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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 71
    ऋषिः - कुमारहारित ऋषिः देवता - कृषीवला देवताः छन्दः - विराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    89

    लाङ्ग॑लं॒ पवी॑रवत् सु॒शेव॑ꣳ सोम॒पित्स॑रु। तदुद्व॑पति॒ गामविं॑ प्रफ॒र्व्यं च॒ पीव॑रीं प्र॒स्थाव॑द् रथ॒वाह॑णम्॥७१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    लाङ्ग॑लम्। पवी॑रवत्। सु॒शेव॒मिति॑ऽसु॒ऽशेव॑म्। सो॒म॒पित्स॒र्विति॑ सोम॒पिऽत्स॑रु। तत्। उत्। व॒प॒ति॒। गाम्। अवि॑म्। प्र॒फ॒र्व्य᳖मिति॑ प्रऽफ॒र्व्य᳖म्। च॒। पीव॑रीम्। प्र॒स्थाव॒दिति॑ प्र॒स्थाऽव॑त्। र॒थ॒वाह॑नम्। र॒थ॒वाह॑न॒मिति॑ रथ॒ऽवाह॑नम् ॥७१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    लाङ्गलम्पवीरवत्सुशेवँ सोमपित्सरु । तदुद्वपति गामविम्प्रपर्व्यञ्च पीवरीम्प्रस्थावद्रथवाहणम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    लाङ्गलम्। पवीरवत्। सुशेवमितिऽसुऽशेवम्। सोमपित्सर्विति सोमपिऽत्सरु। तत्। उत्। वपति। गाम्। अविम्। प्रफर्व्यमिति प्रऽफर्व्यम्। च। पीवरीम्। प्रस्थावदिति प्रस्थाऽवत्। रथवाहनम्। रथवाहनमिति रथऽवाहनम्॥७१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 71
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे कृषीवलाः! यूयं सोमपित्सरु पवीरवत् सुशेवं लाङ्गलं प्रफर्व्यं प्रस्थावद् रथवाहनं चास्ति, येनाविं पीवरीं गामुद्वपति तद्यूयं साध्नुत॥७१॥

    पदार्थः

    (लाङ्गलम्) सीरापश्चाद् भागे दार्ढ्याय संयोज्यं काष्ठम् (पवीरवत्) प्रशस्तः पवीरः फालो विद्यते यस्मिन् तत् (सुशेवम्) सुष्ठु सुखकरम् (सोमपित्सरु) ये सोमयवाद्योषधीः पालयन्ति तान् त्सरयति कुटिलं गमयति (तत्) (उत्) (वपति) (गाम्) पृथिवीम् (अविम्) रक्षणादिहेतुम् (प्रफर्व्यम्) प्रफर्वितुं गमयितुं योग्यम् (च) (पीवरीम्) यया पाययन्ति तां स्थूलाम् (प्रस्थावत्) प्रशस्तं प्रस्थानं यस्यास्ति तत् (रथवाहनम्) रथं वहति येन तत्। [अयं मन्त्रः शत॰७.२.२.११ व्याख्यातः]॥७१॥

    भावार्थः

    कृषीवलैः स्थूलमृत्स्नामन्नाद्युत्पादनेन रक्षिकां सुपरीक्ष्य हलादिसाधनैः संकृष्य समीकृत्य सुसंस्कृतानि बीजानि समुप्योत्तमानि धान्यान्युत्पाद्य भोक्तव्यानि॥७१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे किसानो! तुम लोग जो (सोमपित्सरु) जौ आदि ओषधियों के रक्षकों को टेढ़ा चलावे (पवीरवत्) प्रशंसित फाल से युक्त (सुशेवम्) सुन्दर सुखदायक (लाङ्गलम्) फाले के पीछे जो दृढ़ता के लिये काष्ठ लगाया जाता है, वह (च) और (प्रफर्व्यम्) चलाने योग्य (प्रस्थावत्) प्रशंसित प्रस्थान वाला (रथवाहनम्) रथ के चलने का साधन है, जिससे (अविम्) रक्षा आदि के हेतु (पीवरीम्) सब पदार्थों को भुगाने का हेतु स्थूल (गाम्) पृथिवी को (उद्वपति) उखाड़ते हैं (तत्) उसको तुम भी सिद्ध करो॥७१॥

