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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 611
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - लिंगोक्ताः
छन्दः - महा पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
40
य꣡शो꣢ मा꣣ द्या꣡वा꣢पृथि꣢वी꣢꣯ यशो꣢꣯ मेन्द्रबृहस्प꣣ती꣢ । य꣢शो꣣ भ꣡ग꣢स्य विन्दतु꣣ य꣡शो꣢ मा꣣ प्र꣡ति꣢मुच्यताम् । य꣣शसा꣢३स्याः꣢ स꣣ꣳ स꣢दो꣣ऽहं꣡ प्र꣢वदि꣣ता꣡ स्या꣢म् ॥६११॥
स्वर सहित पद पाठय꣡शः꣢꣯ । मा꣣ । द्या꣡वा꣢꣯ । पृ꣣थिवी꣡इति꣢ । य꣡शः꣢꣯ । मा꣣ । इन्द्रबृहस्पती꣢ । इ꣣न्द्र । बृहस्पती꣡इति꣢ । य꣡शः꣢꣯ । भ꣡ग꣢꣯स्य । वि꣣न्दतु । य꣡शः꣢꣯ । मा꣣ । प्र꣡ति꣢꣯ । मु꣣च्यताम् । यशस्वी꣢ । अ꣣स्याः꣢ । सं꣣ऽस꣡दः꣢ । स꣣म् । स꣡दः꣢ । अ꣣ह꣢म् । प्र꣣वदिता꣢ । प्र꣣ । वदिता꣢ । स्या꣣म् ॥६११॥
स्वर रहित मन्त्र
यशो मा द्यावापृथिवी यशो मेन्द्रबृहस्पती । यशो भगस्य विन्दतु यशो मा प्रतिमुच्यताम् । यशसा३स्याः सꣳ सदोऽहं प्रवदिता स्याम् ॥६११॥
स्वर रहित पद पाठ
यशः । मा । द्यावा । पृथिवीइति । यशः । मा । इन्द्रबृहस्पती । इन्द्र । बृहस्पतीइति । यशः । भगस्य । विन्दतु । यशः । मा । प्रति । मुच्यताम् । यशस्वी । अस्याः । संऽसदः । सम् । सदः । अहम् । प्रवदिता । प्र । वदिता । स्याम् ॥६११॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 611
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 3; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 3; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3;
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
अगले मन्त्र में मन्त्रोक्त द्यावापृथिवी आदि देवता हैं। इसमें यश की प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ
(द्यावापृथिवी) सूर्य-भूमि, प्राण-अपान, पिता-माता, सभा-समिति (मा) मुझे (यशः) कीर्ति प्राप्त करायें। (इन्द्रबृहस्पती) विद्युत्-वायु, परमात्मा-जीवात्मा, क्षत्रिय-ब्राह्मण (मा) मुझे (यशः) कीर्ति प्राप्त करायें। (भगस्य) चाँदी-सोना-मणि-मोती आदि रूप, सत्य-अहिंसा-अस्तेय-ज्ञान-वैराग्य आदि रूप, सुराज्य-चक्रवर्ती-राज्य आदि रूप धन की (यशः) कीर्ति (विन्दतु) मुझे प्राप्त हो। (यशः) सब प्रकार की कीर्ति (मा) मुझे (प्रतिमुच्यताम्) धारण करे। (अहम्) मैं (अस्याः) इस (संसदः) संसत् का (यशस्वी) यशस्वी (प्रवदिता) वक्ता (स्याम्) होऊँ ॥१०॥ इस मन्त्र में ‘यशः’ शब्द की पुनः-पुनः आवृत्ति से यश की अत्यन्त स्पृहणीयता सूचित होती है। ‘यशो’ की चार बार तथा ‘यशो मा’ की दो बार आवृत्ति में लाटानुप्रास अलङ्कार है ॥१०॥
भावार्थ
जैसे ब्रह्माण्ड में सूर्य-भूमि, शरीर में प्राण-अपान, समाज में माता-पिता और राष्ट्र में सभा-समिति अपने-अपने यश से भासित हैं और जैसे परमात्मा-जीवात्मा, बिजली-वायु और ब्राह्मण-क्षत्रिय का यश सर्वत्र फैला हुआ है, वैसे ही हम भी धन, धान्य, ज्ञान, स्वास्थ्य, दीघार्यु, चक्रवर्ती राज्य, अध्यात्म-योग आदि की सम्पदाओं से परम कीर्तिमान् और विविध सभाओं के यशस्वी वक्ता होवें ॥१०॥
