यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 32
ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः
देवता - विद्वांसो देवता
छन्दः - आर्षी
स्वरः - धैवतः
48
दैव्या॒ होता॑रा प्रथ॒मा सु॒वाचा॒ मिमा॑ना य॒ज्ञं मनु॑षो॒ यज॑ध्यै।प्र॒चो॒दय॑न्ता वि॒दथे॑षु का॒रू प्रा॒चीनं॒ ज्योतिः॑ प्र॒दिशा॑ दि॒शन्ता॑॥३२॥
स्वर सहित पद पाठदैव्या॑। होता॑रा। प्र॒थ॒मा। सु॒वाचेति॑ सु॒ऽवाचा॑। मिमा॑ना। य॒ज्ञम्। मनु॑षः। यज॑ध्यै। प्र॒चो॒दय॒न्तेति॑ प्रऽचो॒दय॑न्ता। वि॒दथे॑षु। का॒रूऽइति॑ का॒रू। प्रा॒चीन॑म्। ज्योतिः॑। प्र॒दिशेति॑ प्र॒ऽदिशा॑। दि॒शन्ता॑ ॥३२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दैव्या होतारा प्रथमा सुवाचा मिमाना यज्ञम्मनुषो यजध्यै । प्रचोदयन्ता विदथेषु कारू प्राचीनञ्ज्योतिः प्रदिशा दिशन्ता ॥
स्वर रहित पद पाठ
दैव्या। होतारा। प्रथमा। सुवाचेति सुऽवाचा। मिमाना। यज्ञम्। मनुषः। यजध्यै। प्रचोदयन्तेति प्रऽचोदयन्ता। विदथेषु। कारूऽइति कारू। प्राचीनम्। ज्योतिः। प्रदिशेति प्रऽदिशा। दिशन्ता॥३२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ शिल्पिभिः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यो दैव्या होतारा प्रथमा सुवाचा मिमाना यज्ञं यजध्यै मनुषो विदथेषु प्रचोदयन्ता प्रदिशा प्राचीनं ज्योतिर्दिशन्ता कारू भवेतां ताभ्यां शिल्पविज्ञानशास्त्रमध्येयम्॥३२॥
पदार्थः
(दैव्या) देवेषु कुशलौ (होतारा) दातारौ (प्रथमा) प्रख्यातौ (सुवाचा) प्रशस्तवाचौ (मिमाना) विदधतौ (यज्ञम्) सङ्गतिमयम् (मनुषः) मनुष्यान् (यजध्यै) यष्टुम् (प्रचोदयन्ता) प्रेरयन्तौ (विदथेषु) विज्ञानेषु (कारू) शिल्पिनौ (प्राचीनम्) प्राक्तनम् (ज्योतिः) शिल्पविद्याप्रकाशम् (प्रदिशा) वेदादिशास्त्रप्रदेशेन निर्देशेन प्रमाणेन (दिशन्ता) उपदिशन्तौ॥३२॥
भावार्थः
अत्र कारुशब्दे द्विवचनमध्यापकहस्तक्रियाशिक्षकाभिप्रायम्। ये शिल्पिनः स्युस्ते यावद् विजानीयुस्तावत् सर्वमन्येभ्यः शिक्षयेयुः। यत उत्तरोत्तरं विद्यासन्ततिर्वधेत॥३२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब कारीगर लोगों को क्या करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जो (दैव्या) विद्वानों में कुशल (होतारा) दानशील (प्रथमा) प्रसिद्ध (सुवाचा) प्रशंसित वाणी वाले (मिमाना) विधान करते हुए (यज्ञम्) संगतिरूप यज्ञ के (यजध्यै) करने को (मनुषः) मनुष्यों को (विदधेषु) विज्ञानों में (प्रचोदयन्ता) प्रेरणा करते हुए (प्रदिशा) वेदशास्त्र के प्रमाण से (प्राचीनम्) सनातन (ज्योतिः) शिल्पविद्या के प्रकाश का (दिशन्ता) उपदेश करते हुए (कारू) दो कारीगर लोग होवें, उनसे शिल्प विज्ञान शास्त्र पढ़ना चाहिए॥३२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में (कारू) शब्द में द्विवचन अध्यापपक और हस्तक्रियाशिक्षक इन दो शिल्पियों के अभिप्राय से है। जो कारीगर होवें, वे जितनी शिल्पविद्या जानें, उतनी सब दूसरों के लिए शिक्षा करें, जिससे उत्तर-उत्तर विद्या की सन्तति बढ़े॥३२॥
