यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 7
ऋषिः - कुत्स ऋषिः
देवता - वैश्वनरोऽग्निर्देवता
छन्दः - विराडत्यष्टिः
स्वरः - गान्धारः
89
वै॒श्वा॒न॒रस्य॑ सुम॒तौ स्या॑म॒ राजा॒ हि कं॒ भुव॑नानामभि॒श्रीः। इ॒तो जा॒तो विश्व॑मि॒दं वि च॑ष्टे वैश्वान॒रो य॑तते॒ सूर्ये॑ण। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि वैश्वान॒राय॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॑र्वैश्वान॒राय॑ त्वा॥७॥
स्वर सहित पद पाठवै॒श्वा॒न॒रस्य॑। सु॒म॒ताविति॑ सुऽम॒तौ। स्या॒म॒। राजा॑। हि। क॒म्। भुव॑नानाम्। अ॒भि॒श्रीरित्य॑भि॒ऽश्रीः। इ॒तः। जा॒तः। विश्व॑म्। इ॒दम्। वि। च॒ष्टे॒। वै॒श्वा॒न॒रः। य॒त॒ते॒। सूर्ये॑ण। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒। एषः। ते॒। योनिः॑। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒ ॥७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वैश्वानरस्य सुमतौ स्याम राजा हि कम्भुवनानामभिश्रीः । इतो जातो विश्वमिदँविचष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण । उपयामगृहीतोसि वैश्वानराय त्वैष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा ॥
स्वर रहित पद पाठ
वैश्वानरस्य। सुमताविति सुऽमतौ। स्याम। राजा। हि। कम्। भुवनानाम्। अभिश्रीरित्यभिऽश्रीः। इतः। जातः। विश्वम्। इदम्। वि। चष्टे। वैश्वानरः। यतते। सूर्येण। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। वैश्वानराय। त्वा। एषः। ते। योनिः। वैश्वानराय। त्वा॥७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह॥
अन्वयः
वयं यथा राजा भुवनानामभिश्रीः कं हि साध्नोति इतो जातः सन् विश्वमिदं विचष्टे यथा सूर्येण सह वैश्वानरो यतते तथा वयं वैश्वानरस्य सुमतौ स्याम। हे विद्वन्! यतस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि तस्माद्वैश्वानराय त्वा यस्यैष ते योनिरस्ति तं त्वा च वैश्वानराय सत्करोमि॥७॥
पदार्थः
(वैश्वानरस्य) विश्वस्य नायकस्य (सुमतौ) शोभनायां बुद्धौ (स्याम) भवेम (राजा) प्रकाशमानः (हि) खलु (कम्) सुखम् (भुवनानाम्) (अभिश्रीः) अभितः सर्वतः श्रियो यस्य सः (इतः) अस्मात् कारणात् (जातः) प्रकटः सन् (विश्वम्) सर्वं जगत् (इदम्) (वि, चष्टे) प्रकाशयति (वैश्वानरः) विद्युदग्निः (यतते) (सूर्येण) सूर्यमण्डलेन (उपयामगृहीतः) सुनियमै स्वीकृतः (असि) (वैश्वानराय) अग्नये (त्वा) त्वाम् (एषः) (ते) तव (योनिः) गृहम् (वैश्वानराय) अग्निकार्यसाधनाय (त्वा) त्वाम्॥७॥
भावार्थः
यथा सूर्येण सह चन्द्रमा रात्रिं सुभूषयति तथा सुराज्ञा प्रजा प्रकाशिता भवति विद्वान् शिल्पिजनश्च वह्निना सर्वोपयोगीनि कार्याणि साध्नोति॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हम लोग जैसे (राजा) प्रकाशमान (भुवनानाम्) लोकों के बीच (अभिश्रीः) सब ओर से ऐश्वर्य की शोभा से युक्त सूर्य (कम्) सुख को (हि) ही सिद्ध करता है और (इतः) इस कारण (जातः) प्रसिद्ध हुआ (इदम्) इस (विश्वम्) विश्व को (वि, चष्टे) प्रकाशित करता है वा जैसे (सूर्येण) सूर्य के साथ (वैश्वानरः) बिजुली