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यजुर्वेद अध्याय - 25

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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 7
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - पूषादयो देवताः छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - मध्यमः
    3309

    पू॒षणं॑ वनि॒ष्ठुना॑न्धा॒हीन्त्स्स्थू॑लगु॒दया॑ स॒र्पान् गुदा॑भिर्वि॒ह्रुत॑ऽआ॒न्त्रैर॒पो व॒स्तिना॒ वृष॑णमा॒ण्डाभ्यां॒ वाजि॑न॒ꣳ शेपे॑न प्र॒जा रेत॑सा॒ चाषा॑न् पि॒त्तेन॑ प्रद॒रान् पा॒युना॑ कू॒श्माञ्छ॑कपि॒ण्डैः॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒षण॑म्। व॒नि॒ष्ठुना॑। अ॒न्धा॒हीनित्य॑न्धऽअ॒हीन्। स्थू॒ल॒गु॒दयेति॑ स्थूलऽगु॒दया॑। स॒र्पान्। गुदा॑भिः। वि॒ह्रुत॒ इति॑ वि॒ऽह्नुतः॑। आ॒न्त्रैः। अ॒पः। व॒स्तिना॑। वृष॑णम्। आ॒ण्डाभ्या॑म्। वाजि॑नम्। शेपे॑न। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। रेत॑सा। चाषा॑न्। पि॒त्तेन॑। प्र॒द॒रानिति॑ प्रऽद॒रान्। पा॒युना॑। कू॒श्मान्। श॒क॒पि॒ण्डैरिति॑ शकऽपि॒ण्डैः ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूषणँवनिष्ठुनान्धाहीन्त्स्थूलगुदया सर्पान्गुदाभिर्विह््रुतऽआन्त्रैरपो वस्तिना वृषणमाण्डाभ्याँवाजिनँ शेपेन प्रजाँ रेतसा चाषान्पित्तेन प्रदरान्पायुना कूश्माञ्छकपिण्डैः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पूषणम्। वनिष्ठुना। अन्धाहीनित्यन्धऽअहीन्। स्थूलगुदयेति स्थूलऽगुदया। सर्पान्। गुदाभिः। विह्रुत इति विऽह्नुतः। आन्त्रैः। अपः। वस्तिना। वृषणम्। आण्डाभ्याम्। वाजिनम्। शेपेन। प्रजामिति प्रऽजाम्। रेतसा। चाषान्। पित्तेन। प्रदरानिति प्रऽदरान्। पायुना। कूश्मान्। शकपिण्डैरिति शकऽपिण्डैः॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    पुनस्तेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यूयं वनिष्ठुना पूषणं स्थूलगुदया सह वर्त्तमानानन्धाहीन् गुदाभिः सहितान् विह्रुतः सर्पानान्त्रैरपो वस्तिना वृषणमाण्डाभ्यां वाजिनं शेपेन रेतसा प्रजां पित्तेन चाषान् प्रदरान् पायुना शकपिण्डैः निगृह्णीत॥७॥

    पदार्थः

    (पूषणम्) पुष्टिकरम् (वनिष्ठुना) याचनेन (अन्धाहीन्) अन्धान् सर्पान् (स्थूलगुदया) स्थूलया गुदया सह (सर्पान्) (गुदाभिः) (विह्रुतः) विशेषेण कुटिलान् (आन्त्रैः) उदरस्थैर्नाडीविशेषैः (अपः) जलानि (वस्तिना) नाभेरधोभागेन (वृषणम्) वीर्याधारम् (आण्डाभ्याम्) अण्डाकाराभ्यां वृषणावयवाभ्याम् (वाजिनम्) अश्वम् (शेपेन) लिङ्गेन (प्रजाम्) सन्ततिम् (रेतसा) वीर्येण (चाषान्) भक्षणानि (पित्तेन) (प्रदरान्) उदरावयवान् (पायुना) एतदिन्द्रियेण (कूश्मान्) शासनानि। अत्र कशधातोर्मक्प्रत्ययोऽन्येषामपीति दीर्घश्च। (शकपिण्डैः) शक्तैः संघातैः॥७॥