    भावार्थ

    किसान लोगों को उचित है कि मोटी मट्टी अन्न आदि की उत्पत्ति से रक्षा करने हारी पृथिवी की अच्छे प्रकार परीक्षा करके हल आदि साधनों से जोत, एकसार कर, सुन्दर संस्कार किये बीज [बो] के उत्तम धान्य उत्पन्न करके भोगें॥७१॥

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    विषय

    कृषि का उपदेश ।

    भावार्थ

    ( सोमपित्सरु ) अन्न का पालक, क्षेत्र में कुटिलता से चलने वाला ( सुशेवम् ) सुखकारी, (पवी या फालवाला ( लाङ्गलम् ) हल ( तत् ) यह ही ( गाम् ) गौ आदि को ( अविम् ) भेड़, बकरी यादि क्षुद्र पशु ( प्रफर्व्यम् च ) उत्तम रीति से गमन करने योग्य ( पीवरीम् ) स्वस्थ हृष्ट पुष्ट शरीर की स्त्री और ( प्रस्थावत् ) प्रस्थान करने योग्य ( स्थ- वाहनम् ) रथ और घोड़े आदि ऐश्वर्यों को ( उद्वपति) उत्पन्न करता है । अर्थात् कृषि से ही समस्त ऐश्वर्य, पशु, रथ, अश्व आदि भी प्राप्त होते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुमारहारीत ऋषिः । सीता देवता । विराट् पंक्तिः । पञ्चमः ॥

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    विषय

    लाङ्गलम्

    पदार्थ

    १. हल की मूठ को लाङ्गल कहते हैं। यह (लाङ्गलम्) = हल की मूठ (पवीरवत्) = उत्तम फालवाला हो। [पविः धारा, सोऽस्यास्तीति पवीरं फालः], (सुशेवम्) = शोभन-सुखकर हो । उसकी धारा खूब तेज़ हो, जिससे सरलता से भूमि को खोद सके। हमारा यह हल सरलता से चलनेवाला [facile] हो। हम अथवा बैल क्या हल चला रहे हों, हल स्वयं चल रहा हो। (सोमपित्सरु) = सोमादि ओषधियों के पालन करनेवाले का यह हल (त्सरु) = खड्गमुष्टि हो । जैसे क्षत्रिय के हाथ में तलवार की मूठ होती है और वह उसे पकड़कर शत्रुओं का संहार कर देता है उसी प्रकार कृषक के लिए यह लाङ्गल तलवार की मूठ ही है। उसके द्वारा यह सोमादि उत्तम ओषधियों के अभाव को नष्ट कर दें-राष्ट्र में अन्नाभाव को यह दूर करनेवाला हो। २. (तत्) = वह हल-हल द्वारा किया जानेवाला कृषि कार्य [क] (प्रफर्व्य च) = [प्रकर्षेण फर्वति गच्छतीति प्रफर्वी] खूब क्रियाशील - चुस्त गौ को - अथर्ववेद के शब्दों में (आस्पन्दमाना) = उछलती - कूदती गौ को (उद्वपति) = [गमयति] प्राप्त कराता है। ऋग्वेद के अक्षसूक्त में कहते हैं कि हे कितव 'तत्र गावः कितव तत्र जाया' हे जूए की ओर झुकाववाले ! तू इस बात को समझ ले कि इस कृषि कार्य में गौवें हैं, इस कृषि कार्य में उत्तम घर का निर्माण है। [ख] यह हल तुझे (पीवरीं अविम्) = पूर्ण स्वस्थ मोटी ताज़ी भेड़ प्राप्त कराएगा, जो तुझे वस्त्रों के लिए उत्तम ऊन देनेवाली होगी। [ग] यह कृषि कार्य तुझे प्रस्थावत्-प्रस्थानसंयुक्त, उत्कृष्ट वेग से युक्त, हर समय चलने के लिए तैयार - पर- तैयार, जिसे रोकने में कठिनता होती हो ऐसे (रथवाहनम्) = रथ के वाहनभूत घोड़े को प्राप्त कराता है । ३. एवं, कृषि - कार्य में गौवें हैं जो हमारे शरीर के पोषण के लिए दूध-घृत आदि प्राप्त कराती हैं। इस कार्य में भेड़े हैं जो वस्त्रों के लिए ऊन देती हैं। वेगवाले घोड़े हैं जो हमें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। इस प्रकार यह कृषि हमें जीवन की सब आवश्यकताओं को प्राप्त कराती है और हमारे घरों को स्वस्थ व आनन्दमय बनाती है। मनुष्य का नाम ही वेद में 'कृष्टि' है- कृषि करनेवाला । वस्तुतः कृषि ही आजीविका के लिए सर्वोत्तम है। - =