पदार्थ
(द्यावापृथिवी) पिता माता “द्यौर्मे पिता माता पृथिवी महीयम्” [ऋ॰ १.१६४.३३] (मा यशः) मुझे यश प्राप्ति के कारण हो—अन्ततः यशोरूप परमात्मा की प्राप्ति के कारण बनें “यस्य नाम महद् यशः” [यजु॰ ३२.३] (इन्द्राबृहस्पती) शिष्य और गुरु (मा यशः) मुझे यश प्राप्ति के कारण हों—अन्ततः परमात्मा की प्राप्ति के कारण बनें (भगस्य यशः-विन्दतु) ऐश्वर्य का यश प्राप्ति हो—अन्ततः ऐश्वर्य भी परमात्मा को प्राप्त करावे (यशः-मा प्रति मुच्यताम्) यश मुझे ग्रहण करे—यशोरूप परमात्मा मुझे स्वीकार करे “यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्चः” [पार॰ २.२.११] (अस्याः संसदः) इस मानवसमाज का (अहं यशस्वी प्रवदिता स्याम्) मैं यशस्वी प्रवक्ता—अन्ततः यशोरूप परमात्मा का प्रवक्ता होऊँ।
भावार्थ
पिता माता की सेवा में आज्ञापालन में मैं यशस्वी बनूँ अन्ततः यशोरूप परमात्मा की प्राप्ति करूँ, शिष्य और गुरु से ऐसे वर्तूं जिससे मैं यशोभाक् बनूँ—अन्ततः यशोरूप परमात्मा की प्राप्ति में सहायक बनूँ, ऐश्वर्य का यश पाऊँ—अन्ततः यशोरूप परमात्मा की प्राप्ति का साधन बनूँ, यश मुझे अपनावे, अपयश का कार्य न कर पाऊँ। अन्ततः यशोरूप परमात्मा मुझे प्राप्त हो, मानवसमाज का यशस्वी हित वक्ता बनूँ। अन्ततः यशोरूप परमात्मा का कुशल प्रवक्ता बनूँ॥१०॥
विशेष
ऋषिः—वामदेवः (वननीय परमात्मदेव वाला उपासक)॥ देवता—लिङ्गोक्ताः (मन्त्र में कहे हुए दिव्य नाम)॥ छन्दः—महापंक्तिः॥<br>
विषय
यशो - लाभ, यशस्वी वक्ता
पदार्थ
दिव्य गुणोंवाला प्रशस्तेन्द्रिय ऋषि ‘वामदेव गोतम' प्रभु से प्रार्थना करता है कि १. (मा) = मुझे (द्यावापृथिवी) = तारारूप विज्ञानों से तथा सूर्यरूप ब्रह्मज्ञान से दीप्त मस्तिष्करूपी द्युलोक तथा पाषाण व वज्रतुल्य दृढ़ पार्थिव शरीर (यशः) = यश (प्रतिमुच्यताम्) = प्राप्त कराएँ । ज्ञान-ज्योति से चमकनेवाले मस्तिष्क और वज्रतुल्य दृढ़ शरीर के द्वारा मैं यशस्वी बनूँ। २. (मा) = मुझे (इन्द्रबृहस्पती) = सब बल कर्मों की अधिष्ठातृ-देवता तथा ज्ञान की अधिष्ठातृ देवता (यशः) = यश देनेवाली हो। मैं क्षत्र और ब्रह्म के कारण [बल और ज्ञान के कारण] यशस्वी बनूँ। ३. मुझे (भगस्य) = ऐश्वर्य-वीर्य-कीर्ति- श्री ज्ञान और वैराग्य [non-attachment] का (यशः) = यश (विदन्तु) = प्राप्त हो । इस षड्विध भग को प्राप्त कर मैं अपने जीवन को यशोयुक्त करूँ। (यशः) = यश-ही- यश (मा) = मुझे (प्रतिमुच्यताम्) = प्राप्त हो ।
इस प्रकार अपने जीवन को (यशसा) = यशस्वी बनाकर ही मैं (अस्याः) = इस (संसदः) = सभा का (प्रवदिता) = उत्कृष्ट वक्ता (स्याम्) = बनूँ। यदि उपदेष्टा का अपना जीवन उत्कृष्ट व यशस्वी न हो तब उसकी वाणी का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता। अपने जीवन को उत्तम बना करके ही उपदेष्टा को सभा में प्रवचन करना चाहिए।
भावार्थ
