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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 43
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - राजा देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    86

    द्यौस्ते॑ पृथि॒व्यन्तरि॑क्षं वा॒युश्छि॒द्रं पृ॑णातु ते।सूर्य॑स्ते॒ नक्ष॑त्रैः स॒ह लो॒कं कृ॑णोतु साधु॒या॥४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यौः। ते॒। पृ॒थि॒वी। अ॒न्तरि॑क्षम्। वा॒युः। छि॒द्रम्। पृ॒णा॒तु॒। ते॒। सूर्यः॑। ते। नक्ष॑त्रैः। स॒ह। लो॒कम्। कृ॒णो॒तु॒। सा॒धु॒येति॑ साधु॒ऽया ॥४३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यौस्ते पृथिव्यन्तरिक्षँवायुश्छिद्रम्पृणातु ते । सूयस्ते नक्षत्रैः सह लोकङ्कृणोतु साधुया ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    द्यौः। ते। पृथिवी। अन्तरिक्षम्। वायुः। छिद्रम्। पृणातु। ते। सूर्यः। ते। नक्षत्रैः। सह। लोकम्। कृणोतु। साधुयेति साधुऽया॥४३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 43
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरध्यापकादयः कीदृशा भवेयुरित्याह॥

    अन्वयः

    हे शिष्येऽध्यापिके वा! यथा द्यौः पृथिव्यन्तरिक्षं वायुः सूर्य्यो नक्षत्रैः सह चन्द्रश्च ते छिद्रं पृणातु ते तव व्यवहारं साध्नोतु, तथा ते तव साधुया लोकं कृणोतु॥४३॥

    पदार्थः

    (द्यौः) प्रकाशरूपा विद्युत् (ते) तव (पृथिवी) भूमिः (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (वायुः) पवनः (छिद्रम्) इन्द्रियम् (पृणातु) सुखयतु (ते) तव (सूर्य्यः) सविता (ते) तव (नक्षत्रैः) (सह) (लोकम्) दर्शनीयम् (कृणोतु) (साधुया) साधु सत्यम्॥४३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पृथिव्यादयः सुखप्रदाः सूर्यादयः प्रकाशकाः पदार्थाः सन्ति, तथैवाऽध्यापका उपदेशकाश्चाऽध्यापिका अप्युपदेशिकाश्च सर्वान् सन्मार्गस्थान् कृत्वा विद्याप्रकाशं जनयन्तु॥४३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर अध्यापकादि कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे पढ़ने या पढ़ाने हारी स्त्रियो! जैसे (द्यौः) प्रकाशरूप बिजुली (पृथिवी) भूमि (अन्तरिक्षम्) आकाश (वायुः) पवन (सूर्य्यः) सूर्यलोक और (नक्षत्रैः) तारागणों के (सह) साथ चन्द्रलोक (ते) तेरे (छिद्रम्) प्रत्येक इन्द्रिय को (पृणातु) सुख देवें (ते) तेरे व्यवहार को सिद्ध करें, वैसे (ते) तेरे (साधुया) उत्तम सत्य (लोकम्) देखने योग्य लोक को (कृणोतु) सिद्ध करें॥४३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पृथिवी आदि सुख देने और सूर्य आदि पदार्थ प्रकाश करने वाले हैं, वैसे ही पढ़ाने वाले और उपदेश करने वाले वा पढ़ाने और उपदेश करने वाली स्त्री सब को अच्छे मार्ग में स्थापन कर विद्या के प्रकाश को उत्पन्न करें॥४३॥

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    विषय

    सूर्य, वायु, आकाश और नक्षत्रों के समान तेजस्वी, बलवान् और उदार दृढ़ स्थिर लोगों से राष्ट्र की न्यूनताएं दूर करना ।

    भावार्थ

    हे राष्ट्र ! (ते) तेरे ( छिद्रम् ) छिद्र को (द्यौः) आकाश और उसके समान ज्ञानमय विद्वान्रूप सूर्यों से प्रकाशित राजसभा ( पृथिवी ) पृथिवी और सर्वाश्रय राजा, (वायुः) वायु और तीव्र बलवान् सेनापति (पृणातु) पूर्ण करे । (सूर्य) सूर्य और तेजस्वी विद्वान् राजा ( नक्षत्रैः ) नक्षत्रों और सामान्य प्रजाओं अथवा युद्ध में क्षत, विचलित न होने वाले वीरों के (सह) साथ (ते) तेरे में बसे ( लोकम् ) जनसमूह को (साधुया ) साधु, सच्चरित्र (कृणोतु) बनावे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    राजा देवता । अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    सर्वलोकानुकूल्य

