यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 7
ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव्य ऋषिः
देवता - अश्विनौ देवते
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
69
प्र॒थ॒मा वा॑ꣳसर॒थिना॑ सु॒वर्णा॑ दे॒वौ पश्य॑न्ताै॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑।अपि॑प्रयं॒ चोद॑ना वां॒ मिमा॑ना॒ होता॑रा॒ ज्योतिः॑ प्र॒दिशा॑ दि॒शन्ता॑॥७॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒थ॒मा। वा॒म्। स॒र॒थिनेति॑ सऽर॒थिना॑। सु॒वर्णेति॑ सु॒ऽवर्णा॑। दे॒वौ। पश्य॑न्तौ। भुव॑नानि। विश्वा॑। अपि॑ऽप्रयम्। चोद॑ना। वा॒म्। मिमा॑ना। होता॑रा। ज्योतिः॑। प्र॒दि॑शेति॑ प्र॒ऽदिशा॑। दि॒शन्ता॑ ॥७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रथमा वाँ सरथिना सुवर्णा देवौ पश्यन्तौ भुवनानि विश्वा । अपिप्रयञ्चोदना वाम्मिमाना होतारा ज्योतिः प्रदिशा दिशन्ता ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रथमा। वाम्। सरथिनेति सऽरथिना। सुवर्णेति सुऽवर्णा। देवौ। पश्यन्तौ। भुवनानि। विश्वा। अपिऽप्रयम्। चोदना। वाम्। मिमाना। होतारा। ज्योतिः। प्रदिशेति प्रऽदिशा। दिशन्ता॥७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथाऽध्ययनाऽध्यापने कथं स्यातामित्याह॥
अन्वयः
हे विद्यार्थिनौ! यौ प्रथमा सरथिना सुवर्णा विश्वा भुवनानि पश्यन्तौ वां चोदना मिमाना ज्योतिः प्रदिशा दिशन्ता होतारा देवौ विद्वांसौ कुर्यातां यथा त्वमहमपि प्रयन्तथा वां युवां तौ प्राप्नुतम्॥७॥
पदार्थः
(प्रथमा) आदिमौ (वाम्) युवयोः (सरथिना) रथिभिः सह वर्त्तमानौ (सुवर्णा) शोभनो वर्णो ययोस्तौ (देवौ) देदीप्यमानौ (पश्यन्तौ) समीक्षमाणौ (भुवनानि) निवासाऽधिकरणानि (विश्वा) सर्वाणि (अपिप्रयम्) प्रीणामि। ण्यन्ताल्लुङ्प्रयोगोऽयम् (चोदना) प्रेरणानि कर्माणि (वाम्) युवाम् (मिमाना) निश्चेतारौ (होतारा) दातारौ (ज्योतिः) प्रदीप्तिः (प्रदिशा) प्रकर्षेण बोधयन्तौ (दिशन्ता) उच्चारयन्तौ॥७॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्यार्थिनो निष्कापट्येन विदुषः सेवन्ते, ते विद्याप्रकाशं लभन्ते। यदि विद्वांसः कपटालस्ये विहाय सर्वान् सत्यमुपदिशेयुस्तर्हि ते सुखिनः कथं न जायेरन्॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
अब पढ़ना-पढ़ाना कैसे हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे दो विद्यार्थियो! जो (प्रथमा) पहिले (सरथिना) रथ वालों के साथ वर्त्तमान (सुवर्णा) सुन्दर गोरे वर्ण वाले दो विद्वान् (विश्वा) सब (भुवनानि) बसने के आधार लोकों को (पश्यन्तौ) देखते हुए (वाम्) तुम दोनों के (चोदना) प्रेरणारूप कर्मों को (मिमाना) जांचते हुए (ज्योतिः) प्रकाश को (प्रदिशा) अच्छे प्रकार जानते तथा (दिशन्ता) उच्चारण करते हुए तुम को (होतारा) दानशील (देवौ) तेजस्वी विद्वान् करें, जैसे उनको मैं (अपिप्रयम्) तृप्त करता हूँ, वैसे (वाम्) तुम दोनों उन विद्वानों को प्राप्त होओ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्यार्थी लोग निष्कपटता से विद्वानों का सेवन करते हैं, वे विद्या के प्रकाश को प्राप्त होते हैं। जो विद्वान् लोग कपट और आलस्य को छोड़ें, सब को सत्य का उपदेश करें तो वे सुखी कैसे न होवें॥७॥
