यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 35
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - चन्द्रादयो देवताः
छन्दः - निचृच्छक्वरी
स्वरः - धैवतः
85
पु॒रु॒ष॒मृ॒गश्च॒न्द्रम॑सो गो॒धा काल॑का दार्वाघा॒टस्ते वन॒स्पती॑नां कृक॒वाकुः॑ सावि॒त्रो ह॒ꣳसो वात॑स्य ना॒क्रो मक॑रः कुली॒पय॒स्तेऽकू॑पारस्य ह्रि॒यै शल्य॑कः॥३५॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रु॒ष॒मृ॒गऽइति॑ पुरुषऽमृ॒गः। च॒न्द्रम॑सः। गो॒धा। काल॑का। दा॒र्वा॒घा॒टः। दा॒र्वा॒घा॒त इति॑ दारुऽआघा॒तः। ते। वन॒स्पती॑नाम्। कृ॒क॒वाकु॒रिति॑ कृक॒ऽवाकुः॑। सा॒वि॒त्रः। ह॒ꣳसः। वात॑स्य। ना॒क्रः। मक॑रः। कु॒ली॒पयः॑। ते। अकू॑पारस्य। ह्रि॒यै। शल्य॑कः ॥३५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरुषमृगश्चन्द्रमसो गोधा कालका दार्वाघाटस्ते वनस्पतीनाङ्कृकवाकुः सावित्रो हँसो वातस्य नाक्रो मकरः कुलीपयस्तेकूपारस्य हि््रयै शल्पकः ॥
स्वर रहित पद पाठ
पुरुषमृगऽइति पुरुषऽमृगः। चन्द्रमसः। गोधा। कालका। दार्वाघाटः। दार्वाघात इति दारुऽआघातः। ते। वनस्पतीनाम्। कृकवाकुरिति कृकऽवाकुः। सावित्रः। हꣳसः। वातस्य। नाक्रः। मकरः। कुलीपयः। ते। अकूपारस्य। ह्रियै। शल्यकः॥३५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! युष्माभिर्य पुरुषमृगः स चन्द्रमसो ये गोधा कालका दार्वाघाटश्च ते वनस्पतीनां यः कृकवाकुः स सावित्रो यो हंसः स वातस्य ये नाक्रो मकरः कुलीपयश्च तेऽकूपारस्य यः शल्यकः स ह्रियै च विज्ञेयाः॥३५॥
पदार्थः
(पुरुषमृगः) यः पुरुषान् मार्ष्टि स पशुविशेषः (चन्द्रमसः) चन्द्रस्य (गोधा) (कालका) (दार्वाघाटः) शतपत्रकः (ते) (वनस्पतीनाम्) (कृकवाकुः) कुक्कुटः (सावित्रः) सवितृदेवताकः (हंसः) (वातस्य) (नाक्रः) नक्राज्जातः (मकरः) (कुलीपयः) जलजन्तुविशेषः (ते) (अकूपारस्य) समुद्रस्य (ह्रियै) लज्जायै (शल्यकः) कण्टकपक्षयुक्तः श्वावित्॥३५॥
भावार्थः
ये चन्द्रादिगुणाः पशुपक्षिविशेषास्ते मनुष्यैर्विज्ञेयाः॥३५॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! तुम को जो (पुरुषमृगः) पुरुषों को शुद्ध करने हारा विशेषः पशु वह (चन्द्रमसः) चन्द्रमा के अर्थ जो (गोधा) गोह (कालका) कालका पक्षी और (दार्वाघाटः) कठफोरवा हैं, (ते) वे (वनस्पतीनाम्) वनस्पतियों के सम्बन्धी जो (कृकवाकुः) मुर्गा वह (सावित्रः) सविता देवता वाला जो (हंसः) हंस है, वह (वातस्य) पवन के अर्थ जो (नाक्रः) नाके का बच्चा (मकरः) मगरमच्छ (कुलीपयः) और विशेष जलजन्तु हैं, (ते) वे (अकूपारस्य) समुद्र के अर्थ और जो (शल्यकः) सेही है, वह (ह्रियै) लज्जा के लिये जानना चाहिये॥३५॥
भावार्थ
जो चन्द्रमा आदि के गुणों से युक्त विशेष पशु-पक्षी हैं, वे मनुष्यों को जानने चाहियें॥३५॥
विषय
भिन्न-भिन्न गुणों और विशेष हुनरों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना पक्षियों और जानवरों के चरित्रों का अध्ययन और संग्रह ।
भावार्थ
(चन्द्रमसः पुरुषमृगः ) पुरुषों को उपदेश, आचार व्यवस्था से पवित्र करने वाला पुरुष 'चन्द्रमा' पद के योग्य है । वह चन्द्रवत् आह्लादक है । (गोधा ) गौओं का पालक (कालका) यथाकाल, ऋतु अनुसार फल प्राप्त करने वाला और ( दार्वाघाट:) काष्ठों को चीरने फाड़ने वाला (ते) ये तीन पुरुष ( वनस्पतीनाम् ) वन के वनस्पतियों के पालने और प्रयोग के लिये हों। (कृकवाकुः) कण्ठ से शुद्ध वाणी बोलने वाला विद्वान् (सावित्रः ) सविता, सर्वप्रेरक, आज्ञापक और सविता के समान ज्ञानी आचार्य पद के योग्य है । इसी प्रकार पुरुषाकार वानर, कालका और दार्वाघाट नाम के जन्तु, पक्षी, वनस्पति, वृक्षादि के प्रयोग में अनुकरण योग्य हैं । (हंसः वातस्य) हंस के समान जल में निर्लेप रह कर विहार करने वाला योगी (वातस्य) प्राण के संयमन में कुशल है । (नाक्र:) नक्र के शरीर के समान बनी नाव, (मकरः) मगरमच्छ के शरीर के समान बनी नाव और (कुलीपयः) कुलीपथ नामक जलजन्तु के समान रचना वाला जलयान ( अकूपारस्य) समुद्र के विहार के लिये चाहियें ।(हियै शल्यकः) लजा के लिये सेहा या जंगली कांटेदार चूहा अनुकरण करने योग्य है वह आहट और स्पर्श पाते ही मुंह छिपाकर पड़ जाता है।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चन्द्रादयः । निचृत् शक्वरी । धैवतः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जे चंद्रासारख्या गुणांचे विशेष पशूपक्षी आहेत. त्यांना माणसांनी जाणावे.
