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यजुर्वेद अध्याय - 11

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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 51
    ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    76

    यो वः॑ शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह नः॑। उ॒श॒तीरि॑व मा॒तरः॑॥५१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। वः॒। शि॒वत॑म॒ इति॑ शि॒वऽत॑मः। रसः॑। तस्य॑। भा॒ज॒य॒त॒। इ॒ह। नः॒। उ॒श॒तीरि॒वेत्यु॑श॒तीःऽइ॑व। मा॒तरः॑ ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। वः। शिवतम इति शिवऽतमः। रसः। तस्य। भाजयत। इह। नः। उशतीरिवेत्युशतीःऽइव। मातरः॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 51
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे स्त्रियः! वो न इह यः शिवतमो रसोऽस्ति तस्य मातरः पुत्रानुशतीरिव भाजयत॥५१॥

    पदार्थः

    (यः) (वः) युष्माकम् (शिवतमः) अतिशयेन सुखकारी (रसः) आनन्दः (तस्य) (भाजयत) सेवयत (इह) अस्मिन् गृहाश्रमे (नः) अस्माकमस्मान् वा (उशतीरिव) यथा कामयमानाः (मातरः) जनन्यः॥५१॥

    भावार्थः

    स्त्रीभिर्मातापितरौ पुत्रानिव स्वं स्वं पतिं स्वा स्वा पत्नी प्रीत्या सेवताम्। एवमेव स्वां स्वां स्त्रियं पतिश्च। यथा जलानि तृषातुरान् प्राणिनस्तृप्यन्ति, तथैव सुशीलतयानन्देन तृप्ताः सन्तु॥५१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी वही उक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे स्त्रियो! (वः) तुम्हारा और (नः) हमारा (इह) इस गृहाश्रम में (यः) जो (शिवतमः) अत्यन्त सुखकारी (रसः) कर्त्तव्य आनन्द है (तस्य) उस का (मातरः) (उशतीरिव) जैसे कामयमान माता अपने पुत्रों को सेवन करती है, वैसे (भाजयत) सेवन करो॥५१॥

    भावार्थ

    स्त्रियों को चाहिये कि जैसे माता-पिता अपने पुत्रों का सेवन करते हैं, वैसे अपने-अपने पतियों की प्रीतिपूर्वक सेवा करें, ऐसे ही अपनी-अपनी स्त्रियों की पति भी सेवा करें। जैसे प्यासे प्राणियों को जल तृप्त करता है, वैसे अच्छे स्वभाव के आनन्द से स्त्री-पुरुष भी परस्पर प्रसन्न रहें॥५१॥

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    विषय

    शिवतम - रस

    पदार्थ

    १. हे जलो! ( यः ) = जो ( वः ) = तुम्हारा ( शिवतमः रसः ) = अत्यन्त कल्याणकर रस है ( तस्य ) =  उस रस का ( नः ) = हमें ( इह ) = इस मानव-जीवन में ( भाजयत ) = भागी बनाओ। हे जलो! ( उशतीः ) = सन्तान के भले की कामना करती हुई ( मातरः इव ) = माताओं के समान तुम हमारे लिए होओ। 

    २. यहाँ ‘रसः’ शब्द का प्रयोग बड़ा सुन्दर संकेत कर रहा है कि हमें जल का रस लेना है, बड़ा स्वाद लेकर धीमे-धीमे उसे पीना है, उसे अपने अन्दर उलट नहीं लेना। ‘We must eat water’ अर्थात् ‘हमें पानी को खाना चाहिए’ इस वाक्य की भावना यही है। इस प्रकार जलों का रस ग्रहण करेंगे तो ये जल हमारे लिए माताओं के समान हितकर होंगे।