विषय
उपदेशक और अध्यापक और पक्षान्तर में स्त्री-पुरुषों के परस्पर कर्तव्यों का वर्णन ।
भावार्थ
हे उपदेशक और अध्यापक जनो ! ( वाम् ) तुम दोनों (प्रथमा) सबसे प्रथम, सबसे श्रेष्ठ, ( सरथिनौ ) समानरूप से रथों पर विराजमान, (सुवर्णा) उत्तम वर्ण वाले, (विश्वा भुवना पश्यन्तौ) समस्त लोकों को देखते हुए सूर्य चन्द्र के समान वर्त्तमान (देवौ ) दानशील, द्रष्टा, एवं प्रकाशक होकर रहो । ( वाम् ) तुम दोनों को (अपिप्रयम् ) मैं नित्य तृप्त कर प्रसन्न रखूं | आप दोनों (चोदना मिमाना) नाना वेदानुकूल कर्त्तव्य कर्मों को जानते हुए ( होतारा ) उपादेय पदार्थों का ग्रहण वा दान करते हुए ( प्रदिशा) उत्तम ज्ञान से (ज्योतिः) ज्ञान के प्रकाश को (दिशन्तौ) उपदेश करते रहें । (२) दोनों स्त्री पुरुष, पति पत्नी, ( सरथिनौ ) एक रथ पर चढ़े हुए, (सुवर्णा) उत्तम वर्ण के, (देवौ) एक दूसरे को चाहने वाले, (विश्वा भुवनानि पश्यन्तौ) समस्त लोकों को देखते हुए, ( चोदना मिमानौ ) उत्तम कर्मों को करते हुए, (होतारा) सुखों को परस्पर लेते, देते हुए, (प्रदिशा) उत्कृष्ट मार्ग से ( ज्योतिः दिशन्तौ) ज्ञानज्योति प्रदान करते रहो । (वां अपिप्रयम् ) मैं पुत्र तुम दोनों को आनन्दित करूं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अश्विनौ । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
कैसे बनें?
पदार्थ
१. (वाम्) = तुम दोनों पति-पत्नी को जो [क] (प्रथमा) = अपनी शक्तियों का विस्तार करनेवाले हो और मनुष्यों में प्रथम श्रेणी में स्थित होते हो, [ख] (सरथिना) = मिलकर इस गृहस्थ की गाड़ी को खैंचनेवाले हो, [ग] (सुवर्णा) = स्वास्थ्य के कारण उत्तम वर्णवाले हो अथवा उत्तमता से प्रभु का वर्णन करनेवाले हो, [घ] (देवौ) = दिव्य गुणों से युक्त हो, देववृत्तिवाले हो, [ङ] (विश्वा भुवनानि पश्यन्तौ) = सब प्राणियों का ध्यान करते हो [Look after] अथवा सबसे प्रीतिवाले हो [कान्ति], केवल अपने ही पेट भरने के लिए नहीं जीते, [च] (वाम्) = इन तुम दोनों को जो (चोदना) = शास्त्रीय प्रेरणाओं को (मिमाना) = क्रियारूप में ला रहे हो। [छ] (होतारा) = सदा दानपूर्वक अदन करनेवाले हो, [ज] (प्रदिशा) = बड़े उत्कृष्ट मार्ग से (ज्योतिः) = ज्ञान को (दिशन्ता) = उपदिष्ट करते हो, अर्थात् किसी की हिंसा न करते हुए तुम सबके लिए उत्कृष्ट ज्ञान देते हो, [झ] इस प्रकार के बने तुम दोनों को (अपिप्रयम्) = मैं चाहता हूँ, अर्थात् प्रभु कहते हैं कि मेरी इच्छा है कि तुम ऐसे बनो।
भावार्थ
भावार्थ- पति-पत्नी का प्रयत्न होना चाहिए कि वे 'प्रथम, सरथी, देव, सर्वपालक, वेद- प्रेरणानुसार क्रियायों के कर्त्ता, होता तथा ज्ञानोपदेष्टा' बनें।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्यार्थी निष्कपटीपणे विद्वानांचा आश्रय घेतात त्यांना विद्या प्राप्त होते. जे विद्वान कपटीपणा व आळशीपणा सोडून सर्वांना सत्याचा उपदेश करतात ते सुखी का बरे होणार नाहीत?
