यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 23
ऋषिः - इन्द्राग्नी ऋषी
देवता - बृहस्पतिर्देवता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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या वो॑ देवाः॒ सूर्य्ये॒ रुचो॒ गोष्वश्वे॑षु॒ या रुचः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ ताभिः॒ सर्वा॑भी॒ रुचं॑ नो धत्त बृहस्पते॥२३॥
स्वर सहित पद पाठयाः। वः॒। दे॒वाः॒। सूर्ये॑। रुचः॑। गोषु॑। अश्वे॑षु। याः। रुचः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ऽइतीन्द्रा॑ग्नी। ताभिः॑। सर्वा॑भिः। रुच॑म्। नः॒। ध॒त्त॒। बृ॒ह॒स्प॒ते॒ ॥२३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या वो देवाः सूर्ये रुचो गोष्वश्वेषु या रुचः । इन्द्राग्नी ताभिः सर्वाभी रुचन्नो धत्त बृहस्पते ॥
स्वर रहित पद पाठ
याः। वः। देवाः। सूर्ये। रुचः। गोषु। अश्वेषु। याः। रुचः। इन्द्राग्नीऽइतीन्द्राग्नी। ताभिः। सर्वाभिः। रुचम्। नः। धत्त। बृहस्पते॥२३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ स्त्रीपुरुषैः कथं विज्ञानं संपाद्यमित्याह॥
अन्वयः
हे देवाः! यूयं या वः सूर्ये रुचो या गोष्वश्वेषु रुचश्चेव रुचः सन्ति, ताभिः सर्वाभी रुग्भिर्नो रुचमिन्द्राग्नी इव धत्त। हे बृहस्पते परीक्षक! भवानस्माकं परीक्षां कुरु॥२३॥
पदार्थः
(याः) (वः) युष्माकम् (देवाः) विद्वांसः (सूर्य्ये) सवितरि (रुचः) रुचयः (गोषु) धेनुषु (अश्वेषु) गवादिषु (याः) (रुचः) प्रीतयः (इन्द्राग्नी) विद्युत्सूर्य्यवदध्यापकोपदेशकौ (ताभिः) (सर्वाभिः) (रुचम्) कामनाम् (नः) अस्माकं मध्ये (धत्त) (बृहस्पते) बृहतां विदुषां पालक। [अयं मन्त्रः शत॰७.४.२.२१ व्याख्यातः]॥२३॥
भावार्थः
यावन्मनुष्याणां विद्वत्सङ्ग ईश्वरेऽस्य सृष्टौ च रुचिः परीक्षा च न जायते, तावद्विज्ञानं न वर्द्धते॥२३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब स्त्री-पुरुषों को विज्ञान की सिद्धि कैसे करनी चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (देवाः) विद्वानो! तुम सब लोग (याः) जो (वः) तुम्हारी (सूर्य्ये) सूर्य्य में (रुचः) रुचि और (याः) जो (गोषु) गौओं और (अश्वेषु) घोड़ों आदि में (रुचः) प्रीतियों के समान प्रीति है, (ताभिः) उन (सर्वाभिः) सब रुचियों से (नः) हमारे बीच (रुचम्) कामना को (इन्द्राग्नी) बिजुली और सूर्य्यवत् अध्यापक और उपदेशक जैसे धारण करे, वैसे (धत्त) धारण करो। हे (बृहस्पते) पक्षपात छोड़ के परीक्षा करानेहारे पूर्णविद्या युक्त आप (नः) हमारी परीक्षा कीजिये॥२३॥
भावार्थ
जब तक मनुष्य लोगों की विद्वानों के संग ईश्वर उस की रचना में रुचि और परीक्षा नहीं होती, तब तक विज्ञान कभी नहीं बढ़ सकता॥२३॥