विषय
मुख्य विद्वानों या स्त्री पुरुषों का कर्तव्य । ज्ञानोपदेश ।
भावार्थ
( दैव्या) विद्वानों में कुशल, (होतारा) उत्तम शिक्षा देने वाले, (सुवाचा) शुभ वाणियां बोलने वाले, (मनुषः यजध्यै) मनुष्यों को परस्पर सुसंगत रखने के लिये (यज्ञं मिमाना) यज्ञ, सुव्यवस्थित राष्ट्र का निर्माण करते हुए (विदथेषु) उत्तम विज्ञानों और लाभ के कार्यों में (प्रचोदयन्ता) भली प्रकार प्रेरणा करते हुए (कारू) क्रियाकुशल होकर (प्राचीनं ज्योतिः) प्राचीन, सनातन से प्राप्त वेदमय, ज्योति को ( प्रदिशा) उपदेश से (दिशन्ता) उपदेश करते हुए दो विद्वान् रहें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विद्वांसः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
प्राणापान
पदार्थ
१. हमारे प्राणापान (दैव्या होतारा) = उस (देव) = [प्रभु] को प्राप्त करानेवाले होता हैं। (प्रथमा) = ये इस शरीर में रहनेवाले देवों में प्रथम हैं, इनके जाने पर शरीर की दुर्गति ही क्या, समाप्ति ही हो जाती है, अतः प्राण ही वरिष्ठ व श्रेष्ठ हैं। (सुवाचा) = उत्तम वाणीवाले हैं, प्राणशक्ति की क्षीणता से वाणी भी क्षीण होने लगती है और अपान के ठीक कार्य न करने सेतो वाणी समाप्त ही हो जाती है। २. इस (मनुषः) = मननशील पुरुष के (यजधै) = [यष्टुं] प्रभु से मेल कराने के लिए यज्ञम् मिमाना ये प्राणापान यज्ञों का निर्माण करते हैं। प्राणापान की शक्ति से ही सब यज्ञ चलते हैं। ३. ये प्राणापान साधना करनेवाले मनुष्य को (विदथेषु) = ज्ञानयज्ञों में (प्रचोदयन्ता) = प्रकृष्ट प्रेरणा प्राप्त कराते हैं, अर्थात् प्राणापान का साधक ज्ञानाग्नि की दीप्ति के कारण ज्ञान की रुचिवाला होता है। (कारू) = ये प्राणापान प्रत्येक कार्य को कलापूर्ण ढंग से करनेवाले हैं। शरीर में प्राणापान की शक्ति के ठीक होने पर कार्यों में भी सौन्दर्य व कला प्रकट होती है। प्राणापान की दुर्बलता होने पर कार्य में उत्साह नहीं होता और परिणामतः वहाँ अनाड़ीपन व भद्दापन टपकता है । ४. ये प्राणापान (प्रदिशा) = वेदोपदिष्ट मार्ग से (प्राचीनम् ज्योतिः) = उन्नति के साधनभूत अथवा सनातन [शाश्वत] ज्ञान को (दिशन्ता) = उपदिष्ट करते हैं, अर्थात् प्राणापान की साधना से हृदय का वह नैर्मल्य प्राप्त होता है जिससे अन्तःस्थ प्रभु की ज्योति का हममें आभास होता है। यह ज्योति हमारी निरन्तर उन्नति का कारण बनती है, यह प्राचीन है, हमें आगे ले चलनेवाली है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान की साधना हमें प्रभु से मिलाती है, ज्ञान को बढ़ाती है, हमारे आभास कराती है। कार्यों में सौन्दर्य लाती है, सनातन ज्योति का
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात (कारू) शब्द द्विवचनात आहे. तो शब्द अध्यापक व हस्तक्रिया शिक्षकांबद्दल आलेला आहे. जे कारागीर जितकी हस्तविद्या जाणतात ती त्यांनी इतरांना द्यावी. त्यामुळे ती विद्या उत्तरोत्तर वाढत जाईल.
