यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 16
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - अग्नदिविद्याविदात्मा देवता
छन्दः - निचृदतिशक्वरी
स्वरः - पञ्चमः
131
अ॒ग्निश्च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ सोम॑श्च म॒ऽइ॒न्द्र॑श्च मे सवि॒ता च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ सर॑स्वती च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे पू॒षा च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ बृह॒स्पति॑श्च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥१६॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। सोमः॑। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। स॒वि॒ता। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। सर॑स्वती। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। पू॒षा। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। बृह॒स्पतिः॑। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निश्च मऽइन्द्रश्च मे सोमश्च मऽइन्द्रश्च मे सविता च मऽइन्द्रश्च मे सरस्वती च मऽइन्द्रश्च मे पूषा च मऽइन्द्रश्च मे बृहस्पतिश्च मऽइन्द्रश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निः। च। मे। इन्द्रः। च। मे। सोमः। च। मे। इन्द्रः। च। मे। सविता। च। मे। इन्द्रः। च। मे। सरस्वती। च। मे। इन्द्रः। च। मे। पूषा। च। मे। इन्द्रः। च। मे। बृहस्पतिः। च। मे। इन्द्रः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥१६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
मेऽग्निश्च म इन्द्रश्च मे सोमश्च म इन्द्रश्च मे सविता च म इन्द्रश्च मे सरस्वती च म इन्द्रश्च मे पूषा च म इन्द्रश्च मे बृहस्पतिश्च म इन्द्रश्च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥१६॥
पदार्थः
(अग्निः) सूर्यः प्रसिद्धस्वरूपः (च) भौमः (मे) (इन्द्रः) विद्युत् (च) वायुः (मे) (सोमः) सोम्यगुणसम्पन्नो जनः पदार्थो वा (च) वृष्टिः (मे) (इन्द्रः) अन्यायविदारकः सभेशः (च) सभ्याः (मे) (सविता) ऐश्वर्य्ययुक्तः (च) एतत्साधनानि (मे) (इन्द्रः) सकलाऽविद्याच्छेदकोऽध्यापकः (च) विद्यार्थिनः (मे) (सरस्वती) प्रशस्तबोधः शिक्षायुक्ता वाणी वा (च) सत्यवक्ता (मे) (इन्द्रः) विद्यार्थिनो जाड्यविच्छेदक उपदेशकः (च) श्रोतारः (मे) (पूषा) पोषकः (च) युक्ताहारविहारौ (मे) (इन्द्रः) यः पुष्टिकरणविद्यायां रमते (च) वैद्यः (मे) (बृहस्पतिः) बृहतां व्यवहाराणां रक्षकः (च) राजा (मे) (इन्द्रः) सकलैश्वर्यवर्द्धकः (च) सेनेशः (मे) (यज्ञेन) विद्यैश्वर्य्योन्नतिकरणेन (कल्पन्ताम्)॥१६॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! युष्माभिः सुविचारेण स्वकीयाः सर्वे पदार्थाः श्रेष्ठपालनाय दुष्टशिक्षणाय च सततं योजनीयाः॥१६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(मे) मेरा (अग्निः) प्रसिद्ध सूर्यरूप अग्नि (च) और पृथिवी पर मिलने वाला भौतिक (मे) मेरा (इन्द्रः) बिजुलीरूप अग्नि (च) तथा पवन (मे) मेरा (सोमः) शन्तिगुण वाला पदार्थ वा मनुष्य (च) और वर्षा मेघ जल (मे) मेरा (इन्द्रः) अन्याय को दूर करने वाला सभापति (च) और सभासद् (मे) मेरा (सविता) ऐश्वर्ययुक्त काम (च) और इसके साधन (मे) मेरा (इन्द्रः) समस्त अविद्या का नाश करने वाला अध्यापक (च) और विद्यार्थी (मे) मेरा (सरस्वती) प्रशंसित बोध वा शिक्षा से भरी हुई वाणी (च) और सत्य बोलने वाला (मे) मेरा (इन्द्रः) विद्यार्थी की जड़ता का विनाश करने वाला उपदेशक (च) और सुनने वाले (मे) मेरा (पूषा) पुष्टि करने वाला (च) और योग्य आहार=भोजन, विहार=सोना आदि (मे) मेरा जो (इन्द्रः) पुष्टि करने की विद्या में रम रहा है, वह (च) और वैद्य (मे) मेरा (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े व्यवहारों की रक्षा करने वाला (च) और राजा तथा (मे) मेरा (इन्द्रः) समस्त ऐश्वर्य का बढ़ाने वाला उद्योगी (च) और सेनापति ये सब (यज्ञेन) विद्या और ऐश्वर्य की उन्नति करने से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥१६॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! तुम लोगों को अच्छे विचार से अपने सब पदार्थ उत्तमों का पालन करने और दुष्टों को शिक्षा देने के लिये निरन्तर युक्त करने चाहिये॥१६॥
विषय
यज्ञ से अग्नि आदि दिव्य तत्व और उनके ज्ञाता विद्वानों की प्राप्ति, यज्ञ से न्यायाधीश आदि पदाधिकारियों की प्राप्ति । यज्ञ से पृथिवी, अन्तरिक्ष सूर्य, नक्षत्र, काल आदि पदार्थों के ज्ञान और उनके ज्ञाताओं की प्राप्ति ।
भावार्थ
( अग्निः च ) सूर्य और आग्नेय तत्व, ( इन्द्रः च ) उनका ज्ञाता इन्द्र, ( सोमः च इन्द्रः च ) सोम, जल तत्व, ओषधि और इन्द्र, उसकी विद्या के रहस्यों का जानने वाला, ( सविता च इन्द्रः च) सविता सूर्य या ऐश्वर्यवान् और इन्द्र, सूर्यतत्व का विज्ञाता, सभापति और सभ्य, ( सरस्वती च ) सरस्वती, वेदवाणी और ( इन्द्रः च ) उसका ज्ञाता, आचार्य, विद्वान्, ( पूषा च ) सबका पोषण करने वाला अन्न और पशु तथा ( इन्द्रः च ) उनका ज्ञाता विद्वान् और अधिपति गुरु इन्द्र है । ( बृहस्पतिः च ) बृहस्पति, बृहती वेदवाणी का पालक विद्वान्, ब्राह्मण, वैद्य और ( इन्द्रः च ) उसके ऐश्वर्यों का भी स्वामी, सेनापति, इन्द्र, ये सब ( यज्ञेन ) यज्ञ, परस्पर संगति, प्रजापालन और आत्म-साधना से ( मे कल्पन्ताम ) मेरे राज्यव्यवहार में समर्थ एवं शक्तिशाली हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्न्यादिविद्याविद् । निचृदतिशक्वरी । पंचमः ।
विषय
अग्नि + + इन्द्र लक्ष्य [संख्या - १]
पदार्थ
१. पिछले मन्त्र की समाप्ति पर लक्ष्य की ओर चलने व लक्ष्य को प्राप्त करने का उल्लेख था, प्रस्तुत मन्त्रों में लक्ष्य का वर्णन करते हैं-अग्निः च मे मुझमें अग्नितत्त्व हो । अपने को आगे और आगे बढ़ाने की वृत्ति हो। २. (सोमः च मे) = मैं सौम्य बनूँ । जितना - जितना आगे बढ़ता जाऊँ उतना उतना विनीत होता चलूँ। वस्तुतः इस विनीतता से ही तो मैं आगे बढूँगा । ३. (सविता च मे) = मैं प्रशस्त ऐश्वर्यवाला बनूँ। निर्माण [Produc tion] के कार्यों के द्वारा मैं धन का सम्पादन करनेवाला बनूँ और साथ ही ४. (सरस्वती च मे) = प्रशस्त बोध व शिक्षायुक्त वाणीवाला मैं होऊँ। ५. (पूषा च मे) = शरीर का मैं सभी दृष्टिकोणों से पोषण करूँ और ६. (बृहस्पतिः च मे) = ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञानी, ज्ञानियों का भी ज्ञानी- मैं देवगुरु बन सकूँ। ७. उल्लिखित प्रार्थनाओं में प्रत्येक प्रार्थना के साथ 'इन्द्रश्च मे' ये शब्द जोड़े गये हैं। उसका अभिप्राय स्पष्ट है कि मैं 'इन्द्र' जितेन्द्रिय बनूँ । जितेन्द्रियता से ही जीवन का मन्त्र - वर्णित लक्ष्य पूर्ण हो सकता है। जितेन्द्रिय बनकर ही मैं 'अग्नि, सोम, सविता, सरस्वती, पूषा व बृहस्पति' बन सकूँगा । जितेन्द्रियता वह केन्द्र है जिसके चारों ओर सभी सद्गुण परिधि के रूप में होते हैं। ये सब गुण (यज्ञेन) = प्रभु- सम्पर्क द्वारा (कल्पन्ताम्) = मुझे समर्थ बनाएँ।
भावार्थ
भावार्थ- मेरा जीवन लक्ष्य 'आगे बढ़ना, सौम्य बनना, उत्पादनात्मक कार्यों से ऐश्वर्य प्राप्त करना, प्रशस्त बोधवाला होना, शरीर का ठीक पोषण करना व ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञानी बनना हो । '
मराठी (2)
भावार्थ
हे माणसांनो ! तुम्ही नेहमी चांगले विचार ठेवा व आपले सर्व पदार्थ उत्तमांचे पालन व दुष्टांना दंड देण्यासाठी उपयोगात आणा.