विषय
सूर्य के समान प्रजा की अभिलाषा पूर्ण करने वाला राजा ।
भावार्थ
हे (देवा: )ज्ञानप्रद एवं ऐश्वर्यमद विद्वान् पुरुषो ! और राजा लोगो ! ( वः ) तुम लोगों की ( याः ) जो ( सूर्ये रुचः ) सूर्य में विद्यमान दीप्तियों के समान फुरने वाली कान्तियां या अभिलाषाएं या रुचिकर प्रवृत्तिये हैं और ( याः रुच: ) जो मनोहर लक्ष्मी, सम्पत्तियां ( गोषु अश्वेषु ) गौओं और अश्वों में हैं ( ताभिः सर्वाभि: ) उन सब रुचि- कर समृद्धियों से है ( इदाग्नी ) इन्द्र ! हे अग्ने ! और हे ( बृहस्पते ) हे सेनापते ! हे राजन् ! हे विद्वन् ब्रह्मन् ! आप सब लोग (नः) हमें ( रुचः ) समस्त रुचिकर सम्पत्तियां ( धत्त ) प्रदान करें ॥ शत० ७ । ४ । २ । २१ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्राग्नी ऋषि। देवाः इन्द्राग्नी बृहस्पतिश्च देवताः । अनुष्टुप् गांधारः ॥
विषय
माता-पिता व आचार्य
पदार्थ
१. मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद' इस वाक्य के अनुसार उत्तम सन्तानों का निर्माण माता-पिता व आचार्य पर निर्भर करता है। ये तीनों देव हैं 'मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव' इस उपनिषद् वाक्य में तीनों को देव कहा गया है। इनका मस्तिष्क ज्ञान के सूर्य से चमकता होगा और इनकी ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों से चमकती होंगी तो सन्तानें भी उत्तम होंगी । २. मन्त्र के शब्दों में कहते हैं कि हे (देवा:) = माता-पिता व आचार्यो ! (या:) = जो (वः) = आपकी सूर्ये मस्तिष्करूप गगन में उदित ज्ञानसूर्य में (रुचः) = दीप्तियाँ हैं, गोषु ज्ञानेन्द्रियों में, अश्वेषु कर्मों में व्याप्त होनेवाली कर्मेन्द्रियों में (या:) = जो (रुचः) = दीप्तियाँ हैं, हे (इन्द्राग्नी) = इन्द्रतुल्य अथवा जितेन्द्रिय पितः तथा अग्नितुल्य मातः! तथा (बृहस्पते) = वेदज्ञान के पति आचार्य ! (ताभिः सर्वाभी:)- उन सब दीप्तियों से (नः) = हम सन्तानों में भी (रुचम्) = दीप्ति को (धत्त) = धारण करो। हमारे जीवनों को भी दीप्तिमय बनाओ। ३. माता-पिता व आचार्य ने ही तो सन्तानों का निर्माण करना है। माता चरित्र देती है, पिता शिष्टाचार तथा आचार्य ज्ञान ।
भावार्थ
भावार्थ- माता-पिता व आचार्य जब उत्तम मस्तिष्क, ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियोंवाले होते हैं तब वे सन्तानों के जीवनों को भी ज्योतिर्मय बना पाते हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
जोपर्यंत माणसांना विद्वानांच्या संगतीने ईश्वर व त्याची रचना यांच्यामध्ये आवड निर्माण होत नाही व त्यांची विद्वानांकडून परीक्षा होत नाही तोपर्यंत विज्ञानाची वृद्धी कधीच होत नाही.