    भावार्थ

    भावार्थ - कृषि में गौवें हैं, भेड़े हैं व घोड़े हैं, अतः हम कृषि की ओर ध्यान दें। हमारा हल सुख से चलनेवाला व अन्नाभाव को समाप्त करनेवाला हो ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    शेतकऱ्यांनी अन्न इत्यादी उत्पन्न करण्यासाठी व भूमीचे रक्षण व्हावे यासाठी जमिनीची चांगली परीक्षा करावी. नांगर इत्यादींनी जमीन नांगरून समतल करावी. संस्कारित बीज पेरून उत्तम धान्य उत्पन्न करावे व त्यांचा उपभोग घ्यावा.

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    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय (कृषी) प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे शतकऱ्यांनी, (सोमपित्सरु) यव आदी धान्य आणि औषधींचे रक्षण करणाऱ्या वस्त (परीववत्‌) ज्यामध्ये मोठे फाळ (नांगराच्या सालच्या भागातील लोखंडी साधन आहे, आणि जे (सुशेवम्‌) (नांगरण्याच्या कामी अत्यंत) सुखकारी व सोयीचे आहे, अशा (लाड्गलम्‌) फाळाच्यामागे दृढतेकरिता लावलेल्या लाकडी साधनाला ( ) तुम्ही (शेतकऱ्यांनी चांगले ठेवावे.) याशिवाय (प्रफर्व्यम्‌) (नांगर) चालवण्यासाठी सोयीचे (प्रस्थावत) आणि प्रवास करण्याच्या कामी सोयीचे (च) आणि (रथवाहनम्‌) जे रथ चालवण्याचे सुगम साधन आहे, त्या साधनाला नीट जपावे तसेच (अविम्‌) (आपल्या व शेतीच्या) रक्षणाकरिता शेतकरी लोक ज्या ज्या साधनांचा शेतीत वापर करतात. त्याचेही रक्षण करावे तसेच (पीवरीम्‌) सर्वपदार्थाच्या उपभोगाचे साधन जी (गाम्‌) भूमी, त्या भूमीला ज्या यंत्राने वा साधनाने (उद्वपति) उखडन टाकतात वा नागरतील, (मातीला वर खाली करतात) (तत्‌) त्या नांगरट कामी आवश्‍यक सर्व साधनांना तुम्ही तयार व सुस्थितीत ठेवा (ज्यायोगे शेती भरपूर पिकेल आणि आम्हास धान्य, औषधी आदी मिळू शकतील) ॥71॥