    पदार्थ

    १. (ते) = तेरा (द्यौः) = द्युलोक, (पृथिवी) = पृथिवीलोक, (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्षलोक तथा इस अन्तरिक्षलोक में चलनेवाली (वायुः) = वायु (ते छिद्रम्) = तेरे शरीर में होनेवाले दोषमात्र को (पृणातु) = भर दे, अर्थात् इन सबकी अनुकूलता से तेरे अङ्ग-प्रत्यङ्ग ठीक हों । विकलाङ्गता तो हो ही नहीं । सकलाङ्गता के साथ वे सब अङ्ग अपना-अपना कार्य करने में पूर्ण स्वस्थ हों। यहाँ 'ते-तेरा' यह सम्बन्ध शब्द स्पष्ट कह रहा है कि इन सब लोकों के साथ हमारा अपनापन हो। ये सब हमारे मित्र हों न कि शत्रु । २. (सूर्यः) = यह सूर्य (नक्षत्रैः सह) = अन्य सब नक्षत्रों के साथ (ते लोकम्) = तेरे दर्शन को [लोक दर्शने] तेरी दृष्टिशक्ति को (साधुया कृणोतु) = साधु, समीचीन, उत्तम बना दे। वस्तुत: सूर्य दृष्टिशक्ति बनकर अक्षि में निवास करता है। इस सूर्य की अनुकूलता होने पर हमारी दृष्टिशक्ति के ठीक होने पर हमारा यह संसार भी सुन्दर हो जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- द्युलोक, अन्तरिक्षलोक, पृथिवीलोक, वायु, सूर्य तथा नक्षत्र ये सब हमारे अनुकूल होकर हमारे शरीरों को निर्दोष करें तथा हमारी दृष्टिशक्ति को उत्तम करके हमारे संसार को सुन्दर बनाएँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पृथ्वी वगैरे पदार्थ सुख देणारे आणि सूर्य वगैरे पदार्थ प्रकाश देणारे असतात, तसेच अध्यापक व उपदेशक आणि अध्यापिका व उपदेशिका यांनी सर्वांना चांगल्या मार्गाकडे वळवून विद्येचा प्रसार करावा.

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    विषय

    अध्यापक आदी लोक कसे असावेत -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे अध्यापन करणार्‍या आणि हे अध्यापन करणार्‍या विद्यार्थीनी व अध्यापिका गण, (द्योः) ही प्रकाशरूपातील विद्युत, ही (पृथिवी) भूमी, हे (अन्तरिक्षम्) आकाश, (वायुः) हा वायू, हा (सूर्यः) सूर्य लोक आणि (नक्षत्रैः) तारागणां (सह) सह हा चन्द्रलोक (ते) तुझ्या (छिद्रम्) प्रत्येक इन्द्रियाला(पृणातु) सुख देवो (तुझ्यासाठी सूर्य चंद्रादी सुखकारक ठरो) (ते) तुझ्या प्रत्येक कामात पूर्णत्व वा यश देतील. तसेच हे सूर्य, चंद्र पवन आदी (ते) तुझ्यासाठी (साधुया) जे जे सत्य ते (लोकम्) प्रकट करणारे (कृणोत) करोत (सूर्य, पवन आदीमधे जे जे अव्यक्त ?? गुण आहेत, ते शोधून काढण्याच्या कामी तुला यश मिळो) ॥43॥^माता आदीनी काय करावे, (त्यांची कर्तव्यें काय) या विषयी -

    भावार्थ

    भाावर्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा आहे. ज्याप्रमाणे पृथ्वी पदार्थ सर्वांसाठी सुखकारक आहेत आणि सूर्य आदी पदार्थ प्रकाश देऊन सुख देतात, तद्वत अध्यापक-अध्यापिका आणि उपदेशक-उपदेशिका यांनी सर्वांना सन्मार्गावर चालवीत विद्यावान करून सर्व जगात विद्येचा प्रचार-प्रसार करावा. ॥43॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O female student or mistress, may Sky, Earth, Space, Air, Sun and Moon with the stars of heaven, appease each organ of thine, grant success to thy undertaking ; and prepare a nice, true, beautiful world for thee.

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    Meaning

    May the heaven (with its light), the earth (with his generosity and stability), the sky (with its expanse), the wind and air (with speed and energy) make up your wants and repair your weaknesses. And may the sun, lord of light and life, with the stars and planets, create for you a straight and simple world of beauty, freedom and progress.

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    Translation

    O king, may the heaven, the earth, the mid-space and the wind make up for your failing, if any. May the sun along with the stars make this world propitious for you. (1)

    Notes

    Chidram prṇātu, cover up the faults; make up the failings. Sädhuya, साधु, propitious.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনরধ্যাপকাদয়ঃ কীদৃশা ভবেয়ুরিত্যাহ ॥
    পুনঃ অধ্যাপকাদি কেমন হইবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে অধ্যায়নকারিণীও অধ্যাপনকারিণী স্ত্রী ! যেমন (দ্যৌঃ) প্রকাশরূপ বিদ্যুৎ (পৃথিবী) ভূমি (অন্তরিক্ষম্) আকাশ (বায়ুঃ) পবন (সূর্য়্যঃ) সূর্য্যলোক ও (নক্ষত্রৈঃ) নক্ষত্রগণের (সহ) সহ চন্দ্রলোক (তে) তোমার (ছিদ্রম্) প্রত্যেক ইন্দ্রিয়কে (পৃণাতু) সুখ দিবে (তে) তোমার ব্যবহারকে প্রতিপন্ন করিবে, (তে) তোমার (সাধুয়া) উত্তম সত্য (লোকম্) দেখিবার যোগ্য লোককে (কৃণোতু) প্রতিপন্ন করুক ॥ ৪৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন পৃথিবী আদি সুখদাতা এবং সূর্য্যাদি পদার্থ প্রকাশকারী হয় সেইরূপ অধ্যাপনকারী এবং উপদেশকারীগণ অথবা অধ্যাপিকা ও উপদেশিকা স্ত্রী সকলকে সত্য মার্গে স্থাপন করিয়া বিদ্যার আলোকে উৎপন্ন করিবে ॥ ৪৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    দ্যৌস্তে॑ পৃথি॒ব্য᳕ন্তরি॑ক্ষং বা॒য়ুশ্ছি॒দ্রং পৃ॑ণাতু তে ।
    সূর্য়॑স্তে॒ নক্ষ॑ত্রৈঃ স॒হ লো॒কং কৃ॑ণোতু সাধু॒য়া ॥ ৪৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    দ্যৌরিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । রাজা দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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