यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 61
ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः
देवता - आदित्यादयो लिङ्गोक्ता देवताः
छन्दः - भुरिक्कृतिः, निचृत् प्रकृतिः
स्वरः - निषादः, धैवतः
77
अदि॑तिष्ट्वा दे॒वी वि॒श्वदे॑व्यावती पृथि॒व्याः स॒धस्थे॑ऽअङ्गिर॒स्वत् ख॑नत्ववट दे॒वानां॑ त्वा॒ पत्नी॑र्दे॒वीर्वि॒श्वदे॑व्यावतीः पृथि॒व्याः स॒धस्थे॑ऽअङ्गिर॒स्वद् द॑धतूखे धि॒षणा॑स्त्वा दे॒वीर्वि॒श्वदे॑व्यावतीः पृथि॒व्याः स॒धस्थे॑ऽअङ्गिर॒स्वद॒भीन्धतामुखे॒ वरू॑त्रीष्ट्वा दे॒वीर्वि॒श्वदे॑व्यावतीः पृथि॒व्याः स॒धस्थे॑ऽअङ्गिर॒स्वच्छ्र॑पयन्तूखे॒ ग्नास्त्वा॑ दे॒वीर्वि॒श्वदे॑व्यावतीः पृथि॒व्याः स॒धस्थे॑ऽअङ्गिर॒स्वत् प॑चन्तूखे॒ जन॑य॒स्त्वाऽछि॑न्नपत्रा दे॒वीर्वि॒श्वदे॑व्यावतीः पृथि॒व्याः स॒धस्थे॑ऽअङ्गिर॒स्वत् प॑चन्तूखे॥६१॥
स्वर सहित पद पाठअदि॑तिः। त्वा॒। दे॒वी। वि॒श्वदे॑व्यावती। वि॒श्वदे॑व्यव॒तीति॑ वि॒श्वदे॑व्यऽवती। पृ॒थि॒व्याः। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धऽस्थे॑। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ख॒न॒तु॒। अ॒व॒ट॒। दे॒वाना॑म्। त्वा॒। पत्नीः॑। दे॒वीः। वि॒श्वदे॑व्यावतीः। वि॒श्वदे॑व्यवती॒रिति॑ वि॒श्वदे॑व्यऽवतीः। पृ॒थि॒व्याः। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धऽस्थे॑। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। द॒ध॒तु॒। उ॒खे॒। धि॒षणाः॑। त्वा॒। दे॒वीः। वि॒श्वदे॑व्यावतीः। वि॒श्वदे॑व्यवती॒रिति॑ वि॒श्वदे॑व्यऽवतीः। पृ॒थि॒व्याः। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धऽस्थे॑। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। अ॒भि। इ॒न्ध॒ता॒म्। उ॒खे॒। वरू॑त्रीः। त्वा॒। दे॒वीः। वि॒श्वदे॑व्यावतीः। वि॒श्वदे॑व्यवती॒रिति॑ वि॒श्वदे॑व्यऽवतीः। पृ॒थि॒व्याः। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धऽस्थे॑। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। श्र॒प॒य॒न्तु॒। उ॒खे॒। ग्नाः। त्वा॒। दे॒वीः। वि॒श्वदे॑व्यावतीः। वि॒श्वदे॑व्यवती॒रिति॑ वि॒श्वदे॑व्यऽवतीः। पृ॒थि॒व्याः। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धऽस्थे। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। प॒च॒न्तु॒। उ॒खे॒। जन॑यः। त्वा॒। अच्छि॑न्नपत्रा॒ इत्यच्छि॑न्नऽपत्राः। दे॒वीः। वि॒श्वदे॑व्यावतीः। वि॒श्वदे॑व्यवती॒रिति॑ वि॒श्वदे॑व्यऽवतीः। पृ॒थि॒व्याः। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धऽस्थे॑। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। प॒च॒न्तु॒। उ॒खे॒ ॥६१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अदितिष्ट्वा देवी विश्वदेव्यावती पृथिव्याः सधस्थेऽअङ्गिरस्वत्खनत्ववट देवानाम्त्वा पत्नीर्देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थेऽअङ्गिरस्वद्दधतूखे धिषणास्त्वा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थेऽअङ्गिरस्वदभीन्धतामुखे वरूत्रीष्ट्वा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थेऽअङ्गिरस्वच्छ्रपयन्तूखे ग्नास्त्वा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थेऽअङ्गिरस्वत्पचन्तूखे जनयस्त्वाच्छिन्नपत्रा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थेऽअङ्गिरस्वत्पचन्तूखे ॥