मैं शरीर को उत्तम बनाऊँ, मस्तिष्क को उन्नत करूँ। मेरे ब्रह्म व क्षत्र का विकास हो। मैं भग के यश को प्राप्त करूँ। यशस्वी बनकर मैं प्रभावशाली उपदेष्टा बन सकता हूँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( मा ) = मुझको ( द्यावापृथिवी ) = द्यौलोक और पृथिवी का ( यशः ) = यश प्राप्त हो । मुझे ( इन्द्र बृहस्पती ) = सूर्य और वायु का ( यशः ) = यश प्राप्त हो । ( भगस्य ) = एश्वर्य सम्पन्न ईश्वर का ( यशः ) = यश ( विन्दतु ) = प्राप्त हो । ( यश: ) = यश मुझे ( मा ) = मत ( प्रतिमुच्यताम् ) = छोड़े। ( अहम् ) = मैं ( यशस्वी ) = कीर्तिमान् होकर ( अस्या: ) = इस ( संसदः ) = उत्तम प्रकार से विद्वानों को अपने में स्थिति प्राप्त कराने हारी सभा या इस ब्रह्मविद्या का ( वदिता ) = प्रवक्ता , ज्ञानोपदेशक ( स्याम् ) = होजाऊं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - वामदेव:।
देवता - लिंगोक्ताः।
छन्दः - महा पङ्क्तिः।
स्वरः - पञ्चमः।
विषय
यशस्वी जीवन
शब्दार्थ
(मा) मुझे (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक का (यश:) यश प्राप्त हो (इन्द्रबृहस्पती) सूर्य और वायु का (यशः) यश (मा) मुझे प्राप्त हो । (भगस्य) ऐश्वर्य का, धन-सम्पत्ति का, भगवद्भक्ति का (यश:) यश (विन्दतु) मुझे प्राप्त हो । (यशः) यश, कीर्ति मुझे कभी (मा) मत (प्रतिमुच्यताम्) छोड़े । उस यश से युक्त होकर (अहम्) मैं (अस्याः संसदः) इस मानव समाज का (यशसा प्रवदिता स्याम्) यशस्वी प्रवक्ता, यशस्वी उपदेशक बनूं ।
भावार्थ
मानव-जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को कीर्तिमान और यशस्वी होने की कामना करनी चाहिए । इस मन्त्र में लोक-कल्याण चाहनेवाले की कामना का चित्रण है १. समाज-हितकारी कार्य करते हुए मुझे द्युलोक और पृथिवीलोक में सर्वत्र यश प्राप्त हो, सर्वत्र, सभी दिशाओं में मेरी कीर्तिचन्द्रिका छिटके । २. जिस प्रकार संसार में सूर्य और वायु यशस्वी है इसी प्रकार मेरा भी यश हो । ३. धन-सम्पत्ति का यश भी मुझे प्राप्त हो । मेरे पास धन-धान्य की न्यूनता न हो । भग का अर्थ ईश्वर भक्ति भी है । भगवद्भक्ति का यश भी मुझे प्राप्त हो । लोग मेरे सम्बन्ध में चर्चा करें कि यह व्यक्ति ईश्वर का उपासक है । ४. यश मुझे कभी न छोड़े अर्थात् मैं कोई ऐसा कार्य न करूँ जिससे मेरा अपयश हो । ५. मैं मानव-समाज का, समस्त संसार का यशस्वी प्रवक्ता, उपदेशक बनूँ । समस्त संसार को आनन्द-अमृत में स्नान करा दूं।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ मन्त्रोक्ता द्यावापृथिव्यादयो देवताः। यशः प्रार्थ्यते।
पदार्थः
(द्यावापृथिवी) द्यावाभूमी प्राणापानौ मातापितरौ सभासमिती वा (मा) माम् (यशः) कीर्तिं प्रापयताम्, (इन्द्रबृहस्पती) विद्युद्वायू परमात्मजीवात्मानौ क्षत्रियब्राह्मणौ वा (मा) माम् (यशः) कीर्तिं प्रापयताम्। (भगस्य) रजतसुवर्णमणिमुक्तादिरूपस्य सत्याहिंसास्तेयज्ञानवैराग्यादिरूपस्य सुराज्यचक्रवर्तिराज्यादिरूपस्य च धनस्य (यशः) कीर्तिः (विन्दतु) मां प्राप्नोतु। (यशः) सर्वविधा कीर्तिः (मा२) माम् (प्रतिमुच्यताम्) धारयतु। मुच्लृ मोचने तुदादौ पठ्यते, बाहुलकादत्र दिवादिः प्रयुक्तः, प्रतिपूर्वश्च धारणार्थेऽपि वर्तते।३ (अहम्) प्रार्थी (अस्याः) एतस्याः (संसदः) परिषदः (यशस्वी) कीर्तिशाली (प्रवदिता) वक्ता (स्याम्) भूयासम् ॥१०॥ अत्र ‘यशः’ इत्यस्य पुनःपुनरावृत्त्या यशसो बहुस्पृहणीयत्वं सूच्यते। ‘यशो’ इत्यस्य चतुःकृत्वः ‘यशो मा’ इत्यस्य च द्विरावृत्तौ लाटानुप्रासः ॥१०॥
