यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 34
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - अग्न्यादयो देवताः
छन्दः - स्वराट् शक्वरी
स्वरः - धैवतः
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सु॒प॒र्णः पा॑र्ज॒न्यऽआ॒तिर्वा॑ह॒सो दर्वि॑दा॒ ते वा॒यवे॒ बृह॒स्पत॑ये वा॒चस्पत॑ये पैङ्गरा॒जोऽल॒जऽआ॑न्तरि॒क्षः प्ल॒वो म॒द्गुर्मत्स्य॒स्ते न॑दीप॒तये॑ द्यावापृथि॒वीयः॑ कू॒र्मः॥३४॥
स्वर सहित पद पाठसु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। पा॒र्ज॒न्यः। आ॒तिः। वा॒ह॒सः। दर्वि॑देति॒ दर्वि॑ऽदा। ते। वा॒यवे॑। बृह॒स्पत॑ये। वा॒चः। पत॑ये। पै॒ङ्ग॒रा॒ज इति॑ पैङ्गऽरा॒जः। अ॒ल॒जः। आ॒न्त॒रि॒क्षः। प्ल॒वः। म॒द्गुः। मत्स्यः॑। ते। न॒दी॒प॒तय॒ऽइति॑ नदीऽप॒तये॑। द्या॒वा॒पृ॒थि॒वीयः॑। कू॒र्मः ॥३४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुपर्णः पार्जन्यऽआतिर्वाहसो दर्विदा ते वायवे बृहस्पतये वाचस्पतये पैङ्गराजोलजऽआन्तरिक्षः प्लवो मद्गुर्मत्स्यस्ते नदीपतये द्यावापृथिवीयः कूर्मः ॥
स्वर रहित पद पाठ
सुपर्ण इति सुऽपर्णः। पार्जन्यः। आतिः। वाहसः। दर्विदेति दर्विऽदा। ते। वायवे। बृहस्पतये। वाचः। पतये। पैङ्गराज इति पैङ्गऽराजः। अलजः। आन्तरिक्षः। प्लवः। मद्गुः। मत्स्यः। ते। नदीपतयऽइति नदीऽपतये। द्यावापृथिवीयः। कूर्मः॥३४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! युष्माभिर्यः सुपर्णः स पार्जन्यो य आतिर्वाहसो दर्विदा च ते वायवे पैङ्गराजो बृहस्पतये वाचस्पतयेऽलज आन्तरिक्षो ये प्लवो मद्गुर्मत्स्यश्च ते नदीपतये यः कूर्मः स द्यावापृथिवीयश्च विज्ञेयाः॥३४॥
पदार्थः
(सुपर्णः) शोभनपतनः (पार्जन्यः) पर्जन्यवद्गुणः (आतिः) पक्षिविशेषः (वाहसः) अजगरः सर्पविशेषः (दर्विदा) काष्ठछित् पक्षिविशेषः (ते) (वायवे) (बृहस्पतये) बृहतां पालकाय (वाचः) (पतये) पालकाय (पैङ्गराजः) पक्षिविशेषः (अलजः) पक्षिविशेषः (आन्तरिक्षः) अन्तरिक्षदेवताकः (प्लवः) वर्त्तिका (मद्गुः) जलकाकः (मत्स्यः) (ते) (नदीपतये) समुद्राय (द्यावापृथिवीयः) प्रकाशभूमिदेवताकः (कूर्मः) कच्छपः॥३४॥
भावार्थः
ये मेघादितुल्यगुणाः पशुपक्षिविशेषाः सन्ति, ते कार्योपयोगाय नियोजनीयाः॥३४॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो तुम को जो (सुपर्णः) सुन्दर गिरने वा जाने वाला पक्षी वह (पार्जन्यः) मेघ के समान गुण वाला जो (आतिः) आति नाम वाला पक्षी (वाहसः) अजगर सांप (दर्विदा) और काठ को छिन्न-भिन्न करने वाला पक्षी है, (ते) वे सब (वायवे) पवन के लिये (पैङ्गराजः) पैङ्गराज नाम का पक्षी (बृहस्पतये) बड़े-बड़े पदार्थों और (वाचः, पतये) वाणी की पालना करने हारे के लिये (अलजः) अलज पक्षी (आन्तरिक्षः) अन्तरिक्ष देवता वाला जो (प्लवः) जल में तरने वाला बतक पक्षी (मद्गुः) जल का कौआ और (मत्स्यः) मछली हैं, (ते) वे सब (नदीपतये) समुद्र के लिये और जो (कूर्मः) कछुआ है, वह (द्यावापृथिवीयः) प्रकाश भूमि देवता वाला जानना चाहिये॥३४॥