स्वर रहित पद पाठ
अदितिः। त्वा। देवी। विश्वदेव्यावती। विश्वदेव्यवतीति विश्वदेव्यऽवती। पृथिव्याः। सधस्थ इति सधऽस्थे। अङ्गिरस्वत्। खनतु। अवट। देवानाम्। त्वा। पत्नीः। देवीः। विश्वदेव्यावतीः। विश्वदेव्यवतीरिति विश्वदेव्यऽवतीः। पृथिव्याः। सधस्थ इति सधऽस्थे। अङ्गिरस्वत्। दधतु। उखे। धिषणाः। त्वा। देवीः। विश्वदेव्यावतीः। विश्वदेव्यवतीरिति विश्वदेव्यऽवतीः। पृथिव्याः। सधस्थ इति सधऽस्थे। अङ्गिरस्वत्। अभि। इन्धताम्। उखे। वरूत्रीः। त्वा। देवीः। विश्वदेव्यावतीः। विश्वदेव्यवतीरिति विश्वदेव्यऽवतीः। पृथिव्याः। सधस्थ इति सधऽस्थे। अङ्गिरस्वत्। श्रपयन्तु। उखे। ग्नाः। त्वा। देवीः। विश्वदेव्यावतीः। विश्वदेव्यवतीरिति विश्वदेव्यऽवतीः। पृथिव्याः। सधस्थ इति सधऽस्थे। अङ्गिरस्वत। पचन्तु। उखे। जनयः। त्वा। अच्छिन्नपत्रा इत्याच्िछन्नऽपत्राः। देवीः। विश्वदेव्यावतीः। विश्वदेव्यवतीरिति विश्वदेव्यऽवतीः। पृथिव्याः। सधस्थ इति सधऽस्थे। अङ्गिरस्वत्। पचन्तु। उखे॥६१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
विदुष्यः स्त्रियः कन्याः सुशिक्ष्य धार्मिकीर्विदुषीः कृत्वैहिकपारलौकिकसुखे प्रापयेयुरित्याह॥
अन्वयः
हे अवट शिशो! विश्वदेव्यावत्यदितिर्देवी पृथिव्याः सधस्थे त्वाङ्गिरस्वत् खनतु। हे उखे कन्ये! देवानां पत्नीर्विश्वदेव्यावतीर्देवीः पृथिव्याः सधस्थे त्वाङ्गिरस्वद् दधतु। हे उखे! विश्वदेव्यावतीर्धिषणा देवीः पृथिव्याः सधस्थे त्वाङ्गिरस्वदभीन्धताम्। हे उखे! विश्वदेव्यावतीर्वरूत्रीर्देवीः पृथिव्याः सधस्थे त्वाङ्गिरस्वच्छ्रपयन्तु। हे उखे! विश्वदेव्यावतीर्देवीर्ग्नाः पृथिव्याः सधस्थे त्वाङ्गिरस्वत् पचन्तु। हे उखे! विश्वदेव्यावतीरच्छिन्नपत्रा जनयो देवीः पृथिव्याः सधस्थे त्वाङ्गिरस्वत् पचन्तु। हे उखे! त्वमेताभ्यः सर्वाभ्यो ब्रह्मचर्येण विद्यां गृहाण॥६१॥
पदार्थः
(अदितिः) अध्यापिका (त्वा) त्वाम् (देवी) विदुषी (विश्वदेव्यावती) विश्वेषु देवेषु विद्वत्सु भवं विज्ञानं प्रशस्तं विद्यते यस्यां सा। अत्र सोमाश्वेन्द्रियविश्वदेव्यस्य मतौ॥ (अष्टा॰६।३।१३१) इति दीर्घत्वम्। (पृथिव्याः) भूमेः (सधस्थे) सहस्थाने (अङ्गिरस्वत्) अग्निवत् (खनतु) भूमिं खनित्वा कूपजलवद्विद्या-युक्तान्निष्पादयतु (अवट) अपरिभाषितानिन्दित (देवानाम्) विदुषाम् (त्वा) (पत्नीः) स्त्रीः (देवीः) विदुषीः (विश्वदेव्यावतीः) (पृथिव्याः) (सधस्थे) (अङ्गिरस्वत्) प्राणवत् (दधतु) (उखे) ज्ञानयुक्ते (धिषणाः) प्रशंसितवाग्युक्ता धियः (त्वा) (देवीः) विद्यायुक्ताः (विश्वदेव्यावतीः) (पृथिव्याः) (सधस्थे) (अङ्गिरस्वत्) (अभि) आभिमुख्ये (इन्धताम्) प्रदीपयन्तु (उखे) विज्ञानमिच्छुके (वरूत्रीः) वराः (त्वा) (देवीः) कमनीयाः (विश्वदेव्यावतीः) (पृथिव्याः) (सधस्थे) (अङ्गिरस्वत्) आदित्यवत् (श्रपयन्तु) पाचयन्तु (उखे) अन्नाधारा स्थालीव विद्याधारे (ग्नाः) वेदवाचः। ग्ना इति वाङ्नामसु॥ (निघं॰१।११) (त्वा) (देवीः) दिव्यविद्यासम्पन्नाः (विश्वदेव्यावतीः) (पृथिव्याः) अन्तरिक्षस्य (सधस्थे) (अङ्गिरस्वत्) विद्युद्वत् (पचन्तु) परिपक्वां कुर्वन्तु (उखे) ज्ञानयुक्ते (जनयः) शुभगुणैः प्रसिद्धाः (त्वा) (अच्छिन्नपत्राः) अखण्डितानि पत्राणि वस्त्राणि यानानि वा यासां ताः (देवीः) दिव्यगुणप्रदाः (विश्वदेव्यावतीः) (पृथिव्याः) (सधस्थे) (अङ्गिरस्वत्) ओषधिरसवत् (पचन्तु) (उखे) जिज्ञासो। [अयं मन्त्रः शत॰६.५.४.३-८ व्याख्यातः]॥६१॥
