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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 823
    ऋषिः - पृष्णयोऽजाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
    25

    अ꣣यं꣡ पु꣢ना꣣न꣢ उ꣣ष꣡सो꣢ अरोचयद꣣य꣡ꣳ सिन्धु꣢꣯भ्यो अभवदु लोक꣣कृ꣢त् । अ꣣यं꣢꣫ त्रिः स꣣प्त꣡ दु꣢दुहा꣣न꣢ आ꣣शि꣢र꣣ꣳ सो꣡मो꣢ हृ꣣दे꣡ प꣢वते꣣ चा꣡रु꣢ मत्स꣣रः꣢ ॥८२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣य꣢म् । पु꣣ना꣢नः । उ꣣ष꣡सः꣢ । अ꣣रोचयत् । अय꣢म् । सि꣡न्धु꣢꣯भ्यः । अ꣣भवत् । उ । लोककृ꣢त् । लो꣣क । कृ꣢त् । अ꣣य꣢म् । त्रिः । स꣣प्त꣢ । दु꣣दुहानः꣢ । आ꣣शि꣡र꣢म् । आ꣣ । शि꣡र꣢꣯म् । सो꣡मः꣢꣯ । हृ꣣दे꣢ । प꣣वते । चा꣡रु꣢꣯ । म꣣त्स꣢रः ॥८२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं पुनान उषसो अरोचयदयꣳ सिन्धुभ्यो अभवदु लोककृत् । अयं त्रिः सप्त दुदुहान आशिरꣳ सोमो हृदे पवते चारु मत्सरः ॥८२३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । पुनानः । उषसः । अरोचयत् । अयम् । सिन्धुभ्यः । अभवत् । उ । लोककृत् । लोक । कृत् । अयम् । त्रिः । सप्त । दुदुहानः । आशिरम् । आ । शिरम् । सोमः । हृदे । पवते । चारु । मत्सरः ॥८२३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 823
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः परमात्मा का विषय है।

    पदार्थ

    (अयम्) इस (पुनानः) पवित्र करते हुए सोम ने, सर्वोत्पादक परमात्मा ने (उषसः) उषाओं को (अरोचयत्) चमकाया है। (अयम्) यह सोम, सर्वप्रेरक परमात्मा (सिन्धुभ्यः) नदियों के लिए (लोककृत्) यश करनेवाला (अभवत् उ) हुआ है। (अयम्) यह (सोमः) रसागार परमात्मा (त्रिः सप्त) इक्कीस छन्दों से युक्त वेदवाणी रूप गौओं से (आशिरम्) ज्ञानरूप दुग्ध (दुदुहानः) दुहता हुआ (हृदे) उपासक के हृदय के लिए (मत्सरः) आनन्दजनक होता हुआ (चारु) सुन्दर रूप में (पवते) प्रवाहित हो रहा है ॥३॥ यहाँ एक सोमरूप कर्त्ता कारक से अनेक क्रियाओं का योग होने से दीपक अलङ्कार है ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा ही सारे सृष्टि के कार्य का सञ्चालन करता है, उसी ने हमें वेद-रूपिणी गाय दी है, वही स्तोता के हृदय में रस का सञ्चार करता है ॥३॥ इस खण्ड में भी परमेश्वर, आचार्य तथा ब्रह्मानन्द-रस आदि का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ तृतीय अध्याय में पञ्चम खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (अयं सोमः) यह शान्तस्वरूप परमात्मा (पुनानः-उषसः-अरोचयत्) अध्येषित हुआ ध्याया हुआ ज्ञानप्रकाशधाराओं को चमका देता है (सिन्धुभ्यः-लोककृत्-अभवत्) प्राणों के लिए “प्राणो वै सिन्धुः” [श॰ ८.५.२.४] प्रतिष्ठा करने वाला है “इम उ लोकाः प्रतिष्ठा” [श॰ ८.३.१.१०] (अयं त्रिः सप्त-आशिरं दुदुहानः) यह परमात्मा स्तुति प्रार्थना उपासना में सृप्त चला हुआ “सप्त सृप्तः” [निरु॰ ४.२५] आनन्द आश्रय को दोहन करता हुआ (हृदे मत्सरः-चारु पवते) हृदय के लिए हर्षकर हो सुन्दर रूप में प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    शान्तस्वरूप परमात्मा ध्याया हुआ ज्ञानज्योतियों को प्रकाशित करता है। प्राणों को यथावत् प्रतिष्ठित करता है। स्तुति प्रार्थना उपासना में चलाया हुआ, आनन्द आश्रय को दोहन करता हुआ, हृदय के लिये हर्षकर सुन्दर रूप में प्राप्त होता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    चार प्रयत्न