भावार्थः
ब्रह्माण्डे द्यावापृथिव्यौ, देहे प्राणापानौ, समाजे मातापितरौ, राष्ट्रे सभासमित्यौ स्वस्वयशसा यथा भासेते, यथा च परमात्मजीवात्मनोर्विद्युत्पवनयोर्ब्राह्मणक्षत्रिययोश्च यशः सर्वत्र व्याप्तं, तथैव वयमपि धनधान्यज्ञानस्वास्थ्यदीर्घायुष्यचक्रवर्ति- राज्याध्यात्मयोगादिसम्पद्भिः परमकीर्तिशालिनो विविधानां परिषदां यशस्विनो वक्तारश्च भूयास्म ॥१०॥
टिप्पणीः
१. ‘य꣣शसा꣢३स्याः꣢’ इति पाठभेदः। २. कैश्चित्तु ‘यशो मा प्रतिमुच्यताम्’ यशो न मत्सकाशान्मुक्तं भवतु इत्यर्थं मनसि निधाय ‘मा’ इति प्रतिषेधार्थो गृहीतः, तच्चिन्त्यं स्वरविरोधात्। ३. यथा यज्ञोपवीतधारणमन्त्रे ‘आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः’ (पार० गृह्य० २।२।११) इति।
इंग्लिश (2)
Meaning
May Heaven and Berth giant me splendour, may the Son and Air grant me splendour. May I attain the splendour of God. May not splendour renounce me. Being famous, may I be the speaker of this learned assembly.
Meaning
May heaven and earth bless me with honour. May Indra and Brhaspati, ruler and the sagely scholar bless me with honour. May the honour and excellence of power and prosperity come to me. Let honour and grace never forsake me. And let me be an honourable speaker of this augustassembly.
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (द्यावा पृथिवी) પિતા માતા (मा यशः) મારી યશ પ્રાપ્તિના કારણ બને-અન્તતઃ યશોરૂપ પરમાત્માની પ્રાપ્તિનાં કારણ બને (इन्द्राबृहस्पती) શિષ્ય અને ગુરુ (मा यशः) મારી યશ પ્રાપ્તિનાં કારણ બને-અન્તતઃ પરમાત્માની પ્રાપ્તિનાં કારણ બને (भगस्य यशः विन्दतु) ઐશ્વર્યનો યશ પ્રાપ્ત થાય-અન્તતઃ ઐશ્વર્ય પણ પરમાત્માની પ્રાપ્તિ કરાવે (यशः मा प्रति मुच्यताम्) યશ મને ગ્રહણ કરે-યશોરૂપ પરમાત્મા મારો સ્વીકાર કરે (अस्याः संसदः) આ માનવ સમાજનો (अहं यशस्वी प्रवदिता स्याम्) હું યશસ્વી પ્રવક્તા-અન્તતઃ યશોરૂપ પરમાત્માનો કુશળ પ્રવક્તા બનું. (૧૦)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પિતા-માતાની સેવામાં આજ્ઞાપાલનમાં હું યશસ્વી બનું-અન્તતઃ યશોરૂપ પરમાત્માની પ્રાપ્તિ કરું, શિષ્ય અને ગુરુથી એમ વર્તુ કે જેથી હું યશોવાન બનું-અન્તતઃ યશોરૂપ પરમાત્માની પ્રાપ્તિમાં સહાયક બનું, ઐશ્વર્યનો યશ પ્રાપ્ત કરું-અન્તતઃ યશોરૂપ પરમાત્માની પ્રાપ્તિનું સાધન બનું, યશ મને અપનાવે, અપયશનું કાર્ય ન કરું, અન્તતઃ યશોરૂપ પરમાત્મા મને પ્રાપ્ત થાય. માનવ સમાજનો યશસ્વી હિતવક્તા બનું, અન્તતઃ યશોરૂપ પરમાત્માનો કુશળ વક્તા બનું. (૧૦)
उर्दू (1)
Mazmoon
نیک نام بنوں اور نیک نام بھگوان کو حاصل کروں
Lafzi Maana
