यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 9
ऋषिः - नारायण ऋषिः
देवता - विद्वान् देवता
छन्दः - भुरिगत्यष्टिः
स्वरः - गान्धारः
198
स॒न्धये॑ जा॒रं गे॒हायो॑पप॒तिमार्त्यै॒ परि॑वित्तं॒ निर्ऋ॑त्यै परिविविदा॒नमरा॑द्ध्याऽ एदिधिषुः प॒तिं निष्कृ॑त्यै पेशस्का॒री सं॒ज्ञाना॑य स्मरका॒रीं प्र॑का॒मोद्या॑योप॒सदं॒ वर्णा॑यानु॒रुधं॒ बला॑योप॒दाम्॥९॥
स्वर सहित पद पाठस॒न्धय॒ इति॑ स॒म्ऽधये॑। जा॒रम्। गे॒हाय॑। उ॒प॒प॒तिमित्यु॑पऽप॒तिम्। आर्त्या॒ऽऽइत्याऽऋ॑त्यै। परि॑वित्त॒मिति॒ परि॑ऽवित्तम्। निर्ऋ॑त्या॒ इति॒ निःऽऋ॑त्यै। प॒रि॒वि॒वि॒दा॒नमिति॑ परिऽविविदा॒नम्। अरा॑ध्यै। ए॒दि॒धि॒षुः॒प॒तिमित्यो॑दिधिषुःऽ प॒तिम्। निष्कृ॑त्यै। निःकृ॑त्या॒ इति॒ निःकृ॑त्यै। पे॒श॒स्का॒रीम्। पे॒शः॒का॒रीमिति॑ पेशःका॒रीम्। सं॒ज्ञाना॒येति॑ स॒म्ऽज्ञाना॑य। स्म॒र॒का॒रीमिति॑ स्मरऽका॒रीम्। प्र॒का॒मोद्या॒येति॑ प्रकाम॒ऽउद्या॑य। उ॒प॒सद॒मित्यु॑प॒ऽसद॑म्। वर्णा॑य। अ॒नु॒रुध॒मित्य॑नु॒ऽरुध॑म्। बला॑य। उ॒प॒दामित्यु॑प॒ऽदाम् ॥९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सन्धये जारङ्गेहायोपपतिमार्त्यै परिवित्तन्निरृत्यै परिविविदानमराद्धयाऽएदिधिषुःतिन्निष्कृत्यै पेशस्कारीँ सञ्ज्ञानाय स्मरकारीम्प्रकामोद्यायोपसदँवर्णायानुरुधम्बलायोपदाम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
सन्धय इति सम्ऽधये। जारम्। गेहाय। उपपतिमित्युपऽपतिम्। आर्त्याऽऽइत्याऽऋत्यै। परिवित्तमिति परिऽवित्तम्। निर्ऋत्या इति निःऽऋत्यै। परिविविदानमिति परिऽविविदानम्। अराध्यै। एदिधिषुःपतिमित्योदिधिषुःऽ पतिम्। निष्कृत्यै। निःकृत्या इति निःकृत्यै। पेशस्कारीम्। पेशःकारीमिति पेशःकारीम्। संज्ञानायेति सम्ऽज्ञानाय। स्मरकारीमिति स्मरऽकारीम्। प्रकामोद्यायेति प्रकामऽउद्याय। उपसदमित्युपऽसदम्। वर्णाय। अनुरुधमित्यनुऽरुधम्। बलाय। उपदामित्युपऽदाम्॥९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर सभेश राजन् वा! त्वं सन्धये जारं गेहायोपपतिमार्त्यै परिवित्तं निर्ऋत्यै परिविविदानमराध्यै एदिधिषुःपतिं निष्कृत्यै पेशस्कारीं सञ्ज्ञानाय स्मरकारीं प्रकामोद्यायोपसदं वर्णायानुरुधं बलायोपदां परासुव॥९॥
पदार्थः
(सन्धये) परस्त्रीसमागमनाय प्रवर्त्तमानम् (जारम्) व्यभिचारिणम् (गेहाय) गृहपत्नीसङ्गमाय प्रवृत्तम् (उपपतिम्) यः पत्युः समीपे वर्त्तते तम् (आर्त्यै) कामपीडायै प्रवृत्तम् (परिवित्तम्) कृतविवाहे कनिष्ठे बन्धावविवाहितं ज्येष्ठम् (निर्ऋत्यै) पृथिव्यै प्रवृत्तम्। निर्ऋतिरिति पृथिवीनामसु पठितम्॥ (निघ॰।१।१) (परिविविदानम्) अप्राप्तदाये ज्येष्ठे प्राप्तदायं कनिष्ठम् (अराध्यै) अविद्यमानसंसिद्धये प्रवृत्तम् (एदिधिषुःपतिम्) अकृतविवाहायां ज्येष्ठायां पुत्र्यामूढा कनिष्ठा तस्याः पतिम्। (निष्कृत्यै) प्रायश्चित्ताय प्रवर्त्तमानम् (पेशस्कारीम्) रूपकर्त्रीम् (सञ्ज्ञानाय) सम्यक् ज्ञानं कामप्रबोधं तस्मै प्रवृत्ताम् (स्मरकारीम्) या स्मरं कामं करोति तां दूतिकाम् (प्रकामोद्याय) यः प्रकृष्टैः कामैरुद्यतस्तस्मै (उपसदम्) यः समीपे सीदति तम् (वर्णाय) स्वीकरणाय प्रवृत्तम् (अनुरुधम्) योऽनुरुणद्धि तम् (बलाय) बलवृद्धये (उपदाम्) उप समीपे दीयते ताम्॥९॥
भावार्थः