भावार्थ
जो मेघ आदि के समान गुण वाले विशेष विशेष पशु पक्षी हैं, वे काम के उपयोग के लिये युक्त करने चाहियें॥३४॥
विषय
भिन्न-भिन्न गुणों और विशेष हुनरों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना पक्षियों और जानवरों के चरित्रों का अध्ययन और संग्रह ।
भावार्थ
(सुपर्णः) उत्तम पालनशक्ति से सम्पन्न सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष (पार्जन्यः) मेघ के समान प्रजाओं पर सुखों का प्रदाता हो । गरुड़ के समान उत्तम पक्षों से सम्पन्न वैमानिक पुरुष मेघों में विचरण करने में समर्थ है । (आति:) निरन्तर सर्वत्र भ्रमण करने में समर्थ, (वाहसः) वाहनों को साथ रखने वाला और (दविंदा) दारु, अर्थात् काष्टों के विद्वान् (ते) वे तीनों पुरुष (वायवे ) वायु के समान तीव्र वेग से गति करने में उपकारी हों, वे शीघ्रगामी रथ व विमान बनावें । आति: वाहस, दविंदा, इन पक्षियों के वायु में जाने का अनुशीलन करे । (वाचस्पतये पैङ्गराजः) वाणी के पालकस्वरूप वाचस्पति पद, उत्तम उपदेश और अध्यापन कार्य, एवं उत्तम सूक्त पद्यादि कहने वालों में सर्वश्रेष्ठ पुरुष को प्राप्त करो । मधुरस्वर के लिये पिङ्ग राजपक्षी अनुकरणीय हैं | (अलज:) जो पुरुष अपने कामों से दूसरे को संताप न दे ऐसा व्यक्ति (अन्तरिक्षः) अन्तरिक्ष के समान सबका रक्षक होने योग्य है । अलज पक्षी अन्तरिक्षगति में विशेष है । (प्लवः) बतक व जहाज़, ( मद्गुः) जलकाक के समान जल और स्थल दोनों स्थानों पर विहार करने में समर्थ यान और (मत्स्यः) मछली के समान रचना वाला यान (ते नदी पतये) वे नदीपति समुद्र के संतरण के लिये चाहियें । ये तीन जीव जल- स्थल सन्तरणार्थं अनुकरण करने योग्य हैं । ( द्यावापृथिवीयः कूर्मः) क्रिया उत्पन्न करने में समर्थ सूर्यं जैसे द्यौ और पृथिवी को प्रकाश करता है। इसी प्रकार (कूर्मः) क्रियाशील, तेजस्वी पुरुष राजा और प्रजा दोनों का हितकार हो । नीचे की पृथिवी और ऊपर का आकाश दोनों मिलकर महान् 'कूर्म' कच्छप आकार का 'विराट कूर्म' है, उसी प्रकार पृथिवी और उसका रक्षक राजा दोनों राज्य रूप एक कूर्म है । वह उत्तम राज्य, राजा प्रजा दोनों का ही होने से 'द्यावापृथिवी' दोनों का है । 'पैङ्गराज: ' - पिजिर्भाषार्थ: । 'अलज : ' - अज जी भर्जने भ्वादि: ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्न्यादयः। स्वराट् शक्वरी । धैवतः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जे मेघासारख्या गुणांचे विशेष पशूपक्षी असतात त्यांचा कामासाठी उपयोग करून घेतला पाहिजे.
