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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 723
    ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    22

    य꣢स्मि꣣न्वि꣢श्वा꣣ अ꣢धि꣣ श्रि꣢यो꣣ र꣡ण꣢न्ति स꣣प्त꣢ स꣣ꣳस꣡दः꣢ । इ꣡न्द्र꣢ꣳ सु꣣ते꣡ ह꣢वामहे ॥७२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य꣡स्मि꣢꣯न् । वि꣡श्वा꣢꣯ । अ꣡धि꣢꣯ । श्रि꣡यः꣢꣯ । र꣡ण꣢꣯न्ति । स꣣प्त꣢ । स꣣ꣳस꣡दः꣢ । स꣣म् । स꣡दः꣢꣯ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । सु꣡ते꣢ । ह꣣वामहे ॥७२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्मिन्विश्वा अधि श्रियो रणन्ति सप्त सꣳसदः । इन्द्रꣳ सुते हवामहे ॥७२३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यस्मिन् । विश्वा । अधि । श्रियः । रणन्ति । सप्त । सꣳसदः । सम् । सदः । इन्द्रम् । सुते । हवामहे ॥७२३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 723
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में गुरु से उपदेश किये हुए शिष्य परमात्मा का आह्वान कर रहे हैं।

    पदार्थ

    (यस्मिन् अधि) जिसके अधिष्ठातृत्व में (विश्वाः श्रियः) सब शोभाएँ विद्यमान हैं, और जिसकी (सप्त संसदः) सात ऋत्विज्, सात दिशाएँ, सात प्रकार की सूर्यकिरणें, सात छन्द, सात मन-बुद्धि-सहित ज्ञानेन्द्रियाँ और सात आकाशस्थ ऋषि (रणन्ति) स्तुति कर रहे हैं, उस (इन्द्रम्) जगदीश्वर को (सुते) उपासना-यज्ञ में या जीवन-यज्ञ में, हम (हवामहे) पुकारते हैं ॥ सात ऋत्विज् ऋग्वेद २।१।२ में इस प्रकार परिगणित किये गये हैं—होता, पोता, नेष्टा, अग्नीत्, प्रशास्ता, अध्वर्यु और ब्रह्मा। सोमयाग के सात ऋत्विज् हैं—तीन उद्गाता, एक होता, एक मैत्रावरुण, एक ब्राह्मणाच्छंसी और एक अच्छावाक ॥ सात दिशाएँ हैं—पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ध्रुवा, ऊर्ध्वा और केन्द्र। आकाश में स्थित सप्तर्षियों के नाम ये हैं—मरीचि, वसिष्ठ, अङ्गिरस्, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु ॥ ऋग्वेद ९।११४।३ में सात-सात वस्तुएँ गिनाते हुए कहा गया है कि सात दिशाएँ हैं, सात होता ऋत्विज् हैं, सात आदित्य-किरणें हैं ॥ यजुर्वेद २६।१ में सप्त संसद् बतायी गयी हैं—अग्नि, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, द्यौ, आपः और वरुण। आठवीं भूतसाधनी पृथिवी कही गयी है ॥२॥

    भावार्थ

    ब्रह्माण्ड में स्थित सभी दिशा, विदिशा आदि पदार्थ, शरीर में स्थित मन, बुद्धि आदि और यज्ञ में स्थित सब ऋत्विज् जगदीश्वर की ही महिमा का गान करते प्रतीत होते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (यस्मिन्) जिस ऐश्वर्यवान् परमात्मा में (विश्वाः श्रियः) समस्त ऐश्वर्यशक्तियाँ या प्रकृतियाँ सूक्ष्म सत्तायें जगन्निर्माण धारणार्थ (अधि) अधिष्ठित हैं—वर्तमान हैं तथा (सप्त संसदः) सात छन्दोमय स्तोम—मन्त्र—ज्ञानधारायें या सप्त—समवेत होने वाले चेतन आत्माएँ “संसदां संसत्त्वं यदेते स्तोमाश्च छन्दांसि च मध्यतः संसन्नाः” [जै॰ २.३५०] (रणन्ति) रमण करते हैं “रण्याः-रमणीयाः” [निरु॰ ६.३३] (इन्द्रं-सुते हवामहे) उस ऐश्वर्यवान् परमात्मा को उपासनारस के निमित्त आमन्त्रित करते हैं।

    भावार्थ

    जिस ऐश्वर्यवान् परमात्मा में सारी ऐश्वर्य-शक्तियाँ या सूक्ष्म प्रकृति सत्तायें अधिष्ठित हैं जिस में सात गायत्री आदि छन्दोमय मन्त्र ज्ञानधारायें या उसमें समवेत होने वाली चेतन सत्तायें हैं उस परमात्मा को उपासना-समय आमन्त्रित करना चाहिये अन्य को नहीं॥२॥

