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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 76
    ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
    59

    इ꣡डा꣢मग्ने पुरु꣣द꣡ꣳस꣢ꣳ स꣣निं꣡ गोः श꣢꣯श्वत्त꣣म꣡ꣳ हव꣢꣯मानाय साध । स्या꣡न्नः꣢ सू꣣नु꣡स्तन꣢꣯यो वि꣣जा꣢꣫वाग्ने꣣ सा꣡ ते꣢ सुम꣣ति꣡र्भू꣢त्व꣣स्मे꣢ ॥७६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣡डा꣢꣯म् । अ꣣ग्ने । पुरुदँ꣡स꣢म् । पु꣣रु । दँ꣡स꣢꣯म् । स꣣नि꣢म् । गोः । श꣣श्वत्तम꣢म् । ह꣡व꣢꣯मानाय । सा꣣ध । स्या꣢त् । नः꣣ । सूनुः꣢ । त꣡न꣢꣯यः । वि꣣जा꣡वा꣢ । वि꣣ । जा꣡वा꣢꣯ । अ꣡ग्ने꣣ । सा । ते꣣ । सुमतिः꣢ । सु꣣ । मतिः꣢ । भू꣣तु । अस्मे꣡इति꣢ ॥७६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडामग्ने पुरुदꣳसꣳ सनिं गोः शश्वत्तमꣳ हवमानाय साध । स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे ॥७६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इडाम् । अग्ने । पुरुदँसम् । पुरु । दँसम् । सनिम् । गोः । शश्वत्तमम् । हवमानाय । साध । स्यात् । नः । सूनुः । तनयः । विजावा । वि । जावा । अग्ने । सा । ते । सुमतिः । सु । मतिः । भूतु । अस्मेइति ॥७६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 76
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 4
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 8;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (अग्ने) सबके अग्रनायक परमात्मन् ! आप (हवमानाय) अग्निहोत्र करनेवाले तथा आत्मसमर्पण-रूप हवि देनेवाले मेरे लिए (इडाम्) भूमि, अन्न और प्रशस्त वाणी तथा (गोः) गाय की (पुरुदंसम्) अनेकों यज्ञकर्मों को सिद्ध करनेवाली (सनिम्) दूध, दही, मक्खन आदि देनों को (शश्वत्तमम्) निरन्तर (साध) प्रदान करते रहिए। (नः) हमारा (सूनुः) पुत्र (तनयः) वंश, धन, सुख, कीर्ति आदि का विस्तार करनेवाला, (विजावा) विजयशील और विविध ऐश्वर्यों का उत्पादक (स्यात्) होवे। हे (अग्ने) ज्योतिष्प्रदाता परमात्मन् ! (सा) वह प्रसिद्ध (ते) आपकी (सुमतिः) अनुग्रहात्मक बुद्धि (अस्मे) हमें (भूतु) प्राप्त होवे ॥४॥

    भावार्थ

    हे परमपिता परमात्मन् ! अग्निहोत्ररूप देवयज्ञ को तथा स्तुति, प्रार्थना, उपासना, समर्पणरूप ब्रह्मयज्ञ को करनेवाले मुझे कृपा कर कृषि एवं साम्राज्य के लिए भूमि, भोजन के लिए भोज्य अन्न आदि, ज्ञान-प्रसार के लिए प्रशस्त वाणी और शरीर की पुष्टि तथा दान के लिए गाय का दूध-दही-घी आदि प्रदान कीजिए। हमारी सन्तान को कुल, धन, धर्म, सुख, सामर्थ्य, न्याय, कीर्ति, चक्रवर्ती राज्य आदि का विस्तार करनेवाला और सब रिपुओं को जीतनेवाला बनाइये ॥४॥