विषय
पुनश्च, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, जो (सुपर्णः) (उडण्याच्या कलेत पारंगत) सुंदरपणे वरून झर्रकन खाली बुडी मारून पुन्हा झर्रकन वर जाणारा असा पक्षी आहे, तो (पार्जन्यः) मेघाप्रमाणे गुण असलेला जाणावा. जो (आतिः) आति नावाचा पक्षी, (वाहसः) अजगर सर्व आणि (दर्विदा) लाकडात वा वृक्षात छिद्र पाडणारा (कठफोडवा) सुतार पक्षी, आहे, (ते) ते सर्व पक्षी (वायवे) वायूसाठी आहेत (वा त्या देवतेचे गुण धारण करणारे आहेत) तसेच (पैङ्गराजः) पैङ्गराज नावाचा पक्षी (बृहस्पतये) विशाल पदार्थांसाठी व (वाचःपतये) वाणी (वा आपल्या दिल्या वचनाचे पालन करणार्यासाठी आहे, असे जाणावे. (अलजः) अलज पक्षी (अन्तरिक्षः) अंतरिक्ष देवतामय आणि (प्लवः) पाण्यावर तरंगणारा बदक पक्षी तसेच (मद्गुः) जलकाक व (मत्स्यः) मासा हे सर्व पक्षी व जलचर जीव आहेत, (ते) ते सर्व (नदीपतये) समुद्रासाठी आणि जो (कूर्मः ) कासव आहे, तो (द्यावापृथिवीयः) प्रकाश व भूमीदेवतामय जाणावा. ॥34॥
भावार्थ
भावार्थ - जो मेघ आदी पदार्थांचे गुण धारण करणारे पशु-पक्षी आहेत, ते मनुष्यासाठी हितकर कार्यासाठी उपयोगात आणावेत ॥34॥
इंग्लिश (3)
Meaning
The eagle belongs to the cloud; the Aati, the serpent, the wood-pecker, these are for air ; the Paingraja is for Brihaspati; the Alaja belongs to the Firmament; pelican, cormorant, fish, these belong to the ocean ; the tortoise belongs to the Heaven and Earth.
Meaning
The eagle is for the cloud; the aati (an aquatic bird), the serpent and the wood-pecker, these are for Vayu, the air; the paingaraja is for Vachasapati Brihaspati; alajais for the sky; the pelican, the cormorant and the fish, these are for the lord of streams; and the tortoise is for the earth and light.
Translation
The eagle belongs to Parjanya; the ati bird, the vahasa bird, the wood-pecker (darvida), these belong to Brhaspati, the master of the speech; the alaja bird belongs to Antariksa; the pelican (plava), the cormorant (madgu) and the fish, these belong to Nadhipati (the Lord of rivers), and the turtle belongs to Dyava-prthivi. (1)
Notes
Ātiḥ, vāhasaḥ, paingarāja, alaja not identified.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থ –হে মনুষ্যগণ! যে (সুপর্ণঃ) সুন্দর ভাবে পতন ও গমনকারী পক্ষী সে (পার্জন্যঃ) মেঘ সদৃশ গুণযুক্ত যে (আতিঃ) আতি নামক পক্ষী (বাহসঃ) অজগর সর্প (দর্বিদা) এবং কাষ্ঠকে ছিন্ন-ভিন্নকারী পক্ষী (তে) তাহারা সকলে (বায়বে) পবনের জন্য (পৈঙ্গরাজঃ) পৈঙ্গরাজ নামক পক্ষী (বৃহস্পতয়ে) বড় বড় পদার্থগুলি এবং (বাচঃ, পতয়ে) বাণীর পালনকারীর জন্য (অলজঃ) অলজ পক্ষী (আন্তরিক্ষঃ) অন্তরিক্ষ দেবতাযুক্ত যে (প্লবঃ) জলে প্লবমান পাতিহাঁস (মদ্গুঃ) জলের কাক এবং (মৎস্যঃ) মৎস্য (তে) উহারা সব (নদীপতয়ে) সমুদ্রের জন্য এবং যে (কূর্মঃ) কচ্ছপ উহা (দ্যাবাপৃথিবীয়ঃ) প্রকাশ ভূমি দেবতাযুক্ত তোমাকে জানিতে হইবে ॥ ৩৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ– যে সমস্ত মেঘাদির সমান গুণযুক্ত বিশেষ বিশেষ পশু-পক্ষী তাহাদেরকে কর্ম্মের উপযোগিতা হেতু যুক্ত করা উচিত ॥ ৩৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
সু॒প॒র্ণঃ পা॑র্জ॒ন্যऽআ॒তির্বা॑হ॒সো দর্বি॑দা॒ তে বা॒য়বে॒ বৃহ॒স্পত॑য়ে বা॒চস্পত॑য়ে পৈঙ্গরা॒জো᳖ऽল॒জऽআ॑ন্তরি॒ক্ষঃ প্ল॒বো ম॒দ্গুর্মৎস্য॒স্তে ন॑দীপ॒তয়ে॑ দ্যাবাপৃথি॒বীয়ঃ॑ কূ॒র্মঃ ॥ ৩৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
সুপর্ণ ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । অগ্ন্যাদয়ো দেবতাঃ । স্বরাট্ শক্বরী ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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