विषय
अध्ययन-अध्यापनात काय असावे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे दोन विद्याथ्र्यांनो, (प्रथमा) सर्वप्रथम, सर्वप्रधान असे जे (सरथिना) रथासह रथाने जाणारे-येणारे (सुवर्णा) सुंदर गौरवर्णीय दोन विद्वान आहेत, ते (विश्वा) समस्त (भुवनानि) निवासाचे लोक जे (ग्रह-नक्षत्रादींना) (पश्यन्तौ) पाहत (सर्व नक्षत्रादीचे ज्ञान मिळवीत) (वाम्) तुम्हा दोघांना (चोदना) प्रेरणा देत (मिमाना) आणि तुमची परीक्षा घेतात, तसेच (ज्योति) सूर्यादीच्या प्रकाशाला (प्रदिशा) आणि दिशांना चांगल्याप्रकारे जाणत (दिशन्ता) तुम्हाला उच्चारणादी) शिकवीत (होतारा) दानशील व (देवौ) तेजस्वी विद्वान करतील, ज्याप्रमाणे ते तुम्हाला विद्वान करतात, त्याप्रमाणे मी (एक विद्वान) त्या दोघांना (अपप्रियम्) तृप्त संतुष्ट वा प्रसन्न करतो. (वाम्) तुम्ही दोघेही माझ्याप्रमाणे त्यांना प्राप्त व्हा (संतुष्ट करा) ॥7॥
भावार्थ
भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जे विद्यार्थी निष्कपट होऊन विद्वज्जनांचा संग करतात, ते विद्येच्या प्रकाशाने प्रकाशमान होतात. जे विद्वान कपट आणि आळस यांचा त्याग करून सर्वांना सत्योपदेश करतील, तर ते विद्वान सुखी आनंदी का बरे होणार नाहीत? ॥7॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O teacher and preacher, ye both, excellent amongst all, borne on one car, bright coloured, beholding all creatures, be charitable, seers, and spreaders of light. I always keep ye happy and contented. Ye both, knowing the vedic rules and ordinances, charitable in disposition, preach the light of knowledge, with your supreme intellect.
Meaning
I love and admire you both, lights of the world (teachers like the Ashvins or like the dawn and the twilight), first and foremost to move, riding the same chariot, handsome of form, brilliant in bearing, watching the entire regions of the world, inspiring, measuring and ascertaining the facts of life, two high-priests of life and learning, and filling the quarters of space with light for both of you (learners).
Translation
(O sacrificer and sacrificer's wife), I have pleased your divine priests (hotara), who are first and foremost, riding on a common chariot, fair-coloured, two divinities overseeing all the worlds, urging both of you to pious actions, and illuminating all the regions for your guidance. (1)
Notes
Sarathina, सरथिनौ, those two riding one and the same chariot; constant companions. Suvarṇā, सुवर्णौ, of fair complexion. Apiprayam, अहं प्रीणितवानस्मि, I have pleased. Chodana,चोदनौ, urging to good actions. Mimänä, निर्मिमाणौ, good builders. Pradisa, with your guidance.
बंगाली (1)
विषय
অথাऽধ্যয়নাऽধ্যাপনে কথং স্যাতামিত্যাহ ॥
এখন পঠন-পাঠন কীভাবে হইবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে দুইজন বিদ্যার্থীগণ ! যে (প্রথমা) প্রথম (সরথিনা) রথীদের সহ বর্ত্তমান (সুবর্ণা) সুন্দর গৌর বর্ণযুক্ত দুই বিদ্বান্ (বিশ্বা) সকল (ভূবনানি) নিবাস করিবার আধার ভুবন সকলকে (পশ্যন্তী) দেখিয়া (বাম্) তোমরা উভয়ের (চোদনা) প্রেরণারূপ কর্মকে (মিমানা) নিরীক্ষণ করিয়া (জ্যোতিঃ) প্রকাশকে (প্রদিশা) সম্যক্ প্রকারে জানে তথা (দিশন্তা) উচ্চারণ করিয়া তোমাকে (হোতারঃ) দানশীল (দেবৌ) তেজস্বী বিদ্বান্ করিবে তদ্রূপ তাহাদের আমি (অপিপ্রয়ম্) তৃপ্ত করি সেইরূপ (বাম্) তোমরা উভয়ে সেই সব বিদ্বান্দেরকে প্রাপ্ত হও ॥ ৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সব বিদ্যার্থীগণ নিষ্কপটতা পূর্বক বিদ্বান্দিগের সেবন করেন তাহারা বিদ্যার প্রকাশ প্রাপ্ত হয়, যে সব বিদ্বান্গণ কপট ও আলস্যকে ত্যাগ করিয়া সকলকে সত্যের উপদেশ করে তাহারা সুখী কী করিয়া হইবে না? ॥ ৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্র॒থ॒মা বা॑ꣳসর॒থিনা॑ সু॒বর্ণা॑ দে॒বৌ পশ্য॑ন্তৌ॒ ভুব॑নানি॒ বিশ্বা॑ ।
অপি॑প্রয়ং॒ চোদ॑না বাং॒ মিমা॑না॒ হোতা॑রা॒ জ্যোতিঃ॑ প্র॒দিশা॑ দি॒শন্তা॑ ॥ ৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্রথমেত্যস্য বৃহদুক্থো বামদেব্য ঋষিঃ । অশ্বিনৌ দেবতে । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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