विषय
स्त्री-पुरुषांनी विज्ञानाची प्राप्ती कशी करावी, पुढील मंत्रात याविषयी प्रतिपादन केले आहे
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (देवा:) (समाजातील वा राष्ट्रातील) विद्वज्जनहो, (व:) तुमच्या (या:) ज्या काही (सूर्य्ये) सूर्याविषयी (रुच:) रुची (प्रेम, ज्ञान-विज्ञान आदी) आहेत, तसेच (गोणु) गायी विषयी आणि (अश्वेषु) घोडे आदी इतर पशूंविषयी (तुमच्याजवळ) जी ज्या काही प्रिय (व उपयुक्त अशी माहिती) आहे, (ताभि:) त्या (सर्वाभि:) सर्व प्रिय आणि लाभकारी गोष्टी विषयी (न:) आमच्यामधे (रुचम्) प्रीती (व आवड निर्माण करा). जसे (इन्द्राग्नी) (स्वष्ट्रतील) विद्युत् आणि सूर्य यांच्याप्रमाणे असलेले अध्यापक आणि उपदेशक आहेत आणि ते जसे आम्हा (प्रजाजनांना) (सर्व ज्ञान देतात) तद्वत तुम्ही (विद्वान आणि वैज्ञानिकांनीदेखील) (धत्त) आम्हांस धारण करण्यास सहकार्य करावे. (आम्हांस विज्ञान व त्यापासून लाभादी शिकवावेत) हे (बृहस्पते) पक्षपात सोडून निष्पक्षपातीपणाने सर्वांची परीक्षा घेणाऱ्या हे पूर्ण विद्वज्जन हो, आपण (न:) आमची परीक्षा घ्या (आणि जे लोक ज्ञानग्रहण करण्यास पात्र ठरतील, त्यांनी ज्ञानविज्ञान शिकवा) ॥23॥
भावार्थ
missing
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned persons, whatever love ye have got for the sun, the cows and horses, with all that inculcate love in us, just as the teacher and preacher incite our love for learning. O unbiassed learned examiner, examine us.
Meaning
Divine powers of nature, your energy and vitality illuminates the sun and vitalizes the lives of animals like cows and horses. It also works in the motions of objects and the perceptions of the senses. O Brihaspati, Lord omniscient of this mighty universe, may the heat and light of natural energy in¬ vest our vitality with all that power and energy. Brihaspati, noble teacher and master of knowledge and education, may our teachers like Indra and Agni in-form and in-vest our deep interest in life and nature with the hidden secrets of light, power and sensation as expressions of one universal natural energy (Prakriti).
Translation
O bounties of Nature, O Lord supreme, resplendent and blissful, with your brilliance, which manifests itself in the sun, and which is mainfest in cows and horses, may you bless us. (1)
Notes
Lustres of the sun, of cows and of horses are mentioned in one breath.
बंगाली (1)
विषय
অথ স্ত্রীপুরুষৈঃ কথং বিজ্ঞানং সংপাদ্যমিত্যাহ ॥
এখন স্ত্রী পুরুষদিগকে বিজ্ঞানের সিদ্ধি কীভাবে করিতে হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ ! তোমরা সকলে (য়াঃ) যাহা (বঃ) তোমাদিগের সূর্য্যে (রুচঃ) রুচি এবং (য়াঃ) যাহা (গোষু) গাভি এবং (অশ্বেষু) অশ্বাদিতে (রুচঃ) প্রীতি সকলের সমান প্রীতি (তাভিঃ) সেই (সর্বাভিঃ) সব রুচি দ্বারা (নঃ) আমাদের মধ্যে (রুচম্) কামনাকে (ইন্দ্রাগ্নী) বিদ্যুৎ ও সূর্য্যবৎ অধ্যাপক ও উপদেশকেরা যেমন ধারণ করেন সেইরূপ (ধত্ত) ধারণ কর । হে (বৃহস্পতে) পক্ষপাত ত্যাগ করিয়া পরীক্ষাকারী পূর্ণ বিদ্যাযুক্ত আপনি (নঃ) আমাদিগের পরীক্ষা করুন ॥ ২৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যতক্ষণ মনুষ্যদিগের বিদ্বান্দের সঙ্গ, ঈশ্বর তথা তাঁহার রচনায় রুচি ও পরীক্ষা হয়না ততক্ষণ বিজ্ঞান কখনও বৃদ্ধি পাইতে পারে না ॥ ২৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়া বো॑ দেবাঃ॒ সূর্য়্যে॒ রুচো॒ গোষ্বশ্বে॑ষু॒ য়া রুচঃ॑ ।
ইন্দ্রা॑গ্নী॒ তাভিঃ॒ সর্বা॑ভী॒ রুচং॑ নো ধত্ত বৃহস্পতে ॥ ২৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়া বো দেবা ইত্যস্যেন্দ্রাগ্নী ঋষী । বৃহস্পতির্দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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