विषय
कारागीरांनी (कलाकार, शिल्पी) यांनी काय करावे,-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (दैव्या) सर्व विद्वानांत कुशल असलेले (होतारा) जे दोघे शिल्पी वा कारागीर आहेत) ते दानशील (इतरांना ते शिल्प शिकविणारे) आहेत (प्रथमा) ते प्रसिद्ध (सुवाचा) प्रशंसनीय वाणी बोलणारे असून (यज्ञम्) संगतीरूप यज्ञ (यजध्यै) करण्यासाठी (मनुषः) मनुष्यानां (इतरांना) (विदथेषु) विज्ञानक्षेत्रात (प्रचोदयन्ता) प्रेरणा देणारे आहेत. (त्यांनाही विज्ञान वा शिल्प शिकवतात) (प्रदिशा) वेदशास्त्रात सांगितल्याप्रमाणे (प्राचीनम्) ते प्राचीन (तंत्र) अथवा (ज्योतिः) शिल्पविद्या इतरांसाठी प्रकाशित करतात. असे (दिशन्ता) सर्वांना (ज्ञान, विज्ञान, तंत्र) यांचा उपदेश सांगत (कारू) ते जे कुशलतम कारागीर वा शिल्पी आहेत, त्यांच्याकडून सर्वांनी शिल्पविज्ञान शास्त्र शिकले पाहिजे ॥32॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात (कारू) शब्दात द्विवचन आहे, त्यामुळे त्या शब्दातून अध्यापक आणि हस्तकला शिक्षक या दोन्ही शिल्पिजनांचा उल्लेख अभिप्रेत आहे. जे कारागीर वा शिल्पी आहेत, त्यांना जेवढी शिल्पविद्या अवगत असेल, तेवढी त्यानी दुसर्यांना शिकवावी की ज्यायोगे विद्येची उत्तरोत्तर उन्नती होत राहील. ॥32॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O men, learn fine arts from two skilled persons, who are competent amongst the learned, charitably disposed, well-known, sweet-voiced, executors of projects, inducers of men in scientific knowledge, and acts of sacrifice, preachers of the doctrines of the Vedas, and expounders of mechanical knowledge.
Meaning
Two divine high-priests of the first order, scholars of the language (of science and architecture), masters of measurement and design, and expert builders, pointing to the directions of the ancient and eternal light (of the Veda) inspire people to join in scientific yajnas of development and construction.
Translation
May the two divine priests (daivya hotara), foremost and sweet-tongued, come here to arrange sacrifices for the people, who are keen to perform them and may they, as good workers, inspire (others) in assemblies showing right directions with the ancient light. (1)
Notes
Prathamã, first and foremost. fice. Yajadhyai, यजनाय प्रचोदयंतौ, urging to perform sacri Vidatheṣu, यज्ञषु, in sacrifices or assemblies. Kāru, कर्तारौ, active workers; servants. Prācīnam jyotiḥ, ancient light; old usages. Also, the Āhavaniya or sacrificial fire. Disantā, दिशंतौ, guiding; leading; directing.
बंगाली (1)
विषय
অথ শিল্পিভিঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
এখন শিল্পীলোকদের কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যাহারা (দৈব্যা) বিদ্বান্দিগের মধ্যে কুশল (হোতারা) দানশীল (প্রথমা) প্রসিদ্ধ (সুবাচা) প্রশংসিত বাণী যুক্ত (মিমানা) বিধান করিয়া (য়জ্ঞম্) সংগতিরূপ যজ্ঞ (য়জধ্যৈ) করিতে (মনুষা) মনুষ্যদিগকে (বিদথেষু) বিজ্ঞানসকলে (প্রচোদয়ন্তা) প্রেরণা করিয়া (প্রদিশা) বেদশাস্ত্রের প্রমাণ দ্বারা (প্রাচীনম্) সনাতন (জ্যোতিঃ) শিল্পবিদ্যার প্রকাশের (দিশন্তা) উপদেশ করিতে (কারূ) দুই শিল্পী হইবে, তাহাদের নিকট শিল্প বিজ্ঞান শাস্ত্র পাঠ করা উচিত ॥ ৩২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্র (কারূ) শব্দে দ্বিবচন অধ্যাপক ও হস্তক্রিয়াশিক্ষক এই দুইজন শিল্পী দ্বারা অভিপ্রেত । যাহারা শিল্পী হইবে তাহারা যত শিল্পবিদ্যা জানিবে, তত অন্যের জন্যও শিক্ষা করিবে যাহাতে উত্তরোত্তর বিদ্যার সন্ততি বৃদ্ধি হয় ॥ ৩২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
দৈব্যা॒ হোতা॑রা প্রথ॒মা সু॒বাচা॒ মিমা॑না য়॒জ্ঞং মনু॑ষো॒ য়জ॑ধ্যৈ ।
প্র॒চো॒দয়॑ন্তা বি॒দথে॑ষু কা॒রূ প্রা॒চীনং॒ জ্যোতিঃ॑ প্র॒দিশা॑ দি॒শন্তা॑ ॥ ৩২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
দৈব্যেত্যস্য জমদগ্নির্ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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