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    पदार्थ

    (अग्ने) अग्रणेता परमात्मन्! (इडाम्) स्तुति स्थली मेरी हृदय भूमि “इडा पृथिवी” [निघं॰ १.१] को (गोः सनिम्) स्तुति का सम्मक्त—स्तुतिसिक्त बना दे “गौवाङ्नाम” [निघं॰ १.११] (पुरुदंसम्) बहुत कर्मशक्ति वाले—(शश्वत्तमम्) शाश्वतिक मोक्ष सुख को (हवमानाय साध) शुभ आह्वान करनेवाले उपासक के लिये सिद्ध कर, तथा (तनयः सूनुः) “तन तन्तुसन्ताने” “ततो घञर्थे कविधानं छान्दसम्” ‘तनं शरीरं याति प्राप्नोति यः स सूनुः प्राणः’ शरीर को प्राप्त सुनयनकर्ता प्राण (विजावा) विशेष प्रसिद्ध—प्रबल हो, ऐसी (ते) तेरी (सा सुमतिः) कल्याणी मति कृपाभावना (अस्मे-अस्तु) हमारे लिये हो।

    भावार्थ

    स्तुति से सिक्त—सनि हुई उपासक की हृदय स्थली जब हो जाती है तो अग्रणेता परमात्मा बहुत कर्मों से प्राप्त होने वाले नित्य सुख मोक्ष को उपासक के लिये सिद्ध करता है, तथा संसार में भी प्राण विशेष प्रसिद्ध बलवान् दीर्घ और स्वस्थ जीवन वाला हो जाता है और परमात्मा की कल्याणी मति—कृपादृष्टि भी प्राप्त होती है॥४॥

    विशेष

    ऋषिः—विश्वामित्रः (सबका मित्र और सब जिसके मित्र हैं ऐसा उपासक)॥<br>

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    विषय

    हमें आपकी सुमति प्राप्त हो

    पदार्थ

    हे (अग्ने)=प्रभो! (हवमानाय) = तुझे पुकारनेवाले मेरे लिए (शश्वत्तमम्) = सनातन (इडाम्) = वेदवाणी को–जोकि मानव के लिए [इडा-इ+ला= a law] सृष्टि के आरम्भ में दिया गया विधान है, (साध) = सिद्ध कीजिए। मैं इस वेदवाणी को अच्छी प्रकार समझ सकूँ। यह वेदवाणी (पुरुदंसम्) = पूरक और पालक कर्मों का उपदेश देनेवाली है [पुरु= पृ पालनपूरणयोः, दंस:-कर्म]। ‘मनुष्य को किस प्रकार अपनी न्यूनताओं को दूर करना और किस प्रकार पालक- अहिंसक कर्मों में प्रवृत्त होना' इस बात का उपदेश इस वेदवाणी में दिया गया है तथा यह वेदवाणी गो:सनिम्=ज्ञान की रश्मियों को देनेवाली है। प्रत्येक पदार्थ के तत्त्व का ज्ञान इसमें उपलभ्य है।

    (नः) = हमारे (सूनुः) = पुत्र भी हमारे पदचिह्नों पर चलते हुए (तनयः) = विस्तार करनेवाले, शरीर, मन व बुद्धि को विशाल बनानेवाले, यज्ञ को विस्तृत करनेवाले, शारीरिक, आत्मिक व सामाजिक सभी प्रकार की उन्नति करनेवाले हों। वस्तुतः जिन घरों में इस वेदवाणी का अध्ययन व अनुष्ठान चलता रहेगा, वहाँ वंश उत्तम बना रहेगा। इसलिए (अग्ने) = हे प्रभो! हमारी यही आराधना है कि (सा) = वह ते तेरी (सुमतिः) = वेद में उपदिष्ट कल्याणि मति अस्मे हममें भूतु सदा बनी रहे। हम संसार की चमक से आकृष्ट होकर उस सद्बुद्धि को छोड़ न दें। धन-धान्य, स्तुति–प्रशंसाएँ व शानदार जीवनादि के प्रलोभन हमें वेदोपदिष्ट न्याय्य मार्ग से विचलित न कर दें। हम संसार-चक्र में उलझकर राग-द्वेष में न फँस जाएँ ।

    भावार्थ

    हे प्रभो! आपकी कृपा से हम राग-द्वेष से ऊपर उठकर सदा आपका गायन करनेवाले ‘गाथिनः’ व प्राणिमात्र के मित्र ‘विश्वामित्र’ बन पाएँगे और इस प्रकार इस मन्त्र के ऋषि ‘गाथिन विश्वामित्र' होंगे।

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति

    भावार्थ

    भा० = हे ( अग्ने ) = परमेश्वर ! तू  ( हवमानाय ) = स्तुति भजन करने पुरुष के लिये ( पुरुदंसम् ) = बहुत कर्मों से सम्पन्न या इन्द्रियों को पुष्टिदायक, ( गो.सनिं ) = गोधन, इन्द्रिय, वाणी या सरस्वती, विद्या के देने हारे, ( शश्वत्तमं ) = चिरकाल तक ( इडाम् ) = अन्न, ज्ञान, एवं भक्ति को ( साध ) = प्राप्त करा । ( नः ) = हमारा ( सूनुः ) = पुत्र ( तनयः१   ) = अगली सन्तान का विस्तार करने वाला वंशधर ( विजावा२   ) = नाना प्रकार की सन्तानों का उत्पन्न करने हारा ( स्यात् ) = हो । ( ते सा सुमतिः ) = तेरी वही शोभन मति ( अस्मे ) = हमारे लिये ( भूतु ) = बनी रहे ।

    टिप्पणी

    ७६-पुरुदंससं । सा० भा० ।

    १. तनयः पुत्रः, तनोति विस्तारयति सन्ततिमिति । 
    २. विजावा विविधं जनयिता पुत्राणां, अनेन प्रकारेण वंशस्याविच्छेद आशास्यते ।  मा० वि० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - विश्वामित्र: ।

    छन्द: - त्रिष्टुभ ।

    देवता :- अग्नि: ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मा प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (अग्ने) सर्वाग्रणीः परमात्मन् ! त्वम् (हवमानाय) अग्निहोत्रम् आत्मसमर्पणं च कुर्वते मह्यम् (इडाम्) पृथिवीम् अन्नं प्रशस्तां वाचं वा। इडा पृथिवीनाम, अन्ननाम, वाङ्नाम च। निघं० १।१, २।७, १।११। (गोः) धेनोः (पुरुदंसम्२) पुरुदंससम् बहुयज्ञकर्मसाधकम्। पुरु बहुनाम, दंसः कर्मनाम। निघं० ३।१, २।१। (सनिम्) पयोदधिनवनीतादिरूपं दानं च। सन्यते दीयते इति सनिः। षणु दाने इति धातोः खनिकष्यज्यसिवसिवनिसनि०’ उ० ४।१४१ इति इः प्रत्ययः। (शश्वत्तमम्) निरन्तरम् (साध) साध्नुहि, देहि। साध संसिद्धौ, स्वादिः, अत्र विकरणव्यत्ययेन शः। (नः) अस्माकम् (सूनुः) पुत्रः (तनयः) वंशधनसुखकीर्त्यादिविस्तारकः। तनु विस्तारे इति धातोः वलिमलितनिभ्यः कयन्।’ उ० ४।१०० इति कयन् प्रत्ययः। नित्यादाद्युदात्तत्वम्। (विजावा३) विजयशीलः विविधैश्वर्यजनको वा (स्यात्) भूयात्। हे (अग्ने) ज्योतिष्प्रद परमात्मन् ! (सा) प्रसिद्धा (ते) तव (सुमतिः) अनुग्रहात्मिका बुद्धिः (अस्मे) अस्मभ्यम् (भूतु) भवतु। अत्र बहुलं छन्दसि। अ० २।४।७३ इति शपो लुक् ॥४॥४