    विशेष

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    विषय

    सारा धन, सारा ज्ञान

    पदार्थ

    (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यवाले प्रभु को (सुते) = उन्नति [प्रसव=growth] अभ्युदय व परमैश्वर्य=निःश्रेयस के लिए ['सुते' में निमित्त सप्तमी है] (हवामहे) = पुकारते हैं। उस इन्द्र को (यस्मिन् अधि) = जिसमें (विश्वाः श्रियः) = संसार की सब लक्ष्मियाँ निवास करती हैं तथा (संसदः) = वासनाओं का सम्यक् विनाश करनेवाले [षद् = अवसादन, to kill] (सप्त) = सात छन्द व छन्दोरूप मन्त्र (रणन्ति) = शब्द करते व रममाण होते हैं ।

    उल्लिखित शब्दार्थ से यह सुव्यक्त है कि प्रभु की उपासना इसलिए करो कि वे प्रभु ही लक्ष्मी व सरस्वती का अधिष्ठान हैं। प्रभु की उपासना से सांसारिक ऐश्वर्य भी मिलेगा तथा ज्ञानरूप परमैश्वर्य भी प्राप्त होगा । एवं, उपासना अभ्युदय व निः श्रेयस दोनों को सिद्ध करती है, इससे ऐहलौकिक ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है और पारलौकिक कल्याण भी सिद्ध होता है ।

    भावार्थ

    हम प्रभु के उपासक बनें, क्योंकि सारा धन व सारा ज्ञान उसी में निहित है।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( २ ) ( यस्मिन् ) = जिस इन्द्र में ( विश्वाः श्रियः ) = समस्त विभूतियां ( अधि ) = अधिक शोभा देती हैं और जिसमें ( सप्त संसदः ) = उत्तम प्रकार से अपने स्थिति प्राप्त किये हुए होता स्वरूप सात इन्द्रियगण ( रणन्ति ) = ज्ञान-यज्ञ में आनन्दलाभ करते हैं उस ( इन्द्रम् ) = आत्मा को ( सुत)= योग यज्ञ में ऋतम्भरा सिद्ध होने पर ( हवामहे ) = पुकारते हैं उसका स्मरण, चिन्तन, स्तुति करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - श्रुतकक्ष:। देवता - इन्द्र। स्वरः - षड्ज:।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ गुरुणानुशिष्टाः शिष्याः परमात्मानमाह्वयन्ति।

    पदार्थः

    (यस्मिन् अधि) यम् अधिष्ठाय (विश्वाः श्रियः) सर्वाः शोभाः विद्यन्ते, यं च (सप्त संसदः२) सप्तऋत्विजः, सप्तदिशः, सप्तविधाः सूर्यरश्मयः, सप्त छन्दांसि, सप्त मनोबुद्धिसहितानि ज्ञानेन्द्रियाणि, सप्त आकाशस्थाः ऋषयः (रणन्ति) स्तुवन्ति। [रण शब्दार्थः भ्वादिः।] तम् (इन्द्रम्) जगदीश्वरम् (सुते) उपासनायज्ञे जीवनयज्ञे वा वयम् (हवामहे) आह्वयामः ॥ सप्त ऋत्विजस्तावद् ऋग्वेदे २।१।२ इत्यत्र एवं परिगणिताः—होता, पोता, नेष्टा, अग्नीत्, प्रशास्ता, अध्वर्युः, ब्रह्मा इति ॥ यद्वा, त्रयः उद्गातारः, होता, मैत्रावरुणः, ब्राह्मणाच्छंसी, अच्छावाकश्च इत्येते सोमयागीयाः सप्त ऋत्विजः ॥ सप्त दिशस्तावत् प्राची, प्रतीची, दक्षिणा, उदीची, ध्रुवा, ऊर्ध्वा, केन्द्रगता च ॥ आकाशस्थाः सप्त ऋषयश्च मरीचिः, वसिष्ठः, अङ्गिराः, अत्रिः, पुलस्त्यः, पुलहः, क्रतुरिति ॥ ऋग्वेदे सप्तसंख्यकानि वस्तूनि एवमुदीरितानि—“स॒प्त दिशो॒ नाना॑सूर्याः स॒प्त होता॑र ऋ॒त्विजः॑। दे॒वा आदि॒त्या ये स॒प्त तेभिः॑ सोमा॒भि र॑क्ष न॒ इन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव।” ऋ० ९।११४।३ इति। यजुर्वेदे २६।१ इत्यत्र सप्त संसदः एवमुक्ताः—‘अग्निः, वायुः, अन्तरिक्षम्, आदित्यः, द्यौः, आपः, वरुणश्चेति। अष्टमी च भूतसाधनी’ इति ॥२॥

    भावार्थः

    ब्रह्माण्डस्थाः सर्वेऽपि दिग्विदिगादयः पदार्थाः, शरीरस्थाः सर्वेऽपि मनोबुद्ध्यादयः, यज्ञस्थाः सर्वेऽपि ऋत्विजश्च जगदीश्वरस्यैव महिमानं गायन्ति ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।९२।२०, अथ० २०।११०।२। २. सप्त संसदः—सप्तर्त्विजः, त्रय उद्गातारः, होता, मैत्रावरुणः, ब्राह्मणाच्छंसी, अच्छावाकः—एते ऋत्विजः—इति वि०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The Yogis seated in seven Yogic postures, meditate fully on God, in whom all glories rest. We invoke Him when our heart is pure.

