यजुर्वेद - अध्याय 27/ मन्त्र 37
ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
75
त्वामिद्धि हवा॑महे सा॒तौ वाज॑स्य का॒रवः॑। त्वां वृ॒त्रेष्वि॑न्द्र॒ सत्प॑तिं॒ नर॒स्त्वां काष्ठा॒स्वर्व॑तः॥३७॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम्। इत्। हि। हवा॑महे। सा॒तौ। वाज॑स्य। का॒रवः॑। त्वाम्। वृ॒त्रेषु॑। इ॒न्द्र॒। सत्प॑ति॒मिति॒ सत्ऽप॑तिम्। नरः॑। त्वाम्। काष्ठा॑सु। अर्व॑तः ॥३७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः । त्वाँवृत्रेष्विन्द्र सत्पतिन्नरस्त्वाङ्काष्ठास्वर्वतः ॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वाम्। इत्। हि। हवामहे। सातौ। वाजस्य। कारवः। त्वाम्। वृत्रेषु। इन्द्र। सत्पतिमिति सत्ऽपतिम्। नरः। त्वाम्। काष्ठासु। अर्वतः॥३७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजधर्मविषयमाह॥
अन्वयः
हे इन्द्र! वाजस्य हि कारवो नरो वये सातौ त्वां वृत्रेषु सूर्यमिव सत्पतिं त्वामर्वत इव सेनायां पश्येम काष्ठासु त्वामिद्धवामहे॥३७॥
पदार्थः
(त्वाम्) (इत्) एव (हि) (हवामहे) गृह्णीमः (सातौ) सामे (वाजस्य) विद्याविज्ञानजन्यस्य कार्यस्य (कारवः) कर्त्तारः (त्वाम्) (वृत्रेषु) घनेषु (इन्द्र) सूर्य इव जगत्पालक (सत्पतिम्) सत्यस्य प्रचारेण पालकम् (नरः) नेतारः (त्वाम्) (काष्ठासु) दिक्षु (अर्वतः) आशुगामिनोऽश्वस्येव॥३७॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे सेनासभेशौ! युवां सूर्यवन्न्यायाभयप्रकाशकौ शिल्पिनां सङ्ग्रहीतारौ सत्यस्य प्रचारकौ भवेतम्॥३७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजधर्म विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) सूर्य के तुल्य जगत् के रक्षक राजन्! (वाजस्य) विद्या वा विज्ञान से हुए कार्य के (हि) ही (कारवः) करने वाले (नरः) नायक हम लोग (सातौ) रण में (त्वाम्) आप को, जैसे (वृत्रेषु) मेघों में सूर्य को, वैसे (सत्पतिम्) सत्य के प्रचार से रक्षक (त्वाम्) आप को (अर्वतः) शीघ्रगामी घोड़े के तुल्य सेना में देखें, (काष्ठासु) दिशाओं में (त्वाम्) आप को (इत्) ही (हवामहे) ग्रहण करें॥३७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे सेना और सभा के पति! तुम दोनों सूर्य के तुल्य न्याय और अभय के प्रकाशक, शिल्पियों का संग्रह करने और सत्य के प्रचार करने वाले होओ॥३७॥
विषय
इन्द्र नायक का वर्णन।
भावार्थ
हे (इन्द्र) सूर्य के समान तेजस्विन्, राजन् ! ( कारवः) उत्तम कर्मों और शिल्पों को करने वाले विद्वान् पुरुष (वाजस्य सातौ ) ऐश्वर्य और अन्न की प्राप्ति के लिये (वृत्रेषु) विघ्नकारियों के उपस्थित हो जाने पर मेघों में सूर्य के समान ( सत्पतिम् ) सज्जनों के प्रतिपालक ( त्वाम् इत् हि ) तुझको ही हम उसी प्रकार ( हवामहे ) स्मरण करते हैं, बुलाते हैं जिस प्रकार ( नरः ) लोग (काष्ठासु) दूर की सीमाओं और दिशाओं को पार करने के लिये (अर्वतः) अश्वों को याद करते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंयुर्वार्हस्पत्य ऋषिः । इन्द्रो देवता । निचृदनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
'शंयु' की प्रार्थनत्रयी
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = हमारे सब शत्रुओं व कष्टों के निवारण करनेवाले प्रभो! (कारवः) = प्रत्येक कार्य को कलापूर्ण तरीके से करनेवाले हम ['कारुः शिल्पिनि कारके'] (वाजस्य) = शक्ति की सातौ प्राप्ति के निमित्त (हि) = निश्चय से (त्वाम् इत्) = आपको ही हवामहे पुकारते हैं। आप ही तो हमें शक्ति प्राप्त कराएँगे। हाँ, यह ठीक है कि आप शक्ति प्राप्त कराते तभी हैं जब हम आपके निर्देश के अनुसार पुरुषार्थी बनते हैं । २. हे प्रभो ! (वृत्रेषु) = ज्ञान पर आवरण डाल देनेवाली कामादि वासनाओं के साथ संग्राम में विजय के लिए भी (सत्पतिम्) = सज्जनों के रक्षक (त्वा) = आपको पुकारते हैं। आपके साहाय्य के होने पर ही तो हम इन वासनाओं को जीत पाएँगे। ३. (नर:) = [नृ नये] अपने को आगे प्राप्त कराने की कामनावाले हम अर्वतः काष्ठासु-[Race-ground, course goal] घोड़ों के घुडदौड़ के मैदानों में (त्वा) = आपको पुकारते हैं। 'हमारे ये इन्द्रियरूप घोड़े उद्देश्य तक, उद्दिष्टस्थल तक पहुँच सकें' इसके लिए हम आपको ही पुकारते हैं। 'अर्वत' शब्द यहाँ छठी विभवक्ति में प्रयुक्त हुआ है। घोड़े की काष्ठा, उसका लक्ष्यस्थान ही है।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो! आपकी कृपा से हम [क] शक्ति प्राप्त करें [ख] वासना संग्राम में विजय हों । ३. इन्द्रियरूप घोड़ों को लक्ष्यस्थान पर पहुँचानेवाले बनें।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे सेनापती व राजा ! तुम्ही दोघे सूर्याप्रमाणे न्याय व निर्भयता ठेवा. कारागिरांना एकत्र करा व सत्याचा प्रसार करा.