रूप अग्नि (यतते) यत्नवान् है, वैसे हम लोग (वैश्वानरस्य) संसार के नायक परमेश्वर वा उत्तम सभापति की (सुमतौ) अति उत्तम देश काल को जानने हारी कपट-छलादि दोष रहित बुद्धि में (स्याम) होवें। हे विद्वान्! जिससे आप (उपयामगृहीतः) सुन्दर नियमों से स्वीकृत (असि) हैं, इससे (वैश्वानराय) अग्नि के लिये (त्वा) आपको तथा जिस (ते) आप का (एषः) यह (योनिः) घर है उन (त्वा) आप को भी (वैश्वानराय) अग्निसाध्य कार्य साधने के लिये सत्कार करता हूँ॥७॥
भावार्थ
जैसे सूर्य के साथ चन्द्रमा रात्रि को सुशोभित करता है, वैसे उत्तम राजा से प्रजा प्रकाशित होती है और विद्वान् शिल्पी जन अग्नि से सर्वोपयोगी कार्यों को सिद्ध करता है॥७॥
विषय
वैश्वानर पद पर योग्य पुरुष का वरण | उसका लक्षण ।
भावार्थ
हम लोग (वैश्वानरस्य) समस्त विश्व या समस्त राष्ट्र के नायक के (सुमतौ शुभ बुद्धि के अधीन (स्याम) रहें । राजा वह राजा ही ( भुवनानाम् ) समस्त लोकों के लिये (अभिश्रीः) सब प्रकार से आश्रय करने योग्य है । वह (जातः) प्रादुर्भूत होकर (इतः ) इस मुख्य पद से ही ( विश्वम् इदम् ) इस समस्त विश्व को सूर्य के समान (वि चष्टे) देखता है और प्रकाशित करता है । इसी से (वैश्वानरः) समस्त राष्ट्र का नेता वैश्वानर नाम राजा (सूर्येण ) सूर्य के समान तेजस्वी होकर ( यतते) राष्ट्र के कार्यों में उद्योग करता है । (उपयाम ) इत्यादि पूर्ववत् । अध्यात्म में - पांच ज्ञानेन्द्रिय मन बुद्धि और आठवीं वाणी है । हे वाणि! तू मेरे लिये सब ज्ञान-मार्गों को सफल कर और अमुक अभ्यास प्रयत्न और पदार्थ से मुझे यथा ज्ञान प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्सः । वैश्वानरोऽग्निः । स्वराडष्टिः । गान्धारः ॥
विषय
भौतिकता का त्याग
पदार्थ
१. गतमन्त्र का प्रादुराक्षि = प्रभु के दर्शनवाला व्यक्ति सारी वासनाओं का संहार करनेवाला बनता है, अतएव 'कुत्स' हो जाता है। [कुथ हिंसायाम्] । कुत्स प्रार्थना करता है कि हम (वैश्वानरस्य) = इस विश्वनरहित करनेवाले प्रभु की (सुमतौ) = कल्याणी मति में (स्याम) = हों, अर्थात् हम हृदयस्थ प्रभु की कल्याणी मति को सुनें और उसके अनुसार चलने का प्रयत्न करें। २. यह वैश्वानर (राजा) = सारे संसार को दीप्त करनेवाले हैं तथा इस संसार को व्यवस्थित Regulate करनेवाले हैं। (हि) = निश्चय से सबको (कम्) = सुख देनेवाले हैं। (भुवनानाम्) = सब भुवनों के प्राणियों के (अभिश्रीः) = अभिश्रयणीय हैं, सेवनीय हैं। सब प्राणी अन्त में प्रभु का ही आश्रय ढूँढते हैं। ३. (इतः) = इस सर्वाश्रयणीय प्रभु से (जातः) = प्राप्त विकासवाला व्यक्ति (इदम् विश्वम्) = इस सारे ब्रह्मणड को (विचष्टे) = [Abandon, Leave] त्याग देता है। प्रभु को प्राप्त करनेवाला व्यक्ति संसार में उलझता नहीं। प्रभु-प्राप्ति के आनन्द की तुलना में संसार का आनन्द तुच्छ हो जाता है। ४. (वैश्वानर:) = सब मनुष्यों का हित करनेवाला वह प्रभु (सूर्येण) = [सरति ] स्वयं सरण करनेवाले पुरुषार्थी के साथ (यतते) = उसकी उन्नति के लिए उद्योग करता है, अर्थात् प्रभु हमारा हित करते हैं, परन्तु करते तभी हैं जब हम स्वयं यत्नशील हों। ५. यह कुत्स कहते हैं कि (उपयामगृहीतः असि) = हे प्रभो ! आप उपासना द्वारा प्राप्त यम-नियमों से गृहीत होते हो। 