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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 835
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    32

    आ꣡ न꣢ इन्दो शात꣣ग्वि꣢नं꣣ ग꣢वां꣣ पो꣢ष꣣ꣳ स्व꣡श्व्य꣢म् । व꣢हा꣣ भ꣡ग꣢त्तिमू꣣त꣡ये꣢ ॥८३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣡ । नः꣣ । इन्दो । शतग्वि꣡न꣢म् । श꣣त । ग्वि꣡न꣢꣯म् । ग꣡वा꣢꣯म् । पो꣡ष꣢꣯म् । स्व꣡श्व्य꣢꣯म् । सु꣣ । अ꣡श्व्य꣢꣯म् । व꣡ह꣢꣯ । भ꣡ग꣢꣯त्तिम् । ऊ꣣त꣡ये꣢ ॥८३५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न इन्दो शातग्विनं गवां पोषꣳ स्वश्व्यम् । वहा भगत्तिमूतये ॥८३५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । इन्दो । शतग्विनम् । शत । ग्विनम् । गवाम् । पोषम् । स्वश्व्यम् । सु । अश्व्यम् । वह । भगत्तिम् । ऊतये ॥८३५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 835
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    हे (इन्दो) तेजस्विन् धनाधीश परमात्मन् ! (ऊतये) रक्षा के लिए (नः) हमें (शातग्विनम्) सैंकड़ों लोगों के पास जानेवाले (गवां पोषम्) गायों या वाणियों के पोषण को, (स्वश्व्यम्) उत्कृष्ट घोड़ों व प्राणबलों के समूह को और (भगत्तिम्) ऐश्वर्यों को दान को (आ वह) प्राप्त कराओ ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा की उपासना से पुरुषार्थ के लिए प्रेरणा प्राप्त कर सब भौतिक और आध्यात्मिक वैभव पाया जा सकता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (इन्दो) हे दीप्तिमन् आनन्दरसवन् परमात्मन्! (नः) हमारे लिए (गवां पोषम्) वाणियों—स्तुतियों के फल को (शतग्विनम्) सैंकड़ों स्तुतियों से निष्पन्न को (स्वश्व्यम्) सुन्दर विषयव्याप्तिशील मनोभाव को (भगत्तिम्) मोक्षैश्वर्यदानप्रवृत्ति को (ऊतये) रक्षा के लिए (आवह) समन्तरूप से प्रवाहित कर।

    भावार्थ

    दीप्तिमन आनन्दरस भरे परमात्मन्! तू हमारे सैकड़ों वार के स्तुतिफल तथा सुन्दर मन के भाव को और अपनी मोक्षदानप्रवृत्ति को प्राप्त करा जिससे हम सुरक्षित रहें॥३॥

    विशेष

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    विषय

    शरदः शतम्

    पदार्थ

    हे (इन्दो) = सोम! (नः) = हमें (शतग्विनम्) = [शतं गच्छति] सौ वर्षपर्यन्त चलनेवाले (गवां पोषम्) = ज्ञानेन्द्रियों के पोषण को तथा (स्वश्व्यम्) = [सु+अश्व+य] उत्तम कर्मेन्द्रियों की शक्ति को आवह प्राप्त कराइए। सोम की रक्षा से सौ-के-सौ वर्ष तक ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति बनी रहती है और कर्मेन्द्रियाँ भी बड़ी उत्तमता से अपने-अपने व्यापारों में लगी रहती हैं ।

    हे सोम ! तू (ऊतये) = हमारी रक्षा के लिए (भगत्तिम्) = भग के दान को (आवह) = प्राप्त करा । भग का अभिप्राय ‘विज्ञानैश्वर्य, वीर्य, यश- श्री, ज्ञान व वैराग्य' है। ये छह वस्तुएँ हमारे जीवनों को बड़ा सुन्दर बनानेवाली हों । हमारे जीवन का प्रारम्भ विज्ञान के ऐश्वर्य से परिपूर्ण हो, जीवन का मध्य यश और श्री से सम्पन्न हो तथा अन्त ज्ञान और वैराग्य से सुशोभित हो ।