    भावार्थः

    हे परमपितः परमात्मन् ! अग्निहोत्ररूपं देवयज्ञं, स्तुतिप्रार्थनोपासनासमर्पणरूपं ब्रह्मयज्ञं च कुर्वते मह्यं कृपया कृषिकरणाय साम्राज्याय वा पृथिवीम, भोजनाय भोज्यमन्नादिकं, ज्ञानप्रसाराय प्रशस्तां वाचं, शरीरपुष्ट्यै दानाय वा गव्यं पयोदधिघृतादिकं च प्रयच्छ। अस्माकं सन्तानं च कुलधनधर्मसुखसामर्थ्यन्यायकीर्तिचक्रवर्तिराज्यादीनां विस्तारकं सकलरिपुविजेतारं च कुर्याः ॥४॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ३।१।२३; ५।११; ६।११; ७।११; १५।७; २२।५; २३।५, य० १२।५१। २. पुरुदंसं बहुकर्माणम्। दंसः कर्म, एकः सकारो लुप्तः—इति भ०। ३. विजावा विजयशीलः। अत्र जि धातोरौणादिको वन् प्रत्ययो बाहुलकाद् आकारादेशश्च—इति ऋ० ३।१५।७ भाष्ये, विजावा विविधैश्वर्यजनकः—इति च य० १२।५१ भाष्ये द०। विजावा विविधं जनयिता पुत्राणाम्—इति वि०। विजावा स्त्री, विजयते इति। छन्दसीवनिपौ वक्तव्यौ (वा० ५।२।१०९) इति मत्वर्थीयो वनिप्। भगिनी—इति भ०। ते तव या सुमतिः शोभना बुद्धिः सा विजावा अवन्घ्या सती अस्मे अस्माकं भूतु भवतु—इति सा०। ४. दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयम् ऋग्भाष्ये यजुर्भाष्ये च विद्वत्पक्षे व्याख्यातः।

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O God, the Giver of cattle wealth, speech and Vedic learning, grant perpetually to the worshipper, knowledge, endowed with manifold actions. To us be born a son, who procreates the offspring and produces many children. May Thy will be gracious towards us.

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    Meaning

    Agni, lord of heaven and earth, give us, we pray, the abundance of mother earth which overflows with possibilities of action and achievement. Give us liberal gifts of cows and the universal form of speech and knowledge and lasting wealth. Make it possible for the performer of yajna. Bless us with brave and heroic children and grand children. Bless us with the favour of your kindness and benevolence under your benign eye. (Rg. 3-6-11)

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    Translation

    O fire-divine, may you grant wealth and wisdom to your most devoted worshipper, and may we have sons and grandsons to perpetuate our race. May your gracious favor ever remain with us.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (अग्ने) અગ્રણેતા = ઉન્નતિના માર્ગ પર લઈ જનાર પરમાત્મન્ ! (इडाम्) સ્તુતિસ્થાન મારી હૃદયભૂમિને (गोः सनिम्) સ્તુતિથી સિક્ત બનાવી દે (पुरुदंसम्) બહુ જ કર્મશક્તિવાળા (शश्वत्तमम्) શાશ્વત મોક્ષસુખનું (हवमानाय साध) શુભ આહ્વાન કરનાર ઉપાસકને માટે સિદ્ધ કર ; તથા (तनयः सूनुः) શરીરને પ્રાપ્ત સુનયનકર્ત્તા પ્રાણ (विजावा) વિશેષ પ્રસિદ્ધ - પ્રબળ બને , એવી (ते) તારી (सा सुमतिः) કલ્યાણમતિ કૃપાભાવના (अस्मे अस्तु) અમારા માટે થાય. (૪)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જ્યારે ઉપાસકની હૃદયસ્થલી સ્તુતિથી સિક્ત-આર્દ્ર બની જાય છે , ત્યારે અગ્રણેતા-અગ્રમાર્ગ પર લઈ જનાર પરમાત્મા અનેક કર્મોથી પ્રાપ્ત થનાર મોક્ષસુખ ઉપાસક માટે સિદ્ધ કરે છે ; તથા ઉપાસક સંસારમાં પણ પ્રાણ વિશેષ પ્રસિદ્ધ બળવાન , દીર્ઘ અને સ્વસ્થ જીવનવાળો બની જાય છે અને પરમાત્માની કલ્યાણમતિ-કૃપાદૃષ્ટિ પણ પ્રાપ્ત કરે છે. (૪)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    سَت کرموں کو پھیلانے والے سُپتر سُپتریاں