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    Meaning

    In our soma yajna of life, in meditation, and in the holy business of living, we invoke Indra, in whom all beauties and graces abide, whom all the seven seers in yajna adore, in whom all five senses, mind and intelligence subside absorbed, and under whom all the seven assemblies of the world unite, meet and act. (Rg. 8-92-20)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (यस्मिन्) જે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મામાં (विश्वाः श्रियः) સમસ્ત ઐશ્વર્ય શક્તિઓ અથવા પ્રકૃતિઓ સૂક્ષ્મ સત્તાઓ જગત નિર્માણ ધારણ માટે (अधि) અધિષ્ઠિત છે-વિદ્યમાન છે તથા (सप्त संसदः) સાત છંદોમય સ્તોમ-મંત્ર-જ્ઞાનધારાઓ અથવા સપ્ત-સમવેત થનારા ચેતન આત્માઓ (रणन्ति) રમણ કરે છે (इन्द्रं सुते हवामहे) તે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને ઉપાસનારસને માટે આમંત્રિત કરીએ છીએ. (૨)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મામાં સમસ્ત ઐશ્વર્ય-શક્તિઓ અથવા સૂક્ષ્મ પ્રકૃતિ સત્તાઓ રહેલી છે. જેમાં સાત ગાયત્રી આદિ છંદોમય મંત્ર જ્ઞાનધારાઓ અથવા તેમાં સાથે રહેનારી ચેતન સત્તાઓ છે, તે પરમાત્માને ઉપાસના-સમયે આમંત્રિત કરવો જોઈએ, અન્યને નહિ. (૨)
     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ब्रह्मांडात स्थित सर्व दिशा, विदिशा इत्यादी पदार्थ, शरीरात स्थित मन, बुद्धी इत्यादी व यज्ञात स्थित सर्व ऋत्विज जगदीश्वराच्याच महिमेचे गान गात आहेत, असे वाटते. ॥२॥

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    विषय

    पुढच्या मंत्रात गुरूकडून उपदेश प्राप्त करून शिष्यगण परमेश्वराचे आवाहन करीत आहेत.

    शब्दार्थ

    (यस्मिन् अधि) ज्याच्या अधिकारात (विश्वा क्षिय:) सर्व शोभा, सौंदर्य, सुख आहेत आणि (सप्त संसद:) सात ऋतिज, सात दिशा, सात प्रकारची सुर्यकिरणे, सात छन्द, सात मन-बुद्धी व पंच ज्ञानेंद्रिये आणि सात आकाशस्थ ऋषी (रणन्ति) ज्याची स्तुती करीत आहेत, त्या (इन्द्रम्) आदीश्वराला (सुते) उपासना यज्ञात अथवा जीवन यज्ञात आम्ही शिष्यगण (हरामहे) हाक मारीत आहोत त्याचे आवाहन करीत आहोत. ऋग्वेदाच्या २/१/२ या मंत्रात सात ऋत्विज असे सांगितले आहेत - होता, पोता, नेष्य, अग्नीत, प्रशास्ता, अध्वर्यु, ब्रह्मा सोमभागाचे सात ऋत्विज याप्रमाणे तीन उद्गाता, एक होता, एक मैत्रावरूण, एक ब्राह्मणाच्छंसी आणि एक अच्छावाक । सात दिशा - पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ध्रुवा, उर्ध्वा, आणि केंन्द्र । आकाशस्थ सात सप्तर्षींची नावे याप्रमाणे : मरीचि, वशिष्ठ, अड्रीरस, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह आणि ऋतु । ऋग्वेद ९/११४/३ मध्ये सात वस्तुंची गणना याप्रकारे केली आहे. सात दिशा, सात होता, ऋत्विज, सात सूर्यकिरणे । यजुर्वेद २६/१ मध्ये सप्त संसदे याप्रकारे सांगितली आहेत.

    भावार्थ

    ब्रह्मांडात स्थित सर्व दिशा, विदिशा आदी पदार्थ शरीरात विद्यमान मन, बुद्धी आणि यज्ञ्पत असणारे सर्व ऋत्विज त्या जगदीश्वराचा महिमा सांगत आहेत. ।।२।।

    विशेष

    अग्नि, वायू, अन्तरिक्ष, आदित्य, घौ, आप: आणि करूण । आठवी संसद भूतसाधती पृथ्वी आहे.

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