    भावार्थः

    येन येन यद्यत्कार्यं सिध्येत् तेन तेनाङ्गेन पदार्थेन वा तत्तत्साधनीयम्॥७॥

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    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    सपदार्थान्वयः

    हे मनुष्या यूयं वनिष्ठुना पूषणं स्थूलगुदया सह वर्त्तमानानन्धाहीन् गुदाभिः सहितान् विह्रुतः सर्पानान्त्रैरपो वस्तिना वृषणमाण्डाभ्यां वाजिनं शेपेन रेतसा प्रजां पित्तेन चाषान् प्रदरान् पायुना शकपिण्डै: कूश्मान् निगृह्णीत ॥ ७ ॥ सपदार्थान्वयः--हे मनुष्याः ! यूयं वनिष्ठुना याचनेन पूषणं पुष्टिकरं, स्थूलगुदयास्थूलया गुदया सह वर्त्तमानानन्धाहीन् अन्धान् सर्पान्, गुदाभिः सहितान् विह्रुत विशेषेण कुटिलान् सर्पान् आन्त्रैः उदरस्थैर्नाडीविशेषै: अपः जलानि, वस्तिना नाभेरधोभागेन वृषणं वीर्याधारम्, आण्डाभ्याम् अण्डाकाराभ्यां वृषणावयवाभ्यां वाजिनम् अश्वं, शेपेन लिङ्गेन रेतसा वीर्येण प्रजां सन्ततिं, पित्तेन चाषान् भक्षणानि, प्रदरान्, उदरावयवान् पायुना एतदिन्द्रियेण शकपिण्डै: शक्ते: संघातैः कूश्मान् शासनानि निगृह्णीत॥२५ । ७ ॥

    पदार्थः

    (पूषणम्) पुष्टिकरम् (वनिष्ठुना) याचनेन (अन्धाहीन्) अन्धान् सर्पान् (स्थूलगुदया) स्थूलया गुदया सह (सर्पान्) (गुदाभिः) (विह्रुतः) विशेषेण कुटिलान् (आन्त्रैः) उदरस्थैर्नाडीविशेषैः (अपः) जलानि (बस्तिना) नाभेरधोभागेन (वृषणम्) वीर्याधारम् (आण्डाभ्याम्) अण्डाकाराभ्यां वृषणावयवाभ्याम् (वाजिनम्) अश्वम् (शेपेन) लिङ्गेन (प्रजाम्) सन्ततिम् (रेतसा) वीर्येण (चाषान्) भक्षणानि (पित्तेन) (प्रदरान्) उदरावयवान् (पायुना) एतदिन्द्रियेण (कूश्मान्) शासनानि । अत्र कशधातोर्मक्प्रत्ययोऽन्येषामपीति दीर्घश्च (शकपिण्डै:) शक्तेः संघातैः ॥ ७ ॥

    भावार्थः

    येन येन यद्यत्कार्यं सिध्येत्, तेन तेनाङ्गेन पदार्थेन वा तत् तत् साधनीयम् ॥ २५ । ७ ॥

    विशेषः

    प्रजापतिः । पूषादयः=पुष्टिकरादयः। निचृदष्टिः । मध्यमः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! तुम (वनिष्ठुना) मांगने से (पूषणम्) पुष्टि करने वाले को (स्थूलगुदया) स्थूल गुदेन्द्रिय के साथ वर्त्तमान (अन्धाहीन्) अन्धे सांपों को (गुदाभिः) गुदेन्द्रियों के साथ वर्त्तमान (विह्रुतः) विशेष कुटिल (सर्पान्) सर्पों को (आन्त्रैः) आंतों से (अपः) जलों को (वस्तिना) नाभि के नीचे के भाग से (वृषणम्) अण्डकोष को (आण्डाभ्याम्) आंडों से (वाजिनम्) घोड़ा को (शेपेन) लिङ्ग और (रेतसा) वीर्य से (प्रजाम्) सन्तान को (पित्तेन) पित्त से (चाषान्) भोजनों को (प्रदरान्) पेट के अङ्गों को (पायुना) गुदेन्द्रिय से और (शकपिण्डैः) शक्तियों से (कूश्मान्) शिखावटों को निरन्तर लेओ॥७॥