भावार्थः
मातापित्राचार्यातिथिभिर्यथा चतुराः पाचकाः स्थाल्यादिष्वन्नादीनि संस्कृत्योत्तमानि संपाद्यन्ते, तथैव बाल्यावस्थामारभ्य विवाहात् पूर्वं कुमाराः कुमार्यश्चात्युत्तमा भावयन्तु॥६१॥
हिन्दी (3)
विषय
विद्वान् स्त्रियाँ कन्याओं को उत्तम शिक्षा से धर्मात्मा विद्यायुक्त करके इस लोक और परलोक के सुखों को प्राप्त करावें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (अवट) बुराई और निन्दारहित बालक (विश्वदेव्यावती) सम्पूर्ण विद्वानों में प्रशस्त ज्ञानवाली (अदितिः) अखण्ड विद्या पढ़ाने हारी (देवी) विदुषी स्त्री (पृथिव्याः) भूमि के (सधस्थे) एक शुभस्थान में (त्वा) तुझ को (अङ्गिरस्वत्) अग्नि के समान (खनतु) जैसे भूमि को खोद के कूप जल निष्पन्न करते हैं, वैसे विद्यायुक्त करे। हे (उखे) ज्ञानयुक्त कुमारी! (देवानाम्) विद्वानों की (पत्नीः) स्त्री जो (विश्वदेव्यावतीः) सम्पूर्ण विद्वानों में अधिक विद्यायुक्त (देवीः) विदुषी (पृथिव्याः) पृथिवी के (सधस्थे) एक स्थान में (अङ्गिरस्वत्) प्राण के सदृश (त्वा) तुझ को (दधतु) धारण करें। हे (उखे) विज्ञान की इच्छा करने वाली! (विश्वदेव्यावतीः) सब विद्वानों में उत्तम (धिषणाः) प्रशंसित वाणीयुक्त बुद्धिमती (देवीः) विद्यायुक्त स्त्री लोग (पृथिव्याः) पृथिवी के (सधस्थे) एक स्थान में (त्वा) तुझ को (अङ्गिरस्वत्) प्राण के तुल्य (अभीन्धताम्) प्रदीप्त करें। हे (उखे) अन्न आदि पकाने की बटलोई के समान विद्या को धारण करने हारी कन्ये! (विश्वदेव्यावतीः) उत्तम विदुषी (वरूत्रीः) विद्या-ग्रहण के लिये स्वीकार करने योग्य (देवीः) रूपवती स्त्री लोग (पृथिव्याः) भूमि के (सधस्थे) एक शुद्ध स्थान में (त्वा) तुझ को (अङ्गिरस्वत्) सूर्य के तुल्य (श्रपयन्तु) शुद्ध तेजस्विनी करें। हे (उखे) ज्ञान चाहने हारी कुमारी! (विश्वदेव्यावतीः) बहुत विद्यावानों में उत्तम (देवीः) शुद्ध विद्या से युक्त (ग्नाः) वेदवाणी को जानने वाली स्त्री लोग (पृथिव्याः) भूमि के एक (सधस्थे) उत्तम स्थान में (त्वा) तुझ को (अङ्गिरस्वत्) बिजुली के तुल्य (पचन्तु) दृढ़ बलधारिणी करें। हे (उखे) ज्ञान की इच्छा रखने वाली कुमारी! (विश्वदेव्यावतीः) उत्तम विद्या पढ़ी (अच्छिन्नपत्राः) अखण्डित नवीन शुद्ध वस्त्रों को धारने वा यानों में चलने वाली (जनयः) शुभगुणों से प्रसिद्ध (देवीः) दिव्य गुणों की देने हारी स्त्री लोग (पृथिव्याः) पृथिवी के (सधस्थे) उत्तम प्रदेश में (त्वा) तुझ को (अङ्गिरस्वत्) ओषधियों के रस के समान (पचन्तु) संस्कारयुक्त करें। हे कुमारी कन्ये! तू इन पूर्वोक्त सब स्त्रियों से ब्रह्मचर्य्य के साथ विद्या ग्रहण कर॥६१॥
भावार्थ
माता-पिता आचार्य्य और अतिथि अर्थात् भ्रमणशील विरक्त पुरुषों को चाहिये कि जैसे रसोइये बटलोई आदि पात्रों में अन्न का संस्कार कर के अन्न को उत्तम सिद्ध करते हैं, वैसे ही बाल्यावस्था से लेके विवाह से पहिले पहिले लड़कों और लड़कियों को उत्तम विद्या और शिक्षा से सम्पन्न करें॥६१॥
विषय
प्रभु-दर्शन किसे ?
