो प्रभु जीव से कहते हैं कि तू (सुन्वतः गृहम्) = सुन्वन् के घर को - यज्ञशील पुरुषों के लोक को (गन्तासि) = जानेवाला होगा । 'अग्निहोत्र हुतो यत्र लोक:- जहाँ अग्निहोत्र करनेवाले जाते हैं वहाँ तू भी जाएगा। यह 'नियुत्वान् वायु' ही गृत्स= प्रभु का सच्चा स्तोता है, इसका जीवन मद - आनन्दमय बनता है और शौनक: = यह गतिशील होता है।

    भावार्थ

    हम नियुत्वान् बनें। अपने इन्द्रियरूप घोड़ों को अशुभ से हटाकर शुभ में प्रेरित करें।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा०  = हे ( वायो ) = प्राण ! या व्यापक आत्मन् ! आप ( नियुत्वान् ) = नियमकारी बलों से सम्पन्न ( आ गहि ) = हमें प्राप्त हो । ( अयं ) = यह ( शुक्रः ) = कान्तिमान् सूर्य, और देह में वीर्य, आज ( ते ) = तेरे ( अयामि ) = नियम में बंधा है ।  आप ( सुन्वतः ) = योग साधना करने हारे, ( गृहम् ) = ग्रहण करने वाले आभ्यन्तर इन्द्रिय, मन में भी ( गन्तासि ) = प्राप्त होते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - गृत्समदः।

    देवता - वायुः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वायुर्देवता। वायुनाम्ना परमेश्वरमाह्वयति।

    पदार्थः

    हे (वायो२) वायुवदनन्तबल सर्वशोधक सर्वेषां जीवनाधार प्राणप्रिय परमात्मन् ! तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चन्द्रमाः। य० ३२।१ इति प्रामाण्याद् वायुशब्दः परमेश्वरवाचकः। (नियुत्वान्) नियमन-नियोजन-सामर्थ्यवान् त्वम्। नियुतो नियमनाद् वा नियोजनाद् वेति यास्कः। निरु० ५।२७। (आ गहि) मम नियमनाय सत्कर्मसु नियोजनाय वा आगच्छ। (अयम्) एषः (शुक्रः) पवित्रः प्रदीप्तश्च ज्ञानकर्म-भक्ति-रसः। शुचिर् पूतीभावे, शुच दीप्तौ। (ते) तुभ्यम् (अयामि) मया अर्पितोऽस्ति। यच्छतेः कर्मणि लुङि रूपम्। अनुपसृष्टोऽप्ययं क्वचिद् दानार्थे दृश्यते। त्वम् (सुन्वतः) ज्ञान-कर्म-भक्तिमयं यज्ञं कुर्वतो यजमानस्य (गृहम्) हृदयसदनम् (गन्ता३) गमनकर्ता (असि) भवसि ॥६॥४

    भावार्थः

    ज्ञानयज्ञः कर्मयज्ञो भक्तियज्ञश्च संमिलिता एव परमात्मनः कृपां लम्भयन्ते ॥६॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० २।४१।२, य० २७।२९। २. ‘अनन्तबलवत्त्वसर्वधातृत्वाभ्यां परमेश्वरो वायुशब्दवाच्यः’ इति य० ३२।१ भाष्ये ‘वायुरिव सर्वशोधक सर्वत्र गन्त सर्वप्रियेश्वर’ इति च य० २७।२९ भाष्ये—द०। ३. गन्ता गमनशीलः। तृन्नन्तोऽयं गन्ता, उदात्तः। तद्धर्मा वा तत्साधुकारी वा एते हि तृनोऽर्थाः इति य० २७।२९ भाष्ये उवटः। महीधरोऽपि ‘तृन्नन्त आद्युदात्तत्वात्’ इत्याह। ४. दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयम् ऋग्वेदे विद्वत्पक्षे युजुर्वेदे च परमेश्वरपक्षे व्याख्यातः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, Powerful art thou, come, I send this pure soul unto Thee, Thou goest to the heart of a Yogi!

    Translator Comment

    $ The word गृह in the verse means the heart, which is the house of a Yogi, as he always contemplates upon God in this mind.

