यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 55
ऋषि: - बन्धुर्ऋषिः
देवता - मनो देवता
छन्दः - निचृत् गायत्री,
स्वरः - षड्जः
41
पुन॑र्नः पितरो॒ मनो॒ ददा॑तु॒ दैव्यो॒ जनः॑। जी॒वं व्रात॑ꣳसचेमहि॥५५॥
स्वर सहित पद पाठपुनः॑। नः॒। पि॒त॒रः॒। मनः॑। ददा॑तु। दैव्यः॑। जनः॑। जी॒वम्। व्रा॑तम्। स॒चे॒म॒हि॒ ॥५५॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनर्नः पितरो मनो ददातु दैव्यो जनः । जीवँ व्रातँ सचेमहि ॥
स्वर रहित पद पाठ
पुनः। नः। पितरः। मनः। ददातु। दैव्यः। जनः। जीवम्। व्रातम्। सचेमहि॥५५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनः शब्देन बुद्धिरुपदिश्यते॥
अन्वयः
हे पितरो जनका विद्याप्रदाश्च भवच्छिक्षया दैव्यो जनो विद्वान् नोऽस्मभ्यं पुनः पुनर्मनोधारणावतीं बुद्धिं ददातु, येन वयं जीवं व्रातं सचेमहि समवेयाम॥५५॥
पदार्थः
(पुनः) अस्मिन् जन्मनि पुनर्जन्मनि वा (नः) अस्मभ्यम् (पितरः) पान्त्यन्नसुशिक्षाविद्यादानेन तत्सम्बुद्धौ (मनः) धारणावतीं बुद्धिम् (ददातु) प्रयच्छतु (दैव्यः) यो देवेषु विद्वत्सु जातो विद्वान्। अत्र देवाद्यञञौ (अष्टा॰४.१.८५) इति वार्तिकेन प्राग्दीव्यतीयान्तर्गते जातेऽर्थे यञ् प्रत्ययः। (जनः) यो विद्याधर्माभ्यां परोपकारान् जनयति प्रकटयति (जीवम्) ज्ञानसाधनयुक्तम् (व्रातम्) व्रतानां सत्यभाषणादीनां समूहस्तत् (सचेमहि) समवेयाम। अयं मन्त्रः (शत॰२.६.१.३९) व्याख्यातः॥५५॥
भावार्थः
नहि मनुष्याणां विदुषां मातापित्राचार्याणां च सुशिक्षया विना मनुष्यजन्मसाफल्यं सम्भवति, न च मनुष्यास्तया विना पूर्णं जीवनं कर्म च समवैतुं शक्नुवन्ति, तस्मात् सर्वदा मातापित्राचार्यैः स्वसन्तानानि सम्यगुपदेशेन शरीरात्मबलवन्ति कर्त्तव्यानीति॥५५॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर मन शब्द से बुद्धि का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे (पितरः) उत्पादक वा अन्न, शिक्षा वा विद्या को देकर रक्षा करने वाले पिता आदि लोग आपकी शिक्षा से यह (दैव्यः) विद्वानों के बीच में उत्पन्न हुआ (जनः) विद्या वा धर्म से दूसरे के लिये उपकारों को प्रकट करने वाला विद्वान् पुरुष (नः) हम लोगों के लिये (पुनः) इस जन्म वा दूसरे जन्म में (मनः) धारणा करने वाली बुद्धि को (ददातु) देवे, जिससे (जीवम्) ज्ञानसाधनयुक्त जीवन वा (व्रातम्) सत्य बोलने आदि गुण समुदाय को (सचेमहि) अच्छे प्रकार प्राप्त करें॥५५॥
भावार्थ
विद्वान् माता-पिता आचार्यों की शिक्षा के विना मनुष्यों का जन्म सफल नहीं होता और मनुष्य भी उस शिक्षा के विना पूर्ण जीवन वा कर्म के संयुक्त करने को समर्थ नहीं हो सकते। इस से सब काल में विद्वान् माता-पिता और आचार्यों को उचित है कि अपने पुत्र आदि को अच्छे प्रकार उपदेश से शरीर और आत्मा के बल वाले करें॥५५॥
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान आई-वडील व गुरू यांच्या संस्कारावाचून मनुष्य जन्म सफल होत नाही. माणसे ही अशा प्रकारच्या संस्कारावाचून पूर्ण जीवन जगण्यास किंवा कर्म करण्यास समर्थ होऊ शकत नाहीत. त्यासाठी विद्वान माता-पिता व आचार्य यांनी आपल्या पुत्रांना चांगला उपदेश करून त्यांचे शरीर व आत्मबल वाढवावे.
English (2)
Meaning
O venerable elders, may this man endowed with godly qualities, give us in this and the next life, intellect whereby we may enjoy a long life and perform noble deeds.
Meaning
May this wonderful sagely man, with the blessings of our forefathers who protected, prepared and shaped him, help us regain, here and hereafter, a noble mind and intelligence, so that with him we live a virtuous life of discipline and holy vows.
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