पदार्थ
१. हे ( अवट ) = [ वट परिभाषणे ] अपरिभाषित, अनिन्दित [ Parliamentary भाषा में named = परिभाषित ] पूर्ण प्रशस्त प्रभो! ( त्वा ) = आपको ( अदितिः ) = अदीना देवमाता ( देवी ) = दिव्य गुणोंवाली ( विश्वदेव्यावती ) = सब दिव्यताओं की रक्षा करनेवाली ( पृथिव्याः ) = इस विशाल हृदयाकाश के ( सधस्थे ) = एकत्र स्थित होने के स्थान में ( अङ्गिरस्वत् ) = अङ्गिरस् की भाँति ( खनतु ) = खोजे। ‘अङ्गिरस्’ हृदयदेश में प्रभु का दर्शन करता है, इसी प्रकार यह अदीन बनकर, दिव्य गुणों के निर्माण व रक्षणवाली बनकर उस प्रभु को देखती है। २. ( उखे ) = [ उत्खन्यते इति उत्खा = उखा, परोक्षप्रियत्वात् देवानाम् ] अन्नमयादि कोशों को उखाड़ते-उखाड़ते अन्त में आनन्दमयकोश में दिखने योग्य प्रभो! ( त्वा ) = आपको ( देवानां पत्नी ) = देवों की पत्नियाँ, ( देवीः ) = प्रकाशमय जीवनवाली ( विश्वदेव्यावतीः ) = सब दिव्यताओं की रक्षा करनेवाली स्त्रियाँ ( पृथिव्याः सधस्थे ) = विशाल हृदयदेश के एकत्र स्थित होने के स्थान में ( अङ्गिरस्वत् ) = अङ्गिरस् की भाँति ( दधतु ) = धारण करें। ३. हे ( उखे ) = एक-एक कोश को खोजते-खोजते अन्त में आनन्दमयकोश में दिखनेवाले प्रभो! ( त्वा ) = तुझे ( धिषणाः ) = बुद्धि की पुञ्जभूत ( देवीः ) = प्रकाशमय जीवनवाली ( विश्वदेव्यावतीः ) = सब दिव्यताओं की रक्षा करनेवाली स्त्रियाँ, ( पृथिव्याः सधस्थे ) = विशाल हृदयाकाश के एकत्र स्थित होने के स्थान में ( अङ्गिरस्वत् ) = अङ्गिरस् की भाँति ( अभीन्धताम् ) = दीप्त करें। ४. हे ( उखे ) = प्राकृतिक भोगों से ऊपर उठकर [ उत् ] खोजने योग्य [ खन् ] प्रभो! ( त्वा ) = आपको ( वरूत्रीः ) = द्वेषादि का निवारण करनेवाली और इस प्रकार ( देवीः ) = प्रकाशमय जीवनवाली ( विश्व-देव्यावतीः ) = सब दिव्यताओं की रक्षा करनेवाली स्त्रियाँ ( अङ्गिरस्वत् ) = अङ्गिरस् की भाँति ( श्रपयन्तु ) = परिपाक करें। अपने हृदय में तेरी ही भावना को दृढ़मूल करें। ५. ( उखे ) = हे भोगों से ऊपर उठकर खोजने योग्य प्रभो! ( त्वा ) = आपको ( ग्नाः ) = छन्दों का अध्ययन करनेवाली देवपत्नियाँ ( देवीः ) = प्रकाशमय जीवनवाली ( विश्वदेव्यावतीः ) = सब दिव्यताओं की रक्षा करनेवाली ( पृथिव्याः ) = विशाल हृदयान्तरिक्ष के ( सधस्थे ) = एकत्र स्थित होने के स्थान में ( पचन्तु ) = विकसित [ Develop ] करती हैं, अर्थात् उस प्रभु के प्रकाश को अधिकाधिक देखती हैं और ( अङ्गिरस्वत् ) = अङ्गिरस् की भाँति बनने का प्रयत्न करती हैं। ६. हे ( उखे ) = आत्मन्! ( त्वा ) = आपको ( जनयः ) = उत्तम माता बननेवाली ( अछिन्नपत्राः ) = अविछिन्न गतिवाली [ पत् गतौ ] अर्थात् निरन्तर क्रियाशील ( देवीः ) = प्रकाशमय जीवनवाली ( विश्वदेव्यावतीः ) = सब दिव्यताओं की रक्षा करनेवाली ( पृथिव्याः सधस्थे ) = इस विस्तृत हृदयान्तरिक्ष के सहस्थान में ( अङ्गिरस्वत् ) = अङ्गिरस् की भाँति ( पचन्तु ) = विकसित करें।
भावार्थ
भावार्थ — १. प्रभु ‘अवट’ = अनिन्दित व ‘उखा’ = भोगों से ऊपर उठकर देखने योग्य हैं। २. प्रभु-दर्शन करनेवाला अङ्गिरस् = एक-एक अङ्ग में रस के सञ्चारवाला बनता है। ३. प्रभु-दर्शन विशाल हृदयान्तरिक्ष में होता है। ४. प्रभु-दर्शन ‘अदिति, देवपत्नी, धिषणा, वरूत्री, ग्ना, आच्छिन्नपत्रा, जनयः तथा देवी विश्वदेव्यावती’ को होता है। अदीना देवमाता, देवपत्नी, बुद्धिमती, द्वेष से शून्य, छन्दोमय जीवनवाली, निरन्तर क्रियाशील उत्तम माता—प्रकाशमय जीवनवाली, दिव्यताओं की रक्षिका ही प्रभु-दर्शन के योग्य है।
