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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 825
    ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    25

    ए꣣वा꣢ रा꣣ति꣡स्तु꣢विमघ꣣ वि꣡श्वे꣢भिर्धायि धा꣣तृ꣡भिः꣢ । अ꣡धा꣢ चिदिन्द्र नः꣣ स꣡चा꣢ ॥८२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣व꣢ । रा꣣तिः꣢ । तु꣣विमघ । तुवि । मघ । वि꣡श्वे꣢꣯भिः । धा꣣यि । धातृ꣡भिः꣢ । अ꣡ध꣢꣯ । चि꣣त् । इन्द्र । नः । स꣡चा꣢꣯ ॥८२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा रातिस्तुविमघ विश्वेभिर्धायि धातृभिः । अधा चिदिन्द्र नः सचा ॥८२५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एव । रातिः । तुविमघ । तुवि । मघ । विश्वेभिः । धायि । धातृभिः । अध । चित् । इन्द्र । नः । सचा ॥८२५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 825
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    इस प्रकार अपने आत्मा को उद्बोधन देकर अब परमात्मा को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (तुविमघ) बहुत धनी परमेश ! (एव) सचमुच, तेरा (रातिः) दान (विश्वेभिः) सब (धातृभिः) धारकों के द्वारा (धायि) धारण किया हुआ है। (अध चित्) इसके अतिरिक्त, हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् विपत्तिविदारक परमात्मन् ! तू (नः) हमारा (सचा) नित्य का साथी है ॥२॥

    भावार्थ

    जगदीश्वर यदि हमारा सखा हो जाता है तो हमारे लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता ॥२॥

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    पदार्थ

    (तुविमघ-इन्द्र) हे बहुत प्रकार धनस्वामिन् ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तुझ से (विश्वेभिः-धातृभिः) सब धारणा ध्यान करने वाले उपासकजन (रातिः-धायि) अध्यात्म सम्पत्ति—अमरता धारते हैं (अध-एव चित्-नः सच) ऐसे फिर हमारा भी सहायक बन।

    भावार्थ

    बहुविध धनस्वामिन् ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! जैसे धारणा ध्यान करने वाले उपासकजन तुझ अमरता रूप सम्पत्ति को धारते, प्राप्त करते हैं, वैसे अब हमें भी उस अमरतारूप सम्पत्ति प्रदान करने में हमारा सहायक बन॥२॥

    विशेष

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    विषय

    धन या इन्द्र

    पदार्थ

    श्रुतकक्ष' - ज्ञान को ही अपनी शरण बनानेवाला ('सुकक्ष') = उत्तम शरणवाला ('आंगिरस') = शक्तिशाली प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि समझता है कि (एवा) = [truly, realy] = सचमुच (विश्वेभिः धातृभिः) = संसार में सब धारण करनेवालों से हे (तुवीमघ) = अनन्त ऐश्वर्यवाले प्रभो ! (रातिः) = आपका दान ही धायि धारण किया जाता है। संसार में जिस-जिस मनुष्य के पास धन है और जो धन से अपने को औरों का धारण करता हुआ समझता है, वह सब धन वस्तुत: उस प्रभु के द्वारा ही उसके पास रक्खा गया है। वह व्यक्ति तो उस धन का ट्रस्टीमात्र है। सामान्यतः संसार में मनुष्य अपने को ही इस धन का धनी समझने लगता है। उस समय प्रभु का सत्य स्वरूप इस धन के द्वारा इससे ओझल कर दिया जाता है। 

    जब यह इस सत्यता को जान लेता है कि मैं तो प्रभु के धन को ही धारण करनेवाला हूँ, इसमें मेरा कुछ नहीं तब वह हिरण्यमय पात्र का ढक्कन उठ जाता है, (अधा) = और अब (चित्) = निश्चय से हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यशाली प्रभो ! आप (नः) = हमारे (सचा) = साथी होते हो । मनुष्य धन का अपने को धारकमात्र समझे तो उसका घमण्ड समाप्त हो जाता है। उसके ज्ञानचक्षु पर लोभ का पर्दा नहीं आता और वह परमेश्वर का मित्र बन पाता है ।

    भावार्थ

    हम श्रुतकक्ष बनें । अपने को धन का धारकमात्र समझें और प्रभु का दर्शन करें।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (तुवीमघ!) ऐश्वर्यवन् ! (इन्द) आत्मन् ! (विश्वेभिः) समस्त (धातृभिः) धारण करने वाले लोग (रातिः) तेरे दिये दान को (एव) ही (धायि) धारण करते हैं। (अध चित्) और हे (इन्द्र) आत्मन् ! आप (नः) हमारे (सचा) सदा सहायक हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    एवं स्वात्मानमुद्बोध्य सम्प्रति परमात्मानं ब्रूते।

    पदार्थः

    हे (तुविमघ) बहुधन परमेश ! (एव) सत्यमेव, तव (रातिः) दानम् (विश्वेभिः) सर्वैः (धातृभिः) धारकैः (धायि) अधायि, धियते। (अध चित्) तदतिरिक्तम्, हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् विपत्तिविदारक परमात्मन्, त्वम् (नः) अस्माकम् (सचा) नित्यं सहभवः सखा भवसि ॥–२॥

    भावार्थः

    जगदीश्वरश्चेदस्माकं सखा जायते तर्हि न किमप्यस्मभ्यं दुर्लभम् ॥–२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।९२।२९, अथ० २०।६०।२ उभयत्र ‘तुविमघ’ इत्यत्र ‘तु॑वीमघ॒’ ‘नः’ इत्यत्र च ‘मे॒’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O King, the Lord of wealth, all thy dependents accept thy charity. O King, be thou our supporter !

    Translator Comment

    The verse may apply to a King as well.

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    Meaning

    Indra, generous lord of the wealth and glory of the world, thus by practice and meditation, is divine generosity cultivated and achieved by all those who bear and bring the offerings to you. O lord of power and immense generosity, be our friend and companion. (Rg. 8-92-29)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (तुविमघ इन्द्र) હે અનેક રીતે ધન સ્વામિન્ ઐશ્વર્યવત્ પરમાત્મન્ ! તારાથી (विश्वेभिः धातृभिः) સમસ્ત ધારણા-ધ્યાન કરનારા ઉપાસકજનો (रातिः धायि) અધ્યાત્મ સંપત્તિ-અમરતાને ધારણ કરે છે. (अध एव चित् नः सच) એમ અમારો પણ સહાયક બન. (૨)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : અનેકવિધ ધનસ્વામિન્ ઐશ્વર્યવન્ પરમાત્મન્ ! જેમ ધારણા, ધ્યાન કરનારા ઉપાસકજનો તને અમરતા રૂપ સંપત્તિ ધારણ-પ્રાપ્ત કરે છે, તેમ હવે અમને પણ તે અમરતારૂપ સંપત્તિ પ્રદાન કરવામાં અમારો સહાયક બન. (૨)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जगदीश्वर जर आमचा सखा झाला तर आम्हाला काहीही दुर्लभ नाही. ॥२॥

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