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    Meaning

    Vayu, scholar of the dynamics of the winds, self- controlled with your disciplined mind and senses, drying up the mists of ignorance and confusion with the brilliant light of knowledge, come to the brilliant light of knowledge, come to the house of the yajamana who has distilled the soma. Universally moving you are, I invite you come in person. This soma is for you. (Rg. 2-41-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वायो) હે અધ્યાત્મ જીવનપ્રદ પરમાત્મન્ ! તું (नियुत्वान्) મુમુક્ષુજનોનો આધાર તથા સર્વેશ્વર બનીને(आगहि) આવ-પ્રાપ્ત થા (ते) તારા માટે (शुक्रः अयामि) નિર્મળ ઉપાસનારસમારા દ્વારા નિયત છે-સમર્પિત છે (सुन्वतः गृहं गन्तासि) ઉપાસનારસનું નિષ્પાદન કરનાર ઉપાસકનાં હૃદયગૃહને પ્રાપ્ત થાય છે. (૬)
     

    भावार्थ

     

    ભાવાર્થ : હે અધ્યાત્મ જીવનપ્રદ પરમાત્મન્ ! તું સર્વેશ્વર મુમુક્ષુજનોનો આધાર બનીને મારા હૃદયગૃહમાં આવ-આવી જા, તારા માટે ઉપાસનારસ સમર્પિત છે, તારે નિશ્ચિત આવવું જ પડશે. (૬)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    ہمارے خانہ دل میں ظاہر ظہور ہوں

    Lafzi Maana

    ہوا کے سمان سب کو زندگی دینے والے پرمیشور! آپ ہزاروں لاکھوں طاقتوں کے مالک ہو، نوازش مان کر میرے اندر ظاہر ظہور ہوویں۔ آپ کی نظر کرم سے میری زندگی پاک و صاف ہے۔ اور مجھے یہ یقین بھی کامل ہے کہ آپ اپنے عابد کے خانئہ دل میں ضرور پہنچتے ہیں۔

    Tashree

    یہ یقین کامل ہے مجھ کو تم بھگتوں کے گھر جاتے ہو، نظر کرم سے اپنی اُن کے سارے کشٹ مٹا آتے ہو۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्ञानयज्ञ, कर्मयज्ञ व भक्तियज्ञ संमिलित होऊनच परमेश्वराची कृपा प्राप्त करवितात ॥६॥

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    विषय

    वायू देवता। वायू नावाने परमेश्वराचे आवाहन

    शब्दार्थ

    (वायो) वायूप्रमाणे अनंत शक्तिमान वा सर्वांना शुद्ध करणाऱ्या, सर्वांचा जीवनाधार हे प्राणप्रिय परमेश्वरा, (नियुत्वान्) सर्वांना नियंत्रणात ठेवण्याचे व सर्वांचे नियोजन करण्याचे सामर्थ्य तुझ्या ठिकाणी आहे, त्यामुळे (आगहि) मला नियंत्रित करण्यासाठी आणि मला सत्कर्मांत नियुक्त करण्यासाठी तू माझ्या हृदवाल ये. (अयम्) हा (शुक्रः) पवित्र व प्रदीप्त ज्ञान, कर्म आणि भक्तिरूप सोमरस (अयामि) मी तुझ्यासाठी अर्पित करीत आहे. तू (सुन्वतः) ज्ञान, कर्म आणि भक्ति यांद्वारे यज्ञ करणाऱ्या यजमानाच्या (ज्ञानी, कर्मशील व भक्तिपरायण उपासकाच्या) (गृहम्) हृदयरूप घरात (गन्ता) जाणारा (असि) आहेस.।।६।।

    भावार्थ

    ज्ञानयज्ञ, कर्मयज्ञ आणि भक्तियज्ञ यामधे सम्मिलित होऊनच परमात्म्याची कृपा प्राप्त करता येते.।।६।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    வாயுவே! நியமமான வாகனங்களுடன் நீ வரவும். இந்த வெண்மையான சுக்கிரன் உனக்கு அளிக்கப்படுகிறது. அமிழ்த்தப்படும் வீட்டிற்கு (ஆத்மாவிற்கு) நீ செல்லுகிறாய்.

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