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यजुर्वेद अध्याय - 3

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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 59
    ऋषिः - बन्धुर्ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - स्वराट् गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    भे॒ष॒जम॑सि भेष॒जं गवेऽश्वा॑य॒ पुरु॑षाय भेष॒जम्। सु॒खं मे॒षाय॑ मे॒ष्यै॥५९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भे॒ष॒जम्। अ॒सि॒। भे॒ष॒जम्। गवे॑। अश्वा॑य। पुरु॑षाय। भे॒ष॒जम्। सु॒खमिति॑ सु॒ऽखम्। मे॒षाय॑। मे॒ष्यै ॥५९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भेषजमसि भेषजङ्गवे श्वाय पुरुषाय भेषजम् । सुखम्मेषाय मेष्यै ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    भेषजम्। असि। भेषजम्। गवे। अश्वाय। पुरुषाय। भेषजम्। सुखमिति सुऽखम्। मेषाय। मेष्यै॥५९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 59
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे रुद्र जगदीश्वर! यः शरीररोगनाशकत्वाद् भेषजमस्यात्मरोगदूरीकरणाद् भेषजमस्येवं सर्वेषां दुःखनिवारकत्वाद् भेषजमसि स त्वं नोऽस्मभ्यमस्माकं वा गवेऽश्वाय पुरुषाय मेषाय मेष्यै सुखं देहि॥५९॥

    पदार्थः

    (भेषजम्) शरीरान्तःकरणेन्द्रियात्मनां सर्वरोगाऽपहारकमौषधम् (असि) (भेषजम्) अविद्यादिक्लेशनिवारकम् (गवे) इन्द्रियधेनुसमूहाय (अश्वाय) तुरङ्गाद्याय (पुरुषाय) पुरुषप्रभृतये (भेषजम्) रोगनिवारकम् (सुखम्) सुखं कस्मात्? सुहितं खेभ्यः खं पुनः खनतेः (निरु॰३.१३) (मेषाय) अवये (मेष्यै) तत्स्त्रियै। अयं मन्त्रः (शत॰२.६.२.११) व्याख्यातः॥५९॥

    भावार्थः

    नहि परमेश्वरोपासनेन विना शरीरात्मप्रजानां दुःखापनयो भूत्वा सुखं जायते। तस्मात् सर्वैर्मनुष्यैरीश्वरौषधसेवनेन शरीरात्मप्रजापशूनां प्रयत्नेन दुःखानि निवार्य्य सुखं जननीयमिति॥५९॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे जगदीश्वर! जो आप (भेषजम्) शरीर, अन्तःकरण, इन्द्रिय और गाय आदि पशुओं के रोगनाश करने वाले (असि) हैं (भेषजम्) अविद्यादि क्लेशों को दूर करने वाले (असि) हैं सो आप (नः) हम लोगों के (गवे) गौ आदि (अश्वाय) घोड़ा आदि (पुरुषाय) सब मनुष्य (मेषाय) मेढ़ा और (मेष्यै) भेड़ आदि के लिये (सुखम्) उत्तम-उत्तम सुखों को अच्छी प्रकार दीजिये॥५९॥

    भावार्थ

    परमेश्वर की उपासना के विना किसी मनुष्य का शरीर, आत्मा और प्रजा का दुःख दूर होकर सुख नहीं हो सकता, इससे उसकी स्तुति, प्रार्थना और उपासना आदि के करने और औषधियों के सेवन से शरीर, आत्मा, पुत्र, मित्र और पशु आदि के दुःखों को यत्न से निवृत्त करके सुखों को सिद्ध करना उचित है॥५९॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या उपासनेखेरीज कोणत्याही माणसाच्या शरीराचे, आत्म्याचे व संतानाचे दुःख दूर होऊ शकत नाही. त्यासाठी ईश्वराची स्तुती, प्रार्थना व उपासना करावी आणि औषधी सेवनाने शरीर, आत्मा, पुत्र, मित्र व पशू इत्यादींचे दुःख दूर करण्याचा प्रयत्न करून सुख निर्माण करावे.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, Thou art the healer of the physical, mental and spiritual maladies. Heal, Thou the sufferings of cow, horse and all mankind. grant happiness to ram and ewe.

    Meaning

    You are the panacea, universal cure for the ailments of the body, mind and soul, saviour against the evils of ignorance, injustice and poverty. You are the healer for the cows, horses, humans, rams and their females. You are health and happiness for all.

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কীদৃশ ইত্যুপদিশ্যতে ॥
    পুনরায় সেই পরমেশ্বর কেমন এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে জগদীশ্বর ! আপনি (ভেষজম্) শরীর, অন্তঃকরণ, ইন্দ্রিয় ও গাভী ইত্যাদি পশুদিগের রোগনাশক (অসি) হউন, (ভেষজম্) অবিদ্যাদি ক্লেশ নাশক (অসি) হউন । সুতরাং আপনি (নঃ) আমাদিগের (গবে) গাভী ইত্যাদি (অশ্বায়) অশ্ব ইত্যাদি (পুরুষায়) সকল মনুষ্য (মেষায়) মেষ এবং (মেষ্যৈ) মেষী ইত্যাদির জন্য (সুখম্) উত্তমোত্তম সুখ ভাল প্রকার দিবেন ॥ ৫ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- কোনও মনুষ্যের পরমেশ্বরের উপাসনা ব্যতীত শরীর, আত্মা ও প্রজার দুঃখ দূর হইয়া সুখ হইতে পারেনা, এইজন্য তাঁহার স্তুতি, প্রার্থনা ও উপাসনাদি করিয়া এবং ওষধিগুলি সেবন দ্বারা শরীর, আত্মা, পুত্র, মিত্র ও পশু ইত্যাদির দুঃখ সকল যত্নপূর্বক নিবৃত্ত করিয়া সুখ সিদ্ধ করা উচিত ॥ ৫ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ভে॒ষ॒জম॑সি ভেষ॒জং গবেऽশ্বা॑য়॒ পুরু॑ষায় ভেষ॒জম্ ।
    সু॒খং মে॒ষায়॑ মে॒ষ্যৈ ॥ ৫ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ভেষজমসীত্যস্য বন্ধুর্ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । স্বরাড্ গায়ত্রী ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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