विषय
पुढील मंत्रात तोच विषय-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (मे) माझा (अग्नि:) सूर्यरुप अग्नी (च) आणि पृथ्वीवर मिळणारा भौतिक अग्नी, तसेच (मे) माझा) (इन्द्र:) विद्युत रुप अग्नी (च) आणि पवन (माझ्यासाठी समर्थ वा लाभकारी होवोत) (मे) माझा (सोम:) शान्तिगुणाने समृद्ध पदार्थ अथवा शांत स्वभावाचा माणूस (च) आणि वृष्टीजल, तसेच (मे) माझा (इन्द्र:) अन्याय दूर करणारा राष्ट्राचा सभापती (च) आणि त्या सभेतील सर्व सदस्य (मला हितकर व्हावेत/असावेत) (मे) माझे (सविता) ऐश्वर्यशाली वा कीर्तीनंतर कार्य (च) आणि ते करण्यासाठी आवश्यक ती साधनें, तसेच (मे) माझा (इन्द्र:) समस्त अविद्येचा नाश करणारा अध्यापक (च) आणि विद्यार्थी (माझ्यासाठी हितकर व्हावेत) (मे) माझी (सरस्वती) प्रशंसनीय ज्ञान देणारी प्रबोधन करणारी वाणी (च) आणि सत्यभाषण करणारा वक्ता, तसेच (मे) माझा (इन्द्रहु:) विद्यार्थ्याच्या जडत्वाचा, अज्ञानाचा नाश करणारा उपदेशक (च) आणि श्रोता (मला हितकारी असावेत) (मे) माझा (पूषा) पूषण व शक्ती देणारा (सभापती वा वैद्य) (च) आणि (मला) योग्य आहार, विहार, शयन आदी विषयी प्रेरणा देणारा (गुरु) तसेच (मे) माझा पोषण विद्येत पारंगत (आरोग्याचे रक्षण करणारा) (च) आणि चतुर वैद्य (मला हितकर असावेत) (मे) माझा (बृहस्थपि:) मोठमोठ्या व्यवहारांचे रक्षण करणारा (मला सांभाळून घेणारा) अधिकारी (च) आणि राजा, तसेच (मे) माझा (इन्द्र:) ऐश्वर्याची वृद्धी करणारी उद्यमशील व्यक्ती (उद्योगपती) (च) आणि सेनापती हे सर्व माझ्यासाठी (यज्ञेन) विद्या आणि ऐश्वर्याद्वारे (मला ज्ञान आणि धन देऊन) (कल्पन्ताम्) सामर्थ्यवान असावेत ॥16॥
भावार्थ
भावार्थ -हे मनुष्यानो, तुम्ही चांगले विचार ठेऊन आपल्या सर्व पदार्थांचा उपयोग, सज्जनांच्या पालन-कार्यासाठी आणि दुष्टांना दंडित करण्यासाठी करा. अशा प्रकारे निरंतर कार्यमग्न रहा ॥16॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May my fiery sun and earthly fire, my lightning and air, my peace-affording articles and rain, my ruler the dispeller of injustice, and his ministers, my prosperous deed and its means, my teacher the banisher of ignorance, and pupil, my instructive speech and the speaker of truth, my preacher, the remover of stupidity, and listeners, my nourisher and abstemiousness, my soul and physician, my guardian of vedic lore and King, my lord of supremacy and general of the army, prosper through the advancement of knowledge.