टिप्पणी
सूचना — यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि प्रभु-दर्शन के प्रसङ्ग में दर्शक के सब नाम स्त्रीलिङ्ग में हैं। सम्भवतः प्रभु पति हैं और उनका दर्शन करनेवाला जीव पत्नी है।
विषय
राजसभा का कर्तव्य । योग्य राजा और सभापति का प्राप्त करना । पक्षान्तर में विदुषी माताओं का कर्तव्य, प्रजा का धारण पोषण।
भावार्थ
विद्वान् पुरुष जिस प्रकार गढ़े को खोदता है उसी प्रकार हे वट ) रक्षण करनेहारे पुरुष ! (विश्वदेव्यवती ) समस्त विद्वानों के योग्य ज्ञानों से पूर्ण ( अदितिः ) अखण्डित राजशक्ति ( पृथिव्याः सधस्थे ) पृथिवी के पीठ पर ( अङ्गिरस्वत् ) शरीर में प्राणशक्ति के समान ( त्वा ) तुझे ( खनतु ) खने, गुप्तरूप में छिपे, तुझे खोद के प्राप्त करे । और ( देवानां पत्नी ) देवों विद्वानों और राजा के पालन करनेवाली राज सभाएं, राजमहर्षियों के समान ( विश्वदेव्यवती ) समस्त विद्वानों योग्य ज्ञान से युक्त होकर ( पृथिव्याः सधस्थे ) पृथिवी के ऊपर, हे ( उखे ) उखे ! पृथिवी ! (त्वा दधतु ) तुझे वे धारण करें हे ( उखे) उखे ! पृथिवी ! ( विश्वदेव्य वतीः ) विद्वानों के ज्ञान से पूर्ण ( धिषणाः देवीः ) उत्तम वाणी से युक्त बुद्धियां या सभाएं ( पृथिव्याः सधस्थे ) पृथिवी के ऊपर ( त्वा अभि इन्धताम् ) तुझे प्रज्वलित करें। तुझे तेजस्वी और यशस्वी करें ।हे ( उखे ) उखे ! पृथिवि ! प्रजे ! ( विश्वदेव्यवतीः ) समस्त ज्ञानों से युक्त ( वरूत्रीः देवी: ) श्रेष्ठ, राजशक्तियां ( पृथिव्या: सधस्थे ) पथिवी के ऊपर ( त्वा श्रपयन्तु ) तुझे परिपक्व, तपस्वी और दृढ़ बलवान् बनावें । हे ( उखे ) पृथिवि ! प्रजे ! ( विश्वदेव्यवतीः ग्नाः देवी: ) समस्त ज्ञानों और राजबलों से युक्त व्यापक वेदवाणियां आर स्त्रियां या व्यापक राजशक्तियां ( पृथिव्याः सधस्थे ) पृथिवी के ऊपर (अङ्गिरस्वत् ) आग पर रक्खी हांडी के अंगारों के समान ( त्वा पचन्तु ) तुझे परिपक्क करें। और (अच्छिन्नपन्ना: ) अच्छिन्न या अखण्डित रथों वाली ( जनयः ) प्रजाएं ( विश्वदेव्यवतीः ) समस्त विजयोपयोगी सामग्री से युक्त इस ( पृथिव्याः सधस्थे ) पृथिवी के ऊपर हे ( उखे ) उखे ! पृथिवि ! हे प्रजे ! (त्वा ) तुमको ( अङ्गिरस्वत् ) हांडी को अंगारों के समान ( पचन्तु ) पक्क करें कन्या आदि सन्तानों के पक्ष में-- ( अदितिः ) विदुषी माता ( अवटं त्वा खनतु ) बालक को प्राप्त करें ( धिषणा ) विदुषी स्त्रियां ( वरूत्रीः) श्रेष्ठ रक्षाकत्रों स्त्रियां, ( ग्नाः ) वेदवाणियों के समान ज्ञानपूर्ण वा उत्तम आचारवाली स्त्रियां और ( अच्छिन्त्रपत्राः जनयः ) अखण्डिताचार वाली स्त्रियां, अंगारों पर जिस प्रकार हांडी पकाई जाती है उसी प्रकार प्रजा को भी ( दधतु ) धार पोषण करें, ( अभि इन्धता ) विद्यादि गुणों से प्रज्वलित करें ( श्रपयन्तु, पचन्तु, पचन्तु ) ब्रह्मचर्य व्रत पालनादि से मन वाणी और शरीर को परिपक्व करें ।। शत० ६ । ५ । ४ । १-८ ॥
टिप्पणी
१ खनत्ववट २ उखे।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः साध्या वा ऋषयः।अदित्यादयो लिङ्गोक्ता देवता: । ( १ ) भुरिक्कृतिः । निषादः ।( २ ) प्रकृतिः । धैवतः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
ज्याप्रमाणे स्वयंपाकी भांड्यात अन्न शिजवून त्यावर संस्कार करून ते उत्तम बनवितात तसेच माता, पिता व आचार्य आणि अतिथी यांनी बालपणापासून विवाह होईपर्यंत मुला-मुलींना उत्तम विद्या व शिक्षण यांनी संपन्न करावे.
