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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 803
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
18
वृ꣡षा꣢ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या म꣣रु꣡त्व꣢ते च मत्स꣣रः꣢ । वि꣢श्वा꣣ द꣡धा꣢न꣣ ओ꣡ज꣢सा ॥८०३॥
स्वर सहित पद पाठवृ꣡षा꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । म꣣रु꣡त्व꣢ते । च꣣ । मत्सरः꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯ । द꣡धा꣢꣯नः । ओ꣡ज꣢꣯सा ॥८०३॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषा पवस्व धारया मरुत्वते च मत्सरः । विश्वा दधान ओजसा ॥८०३॥
स्वर रहित पद पाठ
वृषा । पवस्व । धारया । मरुत्वते । च । मत्सरः । विश्वा । दधानः । ओजसा ॥८०३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 803
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ४६९ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्या दी गयी थी। यहाँ आचार्य का विषय प्रदर्शित किया जा रहा है।
पदार्थ
हे पवमान सोम अर्थात् पवित्र करनेवाले आचार्य ! (वृषा) विद्या के वर्षक आप (धारया) ज्ञान-धारा से (पवस्व) शिष्यों को पवित्र कीजिए। (मरुत्वते) प्राणायाम का अभ्यास करनेवाले शिष्य के लिए (मत्सरः) ब्रह्मानन्द के स्रावक होइए। साथ ही (ओजसा) विद्या-बल, सदाचार-बल और ब्रह्मचर्य-बल से (विश्वा) सब शिष्यों को (दधानः) धारण कीजिए ॥१॥
भावार्थ
वही आचार्य होता है, जो शिष्यों को विद्या की धाराओं से स्नान कराता हुआ, उनका पिता के समान पालन करता हुआ उन्हें महान् पण्डित, तेजस्वी, ब्रह्मचारी, ब्रह्मानन्द में मग्न तथा सदाचारी बनाये ॥१॥
टिप्पणी
(देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ४६९)
विशेष
ऋषिः—वारुणिर्भृगुर्जमदग्निर्वा (वरुणविद्याकुशल तेजस्वीजन या प्रज्वलित ज्ञानाग्नि वाला)॥ देवता—पवमानः सोमः (आनन्दधारा में आता हुआ शान्त परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
पदार्थ
४६९ संख्या पर मन्त्रार्थ द्रष्टव्य है ।
विषय
missing
भावार्थ
व्याख्या देखो अवि० सं० [ ४६९ ]।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
missing
संस्कृत (1)
विषयः
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४६९ क्रमाङ्के परमात्मविषये व्याख्याता। अत्राचार्यविषयः प्रदर्श्यते।
पदार्थः
हे पवमान सोम पावित्र्यसम्पादक आचार्य ! (वृषा) विद्यावर्षकः त्वम् (धारया) ज्ञानधारया (पवस्व) शिष्यान् पुनीहि। (मरुत्वते) प्राणायामाभ्यासिने शिष्याय (मत्सरः) ब्रह्मानन्दस्रावको भवेति शेषः। किञ्च, (ओजसा) विद्याबलेन सदाचारबलेन ब्रह्मचर्यबलेन च (विश्वा) विश्वान् शिष्यान्। [अत्र ‘सुपां सुलुक्०। अ० ७।१।३९’ इति शसः आकारादेशः।] (दधानः) धारयन् पुष्णंश्च भवेति शेषः ॥१॥
भावार्थः
स एवाचार्यो यः शिष्यान् विद्याधाराभिः स्नपयन् तान् पितृवत् पालयन् पण्डितप्रकाण्डांस्तेजस्विनो ब्रह्मचारिणो ब्रह्मानन्दमग्नान् सदाचारिणश्च कुर्यात् ॥१॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।६५।१०, साम० ४६९।
इंग्लिश (2)
Meaning
Let Soma, infuser of strength, master of various qualities, imparter of happiness, increaser of semen, be available with its flow for the King.
Translator Comment
See verse 469.
Meaning
O lord of absolute abundance and creativity, sustainer of all worlds of existence by absolute power and grandeur, you are all bliss for the people of vibrancy, action and gratitude. Pray bring us showers of peace, purity and power for the good life. (Rg. 9-65-10)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ (वृषा मत्सरः) હે સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું આનંદ વર્ષક અને હર્ષાળુ બનીને (मरुत्वते च) પ્રાણવાળા ઉપાસકને માટે (धारया पवस्व) ધારણાથી પ્રાપ્ત થા (ओजसा विश्वा दधानः) પોતાના ઓજથી, પ્રતાપથી સર્વ દિવ્યગુણો તથા સુખોને ધારણ કરાવતા આવ. (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : આનંદ અને હર્ષની વૃષ્ટિ કરનાર, શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા ઉપાસકને માટે આનંદધારામાં આવે છે તથા ઉપાસકની અંદર પોતાનો પ્રતાપ આનંદિત કરી દે છે. (૩)
मराठी (1)
भावार्थ
जो शिष्यांना विद्येच्या धारांनी स्नान करवून, त्यांचे पित्याप्रमाणे पालन करतो, तोच आचार्य असतो. त्याने त्यांना महान पंडित, तेजस्वी, ब्रह्मचारी, ब्रह्मानंदात मग्न व सदाचारी बनवावे. ॥१॥
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