विषय
पुढील मंत्रात राजधर्मांविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (इन्द्र) सूर्याप्रमाणे जगाचे रक्षणकर्ता, (वाजस्य) विदय आणि विज्ञान यांच्या सहाय्याने (हि) च (काखः) कार्य करणारे (नरः) आम्ही सैन्याचे नायकगण (सातौ) युद्धक्षेत्रात (त्वाम्) आपणास (आवाहन करतो) ज्याप्रमाणे (वृत्रेषु) ढगांमधे सुर्य (प्रताप गाजवितो, तसे) आपल्या सारख्या (सत्पतिम्) सत्याचे वा सत्यपक्षाचे रक्षक आपण (अर्वतः) शीघ्रगामी घोड्याप्रमाणे (काष्ठासु) सैन्यात वा युद्धभूमीत सर्व दिशांमधे (त्वाम्) केवळ आपणास (इत्) थ (हवामहे) ग्रहण करतो (वा आपले नेतृत्व स्वीकरतो) ॥37॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. हे सेना आणि सभेचे पती (सेनाध्यक्ष व सभापती, हे राजा) आपण दोघ सूर्याप्रमाणे न्याय व आश्रय देणारे व्हा. योग्य कुशल शिल्पीजनांचा संग्रह करून (विजय मिळविणारे) आणि सत्याचा प्रचार करणारे व्हा ॥37॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O King, the protector of the people, we, the scholars and scientists invoke thee alone in war. Just as the Sun is seen after it dispels the clouds, so we see thee in the army active and swift like a horse. We invoke thee in all directions.
Meaning
Indra, lord of power and commander of the forces, sun among the clouds and defender of truth, we, leaders of men and achievers of success, invoke you in the battles of science and knowledge and do homage to you advancing into all directions like a horse on the wing.
Translation
O resplendent Lord, we, the poet sages, invoke you to obtain strengthening food. You are the protector of good men. We invoke you from all directions to overcome impediments, in the conflicts of life. (1)
Notes
Kāravaḥ, poet sages. Vājasya sātau, अन्नस्य लाभे, to obtain nourishing food. Vṛtreşu, in the conflicts of life; or enemies. Kāṣṭhāsu, दिक्षु, in all the directions. Arvatah, of the horse; in whichever direction the horse goes. दिग्विजयनिमित्तं, with the purpose of conquering all the re gions.
बंगाली (1)
विषय
পুনা রাজধর্মবিষয়মাহ ॥
পুনঃ রাজধর্ম বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (ইন্দ্র) সূর্য্য তুল্য জগৎ-রক্ষক রাজন্! (বাজস্য) বিদ্যা বা বিজ্ঞানজন্য কার্য্যের (হি) ই (কারবঃ) কর্ত্তা (নরঃ) নায়ক আমরা (সাতৌ) রণে (ত্বাম্) আপনাকে যেমন (বৃত্তেষু) মেঘে সূর্য্যকে তদ্রূপ (সৎপতিম্) সত্যের প্রচার বলে রক্ষক (ত্বাম্) আপনাকে (অর্বতঃ) শীঘ্রগামী অশ্বের তুল্য সেনায় দেখি (কাষ্ঠাসু) দিকগুলিতে (ত্বাম্) আপনাকে (ইৎ) ই (হবামহে) গ্রহণ করি ॥ ৩৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে সেনা ও সভার পতি! তোমরা উভয়ে সূর্য্যের তুল্য ন্যায় এবং অভয়ের প্রকাশক শিল্পীদিগের সংগ্রহকারক এবং সত্যের প্রচারক হও ॥ ৩৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ত্বামিদ্ধি হবা॑মহে সা॒তৌ বাজ॑স্য কা॒রবঃ॑ ।
ত্বাং বৃ॒ত্রেষ্বি॑ন্দ্র॒ সৎপ॑তিং॒ নর॒স্ত্বাং কাষ্ঠা॒স্বর্ব॑তঃ ॥ ৩৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ত্বামিদিত্যস্য শংয়ুর্বার্হস্পত্য ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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