    पदार्थ

    (अयम्) = यह सिकता निवावरी उषस:- बहुत सवेरे से ही पुनान:- अपने जीवन को पवित्र करता हुआ अरोचयत्=अपने सब कोशों को उज्ज्वल व दीप्त करता है। सब कोशों का स्वास्थ्य नैर्मल्य पर ही निर्भर करता है । शरीर में मल [Foreign matter] बढ़ते ही मनुष्य रोगी हो जाता है। इन्द्रियों का मल विषयपंक है-मन का राग-द्वेष तथा बुद्धि की कुण्ठता और अन्त में आनन्दमय कोश का मल असहिष्णुता है । यह प्रातः से ही इन मलों के शोधन में लगता है और अपने समूचे जीवन को दीप्त बनाता है। २. उ- और अयम् - यह सिकता निवावरी सिन्धुभ्यः-स्यन्दन के स्वभाववाले रेत:कणों से [आप: रेतः भूत्वा] अपने जीवन में लोककृत्= [लोक् दर्शने] प्रभु का दर्शन करनेवाला अभवत्-बनता है । वस्तुतः सुरक्षित सोम [रेतस्] ने ही हमें उस सोम [प्रभु] का दर्शन कराना है। 'यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति' प्रभु-दर्शन के लिए यह ब्रह्मचर्य आवश्यक ही है। ३. अयम्=यह त्रिसप्त=१० इन्द्रियाँ १० प्राण व एक मन इन इक्कीस साधनों को दुदुहान:- [दुह प्रपूरणे] न्यूनताओं को दूर करके शक्ति से भरता हुआ ४. सोमः = यह शक्ति का पुञ्ज तथा सौम्य स्वभाववाला हृदे=हृदय में [हृदि] उस चारु आशिरम् - सुन्दर आश्रयभूत प्रभु को [श्रिञ् सेवायाम् से आशिर] पवते - प्राप्त होता और मत्सर:=आनन्दमय जीवनवाला होता है । 

    भावार्थ

    हम प्रातः से ही अपना परिमार्जन प्रारम्भ करें तभी हृदयस्थ प्रभु का हम दर्शन कर पाएँगे।

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    विषय

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    भावार्थ

    (अयं) यह सोम (पुनानः) क्षरित होता हुआ (उषसः) प्रकाशित तेजःपटल को (अरोचयत्) और अधिक उज्ज्वल कर देता है। (अयं) और यह सोम (सिन्धुभ्यः) शरीर के भीतर बहने वाली ज्ञानधाराओं या नाड़ियों को (उ) भी (लोककृत्) अधिक कान्तिमान् करने वाला (अभवन्) होता है। (अयं सोमः) यह सोम, ब्रह्मानन्दरस (त्रिःसप्त) २१ प्रकारों से (आशिरं) आनन्दरस को (दुदुहानः) उत्पन्न करता हुआ (हृदे) हृदय में (मत्सरः) आनन्द बहाता हुआ (चारू) उत्तम रूप से (पवते) प्रकट होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः परमात्मविषयमाह।