    Lafzi Maana

    (اگنے) ہے پرکاشمان جگت کے نیتا (اِڈام) میری سُتتی پرارتھنا بانی کو (اُپرودمسم) اپنے انوروپ مہا کرم کرنے والی (سادھ) بنا دو (گو سنِم) ویدبانیوں کے اُپدیشوں کا داتا (سادھ) بناویں (ہوّمانائے) آپ کے لئے اپنے آتما کی آہُوتی دینے والے مجھ عابد کے لئے (ششوت تمم) شاشوت موکھش کو سدھ کرو (نہ) ہمارے (سوُنوُ) پُتر سُپتریاں (ستنیہ) ست کرموں کو پھیلانے والے (سیات) ہوں اور (وِجاوا) وِجے شیِل ہوں۔ ویدوں کے ذریعے اُپدیش کی ہوئی (تے ساسوُمتی) آپ کی سوُمتی ہر سمے (ستو) ہمیں سدا پراپت رہے۔
    دھرم شیل سنتان ہو جس سے سب کو سُکھ خوشحالی ہو،
    دیو تمہاری پیاری بانی شبُھ متی دینے والی ہو۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे परमपिता परमात्मा! अग्निहोत्ररूपी देवयज्ञ व स्तुती, प्रार्थना, उपासना समर्पणरूपी ब्रह्मयज्ञ करणाऱ्या माझ्यावर कृपा कर. कृषी व साम्राज्यासाठी भूमी, भोजनासाठी भोज्य अन्न इत्यादी, ज्ञानप्रसारासाठी प्रशंसनीय वाणी व शरीर पुष्टीसाठी आणि दानासाठी गाईचे दूध-दही, तूप इत्यादी प्रदान कर. आमच्या संतानाला कुल, धन, धर्म, सुख, सामर्थ्य, न्याय, कीर्ती, चक्रवर्ती राज्य इत्यादीचा विस्तार करणारा व सर्व शत्रूंना जिंकणारा बनव. ॥४॥

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    विषय

    पुढील मंत्रात परमेश्वराला प्रार्थना केली आहे. -

    शब्दार्थ

    हे (अग्ने) सर्वांचे अग्रनायक परमात्मन् आपण (हवमानाय) अग्निहोत्र करणाऱ्या आणि आत्मसमर्पणरूप हवि आपणास देणाऱ्या मला (इडाम्) भूमी, अन्न, वाणी तसेच (गो:) गायींच्या (पुरुदंसम्) अनेक यज्ञकर्म पूर्ण करण्यास उपयोगी अशा (सनिम्) दूध, दही, लोणी आदी पदार्थांचे दान (शश्वतमम) सतत (साध) प्रदान करीत राहा. (न:) आमचा (सूनु:) पुत्र (तनय:) वंश, धन, सुख व कीर्तीचा विस्तार करणारा तसेच (विजाना) विषयी व यशस्वी आणि अनेक ऐश्वर्य उत्पादन करणारा (स्मात्) व्हावा. हे (अग्ने) ज्योतिप्रदायक परमात्मन् (ते) आपली (सा) ती (सुमति:) अनुग्रहपूरित बुद्धी (अस्मे) आम्हास (भूतु) प्राप्त व्हावी. (अशी आम्ही प्रार्थना करतो.) ।।४।।

    भावार्थ

    हे परमपिता परमात्मा, अग्निहोत्ररूप देवयज्ञ करणाऱ्या आणि आपली स्तुती, उपासना प्रार्थना, समर्पण या स्वरूपातील ब्रह्मयज्ञ करणाऱ्या मला आपण कृपा करून कृषी व साम्राज्यासाठी भूमी द्या. भोजनासाठी भोज्य पदार्थ द्या. ज्ञान प्रसारासाठी प्रशंसनीय वाणी आणि शरीराच्या पुष्टीकरीता तसेच दान देण्याकरीता गौधृत, गौदुग्ध आदी प्रदान पदार्थ प्रदान करा. आमच्या संतानास वंश, धन, धर्म, सुख, सामर्थ्य, न्याय, कीर्ती, चक्रवर्ती राज्य आदीचा विस्तार करणारा करा. असे करा की ज्यायोगे तो आमची संतती सर्व शत्रूंवर विजय मिळविणारी होईल. ।।४।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    அக்னியே! வெகு செயல்களுடனான பசுக்களின் ஐசுவரியத்தையும் உணவைப் போல் நித்தியமாக, உன்னை அழைப்பவனுக்கு சாதிக்கவும், எங்களுக்கு மகனும் பேரனுமாகட்டும். உன் சுபமுடனான சித்தம் எங்களுக்கு சிறந்தோங்கட்டும்.

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