'कुत्स' ऋषि वेद को सम्बोधन करके कहते हैं कि (त्वा) = तुझे (वैश्वानराय) = सब मनुष्यों का हित करनेवाले प्रभु की प्राप्ति के लिए ग्रहण करता हूँ। (एषः) = ये प्रभु ही ते तेरे (योनिः) = उत्पत्तिस्थान हैं। मैं (त्वा) = तुझे (वैश्वानराय) = वैश्वानर प्रभु की प्राप्ति के लिए ग्रहण करता हूँ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु को वैश्वानररूप में देखें, हम स्वयं भी सब मनुष्यों का हित करनेवाले बनें। प्रभु का दर्शन करनेवाला इस संसार में भोगों में नहीं उलझता, उन्नति - पथ पर निरन्तर आगे बढ़ता है और प्रभु उसकी सहायता करते हैं। यह वेदज्ञान उसे प्रभु-प्राप्ति के योग्य बनाता है।
मराठी (2)
भावार्थ
जसे सूर्य या जगाला प्रकाश देतो व चंद्रही आपल्या प्रकाशाने रात्र सुशोभित करतो तसे उत्तम राजामुळे प्रजाही सुशोभित होते व विद्वान कारागीर सर्वोपयोगी कार्य सिद्ध करू शकतो.
विषय
मनुष्यांनी काय करावे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (राजा) प्रकाशमान, आणि (भुवनानाम्) सर्व लोकांमधे (अभिश्रीः) सर्वत्र ऐश्वर्यमय व ज्योतिर्मय सूर्य सर्वांसाठी (हि) (कम्) केवळ सुख प्रसृत करतो. (इतः) यामुळे सूर्य (जातः) (अशा उपकारासाठी) प्रसिद्ध असून (इदम्) या (विश्वम्) विश्वाला (वि, चष्टे) प्रकाशित करतो. ज्याप्रमाणे (सूर्येण) सूर्यासह (वैश्वानरः) विद्युतरूप अग्नी (यतते) जगाच्या कल्याणासाठी झटतो, त्याप्रमाणे आम्ही (वैश्वानराय) जगनायक जगदीश्वराच्या उत्तम सभापतीच्या (सुमतौ) अत्युत्तम आणि देश, काळ विचार करणार्या, छळ-कपट आदी दोषांपासून मुक्त अशा बुद्धीच्या आश्रयात (स्याम) असू हे विद्वान, आपण (उपयामगृहीतः) चांगल्या नियमांनी वागणारे (असि) आहात, यामुळे आम्ही (वैश्वानराय) अग्नीपासून लाभ मिळवून देण्याबद्दल (त्वा) आपला सत्कार करतो. (ते) आपले (एषः) हे (योनिः) जे घर आहे, त्या घराचा आणि (त्वा) आपलादेखील (वैश्वानराय) अग्नीपासून संपन्न होणार्या कामांविषयी माहिती करून दिल्याबद्दल मी आपला सत्कार करतो. ॥7॥
भावार्थ
भावार्थ -जसे सूर्यासह चंद्र रात्रीला सुशोभित करतो (चंद्र सूर्याकडून प्रकाश घेतो व रात्री तो प्रकाश प्रसृत करतो) तसे उत्तम राजामुळे प्रजा प्रकाशित होते आणि एक विद्वान वैज्ञानिक शिल्पी सर्वोपयोगी कामें पूर्ण करतो. ॥7॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Just as the Sun, filled with lustre of grandeur, in the midst of illuminated worlds, gives us pleasure, and therefore illuminates this world with his light; just as lightning exerts with the Sun, so should we continue in Gods grace. O learned person thou art acceptable through beautiful restraints. I respect thee for thy knowledge of electricity. This is thy home. I respect Thee for thy accomplishing electrical projects.
