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यजुर्वेद अध्याय - 3

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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 8
    ऋषि: - सर्पराज्ञी कद्रूर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    त्रि॒ꣳश॒द्धाम॒ विरा॑जति॒ वाक् प॑त॒ङ्गाय॑ धीयते। प्रति॒ वस्तो॒रह॒ द्युभिः॑॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रि॒ꣳशत्। धाम॑। वि। रा॒ज॒ति॒। वाक्। प॒त॒ङ्गाय॑। धी॒य॒ते॒। प्रति॑। वस्तोः॑। अह॑। द्युभि॒रिति॒ द्युऽभिः॑ ॥८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिँशद्धाम विराजति वाक्पतङ्गाय धीयते । प्रति वस्तोरह द्युभिः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिꣳशत्। धाम। वि। राजति। वाक्। पतङ्गाय। धीयते। प्रति। वस्तोः। अह। द्युभिरिति द्युऽभिः॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 8
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    मनुष्यैर्योऽग्निर्द्युभिः प्रतिवस्तोस्त्रिंशद्धाम धामानि विराजति प्रकाशयति, तस्मै पतङ्गाय पतनपातनादिगुणप्रकाशिताय प्रतिवस्तोः प्रतिदिनं विद्वद्भिरह वाग्धीयताम्॥८॥

    पदार्थः

    (त्रिंशत्) पृथिव्यादीनि त्रयस्त्रिंशतो वस्वादीनां देवानां मध्ये पठितानि। अन्तरिक्षमादित्यमग्निं च विहाय त्रिंशत्संख्याकानि (धाम) दधति येषु तानि धामानि। अत्र सुपां सुलुग्॰ [अष्टा॰७.१.३९] इति शसो लुक्। (वि) विशेषार्थे (राजति) प्रकाशयति, अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (वाक्) उच्यते यया सा। वागिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं॰१.११) (पतङ्गाय) पतति गच्छतीति पतङ्गस्तस्मा अग्नये (धीयते) धार्यताम् (प्रति) वीप्सायाम् (वस्तोः) दिनं दिनम्। वस्तोरित्यहर्नामसु पठितम्। (निघं॰१.९) (अह) विनिग्रहार्थे। अह इति विनिग्रहार्थीयः। (निरु॰१.५) (द्युभिः) प्रकाशादिगुणविशेषैः। दिवो द्योतनकर्मणामादित्यरश्मीनाम्। (निरु॰१३.२५)॥८॥

    भावार्थः

    या वाणी प्राणयुक्तेन शरीरस्थेन विद्युदाख्येनाग्निना नित्यं प्रकाश्यते, सा तद् गुणप्रकाशाय विद्वद्भिर्नित्यमुपदेष्टव्या श्रोतव्या चेति॥८॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर वह अग्नि कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    मनुष्यों को जो अग्नि (द्युभिः) प्रकाश आदि गुणों से (प्रतिवस्तोः) प्रतिदिन (त्रिंशत्) अन्तरिक्ष, आदित्य और अग्नि को छोड़ के पृथिवी आदि को जो तीस (धाम) स्थान हैं, उनको (विराजति) प्रकाशित करता है, उस (पतङ्गाय) चलने-चलाने आदि गुणों से प्रकाशयुक्त अग्नि के लिये (प्रतिवस्तोः) प्रतिदिन विद्वानों को (अह) अच्छे प्रकार (वाक्) वाणी (धीयते) अवश्य धारण करनी चाहिये॥८॥

    भावार्थ

    जो वाणी प्राणयुक्त शरीर में रहने वाले बिजुलीरूप अग्नि से प्रकाशित होती है, उसके गुणों के प्रकाश के लिये विद्वानों को उपदेश वा श्रवण नित्य करना चाहिये॥८॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्राणमय शरीरात विद्युतरूपी अग्नीमुळे जी वाणी प्रकट होते ती तेजस्वी व्हावी म्हणून सदैव विद्वानांचा उपदेश ऐकला पाहिजे.

    English (2)

    Meaning

    Gods word rules supreme throughout the world. The Vedas are recited for acquiring the knowledge of God. We should resolutely recite and understand the Vedas everyday with their illuminating sayings.

    Meaning

    Vak, the speech mode of Agni, dominates thirty abodes of life (out of thirty-three) and is used in the service of its lord, Agni, for the expression of the light of knowledge with which the omniscient and omnipresent power illuminates the world.

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