    भावार्थ

    जिस-जिस से जो-जो काम सिद्ध हो, उस-उस अङ्ग वा पदार्थ से वह-वह काम सिद्ध करना चाहिये॥७॥

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    भावार्थ

    ( वनिष्ठुना पूषणम् ) स्थूल आंतों से पूषा नाम अधिकारी की तुलना करो । ( स्थूलगुदया अन्धाहीन् ) अन्धे सांपों की स्थूल गुदा के भाग से, ( गुदाभिः सर्पान् ) गुदाओं से सांपों की, (आन्त्रैः विहुत:) शरीर की आंतों से अन्य कुटिलगामी सर्पों की, ( वस्तिना अपः) राष्ट्र के भीतर जल, जलाशयों नदियों की वस्ति भाग से, (वृषणम् आण्डाभ्याम्) वर्षणकारी मेघ की वीर्य-सेचन-समर्थ अण्डकोशों से ( वाजिनम्) वीर्यवान् बलवान् पुरुष की शरीर में (शेपेन) पु-लिङ्ग से ( रेतसा प्रजाम् ) राष्ट्र की प्रजा की शरीरस्थ वीर्यं से (चाषान् पितेन) खाने योग्य पदार्थों की शरीरस्थ पित्त पदार्थ से ( पायुना प्रदरान् ) शरीरस्थ पायु या गुदा मार्ग से राष्ट्र के भीतर विशेष फटे-फटे दरारभागों की ( कुश्मान्) 'कुश्म' अर्थात् शासक पदाधिकारी अथवा अग्नि के बल से फेंके जाने वाले गोलों और अग्निमय पदार्थों की, और (शकपिण्डैः) शक्तिमान् पिण्डों के समान शरीर में स्थित विष्ठा के पिण्डों से तुलना करो। अथवा - ( पूषणम् ) पोषक पुरुष को, उससे ( अनिष्ठुना) याचना द्वारा शक्ति और अन्न प्राप्त करे, (स्थूलगुदया सहितान् अन्धाहीन् गुदया सर्पान् ) मोटी गुदा से युक्त अंधे सापों को और गुदा भाग से साधारण सांपों को पकड़ कर वश करो । ( आन्त्रैः विहूतः) विशेष कुटिल सांपों को उनकी आंतों से वश करो । ( वस्तिनाः अपः) वस्ति क्रिया द्वारा जलों को प्राप्त करो। (अण्डाभ्याम् वृषणम् ) अण्ड-कोषों से वीर्याधार स्थान को पूर्ण करो । ( शेपेन वाजिना) लिङ्ग-भाग से वीर्यवान् अश्व या वीर्यवान् पुरुष की परीक्षा करो। (रेतसः) वीर्य से ( प्रजाम् ) प्रजा को प्राप्त करो । ( पित्तेन) पित्त के बल से (चाषान् ) भुक्त पदार्थों को पचावो । ( प्रदरान् पायुना ) गुदा भाग से पेट के भीतर भागों को स्वच्छ और बलवान् करो । ( शकपिण्डैः) शक्ति के संघों से ( कूश्मान् ) शासन बलों को प्राप्त करो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पूषादयः । निचृदष्टिः । मध्यमः ॥