    भावार्थ

    भावार्थ — हम जलों का आचमन करें। धीमे-धीमे पीएँ, तभी जल हितकर होंगे।

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    विषय

    जलों, विद्वानों और पक्षान्तर में स्त्रियों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( उशती: मातरः इव ) पुत्रों के प्रति कामना युक्त, स्नेह युक्त माताएं जिस प्रकार अपने उत्तम कल्याणकारी दुग्धरस से उनको पुष्ट करती हैं उसी प्रकार, हे ( आपः ) जलो ! और जलों के समान ज्ञानरस से पूर्ण आप्त पुरुषो ! एवं स्त्रीजनो ! आपका जो ( शिवतमः ) सबसे अधिक कल्याणकारी ( रसः ) रस, बल, प्रेम है । ( तस्य ) उसको ( इह ) इसलोक में (नः) हमें ( भाजयत ) प्राप्त कराओ ॥ शत० ६ । ५ । १ । २ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सिन्धुद्वीप ऋषिः । आपो देवताः । गायत्री । षड्जः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्याप्रमाणे आई-वडील आपल्या संतानांशी प्रेमाने वागतात त्याप्रमाणेच स्त्रियांनी आपल्या पतींशी वागून त्यांची सेवा करावी. पतींनीही आपापल्या पत्नींची सेवा करावी. ज्याप्रमाणे तृषार्त प्राण्यांना जल तृप्त करते त्याप्रमाणे चांगल्या स्वभावाच्या स्त्री-पुरुषांनी परस्पर प्रसन्न व आनंदी राहावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रातही तोच विषय सांगितला आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (पतींचे वचन) हे स्त्रियांनो इथे अनेकवचनी संबोधन आहे, पण एक पती आपल्या पत्नीस म्हणत आहे, असे अभिप्रेत आहे) (व:) तुमचा आणि (न:) आमचा (इह) या गृहाश्रमामधे जो (शिवतम:) अत्यंत सुखकारी (रस:) कर्तव्य वा आनंद आहे, (तस्य) त्याचा (मातर; उशतीखि) एक माता ज्याप्रमाणे पुत्राला जवळ घेऊन अतुलनीय आनंदाचे सेवन करते, तद्वत तुम्हीही या गृहाश्रमातील त्या आनंदाचा उपभोग घ्या (दोघांनी मिळून या संसारातील कर्तव्यांचे पालन आणि आनंदाचे सेवन करावे) ॥51॥

    भावार्थ

    भावार्थ - स्त्रियांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी आपापल्या पतीची सेवा तशाच प्रीतिभावनेने करावी की जशी माता-पिता आपल्या पुत्राची सेवा (लालन-पालन) करतात. त्याचप्रकारे पतीने देखील आपल्या पत्नीची प्रीतिपूर्वक सेवा करावी. ज्याप्रमाणे तहानलेले प्राणी पाण्यामुळे तृप्त व संतुष्ट होतात, त्याप्रमाणे पति व पत्नी यांनी उत्तम स्वभाव ठेवल्यास दोघांनाही प्रसन्नता लाभते किंवा लाभावी, असेच वर्तन दोघांनी ठेवावे ॥51॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O wives, we have got to perform a highly pleasant, joyful duty in this domestic life. Just as mothers in their longing love feed the child, so should ye perform it in a spirit of love and devotion.

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    Meaning

    Women, the most blissful pleasure and happiness of life that is yours and ours, create and share the same here in the home with us with the love and passion for motherhood.

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    Translation

    O waters, make us enjoy here the most blissful sap, which you have, like mothers full of affectionate love. (1)

    Notes

    Usatth, from वश कांतौ, to shine, to desire, to love; full of affection. In other contexts, also full of desire (as जायेव पत्युरुशती सुवासा).

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ উক্ত বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে স্ত্রীগণ ! (বঃ) তোমাদের এবং (নঃ) আমাদের (ইহ) এই গৃহাশ্রম হইতে (য়ঃ) যে (শিবতমঃ) অত্যন্ত সুখকারী (রসঃ) কর্ত্তব্য আনন্দ আছে (তস্য) উহা (মাতরঃ) (উশতীরিব) যেমন কামায়মান্ মাতা স্বীয় পুত্রদিগকে সেবন করে সেইরূপ (ভাজয়ত) সেবন করিও ॥ ৫১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- স্ত্রীদিগের কর্ত্তব্য যে, যেমন মাতা-পিতা স্বীয় পুত্রদিগের সেবন করে সেইরূপ স্বীয় পতিদিগকে প্রীতিপূর্বক সেবা করিবে । সেইরূপ পতিগণও স্বীয় স্ত্রীদিগের সেবা করিবে । যেমন পিপাসার্ত্ত প্রাণীকে জল তৃপ্ত করে সেইরূপ সুস্বভাবের আনন্দ দ্বারা স্ত্রী পুরুষও পরস্পর প্রসন্ন থাকিবে ॥ ৫১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ো বঃ॑ শি॒বত॑মো॒ রস॒স্তস্য॑ ভাজয়তে॒হ নঃ॑ ।
    উ॒শ॒তীরি॑ব মা॒তরঃ॑ ॥ ৫১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়ো ব ইত্যস্য সিন্ধুদ্বীপ ঋষিঃ । আপো দেবতাঃ । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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