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यजुर्वेद अध्याय - 3

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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 10
    ऋषि: - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - पूर्वार्द्धस्याग्निरुत्तरार्द्धस्य सूर्यश्च देवते छन्दः - गायत्री,भूरिक् गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    स॒जूर्दे॒वेन॑ सवि॒त्रा स॒जू रात्र्येन्द्र॑वत्या। जु॒षा॒णोऽअ॒ग्निर्वे॑तु॒ स्वाहा॑। स॒जूर्दे॒वेन॑ सवि॒त्रा स॒जूरु॒षसेन्द्र॑वत्या। जु॒षा॒णः सूर्यो॑ वेतु॒ स्वाहा॑॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वेन॑। स॒वि॒त्रा। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। रात्र्या॑। इन्द्र॑व॒त्येतीन्द्र॑ऽवत्या। जु॒षा॒णः। अ॒ग्निः। वे॒तु॒। स्वाहा॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वेन॑। स॒वि॒त्रा। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। उ॒षसा। इन्द्र॑व॒त्येतीन्द्र॑ऽवत्या। जु॒षा॒णः। सूर्यः॑। वे॒तु॒। स्वाहा॑ ॥१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या । जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा । सजूर्देवेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या । जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सजूरिति सऽजूः। देवेन। सवित्रा। सजूरिति सऽजूः। रात्र्या। इन्द्रवत्येतीन्द्रऽवत्या। जुषाणः। अग्निः। वेतु। स्वाहा। सजूरिति सऽजूः। देवेन। सवित्रा। सजूरिति सऽजूः। उषसा। इन्द्रवत्येतीन्द्रऽवत्या। जुषाणः। सूर्यः। वेतु। स्वाहा॥१०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 10
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    भौतिकावग्निसूर्यौ कस्य सत्तया वर्तेत इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    अयमग्निर्देवेन सवित्रा जगदीश्वरेणोत्पादितया सृष्ट्या सह सजूर्जुषाण इन्द्रवत्या रात्र्या सह स्वाहा जुषाणः सन् वेतु सर्वान् पदार्थान् व्याप्नोति। एवं सूर्य्यो देवेन सवित्रा सकलजगदुत्पादकेन धारितया सृष्ट्या सह सजूर्जुषाण इन्द्रवत्योषसा सह स्वाहा जुषाणः सन् हुतं द्रव्यं वेतु व्याप्नोति॥१०॥

    पदार्थः

    (सजूः) यः समानं जुषते सेवते सः (देवेन) सर्वजगद्द्योतकेन (सवित्रा) सर्वस्य जगत उत्पादकेनेश्वरेणोत्पादितया (सजूः) यः समानं जुषते प्रीणाति सः (रात्र्या) तमोरूपया (इन्द्रवत्या) इन्द्रो बह्वी विद्युद् विद्यते यस्यां तया। अत्र भूम्न्यर्थे मतुप्। स्तनयित्नुरेवेन्द्रः। (शत॰१४.६.९.७) (जुषाणः) यो जुषते सेवते सः (अग्निः) भौतिकः (वेतु) व्याप्नोति। अत्र लडर्थे लोट् (स्वाहा) ईश्वरस्य स्वा वागाहेत्यस्मिन्नर्थे (सजूः) उक्तार्थः (देवेन) सूर्यादिप्रकाशकेन (सवित्रा) सर्वान्तर्यामिना जगदीश्वरेणोत्पादितया (सजूः) उक्तार्थः (उषसा) रात्र्यवसानोत्पन्नया दिवसहेतुना (इन्द्रवत्या) सूर्यप्रकाशसहितयोषसा (जुषाणः) सेवमानः सूर्यलोकः (वेतु) प्राप्नोति। अत्रापि लडर्थे लोट्। (स्वाहा) हुतामाहुतिम्। अयं मन्त्रः (शत॰२.३.१.३७-३९) व्याख्यातः॥१०॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या! यूयं योऽयमग्निरीश्वरेण निर्मितः स तत्सत्तया स्वस्वरूपं धारयन् सन् रात्रिस्थान् व्यवहारान् प्रकाशयति। एवं च सूर्य उषःकालमेत्य सर्वाणि मूर्त्तद्रव्याणि प्रकाशयितुं शक्नोतीति विजानीत॥१०॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    भौतिक अग्नि और सूर्य ये दोनों किस की सत्ता से वर्त्तमान हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    (अग्निः) जो भौतिक अग्नि (देवेन) सब जगत् को ज्ञान देने वा (सवित्रा) सब जगत् को उत्पन्न करने वाले ईश्वर के उत्पन्न किये हुए जगत् के साथ (सजूः) तुल्य वर्तमान (जुषाणः) सेवन करता हुआ (इन्द्रवत्या) बहुत बिजुली से युक्त (रात्र्या) अन्धकार रूप रात्रि के साथ (स्वाहा) वाणी को सेवन करता हुआ (वेतु) सब पदार्थों में व्याप्त होता है, इसी प्रकार (सूर्यः) जो सूर्यलोक (देवेन) सब को प्रकाश करने वाले वा (सवित्रा) सब के अन्तर्यामी परमेश्वर के उत्पन्न वा धारण किये हुए जगत् के साथ (सजूः) तुल्य वर्तमान (जुषाणः) सेवन करता वा (इन्द्रवत्या) सूर्यप्रकाश से युक्त (उषसा) दिन के प्रकाश के हेतु प्रातःकाल के साथ (स्वाहा) अग्नि में होम की हुई आहुतियों को (जुषाणः) सेवन करता हुआ व्याप्त होकर हवन किये हुए पदार्थों को (वेतु) देशान्तरों में पहुँचाता है, उसी से सब व्यवहार सिद्ध करें॥१०॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! तुम लोग जो भौतिक अग्नि ईश्वर ने रचा है, वह इसी की सत्ता से अपने रूप को धारण करता हुआ दीपक आदि रूप से रात्रि के व्यवहारों को सिद्ध करता है। इसी प्रकार जो (सूर्य) प्रातःकाल को प्राप्त होकर सब मूर्तिमान् द्रव्यों के प्रकाश करने को समर्थ है, वही काम सिद्धि करने हारा है, इसको जानो॥१०॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! ईश्वराने जो भौतिक अग्नी निर्माण केलेला आहे तो ईश्वराच्या सामर्थ्यानेच विविध रूपे धारण करतो. दीपक वगैरेच्या माध्यमाने रात्रीचे व्यवहार पार पाडले जातात. याचप्रमाणे प्रातःकाळी सूर्य पदार्थांना प्रकाशित करतो त्या ईश्वरामुळेच हे सर्व कार्य घडते हे जाणा.

    English (2)

    Meaning

    Just as God gives the light of truthful speech to all human beings, so does physical fire give light that illumines all substances. Just as God inculcates knowledge in the souls of all, that man should speak, as he feels in his heart, so does the Sun bring to light all physical objects. Just as God reveals for humanity all the four Vedas, the storehouse of knowledge, so does fire in the shape of lighting exist in the space, and become the source of rain and knowledge. Just as God, through the Vedas displays all sciences, fire, and lightning, so does the Sun develop our physical and spiritual forces. Sun illumines all objects. God is self-Resplendent. This is the manifestation of His Glory.

    Meaning

    May Agni, along with Savita in His creation and the dark night of energy, receive this oblation. May the Sun, along with Savita in His creation and the dawn of morning energy, receive this oblation.

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