    पदार्थः

    (अयम्) एषः सोमः सर्वोत्पादकः परमात्मा (पुनानः) पावयन् (उषसः) प्रभातकान्तीः (अरोचयत्) अदीपयत्। (अयम्) एषः सोमः सर्वप्रेरकः परमात्मा (सिन्धुभ्यः) नदीभ्यः (लोककृत्) यशस्कृत् (अभवत् उ) अजायत खलु। (अयम्) एषः (सोमः) रसागारः परमात्मा (त्रिः सप्त) एकविंशतिच्छन्दोयुक्ता वेदवाग्रूपाः गाः (आशिरम्) ज्ञानदुग्धम् (दुदुहानः) दुहानः। [द्विकर्मकोऽयं दुह् धातुः।] (हृदे) उपासकस्य हृदयाय (मत्सरः) आनन्दजनकः सन् (चारु) रुचिरं यथा स्यात् तथा (पवते) प्रवहति ॥–३॥ अत्रैकेन सोमरूपेण कर्तृकारकेणानेकक्रियायोगाद् दीपकालङ्कारः ॥–३॥

    भावार्थः

    परमात्मैव सर्वं सृष्टिकर्म सञ्चालयति, स एव वेदरूपां गां नः प्रददौ, स एव च स्तोतुर्हृदये रसं सञ्चारयति ॥–३॥ अस्मिन्नपि खण्डे परमेश्वरस्याचार्यस्य ब्रह्मानन्दरसादेश्च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन सह संगतिरस्ति ॥–

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।८६।२१, ‘अरोचयदयं’ इत्यत्र ‘विरो॑चयद॒यं’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This Soma, oozing out, makes more pleasant the time of the appearance of knowledge. It makes more lovely the arteries of the body, that convey knowledge. It creates happiness through twenty one channels, fills the heart with joy and flows nicely.

    Translator Comment

    $ Soma refers to God's supreme felicity. Twenty one channels: Mind, Ten breaths, Ten organs of cognition ज्ञान and action कर्म. Sayana interprets त्रिसप्त as 21 cows. Griffith interprets the words ‘The three times seven’ as the seven Celestial rivers, corresponding to the rivers of earth multiplied by three to accord with the threefold division of the heavens. The interpretation is illogical and unappealing.

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    Meaning

    This Soma, illuminating the dawns, became the maker of the worlds from the oceanic flood of particles of Prakrti, the one material cause of the universe. Creating the milk of nourishment and sustenance of life from thrice seven orders of Prakrti, Mother Nature, its own shakti, that is, three modes of sattva, rajas and tamas (mind, motion and matter), two generalities of Mahat and Ahankara (tangible nature from the intangible, and identity from the tangible) and five specificities of basic elements (Akasha, Vayu, Agni, Apah and Prthivi), it flows pure, purifying, beatific and ecstatic in the heart core of the soul. (Rg. 9-86-21)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अयं सोमः) એ શાન્તસ્વરૂપ પરમાત્મા (पुनानः उषसः अरोचयत्) અધ્યેષિત બનીને ધ્યાન કરેલા જ્ઞાન-પ્રકાશ ધારાઓને ચમકાવી દે છે (सिन्धुभ्यः लोककृत् अभवत्) પ્રાણોને માટે પ્રતિષ્ઠા કરનાર છે (अयं त्रिः सप्त आशिरं दुदुहानः) એ પરમાત્મા સ્તુતિ, પ્રાર્થના ઉપાસનામાં સૃપ્ત ચાલતાં આનંદ આશ્રયનું દોહન કરતાં (हृदे मत्सरः चारु पवते) હૃદયને માટે હર્ષ-આનંદદાયક બનીને સુંદર રૂપમાં પ્રાપ્ત થાય છે. (૩)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા ધ્યાન કરેલાં જ્ઞાન જ્યોતિઓને પ્રકાશિત કરે છે. પ્રાણોને યથાવત્ પ્રતિષ્ઠિત કરે છે. સ્તુતિ, પ્રાર્થના, ઉપાસનામાં ચલાવેલા, આનંદ આશ્રયને દોહન કરતાં, હૃદયને માટે હર્ષકર-સુંદર રૂપમાં પ્રાપ્ત થાય છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्माच संपूर्ण सृष्टीचे संचालन करतो. त्यानेच आम्हाला वेद-रूपिणी गाय दिलेली आहे, तोच स्तोत्याच्या हृदयात रसाचा संचार करतो ॥३॥ या खंडात ही परमेश्वर आचार्य व ब्रह्मानंद-रस इत्यादीचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे

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