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    विषय

    किसके लिए कौन होता है, इसका फिर उपदेश किया है ॥

    भाषार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम--(वनिष्ठुना) माँगने से (पूषणम्) पुष्टि करने वाले को, (स्थूल=गुदया) स्थूल गुदा से युक्त (अन्धाहीन्) अन्धे साँपों को, (गुदाभिः) गुदा सहित (विह्रुतः) विशेष कुटिल साँपों को, (आन्त्रैः) उदर की नाड़ी विशेषों से (अप:) जलों को, (बस्तिना) बस्ती=मूत्राशय से (वृषणम्) लिंग को, (आण्डाभ्याम्) अण्डाकार लिंग के अवयवों से (वाजिनम्) घोड़े को, (शेपेन) लिंग एवं (रेतसा) वीर्य से (प्रजाम्) सन्तान को, (पित्तेन) पित्त से (चाषान्) भोजनों को (प्रदरान्) उदर के अवयवों की (पायुना) पायु=गुदा इन्द्रिय से, (शकपिण्डै:) शक्ति के पिण्डों से (कूश्मान्) शासनों को ग्रहण करो ॥ २५ । ७ ॥

    भावार्थ

    जिस-जिस अंग वा पदार्थ से जो-जो कार्य सिद्ध हो उस-उस अंग वा पदार्थ से उस-उस को सिद्ध करें ॥ २५ । ७ ॥

    प्रमाणार्थ

    (कूश्मान्) यहाँ 'कश' धातु से 'मक्' प्रत्यय और 'अन्येषामपि दृश्यते' (६। ३। १३७) से दीर्घ है ॥

    भाष्यसार

    किससे क्या सिद्ध करें--याचना से पुष्टिकर पदार्थ को, स्थूल गुदा से अन्धे सर्पों को, गुदा से विशेष कुटिल सर्पों को (अर्थात् सांप को अग्र भाग से वश में नहीं किया जा सकता, गुदा से अभिप्राय पूंछ भाग से है), आंतों (उदर की नाडी विशेष) से जलों को, बस्ती=नाभि के अधोभाग से लिंग को, अण्डकोषों से घोड़े को, लिंग एवं वीर्य से प्रजा=सन्तान को, पित्त से भोजन को, पायु=गुदेन्द्रिय से उदर के अवयवों को, शक्ति से शासन को सिद्ध करें । तात्पर्य यह है कि जिस जिस अंग वा पदार्थ से जो-जो कार्य सिद्ध होता है उसे सिद्ध करें ॥ २५ । ७ ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्या अवयवाने किंवा पदार्थाने जे जे काम सिद्ध होते ते ते काम त्या त्या अवयवांनी किंवा पदार्थांनी सिद्ध केले पाहिजे.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, तुम्ही (वनिष्ठुना) याचना द्वारे (पूषणम्) पुष्टी (वा स्वास्थ्य मागा-जे तुम्हाला नीरोगी करून स्वस्थ करील, त्या वैद्याला त्यासाठी याचना करा) (स्थूलगुदया) गुदेच्या स्थूल म्हणजे बाहेरील भागात असणार्‍या (अन्धाहीन् ) आंधळ्या सापांचा (मलाद्वारे निस्सारित जंत, आदी लघुकीटकांचा नाश करा). (गुदाभिः) मलद्वाराच्या आतील भागात विद्यमान (विह्रुत) विशेष कुीटल (सर्पान्) सर्पांना (मनुष्याच्या शौचात जे लघुकीटक जंत आदी असतात) त्यांना (नष्ट करा) (आन्त्रैः) आतड्यापासून (अपः) जल आणि (वस्तिना) नाभीच्या खालील भगाद्वारे (वृषणम्) अंडकोष शुद्ध करून घ्या. (आण्डाभ्याम्) अंडकोषापासून (प्रजाम्) संततीला (अंडकोष वीर्याचे स्थान त्याद्वारे संततीलाभ) असल्यामुळे (वाढवा). (पित्तेन) पित्ताने (चाषान्) भोजन पाचन (आणि (प्रदरान्) पोटाच्या विविध अंगांना (पोषकत्व द्या) आणि (पायुना) गुदेन्द्रियाद्वारे आणि (शरूपिण्डैः) शक्ती व ऊर्जा पासून (कूश्मान्) निरंतर उपदेश, ज्ञान वा लाभ घेत जा. ॥7॥

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीराच्या अंगांपासून वा इतर ज्या ज्या वस्तूपासून जो जो लाभ मिळणे शक्य आहे, तो तो मनुष्यांनी अवश्य घ्यावा. ॥7॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Beg for alms from the wealthy. Catch blind serpents from large intestines ; serpents from the entrails and subdue them. Overpower the crooked serpents from the guts. Discharge water through the bladder. Strengthen scrotum with the testicles. Examine the strength of a horse from his penis. Produce progeny with semen. Digest meals with the force of bile, Strengthen your belly by free discharge of digested food through anus. Obtain the strength of administration through forces.

