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यजुर्वेद अध्याय - 3

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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 29
    ऋषि: - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - बृहस्पतिर्देवता छन्दः - गायत्री, स्वरः - षड्जः
    36

    यो रे॒वान् योऽअ॑मीव॒हा व॑सु॒वित् पु॑ष्टि॒वर्द्ध॑नः। स नः॑ सिषक्तु॒ यस्तु॒रः॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। रे॒वान्। यः। अ॒मी॒व॒हेत्य॑मीऽव॒हा। व॒सु॒विदिति॑ वसु॒ऽवित्। पु॒ष्टि॒वर्द्ध॑न॒ इति॑ पुष्टि॒ऽवर्द्ध॑नः। सः। नः॒। सि॒ष॒क्त्विति सिषक्तुः। यः। तु॒रः ॥२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो रेवान्यो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः । स नः सिषक्तु यस्तुरः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। रेवान्। यः। अमीवहेत्यमीऽवहा। वसुविदिति वसुऽवित्। पुष्टिवर्द्धन इति पुष्टिऽवर्द्धनः। सः। नः। सिषक्त्विति सिषक्तुः। यः। तुरः॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 29
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    यो रेवानमीवहा वसुवित् पुष्टिवर्द्धनस्तुरो ब्रह्मणस्पतिर्जगदीश्वरोऽस्ति, स नोऽस्मान् शुभैर्गुणैः कर्मभिश्च सह सिषक्तु संयोजयतु॥२९॥

    पदार्थः

    (यः) ब्रह्मणस्पतिर्जगदीश्वरः (रेवान्) विद्याधनवान्। अत्र रयिशब्दान्मतुप्। छन्दसीरः (अष्टा॰८.२.१५) इति मकारस्थाने वकारादेशः। रयेर्मतौ सम्प्रसारणं बहुलं वक्तव्यम् (अष्टा॰६.१.३७) इति वार्तिकेन यकारस्थाने सम्प्रसारणादेशश्च। (यः) महान् (अमीवहा) योऽमावानविद्यादिरोगान् हन्ति सः (वसुवित्) यो वसूनि सर्वाणि वस्तूनि यथावद् वेत्ति वेदयति वा सः (पुष्टिवर्द्धनः) पुष्टिं शरीरात्मबलं धातुसाम्यं च वर्द्धयतीति (सः) परमात्मा (नः) अस्मान् (सिषक्तु) संयोजयतु। षच समवय इत्यस्माच्छपः स्थाने बहुलं छन्दसि [अष्टा॰२.४.७६] इति श्लुर्बहुलं छन्दसि [अष्टा॰७.४.७८] इत्यभ्यासस्येकारादेशश्च। (यः) उक्तो वक्ष्यमाणश्च (तुरः) शीघ्रकारी। अयं मन्त्रः (शत॰२.३.४.३५) व्याख्यातः॥२९॥

    भावार्थः

    यदिदं विश्वस्मिन् धनमस्ति तदिदं सर्वं जगदीश्वरस्यैव वर्तते। मनुष्यैर्यादृशी प्रार्थनेश्वरस्य क्रियते, स्वैरपि तादृश एव पुरुषार्थः कर्तव्यः। यथा नैव रेवानितीश्वरस्य विशेषणमुक्त्त्वा श्रुत्वा च कश्चित्कृतकृत्यो भवति, किं तर्हि स्वेनापि परमपुरुषार्थेन धनवृद्धिरक्षणे सततं कार्ये। यथा सोऽमीवहास्ति, तथैव मनुष्यैरपि रोगा नित्यं हन्तव्याः। यथा स वसुविदस्ति, तथैव यथाशक्ति पदार्थविद्या कार्या। यथा स सर्वेषां पुष्टिवर्द्धनस्तथैव सर्वेषां नित्यं पुष्टिर्वर्द्धनीया। यथा स शीघ्रकारी तथैवेष्टानि कार्याणि शीघ्रं कर्तव्यानि। यथा तस्य शुभगुणकर्मप्राप्त्यर्था प्रार्थना क्रियते, तथैव सर्वान् मनुष्यान् परमप्रयत्नेन शुभगुणकर्माचरणेन सह वर्त्तमानान् नित्यं संयोजयत्विति॥२९॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह ईश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    (यः) जो वेदशास्त्र का पालन करने (रेवान्) विद्या आदि अनन्त धनवान् (अमीवहा) अविद्या आदि रोगों को दूर करने वा कराने (वसुवित्) सब वस्तुओं को यथावत् जानने (पुष्टिवर्द्धनः) पुष्टि अर्थात् शरीर वा आत्मा के बल को बढ़ाने और (तुरः) अच्छे कामों में जल्दी प्रवेश करने वा कराने वाला जगदीश्वर है (सः) वह (नः) हम लोगों को उत्तम-उत्तम कर्म वा गुणों के साथ (सिषक्तु) संयुक्त करे॥२९॥

    भावार्थ

    जो इस संसार में धन है सो सब जगदीश्वर का ही है। मनुष्य लोग जैसी परमेश्वर की प्रार्थना करें, वैसा ही उनको पुरुषार्थ भी करना चाहिये। जैसे विद्या आदि धन वाला परमेश्वर है, ऐसा विशेषण ईश्वर का कह वा सुन कर कोई मनुष्य कृतकृत्य अर्थात् विद्या आदि धन वाला नहीं हो सकता, किन्तु अपने पुरुषार्थ से विद्या आदि धन की वृद्धि वा रक्षा निरन्तर करनी चाहिये। जैसे परमेश्वर अविद्या आदि रोगों को दूर करने वाला है, वैसे मनुष्यों को भी उचित है कि आप भी अविद्या आदि रोगों को निरन्तर दूर करें। जैसे वह वस्तुओं को यथावत् जानता है, वैसे मनुष्यों को भी उचित है कि अपने सामर्थ्य के अनुसार सब पदार्थविद्याओं को यथावत् जानें। जैसे वह सब की पुष्टि को बढ़ाता है, वैसे मनुष्य भी सब के पुष्टि आदि गुणों को निरन्तर बढ़ावें। जैसे वह अच्छे-अच्छे कार्यों को बनाने में शीघ्रता करता है, वैसे मनुष्य भी उत्तम-उत्तम कार्यों को त्वरा से करें और जैसे हम लोग उस परमेश्वर की उत्तम कर्मों के लिये प्रार्थना निरन्तर करते हैं, वैसे परमेश्वर भी हम सब मनुष्यों को उत्तम पुरुषार्थ से उत्तम-उत्तम गुण वा कर्मों के आचरण के साथ निरन्तर संयुक्त करे॥२९॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या जगात जी संपत्ती आहे ती सर्व ईश्वराची आहे. माणसांनी परमेश्वराची जशी प्रार्थना केली पाहिजे. तसाच पुरुषार्थही केला पाहिजे. परमेश्वर विद्या इत्यादींनी ऐश्वर्यवान आहे हे केवळ ऐकून किंवा म्हणून कोणी विद्वान किंवा धनवान होऊ शकत नाही. त्यासाठी पुरुषार्थानेच विद्या इत्यादी धनाची वृद्धी व रक्षण केले पाहिजे. परमेश्वर जसा अविद्या वगैरे रोगांना दूर करणारा आहे तसेच माणसांनीही अविद्या इत्यादी रोगांपासून दूर राहावे. जसा परमेश्वर सर्व पदार्थांना यथायोग्य जाणतो तसेच सर्व माणसांनी सर्व पदार्थविद्या आपल्या सामर्थ्यानुसार यथायोग्यरीत्या जाणावी. जसा तो सर्वांना बलवान करतो तसेच माणसांनी सर्वांना बलवान करावे. जसे तो चांगले कार्य लवकर करतो तसेच सर्व माणसांनी लवकरात लवकर उत्तम कार्य करावे. आपण जसे उत्तम कर्म करताना परमेश्वराची प्रार्थना करतो तसेच परमेश्वरानेही सर्व माणसांना उत्तम पुरुषार्थाने उत्तम गुण व कर्माचे आचरण करण्यासाठी प्रेरित करावे (ही प्रार्थना होय) .

    English (2)

    Meaning

    God is rich and the dispeller of ignorance. He knows the true nature of all things, and grants us physical and spiritual strength. He is prompt. May he goad us to noble deeds.

    Meaning

    May He who is Lord of wealth and knowledge, who destroys pain, grief and disease, who is the knower of all the good things of the world, who gives all physical and spiritual strength, who is keen and instant in doing and having things done, may He bless us with all virtues and good actions.

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