विषय
पुनश्च, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, जे (पुरुषमृगः) पुरूषांना शुद्ध वा स्वच्छ करणारा पशुविशेष (अथवा - पशूं पैकी (गायीच्या विरूद्ध) नर पशु आहे, तो (चन्द्रमसः) चंद्रमासाठी (त्याच्या गुणधर्मासामान) जाणावा. जो (गोधा) (गोह) (कालका) कालका पक्षी आणि (दार्वाघाटः) कठफोडवा) सुतार पक्षी आहे, (ते) ते सर्व (वनस्पतीनाम्) वनस्पती विषयी आहेत असे जाणावे (कृकवाकुः) कोंबडा (सवित्रः) सविता देवतामय आणि (हंस) हंस पक्षी (वातस्य) वायुदेवतामय जाणावा (नाक्रः) मगराचे पिलू (मकरः) मगर आणि (कुलीपयः) विशेष जलजीव आहेत, (ते) ते सर्व (अकूपारस्य) समुद्रासाठी आणि जे (शल्पकः) सायाळ प्राणी आहे, तो (ह्रियै) लज्जागुण धारण करणारा आहे (सायाळ हा काटेरी घुशीसारखा प्राणी भूमिखाली बिळात लपून राहतो) या सर्व प्राण्यांना त्या त्या देवतांचे गुण धारण करणारे असे जाणावे ॥35॥
भावार्थ
भावार्थ - चंद्र आदी पदार्थांच्या गुणांनी युक्त असे जे विशेष पक्षी-पशू आहेत, त्याना तसेतसे जाणावे. ॥35॥
इंग्लिश (3)
Meaning
The buck that purifies men belongs to the moon; iguana, kaalakaa, wood pecker, these belong to the trees; the cock belongs to the sun; the swan belongs to air; crocodile, dolphin, and watery birds, these belong to the sea; the porcupine to modesty.
Meaning
The buck belongs to the moon; the alligator, the kalaka, the wood pecker, these belong to the trees; the peacock belongs to Savita, the sun; the hansa is of the air; the iguana, crocodile, and the dolphin, they are of the sea, and the porcupine is for timidity.
Translation
The buck belongs to Candramas (the moon); the iguana (godha), kalaka, and wood-pecker ( darvaghatah) belongs to Vanaspatis; the cock (krkavku) belongs to Savitr; the swan belongs to Vata (the breeze); the crocodile, the dolphins, the kulipaya, these belong to Akupara (the sea); the porcupine belongs to Hri (shyness). (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– হে মনুষ্যগণ! (পুরুষমৃগঃ) পুরুষদিগকে শুদ্ধকারী বিশেষ পশু সেই (চন্দ্রমসঃ) চন্দ্রমার অর্থ যে (গোধা) গোধিকা (কালকা) কালকা পক্ষী এবং (দার্বাঘাটঃ) কাঠঠোকরা (তে) তাহারা (বনস্পতীনাম্) বনস্পতি সম্পর্কীয় যে (কৃকবাকুঃ) মোরগ সেই (সাবিত্রঃ) সবিতা দেবতাযুক্ত যে (হংসঃ) হংস উহা (বাতস্য) পবনের অর্থ যে (নাক্রঃ) নক্রের শিশু (মকরঃ) মকর (কুলীপয়ঃ) এবং বিশেষ জলজন্তু (তে) তাহারা (অকূপারস্য) সমুদ্রের অর্থ এবং যে (শল্যকঃ) সজারু উহা (হ্রিয়ৈঃ) লজ্জাহেতু তোমাকে জানা উচিত ॥ ৩৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে চন্দ্রমাদি গুণযুক্ত বিশেষ পশু পক্ষী আছে তাদেরকে মনুষ্যগণের জানা উচিত ॥ ৩৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
পু॒রু॒ষ॒মৃ॒গশ্চ॒ন্দ্রম॑সো গো॒ধা কাল॑কা দার্বাঘা॒টস্তে বন॒স্পতী॑নাং কৃক॒বাকুঃ॑ সাবি॒ত্রো হ॒ꣳসো বাত॑স্য না॒ক্রো মক॑রঃ কুলী॒পয়॒স্তেऽকূ॑পারস্য হ্রি॒য়ৈ শল্য॑কঃ ॥ ৩৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
পুরুষমৃগ ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । চন্দ্রাদয়ো দেবতাঃ । নিচৃচ্ছক্বরী ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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