Meaning
Agni, solar energy and magnetic force of the earth is mine, and Indra, lord controller of power and energy is mine. Soma, nature’s power of rain and generosity is mine, and Indra, lord justice controller of rain and generosity is mine. Savita, power of generation and prosperity is mine, and Indra, lord and controller of generation and prosperity is mine. Saraswati, divine spirit of knowledge, art, and the system of education is mine, and Indra, lord and power controller of the value and application of knowledge is mine. Pusha, power of food and production is mine, and Indra, enlightened controller of good nourishment and production is mine. Brihaspati, great lord of social activity, manners and culture is mine, and Indra, lord controller of social and moral values is mine. May all these powers of nature and society for development, direction and control grow strong and auspicious for me and for all by yajna, social action in unison, enlightened guidance and by the Grace of God.
Translation
May my adorable Lord (Agni) and my resplendent Lord (Indra), my blissful Lord (Soma) and my resplendent, my Creator Lord (Savitr) and my resplendent, my Speech (Sarasvati) and my resplendent, my nourisher Lord (Pusan) and my resplendent, my Lord supreme (Brhaspati) and my resplendent Lord be secured by means of sacrifice. (Different attributive names of the same Indra). (1)
Notes
In this and the following two verses oblations are of fered to various deities, each joined with Indra. These mantras are called Ardhendra, half of which is Indra, and the other half is the other deity.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(মে) আমার (অগ্নিঃ) প্রসিদ্ধ সূর্য্যরূপ অগ্নি (চ) এবং পৃথিবীর উপরে উপলব্ধ ভৌতিক (মে) আমার (ইন্দ্রঃ) বিদ্যুৎ রূপ অগ্নি (চ) তথা পবন (মে) আমার (সোমঃ) শান্তি গুণ যুক্ত পদার্থ বা মনুষ্য (চ) এবং বর্ষা, মেঘ, জল (মে) আমার (ইন্দ্রঃ) অন্যায় দূরকারী সভাপতি (চ) এবং সভাসদ্ (মে) আমার (সবিতা) ঐশ্বর্য্যযুক্ত কর্ম (চ) এবং ইহার সাধন (মে) আমার (ইন্দ্রঃ) সমস্ত অবিদ্যার নাশকারী অধ্যাপক (চ) এবং বিদ্যার্থী (মে) আমার (সরস্বতী) প্রশংসিত বোধ বা শিক্ষা দ্বারা পূর্ণ বাণী (চ) এবং সত্যভাষী (মে) আমার (ইন্দ্রঃ) বিদ্যার্থীর জড়ত্বের বিনাশকারী উপদেশক এবং (চ) শ্রবণকারী (মে) আমার (পূষা) পুষ্টিকারী (চ) এবং যোগ্য আহার-ভোজন, বিহার-শয়ন ইত্যাদি (মে) আমার যে (ইন্দ্রঃ) পুষ্টি করিবার বিদ্যায় রমণ করে সে (চ) এবং বৈদ্য (মে) আমার (বৃহস্পতিঃ) বৃহৎ ব্যবহারদের রক্ষক (চ) এবং রাজা তথা (মে) আমার (ইন্দ্রঃ) সমস্ত ঐশ্বর্য্যের বৃদ্ধিকারী শিল্পপতি (চ) এবং সেনাপতি এই সমস্ত (য়জ্ঞেন) বিদ্যা ও ঐশ্বর্য্যের উন্নতি করিবার দ্বারা (কল্পন্তাম্) সমর্থ হউক্ ॥ ১৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! তোমাদেরকে উত্তম বিচার দ্বারা স্বীয় সকল পদার্থ শ্রেষ্ঠ পালনার্থে এবং দুষ্টদিগকে শিক্ষা দিবার অর্থে নিরন্তর যুক্ত করা উচিত ॥ ১৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অ॒গ্নিশ্চ॑ ম॒ऽইন্দ্র॑শ্চ মে॒ সোম॑শ্চ ম॒ऽই॒ন্দ্র॑শ্চ মে সবি॒তা চ॑ ম॒ऽইন্দ্র॑শ্চ মে॒ সর॑স্বতী চ ম॒ऽইন্দ্র॑শ্চ মে পূ॒ষা চ॑ ম॒ऽইন্দ্র॑শ্চ মে॒ বৃহ॒স্পতি॑শ্চ ম॒ऽইন্দ্র॑শ্চ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ১৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অগ্নিশ্চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । অগ্ন্যাদিবিদ্যাবিদাত্মা দেবতা । নিচৃদতিশক্বরী ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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