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    Meaning

    Compare national health to food digestion and assimilation, blind serpents to large intestines, snakes to the bowels, crooked people to the intestines, water storages to the bladder and lower abdomen, vital rains and clouds to the scrotum, passion to the virile seed, food consumption to the bile, clearances to wind discharges, and judge the force of governance by the concentrations of power.

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    Translation

    The nourishment is closely related to the rectum, blind worms to the large intestines, round worms to the entrails, the hook-worms to the guts, the waters to the bladder, the sperm to the testicles, the sexual power to the penis, the offspring to the semen, the bile to the foods, fissures to the anus, and the stools to the constipation. (1)

    Notes

    Vaniṣṭhunā, with the rectum. Sthūlagudā, large in testines. Andhahin, blind worms sarpan, round worms. Vihrutam, hook worms. Vasti, bladder. Vṛṣaṇam, sperm. Vājinam, sexual power; potency. Retasā, with the semen. Cāṣãn, the foods. Pradaran, fissures. Kūṣmān, constipation. Śakapinda, stools; excrement.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! তোমরা (বনিষ্ঠুনা) যাঞ্চা করিয়া (পূষণম্) পুষ্টিকারীকে (স্থূলগুদয়া) স্থূল গুদেন্দ্রিয়ের সঙ্গে বর্ত্তমান (অন্ধাহীন) অন্ধ সর্পগুলিকে (গুদাভিঃ) গুদেন্দ্রিয় সহ বর্ত্তমান (বিহ্রুতঃ) বিশেষ কুটিল (সর্পান্) সর্পগুলিকে (আন্ত্রৈঃ) অন্ত্র দ্বারা (অপঃ) জলকে (বস্তিনা) নাভির নিম্নভাগ দ্বারা (বৃষণম্) অণ্ডকোষকে (আণ্ডাভ্যাম্) অণ্ডাকার বৃষণ অবয়ব দ্বারা (বাজিনম্) অশ্বকে (শেপেন) লিঙ্গ ও (রেতস্য) বীর্য্য দ্বারা (প্রজাম্) সন্তানকে (পিত্তেন) পিত্ত দ্বারা (চাষান্) ভোজনকে (প্রদরান্) পেটের অঙ্গ সকলকে (পায়ুনা) গুদেন্দ্রিয় দ্বারা এবং (শকপিন্ডৈঃ) শক্তিগুলির দ্বারা (কূশ্মান্) তোমরা শাসনকে নিরন্তর গ্রহণ কর ॥ ৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যাহার দ্বারা যে কর্ম্ম সিদ্ধ হয় সেই অঙ্গ বা পদার্থ দ্বারা সেই কর্ম্ম সিদ্ধ করা উচিত ॥ ৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    পূ॒ষণং॑ বনি॒ষ্ঠুনা॑ন্ধা॒হীন্ৎস্থূ॑লগু॒দয়া॑ স॒র্পান্ গুদা॑ভির্বি॒হ্রুত॑ऽআ॒ন্ত্রৈর॒পো ব॒স্তিনা॒ বৃষ॑ণমা॒ণ্ডাভ্যাং॒ বাজি॑ন॒ꣳ শেপে॑ন প্র॒জাᳬं রেত॑সা॒ চাষা॑ন্ পি॒ত্তেন॑ প্রদ॒রান্ পা॒য়ুনা॑ কূ॒শ্মাঞ্ছ॑কপি॒ণ্ডৈঃ ॥ ৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    পূষণমিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । পূষাদয়ো দেবতাঃ । নিচৃদষ্টিশ্ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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