यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 32
वायो॒ ये ते॑ सह॒स्रिणो॒ रथा॑स॒स्तेभि॒रा ग॑हि।नि॒युत्वा॒न्त्सोम॑पीतये॥३२॥
स्वर सहित पद पाठवायो॒ इति॒ वायो॑। ये। ते॒। स॒ह॒स्रिणः॑। रथा॑सः। तेभिः॑। आ। ग॒हि॒। नि॒युत्वा॑न्। सोम॑पीतय॒ इति॒ सोम॑ऽपीतये ॥३२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वायो ये ते सहस्रिणो रथासस्तेभिरागहि । नियुत्वान्त्सोमपीतये ॥
स्वर रहित पद पाठ
वायो इति वायो। ये। ते। सहस्रिणः। रथासः। तेभिः। आ। गहि। नियुत्वान्। सोमपीतय इति सोमऽपीतये॥३२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे वायो वायुरिव वर्त्तमान विद्वन्! ये ते सहस्रिणो रथासः सन्ति, तेभिः सह नियुत्वान्त्संस्त्वं सोमपीतय आ गहि॥३२॥
पदार्थः
(वायो) पवनवद्वर्त्तमान (ये) (ते) तव (सहस्रिणः) प्रशस्ताः सहस्रं जना विद्यन्ते येषु ते (रथासः) रमणीयानि यानानि (तेभिः) तैः (आ) (गहि) प्राप्नुहि (नियुत्वान्) समर्थः सन् (सोमपीतये) सोमस्य पानाय॥३२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः! यथा वायोरसंख्या रमणीया गतयः सन्ति, तथा विविधाभिर्गतिभिः समर्था भूत्वैश्वर्यं भुङ्ग्ध्वम्॥३२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (वायो) पवन के तुल्य वर्त्तमान विद्वन्! (ये) जो (ते) आप के (सहस्रिणः) प्रशस्त सहस्रों मनुष्यों से युक्त (रथासः) सुन्दर आराम देने वाले यान हैं, (तेभिः) उन के सहित (नियुत्वान्) समर्थ हुए आप (सोमपीतये) सोम ओषधि का रस पीने के लिये (आ, गहि) आइये॥३२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जैसे वायु की असंख्य रमण करने योग्य गति हैं, वैसे अनेक प्रकार की गतियों से समर्थ होके ऐश्वर्य को भोगो॥३२॥
विषय
नियुत्वान् वायु, सेनापति का वर्णन ।
भावार्थ
हे (वायो ) वायु के समान बलवान् सेनापते !(ये) जो (ते) तेरे (सहस्रिणः) सहस्रों पुरुषों से अधिष्ठित (रथासः) रथ, या रमणकारी साधन हैं (तेभिः) उनसे ( नियुत्वान् ) तू विशेष शक्तिशाली और सेना- सम्पन्न होकर ( सोमपीतये ) सोम अर्थात् राष्टैश्वर्य के पालन और भोग के लिये (आ, गहि) आ, प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वायुः । गायत्री। षड्जः॥
विषय
नियुत्वान्
पदार्थ
१. प्रभु का स्तवन करता हुआ गृत्समद प्रार्थना करता है - (वायो) = हे सम्पूर्ण संसार के सञ्चालक प्रभो! (ये) = जो (ते) = आपके (सहस्रिणः) = [स+ + हस्] प्रसन्नता से युक्त (रथास:) = ये शरीररूप रथ हैं (तेभिः) = उनके साथ (आगहि) = हमें प्राप्त होइए, अर्थात् आपकी कृपा से हम उन शरीर-रथों को प्राप्त करें, जिनमें इन्द्रियों, मन व बुद्धि सभी का विकास [हास] दीखता है, शरीर मुर्झाया-सा लगे, इन्द्रियाँ दुर्बल हों, मन मरा-सा हो और बुद्धि कुण्ठित हो तो ऐसे शरीररूप रथ को प्राप्त करके हम क्या करेंगे? २. (नियुत्वान्) = हे प्रभो! आप प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाले, अर्थात् हमें उत्तम इन्द्रियरूप घोड़ों को प्राप्त करानेवाले होकर (सोमपीतये) = हमारे सोम की रक्षा के लिए होइए। आपकी कृपा से हमारी इन्द्रियाँ उत्तम हों, विषय-वासनाओं में विचरनेवाली न हों, और इस प्रकार हमारे सोम [वीर्य] की रक्षा हो सके। इस सोम की रक्षा से हमारा शरीर रथ 'सहस्री' होगा, हास व विकासवाला होगा।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो! आप हमें सब शक्तियों के विकास से युक्त शरीररूप रथ प्राप्त कराइए, हमारे इन्द्रियरूप अश्व भी उत्तम हों, वे वासनाओं के शिकार न हों, जिससे हम शक्ति को सुरक्षित कर सकें।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! वायूच्या रमण करण्यायोग्य असंख्य गती आहेत तशा अनेक प्रकारच्या गतीने तुम्हीही समर्थ बनून ऐश्वर्य भोगा.
विषय
पुन्हा तोच विषय. -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (वायो) हे पवनाप्रमाणे (ज्ञानाचे वाहक व प्रसारक) विद्वान, (ते) तुमचे (ये) जे (सहस्त्रिणः) सहस्त्र मनुष्यांनी (सारथी व महारथी यांनी) युक्त (रथासः) सुंदर रथ वा यान आहेत (तेभिः) त्या यानासह आणि वीर महारथींसह (नियुत्वान्) बलवान होऊन आपण (सोमपीतये) सोम औषधींचा रस पिण्यासाठी (आ, याहि) इथे (वा आमच्या घरी या) ॥32॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. हे मनुष्यांनो, जशी वायूची गती अगणित ठिकाणापर्यंत जाते, तद्वत तुम्हीदेखील प्रगतीचे विविध मार्ग चोखाळीत सामर्थ्यवान व्हा आणि ऐश्वर्याचा उपयोग घ्या. ॥32॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, come thou to us to drink the Soma juice, with full force, accompanied by thousands of thy admirers in chariots.
Meaning
Vayu, leader and scholar of the speed of the winds, thousands are the paths and modes of your movement forward. Take them all and come for a wonder-work of joy with a holy drink of soma.
Translation
You are most welcome, O sense of touch, to come with your entire awareness in thousandfold chariots, which you possess, to participate in enjoying the glory of creation. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (বায়ো) পবনতুল্য বর্ত্তমান বিদ্বান্! (য়ে) যে (তে) আপনার (সহস্রিণঃ) প্রশস্ত সহস্র মনুষ্য দ্বারা যুক্ত (রথাসঃ) সুন্দর আরামদায়ক যানগুলি আছে (তেভিঃ) তাহাদের সহিত (নিয়ুত্বান্) সমর্থ আপনি (সোমপীতয়ে) সোম ওষধির রস পান করিবার জন্য (আ, গহি) আসুন ॥ ৩২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ! যেমন বায়ুর অসংখ্য রমণ করিবার যোগ্য গতি তদ্রূপ বহু প্রকারের গতি দ্বারা সমর্থ হইয়া ঐশ্বর্য্যকে ভোগ কর ॥ ৩২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বায়ো॒ য়ে তে॑ সহ॒স্রিণো॒ রথা॑স॒স্তেভি॒রা গ॑হি ।
নি॒য়ুত্বা॒ন্ৎসোম॑পীতয়ে ॥ ৩২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বায় ইত্যস্য গৃৎসমদ ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal