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यजुर्वेद अध्याय - 3

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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 24
    ऋषि: - वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराट् गायत्री, स्वरः - षड्जः
    34

    स नः॑ पि॒तेव॑ सू॒नवेऽग्ने॑ सूपाय॒नो भ॑व। सच॑स्वा नः स्व॒स्तये॑॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। नः॒। पि॒तेवेति॑ पि॒ताऽइ॑व। सू॒नवे॑। अग्ने॑। सू॒पा॒य॒न इति॑ सुऽउ॒पा॒य॒नः। भ॒व॒। सच॑स्व। नः॒। स्व॒स्तये॑ ॥२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नः पितेव सूनवे ग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। नः। पितेवेति पिताऽइव। सूनवे। अग्ने। सूपायन इति सुऽउपायनः। भव। सचस्व। नः। स्वस्तये॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 24
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथाग्रिमेण मन्त्रेणेश्वर एवोपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे अग्ने जगदीश्वर! यस्त्वं कृपया सूनवे पितेव नोऽस्मभ्यं सूपायनो भवसि, स त्वं नोऽस्मान् स्वस्तये सततं सचस्व संयोजय॥२४॥

    पदार्थः

    (सः) जगदीश्वरः (नः) अस्मभ्यम् (पितेव) जनक इव (सूनवे) औरसाय सन्तानाय। सूनुरित्यपत्यनामसु पठितम्। (निघं॰२.२) (अग्ने) करुणामय विज्ञानस्वरूप सर्वपितः। (सूपायनः) सुष्ठूपगतमयनं ज्ञानं प्रापणं यस्मात् सः (भव) भवसि। अत्र लडर्थे लोट् (सचस्व) संयोजय। अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा॰६.३.१३७] इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (स्वस्तये) सुखाय। अयं मन्त्रः (शत॰२.३.४.३०) व्याख्यातः॥२४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। हे सर्वपितरीश्वर! यथा कृपायमाणो विद्वान् पिता स्वसन्तानान् संरक्ष्य सुशिक्ष्य च विद्याधर्मसुशीलतादिषु संयोजयति, तथैव भवानस्मान् निरन्तरं रक्षित्वा श्रेष्ठेषु व्यवहारेषु संयोजयत्विति॥२४॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब अगले मन्त्र में ईश्वर ही का उपदेश किया है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) जगदीश्वर! जो आप कृपा करके जैसे (सूनवे) अपने पुत्र के लिये (पितेव) पिता अच्छे-अच्छे गुणों को सिखलाता है, वैसे (नः) हमारे लिये (सूपायनः) श्रेष्ठ ज्ञान के देने वाले (भव) हैं, वैसे (सः) सो आप (नः) हम लोगों को (स्वस्तये) सुख के लिये निरन्तर (सचस्व) संयुक्त कीजिये॥२४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे सब के पालन करने वाले परमेश्वर! जैसे कृपा करने वाला कोई विद्वान् मनुष्य अपने पुत्रों की रक्षा कर श्रेष्ठ-श्रेष्ठ शिक्षा देकर विद्या, धर्म अच्छे-अच्छे स्वभाव और सत्य विद्या आदि गुणों में संयुक्त करता है, वैसे ही आप हम लोगों की निरन्तर रक्षा करके श्रेष्ठ-श्रेष्ठ व्यवहारों में संयुक्त कीजिये॥२४॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे सर्वांचे पालन करणाऱ्या ईश्वरा ! एखादा विद्वान आपल्या पुत्रावर कृपादृष्टी ठेवतो व त्याचे रक्षण करतो. त्याला श्रेष्ठ शिक्षण देऊन सत्यविद्या, धर्म इत्यादी चांगले गुण शिकवितो तसेच तूही आमचे निरंतर रक्षण करून आम्हाला श्रेष्ठ कर्मात प्रवृत्त कर.

    English (2)

    Meaning

    Oh God, Thou givest unto us knowledge, as a father to his son. Unite us perpetually with pleasure.

    Meaning

    Agni, as father to the child, be the father, guardian and protector for all of us. Be with us always, for happiness and well-being.

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