ماں باپ کی خدمت گزاری میں نیک نام بنوں، شےشیہ اور گورو (طالب علم اور اُستاد) مجھے نیک نام بنائیں، دھرم، گیان، شری، لکشمی (زر و مال) مجھے یش (نیکنامی) کے ساتھ حاصل ہو۔ نیک نامی میرا دامن نہ چھوڑے، کبھی بدنامی نہ ہو، بالآخر یش رُوپ بھگوان مجھے پراپت ہو، اور میں یش رُوپ ہو کر انسانات میں روحانی گیان کا وعظ کرتا رہوں۔
Tashree
مات پتا ششیہ گورو کی سیوا سے ہویش یہ چاہوں میں، گیان اور بل دھن سب یش سے پا اِیش اُپدیش سناؤں میں۔
मराठी (2)
भावार्थ
जसे ब्रह्मांडात सूर्य-भूमी, शरीरात प्राण-अपान, समाजात माता-पिता व राष्ट्रात सभा-समिती आपापल्या यशाने शोभतात व जसे परमात्मा-जीवात्मा, विद्युत-वायू व ब्राह्मण-क्षत्रिय यांचे यश सर्वत्र पसरलेले असते, तसेच आम्हीही धन, धान्य, ज्ञान, स्वास्थ्य, दीर्घायू, चक्रवर्ती राज्य, अध्यात्म योग इत्यादी संपदांनी परम कीर्तिमान व विविध सभांचे यशस्वी वक्ते व्हावे ॥१०॥
विषय
मंत्रात म्हटलेल्या द्यावा पृथिनी आदी देवल। त्यांच्याकडून कीर्तीची कामना
शब्दार्थ
(एक उपासक अथवा ध्येयप्राप्तीसाठी झटणारा कर्मवीर म्हणत आहे) (द्यावापृथिवी) सूर्य-भूमी, प्राण-अपान, माता-पिता, सभा-समिती (हे सर्व युगल) (मा) मला (यशः) कीर्ती वा कार्यात यश देवोत (इन्द्रबृहस्पती) विद्युत-वायू, परमात्मा-जीवाला, क्षत्रिय-ब्राह्मण या सर्वांनी (मा) मला कीर्ती व कार्यात (यशः) यश द्यावे. (भगस्य) रौप्य-सुवर्ण-मणी-मोती या रूपाचे अथवा सत्य-अहिंसा-अस्तेय-ज्ञान-वैरावट या रूपाने अथवा सुराज्य-चक्रवर्ती राज्य वा रूपाचे धत्र (यशः) व यश मला (विन्दतु) प्राप्त व्हावे (यशः) जीवनात सर्व प्रकारची कीर्ती (मा) मला (प्रतिमुच्चताम्) मिळावी (अहम्) मी (अस्याः) या (संसदः) संसदेचा (यशस्वी) सफल वा यशस्वी (प्रवदिता) रस्ता (स्थाम्) व्हावे (अशी मनीषा वा महत्त्वाकांक्षा मी मनात बाळगत आहे) ।।१०।।
भावार्थ
जसे ब्रह्मांडात सूर्य-भूमी, शरीरात प्राण-अपान, समाजात आई-वडील आणि राष्ट्रात सभा-समिती आपापल्या कीर्तीने भासित आहेत (त्यांचे अनन्य साधारण महत्त्व आहे) आणि जसे परमात्मा-जीवात्मा विद्युत-वायू आणि ब्राह्मण-क्षत्रिय यांचे यश सर्वत्र प्रसृत आहे, त्याचप्रमाणे आम्हीदेखील धन, धान्य, ज्ञान, स्वास्थ्य, दीर्घायू, चक्रवर्ती राज्य, अध्यात्म योग आयीरूप संपत्ती प्राप्त करून कीर्तीमान व्हावे आणि विविध सभांमधे यशस्वी वक्ता म्हणून स्वतःस सिद्ध करावे.।।१०।।
विशेष
या मंत्रातील ङ्गयशःफ शब्दाचा अनेकवेळा आवृत्ती केली असल्यामुळे येथे यशाविषयी अत्यंत घनिष्ठ कामना सूचित होत आहे. ङ्गयशोफची चारवेला आणि ङ्गयशो माफ ची दोनवेळा आवृत्ती असल्यामुळे लाटानुप्रास अलंकार आहे.।।१०।।
तमिल (1)
Word Meaning
வானம் பூமியின் கீர்த்தியானது என்னை அடையட்டும், இந்திரன் பிருஹஸ்பதியின் கீர்த்தியுமடையட்டும். பகனின் ஐசுவரியமும் அடையட்டும், கீர்த்தி என்னை விடாமலாகட்டும். நான் கீர்த்தியுடனாகி நன்றாய்ப் பேசுபவனாகட்டும் என் சமூகத்தின் தீர்த்தியும் விடாமலாகட்டும்.
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