Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 27

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 1
    ऋषि: - अग्निर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    133

    समा॑स्त्वाऽग्न ऋ॒तवो॑ वर्द्धयन्तु संवत्स॒राऽऋष॑यो॒ यानि॑ स॒त्या। सं दि॒व्येन॑ दीदिहि रोच॒नेन॒ विश्वा॒ऽ आ भा॑हि प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    समाः॑। त्वा॒। अ॒ग्ने॒। ऋ॒तवः॑। व॒र्द्घ॒य॒न्तु। सं॒व॒त्स॒राः। ऋष॑यः। यानि॑। स॒त्या। सम्। दि॒व्येन॑। दी॒दि॒हि॒। रो॒च॒नेन॑। विश्वाः॑। आ। भा॒हि॒। प्र॒दिश॒ इति॑ प्र॒ऽदिशः॑। चत॑स्रः ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सास्त्वाग्नऽऋतवो वर्धयन्तु सँवत्सराऽऋषयो यानि सत्या । सन्दिव्येन दीदिहि रोचनेन विश्वाऽआभाहि प्रदिशश्चतस्रः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समाः। त्वा। अग्ने। ऋतवः। वर्द्घयन्तु। संवत्सराः। ऋषयः। यानि। सत्या। सम्। दिव्येन। दीदिहि। रोचनेन। विश्वाः। आ। भाहि। प्रदिश इति प्रऽदिशः। चतस्रः॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथाप्तैः कथमाचरणीयमित्याह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! समा ऋतवः संवत्सरा ऋषयो यानि सत्या सन्ति, ते त्वा वर्द्धयन्तु। यथाऽग्निर्दिव्येन रोचनेन विश्वाश्चतस्रः प्रदिशः प्रकाशयति तथा विद्यां संदीदिहि। न्याय्यं धर्ममा भाहि॥१॥

    पदार्थः

    (समाः) वर्षाणि (त्वा) त्वाम् (अग्ने) विद्वन् (ऋतवः) शरदादयः (वर्द्धयन्तु) (संवत्सराः) (ऋषयः) मन्त्रार्थविदः (यानि) (सत्या) सत्सु साधूनि त्रैकाल्याबाध्यानि कर्माणि (सम्) (दिव्येन) अतिशुद्धेन (दीदिहि) कामय (रोचनेन) प्रदीपनेन (विश्वाः) अखिलाः (आ) समन्तात् (भाहि) प्रकाशय (प्रदिशः) प्रकृष्टगुणयुक्ता दिशः (चतस्रः) एतत्संख्याप्रमिताः॥१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। आप्तैः सर्वदा सत्या विद्याः कर्माणि चोपदिश्य सर्वेषां शरीरिणामारोग्यपुष्टी विद्यासुशीले च वर्द्धनीये। यथा सूर्यः स्वसंनिहितान् प्रकाशयति तथा सर्वे मनुष्याः सुशिक्षया सदैवानन्दयितव्याः॥१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब सत्ताईसवें अध्याय का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में आप्तों को कैसा आचरण करना चाहिये, इस विषय को कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन्! (समाः) वर्ष (ऋतवः) शरद् आदि ऋतु (संवत्सराः) प्रभवादि संवत्सर (ऋषयः) मन्त्रों के अर्थ जानने वाले विद्वान् और (यानि) जो (सत्या) कर्म हैं, वे (त्वा) आप को (वर्द्धयन्तु) बढ़ावें, जैसे अग्नि (दिव्येन) शुद्ध (रोचनेन) प्रकाश से (विश्वाः) सब (प्रदिशः) उत्तम गुणयुक्त (चतस्रः) चार दिशाओं को प्रकाशित करता है, वैसे विद्या की (सं, दीदिहि) सुन्दर प्रकार कामना कीजिये और न्याययुक्त धर्म का (आ, भाहि) अच्छे प्रकार प्रकाश कीजिये॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। आप्तपुरुषों को चाहिये कि सब काल में सत्य विद्या और उत्तम कामों का उपेदश करके सब शरीरधारियों के आरोग्य, पुष्टि, विद्या और सुशीलता को बढ़ावें, जैसे सूर्य अपने सन्मुख के पदार्थों को प्रकाशित करता है, वैसे सब मनुष्यों को शिक्षा से सदैव आनन्दित किया करें॥१॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. आप्त पुरुषांनी सर्व काळी सत्य विद्या व उत्तम कर्म यांचा उपदेश करून सर्व लोकांचे आरोग्य, बल, विद्या व सुशीलता वाढवावी. जसा सूर्य सर्व पदार्थांना प्रकाशित करतो. तसे सर्व माणसंना शिक्षणाने सदैव आनंदित करावे.

    English (2)

    Meaning

    O learned person, may years, seasons, knowers of vedic interpretation and all the verities strengthen thee. Just as the sun with celestial effulgence illumines all the four efficacious regions so should thou long for knowledge, and manifest justice.

    Meaning

    Agni, man of knowledge and light of the world, may the years, seasons, year cycles, visionaries of truth and acts of absolute truth whatever and wherever they be: may all these take you forward in life. Shine with celestial light and illuminate all the directions and interdirections of the world with your knowledge and brilliance.

    Top