    भावार्थ

    सोम-रक्षा से हमारी इन्द्रियाँ सौ वर्षपर्यन्त कर्मक्षम बनी रहें तथा हमारा जीवन षड्विध भग से सुभग बनें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! आप (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिये हमें (शतग्विनं) सैकड़ों गौओं और (स्वश्व्यं) उत्तम २ घोड़ों से युक्त (पोषं) पुष्टिकारक पदार्थ और (भगत्तिम्) सेवन करने योग्य उत्तम ऐश्वर्य (आ वह) प्राप्त कराइये।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ जमदग्निः। २ भृगुर्वाणिर्जमदग्निर्वा। ३ कविर्भार्गवः। ४ कश्यपः। ५ मेधातिथिः काण्वः। ६, ७ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। ८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ९ सप्तर्षयः। १० पराशरः। ११ पुरुहन्मा। १२ मेध्यातिथिः काण्वः। १३ वसिष्ठः। १४ त्रितः। १५ ययातिर्नाहुषः। १६ पवित्रः। १७ सौभरिः काण्वः। १८ गोषूत्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ। १९ तिरश्चीः॥ देवता—३,४, ९, १०, १४—१६ पवमानः सोमः। ५, १७ अग्निः। ६ मित्रावरुणौ। ७ मरुत इन्द्रश्च। ८ इन्द्राग्नी। ११–१३, १८, १९ इन्द्रः॥ छन्दः—१–८, १४ गायत्री। ९ बृहती सतोबृहती द्विपदा क्रमेण। १० त्रिष्टुप्। ११, १३ प्रगाथंः। १२ बृहती। १५, १९ अनुष्टुप। १६ जगती। १७ ककुप् सतोबृहती च क्रमेण। १८ उष्णिक् ॥ स्वरः—१—८, १४ षड्जः। ९, ११–१३ मध्यमः। १० धैवतः। १५, १९ गान्धारः। १६ निषादः। १७, १८ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमात्मानं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (इन्दो) तेजस्विन् धनाधीश परमात्मन् ! (ऊतये) रक्षायै (नः) अस्मभ्यम् (शातग्विनम्) बहून् प्रति गमनशीलम्। [शतानि गच्छतीति शतग्वी तम्। संहितायाम् ‘शात’ इत्यत्र दीर्घश्छान्दसः।] (गवाम्) धेनूनां वाचां वा (पोषम्) पोषणम्, (स्वश्व्यम्) शोभनानाम् अश्वानां प्राणबलानां वा समूहम्, किञ्च (भगत्तिम्) भगदत्तिम्, ऐश्वर्यदानम् (आ वह) प्रापय ॥३॥

    भावार्थः

    परमात्मोपासनया पुरुषार्थाय प्रेरणां प्राप्य सर्वं भौतिकमाध्यात्मिकं च वैभवं प्राप्तुं सुशकम् ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६५।१७।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, grant us for our protection, prosperity, which is linked with manifold forms of knowledge, which strengthens the organs of cognition, and is easily attainable by the organs of action !

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    Meaning

    Indu, lord of joy, beauty and prosperity, bring us a hundredfold wealth and pleasure of divine service and dedication, rising prosperity of cows and horses, enlightenment and advancement, progress and achievement, all for peace and security. (Rg. 9-65-17)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्दो) હે દીપ્તિમન્ આનંદ રસવનું પરમાત્મન્ ! (नः) અમારે માટે (गवाम् पोषम्) વાણીઓસ્તુતિઓનાં ફળને (शतग्विनम्) સેંકડો સ્તુતિઓથી નિષ્પન્નને (स्वश्व्यम्) સુંદર વિષય વ્યાપ્તિશીલ મનોભાવને (भगत्तिम्) મૌક્ષૈશ્વર્યદાન પ્રવૃત્તિની (ऊतये) રક્ષાને માટે (आवह) સમગ્ર રૂપથી પ્રવાહિત કર. (૩)


     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : દીપ્તિમન્ આનંદરસવન્ પરમાત્મન્ ! તું અમારા સેંકડો વખતના સ્તુતિફળ તથા સુંદર મનના ભાવને અને પોતાની મોક્ષદાન પ્રવૃત્તિને પ્રાપ્ત કરાવ જેથી અમે સુરક્ષિત રહીએ. (૩)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराची उपासना केल्यामुळे पुरुषार्थाची प्रेरणा मिळते व सर्व भौतिक व आध्यात्मिक वैभव प्राप्त करता येते. ॥३॥

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