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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 757
    ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    20

    अ꣣यं꣡ विश्वा꣢꣯नि तिष्ठति पुना꣣नो꣡ भुव꣢꣯नो꣣प꣡रि꣢ । सो꣡मो꣢ दे꣣वो꣡ न सूर्यः꣢꣯ ॥७५७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣य꣢म् । वि꣡श्वा꣢꣯नि । ति꣣ष्ठति । पुनानः꣢ । भु꣡व꣢꣯ना । उ꣣प꣡रि꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । दे꣡वः꣢ । न । सू꣡र्यः꣢꣯ ॥७५७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं विश्वानि तिष्ठति पुनानो भुवनोपरि । सोमो देवो न सूर्यः ॥७५७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । विश्वानि । तिष्ठति । पुनानः । भुवना । उपरि । सोमः । देवः । न । सूर्यः ॥७५७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 757
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः उसी विषय का वर्णन है।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (सोमः) सौम्य, जगत्स्रष्टा परमात्मा (देवः) प्रकाशक (सूर्यः न) सूर्य के समान (विश्वानि) सब हृदयों को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (भुवना उपरि) सब भुवनों के ऊपर, उनका अधिष्ठाता बनकर (तिष्ठति) विराजमान है ॥३॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य सौरमण्डल का अधिष्ठाता है, वैसे ही परमात्मा विश्वब्रह्माण्ड का अधिष्ठाता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (अयं सोमः-देवः) यह शान्त परमात्मा (विश्वानि भुवना पुनानः) सारे लोक लोकान्तरों को शोधने के हेतु तथा गति देने के हेतु (उपरि तिष्ठति) उनके ऊपर अधिष्ठातारूप में विराजमान है (देवः-न सूर्यः) सूर्य दिव्यलोक की भाँति।

    भावार्थ

    सूर्य दिव्य पदार्थ के समान शान्त परमात्मा सब लोक लोकान्तरों को शोधने और गति देने के हेतु उनके ऊपर अधिष्ठाता के रूप में विराजमान है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    सर्वोच्च स्थान में

    पदार्थ

    (अयम्) = यह अवत्सार गत मन्त्र के सात प्रवतों में ऊपर और ऊपर चढ़ता हुआ (विश्वानि भुवना उपरि) = सब भुवनों के ऊपर (तिष्ठति) = ठहरता है । ऐसा वह इसलिए कर पाता है कि वह पुनान:-अपने को पवित्र करने के स्वभाववाला है। ज्ञान से वह अधिकाधिक निर्मल होता जाता है और ऊँचे और ऊँचे लोक में पहुँचता हुआ 'ऊर्ध्वा दिक्’ का अधिपति बनता है। इस दिशा का अधिपति बृहस्पति ही तो है । बृहस्पति और काश्यप एक ही हैं — दोनों का अर्थ ज्ञानी है। 

    सर्वोच्च स्थान में स्थित होता हुआ भी यह (सोमः) = विनीत होता है । विशेषता तो यह है कि सबसे उन्नत और सबसे विनीत । ('ब्रह्मणा अर्वाङ् विपश्यति') = ज्ञान के कारण यह सदा नीचे देखता है, अर्थात् नम्र होता है। सोम शब्द का अर्थ ‘स+उमा'=‘ब्रह्मज्ञानसहित' है, इस ब्रह्मज्ञान के कारण यह (देव: न सूर्य:) = सूर्य के समान चमकनेवाला है। जैसे सूर्य द्युलोक में स्थित है उसी प्रकार यह भी मस्तिष्करूप द्युलोक में स्थित होता है - ज्ञान प्रधान जीवन बिताता है । 

    भावार्थ

    हम सदा ज्ञानावस्थित चित्तवाले बनें ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( ३ ) ( अयं ) = यह ( सोमः ) = सोम, परमात्मा ( सूर्यः न ) = सूर्य के समान ( विश्वानि ) = समस्त ( भुवना उपरि ) = लोकों के ऊपर ( पुनानः ) = उनको गति देता हुआ और पवित्र करता हुआ ( तिष्ठति ) = उनपर शासन करने वाले अधिष्ठाता के रूप में विराजमान है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - अवत्सार:। देवता -अग्नि:। छन्द: - गायत्री। स्वरः - षड्ज:।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनस्तमेव विषयं वर्णयति।

    पदार्थः

    (अयम्) एषः (सोमः) सौम्यो जगत्स्रष्टा परमात्मा (देवः) प्रकाशकः (सूर्यः न) आदित्यः इव (विश्वानि) सर्वाणि हृदयानि (पुनानः) पावयन् (भुवना उपरि) सर्वेषां भुवनानाम् उपरि तेषामधिष्ठाता सन् (तिष्ठति) विराजते ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

    भावार्थः

    यथा सूर्यः सौरमण्डलस्याधिष्ठाता तथा परमात्मा विश्वब्रह्माण्डस्याधिष्ठाता विद्यते ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।५४।३।

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    God, purifying all worlds, stands high over them all, just as the lustrous Sun does.

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    Meaning

    This Soma, lord of light, peace and power, pure and purifying, pervades all regions of the universe in and above, like the divine light which illuminates all regions of the universe. (Rg. 9-54-3)

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    Translation

    God the Source of peace purifies all and stands high over all things that exist. He is the Dispeller of all darkness like the sun.

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    Translation

    After filtration and purification, the spiritual elixir of divine love shines in its splendour, and stands high over everything in the celestial region like the Sun.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अयं सोमः देवः) એ શાન્ત પરમાત્મા (विश्वानि भुवना पुनानः) સમસ્ત લોક-લોકાન્તરોને શુદ્ધ-પવિત્ર કરવા માટે તથા ગતિ આપવા માટે (उपरि तिष्ठति) તેની ઉપર અધિષ્ઠાતા રૂપમાં વિરાજમાન છે-બિરાજે છે. (देवः न सूर्यः) સૂર્ય દિવ્યલોકની જેમ.(૩)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સૂર્ય દિવ્ય પદાર્થની સમાન શાન્ત પરમાત્મા સમસ્ત લોક-લોકાન્તરોને પવિત્ર કરવા અને ગતિ આપવાના કારણે તેના ઉપર વિરાજમાન છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य सौरमंडलाचा अधिष्ठाता आहे, तसेच परमात्मा विश्वब्रह्मांडाचा अधिष्ठाता आहे. ॥३॥

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