    भावार्थ

    भावार्थ - कृषकांकरिता उचित आहे की त्यांनी जाड माती (मऊ करावे) धान्याची उत्पत्ती व रक्षण करणाऱ्या शेतजमिनीची चांगल्याप्रकारे मशागत करावी. नांगरणे, (कुळवणे, पाणी देणे) आदी क्रियांद्वारे शेतीला कृषीयोग्य व सुसंस्कृत करावे, त्यातून उत्तम व भरपूर धान्य मिळवावे आणि त्याचा सुखाने उपभोग घ्यावा ॥71॥

    टिप्पणी

    (टीप- शेतीच्या कामात सहाय्यभूत साधनांची साधारण माहिती अशी:-

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O farmers the keen-sheared plough, the bringer of bliss, the protector of foodstuffs, moves awry. It is the giver of fast, comfortable conveyances. With it dig the solid earth for protections sake.

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    Meaning

    The plough, fitted with the share, symbol of peace and joy, a tool of soma—plenty, prosperity and happiness — drawn by horses or bullocks and held firmly by the hilt, turns up the crust of the kind and generous earth to make it ready for sowing.

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    Translation

    Sharp-shared plough along with the spade of the sacrificer brings happiness. It provides him with cow and sheep, young and plump, and fast-moving chariot horse. (1)

    Notes

    Paviravat, पविर्धारास्यातीति पवीरं, sharp-edged share. Tsaru त्सरति भूमिं खनतीति त्सरु: a spade. Prapharvyam,प्रकर्पेण फर्वति गच्छति इति प्रफर्वी, one that runs smartly. Prasthavad, प्रस्था गतिरस्यास्तीति, one that has speed, fast moving.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মিষ্ট ও জলাদি দ্বারা সংস্কার কৃত স্বীকৃত ক্ষেত্রের পৃথিবীর অন্নকে সুসাধিকা করুক । যেমন বীজ সুগন্ধাদিযুক্ত করিয়া বপন করে সেইরূপ এই পৃথিবীকেও সংস্কারযুক্ত করুক ॥ ৭০ ॥
    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনরায় সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে কৃষক বর্গ ! তোমরা যে (সোমপিৎসরু) যবাদি ওষধি সকলের রক্ষকদিগকে তির্যক ভাবে চালাও (পবীরবৎ) প্রশংসিত ফাল দ্বারা যুক্ত (সুশেবম্) সুন্দর সুখদায়ক (লাঙ্গলম্) ফালের পশ্চাতে দৃঢ়তাপূর্বক যে কাষ্ঠ লাগানো হইয়া থাকে উহা (চ) এবং (প্রফর্ব্যম্) চালাইবার যোগ্য (প্রস্থাবৎ) প্রশংসিত প্রস্থান যুক্ত (রথবাহনম্) রথ চলিবার সাধন যদ্দ্বারা (অবিম্) রক্ষাদির হেতু (পীবরীম্) সর্ব পদার্থকে উৎপন্ন করিবার হেতু স্থূল (গাম্) পৃথিবীকে (উদ্বপতি) উল্টাইয়া ফেলে (তৎ) উহাকে তোমরাও সিদ্ধ কর ॥ ৭১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- কৃষকদের উচিত যে, স্থূল মৃত্তিকা, অন্নাদির উৎপত্তি হইতে রক্ষাকারিণী পৃথিবীকে ভাল প্রকার পরীক্ষা করিয়া হলাদি সাধন দ্বারা চাষ করিয়া একসার করিয়া সুন্দর সংস্কারিত বীজের উত্তম ধান্য উৎপন্ন করিয়া ভোগ করিবে ॥ ৭১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    লাঙ্গ॑লং॒ পবী॑রবৎ সু॒শেব॑ꣳ সোম॒পিৎস॑রু ।
    তদুদ্ব॑পতি॒ গামবিং॑ প্রফ॒র্ব্যং᳖ চ॒ পীব॑রীং প্র॒স্থাব॑দ্ রথ॒বাহ॑ণম্ ॥ ৭১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    লাঙ্গলমিত্যস্য কুমারহারিত ঋষিঃ । কৃষীবলা দেবতাঃ । বিরাট্ পংক্তিশ্ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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