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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 788
    ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    23

    ये꣡ ते꣢ प꣣वि꣡त्र꣢मू꣣र्म꣡यो꣢ऽभि꣣क्ष꣡र꣢न्ति꣣ धा꣡र꣢या । ते꣡भि꣢र्नः सोम मृडय ॥७८८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये꣢ । ते꣣ । पवि꣡त्र꣢म् । ऊ꣣र्म꣡यः꣢ । अ꣣भिक्ष꣡र꣢न्ति । अ꣣भि । क्ष꣡र꣢꣯न्ति । धा꣡र꣢꣯या । ते꣡भिः꣢꣯ । नः꣣ । सोम । मृडय ॥७८८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते पवित्रमूर्मयोऽभिक्षरन्ति धारया । तेभिर्नः सोम मृडय ॥७८८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये । ते । पवित्रम् । ऊर्मयः । अभिक्षरन्ति । अभि । क्षरन्ति । धारया । तेभिः । नः । सोम । मृडय ॥७८८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 788
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर उन्हीं को सम्बोधन है।

    पदार्थ

    हे (सोम) ज्ञान के प्रेरक परमात्मन् वा आचार्य ! (ये ते) जो आपकी (ऊर्मयः) आनन्दरस और ज्ञानरस की लहरें (धारया) धारारूप से (पवित्रम्) पवित्र हृदय को (अभि) लक्ष्य करके (क्षरन्ति) बहती हैं, (तेभिः) उनसे (नः) हमें (मृडय) सुखी कीजिए ॥२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर स्तोताओं को आनन्दरस की लहरों से और आचार्य शिष्यों को ज्ञानरस की लहरों से तरङ्गित करते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् (ये ते) जो तेरी (ऊर्मयः) आनन्द तरङ्गे (धारया) धाराप्रवाह से निरन्तर (पवित्रम्-अभिक्षरन्ति) पवित्ररूप में अभिक्षरित होती हैं (तेभिः) उन से (नः) हमको (मृळय) सुखी कर।

    भावार्थ

    शान्तस्वरूप परमात्मा की आनन्द तरङ्गें धाराप्रवाह से निरन्तर पवित्र बह रही हैं। उनके द्वारा हम उपासकों को सुखी करता है॥२॥

    विशेष

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    विषय

    प्रभु का प्रकाश

    पदार्थ

    हे (सोम) = [स+उमा] = ज्ञानसहित प्रभो ! (ये) = जो (ते) = तेरे (ऊर्मय:) = ज्ञान के प्रकाश [Lights]= (धारया) - वेदवाणी के द्वारा अथवा धारण के हेतु से (पवित्रम् अभिक्षरन्ति) = हृदयाकाश को पवित्र करनेवाले की ओर [क्षर To flow] बहते हैं, (तेभिः) = उन प्रकाशों से (नः) = हमें (मृडय) = सुखी कीजिए । सब क्लेशों का मूल 'अविद्या' है । अज्ञान के कारण ही सब क्लेश - कष्ट हैं । क्लेशों से ऊपर उठने के लिए प्रकाश की आवश्यकता है। प्रभु ने इस प्रकाश को वेदवाणी में रक्खा है । वेदवाणी में निहित ये प्रकाश उस व्यक्ति को प्राप्त होते हैं, जो अपने हृदय को पवित्र बनाता है। 

    भावार्थ

    हम पवित्र बनें, प्रभु के प्रकाश को प्राप्त करें और सुखी जीवनवाले हों ।
     

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (सोम) समस्त संसार के उत्पादक ! प्रेरक ! (ते ऊर्मयः) तेरी शक्तियां (धारया) समस्त संसार को धारण करने हारी शक्ति के रूप में (पवित्रम्) हमारे अन्तःकरण में (अभि क्षरन्ति) प्रकट होती हैं। तू (तेभिः) उनसे (नः) हमें (मृडय) सुखी कर।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तावेव सम्बोध्येते।

    पदार्थः

    हे (सोम) ज्ञानप्रेरक परमात्मन् आचार्य वा ! (ये ते) ये तव (ऊर्मयः) आनन्दरसस्य ज्ञानरसस्य वा तरङ्गाः (धारया) धारारूपेण (पवित्रम्) पावनं हृदयम् (अभि) अभिलक्ष्य (क्षरन्ति) प्रवहन्ति(तेभिः) तैः (नः) अस्मान् (मृडय) सुखय ॥२॥

    भावार्थः

    परमेश्वरः स्तोतॄनानन्दरसतरङ्गैराचार्यश्च शिष्यान् ज्ञानरसतरङ्गैस्तरङ्गयतः ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६१।५।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, Thy powers reveal themselves in our heart in the shape of Thy power of sustaining the universe 1 With these be gracious unto us.

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    Meaning

    The streams of your piety, purity, peace and plenty rain in showers for the pure heart and soul in humanity. O Soma, with those showers, pray bless us with happiness, prosperity and all round well being. (Rg. 9-61-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सोम) હે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! (ये ते) જે તારી (ऊर्मयः) આનંદ તરંગો (धारया) ધારા પ્રવાહથી નિરંતર (पवित्रम् अभिक्षरन्ति) પવિત્રરૂપમાં વહી રહ્યાં છે. (तेभिः) તેના દ્વારા (नः) અમને (मृळय) સુખી કર. (૨)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : શાંત સ્વરૂપ પરમાત્માના આનંદ તરંગો દ્વારા પ્રવાહમાં નિરંતર પવિત્ર વહી રહ્યા છે. તેના દ્વારા અમને-ઉપાસકોને સુખી કરે છે. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर प्रशंसकांना आनंदरसाच्या तरंगांनी व आचार्य शिष्यांना ज्ञानरसाच्या तरंगांनी तरंगित करतात. ॥२॥

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