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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 84
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    96

    पा॒व॒का नः॒ सर॑स्वती॒ वाजे॑भिर्वा॒जिनी॑वती। य॒ज्ञं व॑ष्टु धि॒याव॑सुः॥८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पा॒व॒का। नः॒। सर॑स्वती। वाजे॑भिः। वा॒जिनी॑व॒तीति॑ वा॒जिनी॑ऽवती। य॒ज्ञम्। व॒ष्टु॒। धि॒याव॑सु॒रिति॑ धि॒याऽव॑सुः ॥८४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञँवष्टु धियावसुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पावका। नः। सरस्वती। वाजेभिः। वाजिनीवतीति वाजिनीऽवती। यज्ञम्। वष्टु। धियावसुरिति धियाऽवसुः॥८४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 84
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह॥

    अन्वयः

    हे अध्यापकोपदेशकौ! यथा वाजेभिर्वाजिनीवती पावका धियावसुः सरस्वती नो यज्ञं वष्टु तथा युवामस्मान् शिक्षेताम्॥८४॥

    पदार्थः

    (पावका) पवित्रकारिका (नः) अस्माकम् (सरस्वती) सुसंस्कृता वाक् (वाजेभिः) विज्ञानादिभिर्गुणैः (वाजिनीवती) प्रशस्तविद्यायुक्ता (यज्ञम्) (वष्टु) (धियावसुः) धिया वसुर्धनं यस्याः। तृतीयाया अलुक्॥८४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्धार्मिकाणामध्यापकोपदेशकानां सकाशात् विद्यासुशिक्षे संगृह्य विज्ञानवृद्धिर्नित्यं कार्या॥८४॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर अध्यापक और उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे पढ़ाने वाले और उपदेशक लोगो! जैस (वाजेभिः) विज्ञान आदि गुणों से (वाजिनीवती) अच्छी उत्तम विद्या से युक्त (पावका) पवित्र करनेहारी (धियावसुः) बुद्धि के साथ जिससे धन हो वह (सरस्वती) अच्छे संस्कार वाली वाणी (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ को (वष्टु) शोभित करे, वैसे तुम लोग हम लोगों को शिक्षा करो॥८४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि धर्मात्मा अध्यापक और उपदेशकों से विद्या और सुशिक्षा अच्छे प्रकार ग्रहण करके विज्ञान की वृद्धि सदा किया करें॥८४॥

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    विषय

    विद्वत्सभा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( पावका ) पवित्र करने वाली ( वाजेभिः ) ऐश्वर्यों, बलों और ज्ञानों से ( वाजिनीवती) बलयुक्त पुरुषों से बनी सेनाओं और विद्वान् पुरुषों से बनी उपसमितियों से युक्त (धियावसुः) बुद्धि और क्रिया व्यापार द्वारा ऐश्वर्यवती, अथवा अपने धारणा पालन सामर्थ्यं से सबको बसाने वाली होकर ( यज्ञम् ) प्रजापालक यज्ञ में या प्रजापति राजा को (वष्टु) तेजस्वी बनाये ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    [ ८४-८६ ] मधुच्छन्दा ऋषिः । सरस्वती देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचक लुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी धर्मात्मा, अध्यापक व उपदेशक यांच्याकडून विद्या व चांगले शिक्षण प्राप्त करून विज्ञानाची वाढ करावी.

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    विषय

    पुढील मंत्रात अध्यापक आणि उपदेशक विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (सामान्यजन म्हणतात) हे अध्यापक आणि उपदेशकजनहो, ज्याप्रमाणे (वाजेभिः) ज्ञान-विज्ञान आदी गुणांनी (वाजिनीवती) गुणवती, विद्यावती झालेली (पावका) पवित्र करणारी आणि (धियावसुः) बुद्धिचातुर्यामुळे धन प्राप्त करून देणारी (सरस्वती) सुसंस्कृत वाणी (वा मधुर प्रिय भाषा) वाढवेल, तुम्ही, विद्वान व उपदेशक लोक आम्हा (याज्ञिक गृहस्थजनांना) तसा उपदेश करा (वा तशी मधुर वाणी शिकवा) (यज्ञ करणाऱ्याची वाणी सुसंस्कृत व मधुर असावी.) ॥84॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. सर्व लोकांनी धर्मात्मा अध्यापक आणि ज्ञान-विज्ञानाची सदा वृद्धी करीत जावे. ॥84॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May vedic speech, our purifier, powerful through the force of diverse forms of knowledge, with wisdom and riches acquired through enterprise, beautify our yajna.

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    Meaning

    Sarasvati, mother spirit of divinity, mistress of sacred knowledge and super-intelligence, purifier of the mind and soul and creator of prosperity with divine vision and knowledge of nature, may, we pray, grace and intensify our yajna and bless us with purity and prosperity.

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    Translation

    May the divine speech, the fountain-head of all faculties (mental and spiritual), purifier and bestower of knowledge, recompenser of worship, be the source of inspiration and accomplishment for all our organized benevolent acts. (1)

    Notes

    Yajñam, benevolent act. Sarasvati, divine speech. Dhiyāvasuḥ, one who gets wealth by his wisdom or hard work. धी प्रज्ञा कर्म वा । Vastu, bless (our sacrifice).

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনরধ্যাপকোপদেশকবিষয়মাহ ॥
    পুনঃ অধ্যাপক ও উপদেশক বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে অধ্যাপনকারী ও উপদেশকগণ ! যেমন (বাজেভিঃ) বিজ্ঞানাদি গুণ দ্বারা (বাজিনীবতী) প্রশস্তবিদ্যাযুক্তা (পাবকা) পবিত্র কারিণী (ধিয়াবসুঃ) বুদ্ধিসহ যদ্দ্বারা ধন হয় উহা (সরস্বতী) উত্তম সংস্কারযুক্তা বাণী (নঃ) আমাদের (য়জ্ঞম্) যজ্ঞকে (বষ্টু) শোভিত করুক সেইরূপ তোমরা আমাদিগকে শিক্ষা দিবে ॥ ৮৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগের উচিত যে, ধর্মাত্মা অধ্যাপক ও উপদেশকদিগের বিদ্যা ও সুশিক্ষা উত্তম প্রকার গ্রহণ করিয়া বিজ্ঞানের বৃদ্ধি সর্বদা করিতে থাকিবে ॥ ৮৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    পা॒ব॒কা নঃ॒ সর॑স্বতী॒ বাজে॑ভির্বা॒জিনী॑বতী ।
    য়॒জ্ঞং ব॑ষ্টু ধি॒য়াব॑সুঃ ॥ ৮৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    পাবকা ন ইত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । সরস্বতী দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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