विषय
विदुषी स्त्रियांनी कन्यांना उत्तम शिक्षणाद्वारे धर्मात्मा व विद्यावती करून या लोकातील परलोकातील (मोक्षावस्थेतील) सुखाची प्राप्ती करवावी, याविषयी पुढील मंत्रात कथन केले आहे.
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (अवट) वाईटपणा आणि निन्दनीय आचरणापासून दूर असणार्या हे बालका, (विश्वदेव्यावती) समस्त विद्वानांमधे जी प्रशस्त ज्ञानवती आहे, अशा (उदिति:) विद्या-अध्यापन करणार्या (देवी) विद्वान स्त्रीने (पृथिव्या:) भूमीच्या (सधस्ये) एका शुभस्थानामधे (गुरुकुलात) (त्वा) तुला (अड्गिरस्वत्) अग्नीप्रमाणे (रवनतु) विद्यावान बनवावे. ज्याप्रमाणे भूमी खणून विहीरीतून पाणी काढतात, (त्याप्रमाणे तुझ्या बुद्धितील योग्यता वाढवावी) - हे (उखे) ज्ञानवती कुमारी विद्यार्थिनी, (देवानाम्) विद्वानांच्या (पत्नी:) पत्नींनी की ज्या (विश्वदेव्यावती:) समस्त विद्वानांपैकी अधिक विद्वान आहोत, त्या (देवी:) विदुषी स्त्रियांनी (पृथिव्या:) पृथिवीच्या (सधस्थे) एका स्थानात (गुरुकुलात) (अड्गिरस्वत्) प्राणाप्रमाणे मानून (त्वा) तुला (दधातु) धारण करावे. हे (उखे) विज्ञानाची इच्छा असणार्या ब्रह्मचारिणी, (विश्वदेव्यावती:) सर्व विद्वानांत उत्तम (धिषणा:) प्रशंसित वाणी आणि तीव्र बुद्धी असलेल्या (देवी:) विद्यावती स्त्रियांनी (पृथिव्या:) पृथ्वीच्या (सधस्थे) एका स्थानामध्ये (पाठशाळेत) (त्वा) तुला (अड्गिरस्वत्) प्राणांप्रमाणे (अभीन्धताम्) अधिकाधिक उत्साहीत व जागृत करावे. हे (उखे) अन्न आदी पदार्थ शिजविण्याच्या कामी येणार्या पातेल्याप्रमाणे विद्येचे (आपल्या बुद्धी व हृदयात भरून) ग्रहण करणार्या हे कन्यके, (विश्वदेव्यापती:) उत्तम विदुषी (वरूत्री:) आणि ज्यांच्याकडून विद्या ग्रहण करणे उचित आहे (वा ज्या विद्यादानात सक्षम आहेत) अशा (देवी:) रुपवती स्त्रियांनी (पृथिव्या:) भूमीच्या (सधस्ये) ऐका शुद्ध स्थानात (वनातील आश्रमात) (त्वा) तुला (अड्गिरस्वत्) सूर्याप्रमाणे (श्रपयन्तु) शुद्ध तेजोमय करावे. हे (उखे) ज्ञानार्थिनी कुमारिके, (विश्वदेव्यावती:) अनेक विद्वानात ज्या उत्तम आहेत, (देवी:) शुद्ध विद्यायुक्त असून ज्या (ग्ना:) वेदवाणीच्या ज्ञाता आहेत, अशा स्त्रियांनी (पृथिव्या:) पृथ्वीच्या (समस्थे) एका स्थानात (कन्यागुरुकुलात) (त्या) तुला (अड्गिरस्वत्) विद्युतप्रमाणे (पचन्तु) दृढ बलधारिणी करावे. हे (उखे) ज्ञानार्थिनी कुमारिके, (विश्वदेव्यावती:) उत्तम विद्यावान, (अच्छिन्नपत्रा:) अखंड नवीन वस्त्र धारण करणार्या वा यानामधे (वाहनादीमध्ये बसून) प्रवास करणार्या (जनय:) शुभ गुणवती आणि (देवी:) दिव्यगुण देणार्या वा शिकविणार्या अशा (स्त्रियांनी (पृथिण्या:) भूमीच्या (सधस्थे) उत्तम प्रदेशात (त्वा) तुला (अड्गिरस्वत्) औषधीरसाप्रमाणे (पचन्तु) सुसंस्कारित करावे. हे कुमारी कन्ये, तू या वरवर्णित सर्व विद्वान स्त्रियांकडून विद्याग्रहण कर व त्याकाळात ब्रह्मचारिणी रहा. ॥61॥
भावार्थ
भावार्थ - माता-पिता, आचार्य आणि अतिथी म्हणजे भ्रमणशील विरक्तजन, या सर्वांना पाहिजे की जसे पाचक सैंपाकी पातेले, कढई आदी पात्रात अन्नाचा संस्कार करून उत्तम भोजन तयार करतात, त्याप्रमाणे मुलांना आणि मुलींना विवाहापूर्वी उत्तम विद्या व शिक्षण देऊन सुसंस्कृत करावे. ॥61॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O child free from sin and blame, may the lady advanced in knowledge amongst the learned, expert in teaching, well read, in any part of the earth, educate thee, brilliant like fire. O educated young girl, may the wife of a learned person, most advanced in knowledge amongst the learned, well read, in any part of the earth, educate thee, dear as life. O girl, seeker after knowledge, may the lady advanced in knowledge amongst the learned, wise, sweet-tongued and well read, in any part of the earth, enlighten thee, strong as vital air. O girl, receiving education, may a learned, noble, beautiful lady, in any part of the earth make thee glorious like the sun. O girl student, may a lady advanced in knowledge amongst the learned, full of pure knowledge, and well versed in the Vedas, in any part of the earth, make thee forceful like electricity. O girl desirous of knowledge, may a learned lady, attired in beautiful clothes, and air-minded, well-known for her virtues, the bestower of fine moral qualities, in a good place of the earth, make thee sweet, like the juice of medicinal herbs.