Meaning
Let us abide by the laws and wisdom of Vaishvanara, leader of the universe. Glorious light of the world, He creates the joy, beauty and glory of the worlds in existence. Manifesting from the world itself, He watches and energises this whole universe and, as the vital heat energy of life, works with the sun for the sustenance of life and growth. Man of science and knowledge, accepted and consecrated you are by the laws of life and nature for the service of Vaishvanara. This service now is your haven and home. I accept you for the sake of Vaishvanara, science of heat and energy.
Translation
May we continue to be in the grace of the leader of all; He is the august sovereign of all beings. Since the very inception, He is taking excellent care of the entire universe. This leader of all accompanies the rising sun. (1) You have been duly accepted. (2) You to the leader of all. (3) This is your abode. (4) You to the leader of all. (5)
Notes
Bhuvanānām, of the worlds; of the beings. Abhiśnih, आश्रयणीय:, the one, under whom all should take snelter. Yatate sūryeņa, accompanies the rising sun. The sacrifi cial fire is kindled at sunrise.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মনুষ্যাঃ কিং কুর্য়ুরিত্যাহ ॥
পুনঃ মনুষ্য কী করিবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– যেমন (রাজা) প্রকাশমান (ভুবনানাম্) ভুবন সমূহের মধ্যে (অভিশ্রীঃ) সকল দিক দিয়া ঐশ্বর্য্যের শোভা দ্বারা যুক্ত সূর্য্য (কম্) সুখকে (হি) ই সিদ্ধ করে এবং (ইতঃ) এই কারণে (জাতঃ) প্রসিদ্ধ হইয়াছে (ইদম্) এই (বিশ্বম্) বিশ্বকে (বি, চষ্টে) প্রকাশিত করে অথবা যেমন (সূর্য়েণ) সূর্য্য সহ (বৈশ্বানরঃ) বিদ্যুৎ রূপ অগ্নি (য়ততে) যত্নবান্ সেইরূপ আমরা (বৈশ্বানরস্য) সংসারের নায়ক পরমেশ্বর অথবা উত্তম সভাপতির (সুমতৌ) অতি উত্তম দেশ কালের জ্ঞাত্রী কপট ছলাদি দোষরহিত বুদ্ধিতে (স্যাম) হইব । হে বিদ্বান্! যদ্দ্বারা আপনি (উপয়ামগৃহীতঃ) সুন্দর নিয়ম দ্বারা স্বীকৃত (অসি) আছেন, এইজন্য (বৈশ্বানরায়) অগ্নির জন্য (ত্বা) আপনাকে তথা যে (তে) আপনার (এষঃ) এই (যোনিঃ) গৃহ, সেই (ত্বা) আপনাকেও (বৈশ্বানরায়) অগ্নি সাধ্য কার্য্যে সাধন করিবার জন্য সৎকার করিতেছি ॥ ৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যেমন সূর্য্য সহ চন্দ্রমা রাত্রিকে সুশোভিত করে সেইরূপ উত্তম রাজা দ্বারা প্রজা প্রকাশিত হয় এবং বিদ্বান্ শিল্পী সেই অগ্নি দ্বারা সর্বোপযোগী কার্য্যকে সিদ্ধ করে ॥ ৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বৈ॒শ্বা॒ন॒রস্য॑ সুম॒তৌ স্যা॑ম॒ রাজা॒ হি কং॒ ভুব॑নানামভি॒শ্রীঃ ।
ই॒তো জা॒তো বিশ্ব॑মি॒দং বি চ॑ষ্টে বৈশ্বান॒রো য়॑ততে॒ সূর্য়ে॑ণ ।
উ॒প॒য়া॒মগৃ॑হীতোऽসি বৈশ্বান॒রায়॑ ত্বৈ॒ষ তে॒ য়োনি॑র্বৈশ্বান॒রায়॑ ত্বা ॥ ৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বৈশ্বানরস্যেত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । বৈশ্বানরোऽগ্নির্দেবতা । বিরাডত্যষ্টিশ্ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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