Meaning
Innocent child, may the noble teachers, distinguished among the scholars of the world, at a settled place on the earth probe and open out your mind for development like the heat of fire. Intelligent girl, may the wives of scholars, distinguished among scholars of the world, at a distinguished school on the earth, hold you in their care like the breath of life. Ambitious girl, may the women of science and word-power, distinguished among scholars of the world, light up your will and intelligence like the vitality of their own life. Industrious girl, keen for the wealth of knowledge like a yajna vessel, may the noble teachers, eminent among distinguished scholars of the world in the field of science, in a reputed school of the world, enlighten you and temper you to perfection like the light of the sun. Brilliant girl, may the scholars of Vaidic knowledge, noble and distinguished among scholars of the world, in some reputed institution of the world, enlighten you to fullness of resistance and action like the currents of electricity. Dedicated girl, may the noble women of distinction, eminent among the scholars of the world, most meritorious and flying high in achievement, generous as teachers refine you and distil your human quality to perfection like the nectar of juices in the lap of mother earth in an ideal institution. Dear girl, be with them and learn, and grow to human perfection.
Translation
O baking pit, may the divine Eternity, supported by all the bounties of Nature, dig you here at the shining sacrificial place of the earth. (1) O cauldron, may the divine wives of the enlightened ones supported by all the bounties of Nature, place you in the baking pit here at the shining sacrificial place of the earth. (2) O cauldron, may the divine words of praise, supported by all the bounties of Nature enkindle you here at the Shining sacrificial place of the earth. (3) O cauldron, may the divine days and nights, supported by all the bounties of Nature, heat you up here at the shining Sacrificial place of the earth. (4) O cauldron, may thе divine speech, supported by all the bounties of Nature, bake you here at the shining sacrificial place of the earth. (5) О cauldron, may the ever-moving matrons (i. e. the stars), supported by all the bounties of Nature, bake vou here at the shining sacrificial place of the earth. (6)
Notes
According to legend, Aditi, Devanain patnih, Dhisanáh, Varütrih, Gnah, Janayah, are the mother of gods, consorts of gods, goddesses of wealth and riches, protecting goddesses (days and nights), celestial ladies (deities of the sacred metres), and presiding deities of stars respectively.
बंगाली (1)
विषय
বিদুষ্যঃ স্ত্রিয়ঃ কন্যাঃ সুশিক্ষ্য ধার্মিকীর্বিদুষীঃ কৃত্বৈহিকপারলৌকিকসুখে প্রাপয়েয়ুরিত্যাহ ॥
বিদুষী স্ত্রীগণ কন্যাদিগকে উত্তম শিক্ষা দ্বারা ধর্মাত্মা বিদ্যাযুক্ত করিয়া ইহ লোক ও পরলোকের সুখ প্রাপ্ত করাইবেন । এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (অবট্) দুর্গুণ ও নিন্দারহিত বালক (বিশ্বদেব্যাবতী) সম্পূর্ণ বিদ্বান্গণের মধ্যে প্রশস্ত জ্ঞানযুক্তা (অদিতিঃ) অখন্ড বিদ্যা পাঠকারিণী (দেবী) বিদুষী স্ত্রী (পৃথিব্যাঃ) ভূমির (সধস্থে) এক শুভস্থানে (ত্বা) তোমাকে (অঙ্গিরস্বৎ) অগ্নিসম (খনতু) যেমন ভূমি খনন করিয়া কূপ জল নিষ্কাসন করা হয় সেইরূপ বিদ্যাযুক্ত করিবে । হে (উখে) জ্ঞানযুক্তা কুমারী ! (দেবানাম্) বিদ্বান্দিগের (পত্নীঃ) স্ত্রী যে (বিশ্বদেব্যাবতীঃ) সম্পূর্ণ বিদ্বান্দিগের মধ্যে অধিক বিদ্যাযুক্ত (দেবীঃ) বিদুষী (পৃথিব্যাঃ) পৃথিবীর (সধস্থে) এক স্থানে (অঙ্গিরস্বৎ) প্রাণ সদৃশ (ত্বা) তোমাকে (দধতু) ধারণ করুক । হে (উখে) বিজ্ঞান অভিলাষিণী (বিশ্বদেব্যাবতীঃ) সব বিদ্বান্দিগের মধ্যে উত্তম (ধিষণাঃ) প্রশংসিত বাণীযুক্ত বুদ্ধিমতী (দেবীঃ) বিদ্যাযুক্ত স্ত্রী লোক (পৃথিব্যাঃ) পৃথিবীর (সধস্থে) এক স্থানে (ত্বা) তোমাকে (অঙ্গিরস্বৎ) প্রাণতুল্য (অভীন্ধতাম্) প্রদীপ্ত করুক । হে (উখে) অন্নাদি রন্ধন করিবার পাত্রের ন্যায় বিদ্যা ধারণ কারিণী কন্যে! (বিশ্বদেব্যাবতীঃ) উত্তম বিদূষী (বরূত্রীঃ) বিদ্যা গ্রহণ হেতু স্বীকার করিবার যোগ্য (দেবীঃ) রূপবতী স্ত্রীগণ (পৃথিব্যাঃ) ভূমির (সধস্থে) এক শুদ্ধ স্থানে (ত্বা) তোমাদেরকে (অঙ্গিরস্বৎ) সূর্য্যতুল্য (শ্রপয়ন্তু) শুদ্ধ তেজস্বিনী করুক । হে (উখে) বিজ্ঞান অভিলাষিণী কুমারী (বিশ্বদেব্যাবতীঃ) বহু বিদ্যাবান্দিগের মধ্যে উত্তম (দেবীঃ) শুদ্ধ বিদ্যাযুক্ত (গ্নাঃ) বেদবাণী জ্ঞাত্রী স্ত্রীগণ (পৃথিব্যাঃ) ভূমির এক (সধস্থে) উত্তম স্থানে (ত্বা) তোমাদেরকে (অঙ্গিরস্বৎ) বিদ্যুৎ তুল্য (পচন্তু) দৃঢ় বলধারিণী করুক । হে (উখে) জ্ঞানের অভিলাষিণী কুমারী (বিশ্বাদেব্যাবতীঃ) উত্তম বিদ্যা পঠিতা (অচ্ছিন্নপত্রাঃ) অখন্ডিত নবীন শুদ্ধ বস্ত্র ধারণকারিণী অথবা যান বাহিতা (জনয়ঃ) শুভগুণে প্রসিদ্ধ (দেবীঃ) দিব্যগুণ প্রদাত্রী স্ত্রীলোকেরা (পৃথিব্যাঃ) পৃথিবীর (সধস্থে) উত্তম প্রদেশে (ত্বা) তোমাকে (অঙ্গিরস্বৎ) ওষধির রসের ন্যায় (পচন্তু) সংস্কারযুক্ত করুক । হে কুমারী কন্যে ! তুমি এই সব পূর্বোক্ত স্ত্রীগণের নিকট হইতে ব্রহ্মচর্য্য সহ বিদ্যা গ্রহণ কর ॥ ৬১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- মাতা-পিতা, আচার্য্য ও অতিথি অর্থাৎ ভ্রমণশীল বিরাগযুক্ত পুরুষদিগের উচিত যে, যেমন রন্ধনকারী ডেক্চি ইত্যাদি পাত্রে অন্নের সংস্কার করিয়া উত্তম প্রতিপন্ন করে সেইরূপই বাল্যাবস্থা হইতে লইয়া বিবাহের প্রথমে পুত্র ও কন্যাদিগকে উত্তম বিদ্যা ও শিক্ষা দ্বারা সম্পন্ন করিবে ॥ ৬১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অদি॑তিষ্ট্বা দে॒বী বি॒শ্বদে॑ব্যাবতী পৃথি॒ব্যাঃ স॒ধস্থে॑ऽঅঙ্গির॒স্বৎ খ॑নত্ববট দে॒বানাং॑ ত্বা॒ পত্নী॑র্দে॒বীর্বি॒শ্বদে॑ব্যাবতীঃ পৃথি॒ব্যাঃ স॒ধস্থে॑ऽঅঙ্গির॒স্বদ্ দ॑ধতূখে ধি॒ষণা॑স্ত্বা দে॒বীর্বি॒শ্বদে॑ব্যাবতীঃ পৃথি॒ব্যাঃ স॒ধস্থে॑ऽঅঙ্গির॒স্বদ॒ভী᳖ন্ধতামুখে॒ বরূ॑ত্রীষ্ট্বা দে॒বীর্বি॒শ্বদে॑ব্যাবতীঃ পৃথি॒ব্যাঃ স॒ধস্থে॑ऽঅঙ্গির॒স্বচ্ছ্র॑পয়ন্তূখে॒ গ্নাস্ত্বা॑ দে॒বীর্বি॒শ্বদে॑ব্যাবতীঃ পৃথি॒ব্যাঃ স॒ধস্থে॑ऽঅঙ্গির॒স্বৎ প॑চন্তূখে॒ জন॑য়॒স্ত্বাऽছি॑ন্নপত্রা দে॒বীর্বি॒শ্বদে॑ব্যাবতীঃ পৃথি॒ব্যাঃ স॒ধস্থে॑ऽঅঙ্গির॒স্বৎ প॑চন্তূখে ॥ ৬১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অদিতিষ্ট্বেত্যস্য সিন্ধুদ্বীপ ঋষিঃ । অদিত্যাদয়ো লিঙ্গোক্তা দেবতাঃ । ভুরিক্কৃতিশ্ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ । উখে বরুত্রীত্যুত্তরস্য নিচৃৎ প্রকৃতিশ্ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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