हे राजन्! यथा परमेश्वरो जारादीन् दुष्टान् दण्डयति, तथा त्वमेतान् दण्डय। यथेश्वरः पापत्यागिनोऽनुगृह्णाति तथा त्वं धार्मिकाननुगृहाण॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर वा सभापति राजन्! आप (सन्धये) परस्त्रीगमन के लिए प्रवृत्त (जारम्) व्यभिचारी को (गेहाय) गृहपत्नी के संग के लिए प्रवृत्त हुए (उपपतिम्) पति की विद्यमानता में दूसरे व्यभिचारी पति को (आर्त्यै) कामपीड़ा के लिए प्रवृत्त हुए (परिवित्तम्) छोटे भाई का विवाह होने में बिना विवाहे ज्येष्ठ भाई को (निर्ऋत्यै) पृथिवी के लिए प्रवृत्त हुए (परिविविदानम्) ज्येष्ठ भाई के दाय को न प्राप्त होने में दाय को प्राप्त हुए हुए छोटे भाई को (अराध्यै) अविद्यमान पदार्थ को सिद्ध करने के लिए प्रवृत्त हुए (एदिधिषुःपतिम्) ज्येष्ठ पुत्री के विवाह के पहिले विवाहित हुई छोटी पुत्री के पति को (निष्कृत्यै) प्रायश्चित के लिए प्रवृत्त हुई (पेशस्कारीम्) शृङ्गार विशेष से रूप करनेहारी व्यभिचारिणी को (सम्, ज्ञानाय) उत्तम कामदेव को जगाने के अर्थ प्रवृत्त हुई (स्मरकारीम्) कामदेव को चेतन कराने वाली दूती को (प्रकामोद्याय) उत्कृष्ट कामों से उद्यत हुए के लिए (उपसदम्) साथी को (वर्णाय) स्वीकार के लिए प्रवृत्त हुए (अनुरुधम्) पीछे से रोकने वाले को (बलाय) बल बढ़ाने के अर्थ (उपदाम्) नजर भेंट वा घूंस को पृथक् कीजिए॥९॥
भावार्थ
हे राजन्! जैसे परमेश्वर जार आदि दुष्टजनों को दण्ड देता, वैसे आप भी इन को दण्ड दीजिए और ईश्वर पाप छोड़ने वालों पर कृपा करता है, वैसे आप धार्मिक जनों पर अनुग्रह किया कीजिए॥९॥
विषय
ब्रह्मज्ञान, क्षात्रबल, मरुद् ( वैश्य ) विज्ञान आदि नाना ग्राह्य शिल्प पदार्थों की वृद्धि और उसके लिये ब्राह्मण, क्षत्रियादि उन-उन पदार्थों के योग्य पुरुषों की राष्ट्ररक्षा के लिये नियुक्ति । त्याज्य कार्यों के लिये उनके कर्त्ताओं को दण्ड का विधान ।
भावार्थ
(४१) (संघये) परस्त्रीगमन के दोष के कारण (जारम् जार, व्यभिचारी पुरुष को राष्ट्र से दूर करे। अथवा (संघये) परराष्ट्र से संधि करने के लिये (जारम् ) उत्तम रीति से बात कहने वाले, वाक्य- -कुशल विद्वान् को नियुक्त करे । (४२) (गेहाय ) घर में विद्यमान स्त्री के प्रतिदुर्बुद्धि से (उपपतिम् ) पति के समान भोग करने में प्रवृत्त उपपति पुरुष को राष्ट्र से दूर करे । (४३) (आत्यै) आत्तिं अर्थात् क्षुधा आदि पीड़ा को दूर करने के लिये (परिवित्तम् ) पर्याप्त धनवान् पुरुष को 'प्राप्त करो। (४४) (निर्ऋत्यै) निर्ऋति अर्थात् भूख, महामारी आदि कष्टों को दूर करने के लिये ( परि- विविदानम् ) सब तरफ से साधनों को प्राप्त - करने वाले को नियुक्त करो । ( ४५) (अराध्या ) कार्य में सिद्धि न हो तो उसको या दरिद्रता को दूर करने के लिये ( एदिधिपः पतिम् ) पूर्व ही धारण करने योग्य सम्पत्ति के पालक स्वामी को प्राप्त करो । लौकिक संस्कृत में छोटे भाई के विवाहित हो जाने पर जो बड़ा अविवाहित है वह 'परिवित्त' और छोटा भाई 'परिविविदान' कहाता है 1 इसी प्रकार बड़ी बहिन के विवाह के पूर्व छोटी बहिन विवाह करे तो वह 'एदिधिप' या 'अग्रे दिधिषु' है उसका पति 'एदिधिषूपति' कहाता है । महर्षि के मत में - (आत्यै) काम पीड़ा में प्रवृत्त हुए (परिवित्तम् ) विवाहित छोटे भाई के अविवाहित बड़े भाई को दूर करो। अर्थात् उसका भी विवाह करो । या राजा ऐसे नियम बनावे कि बड़े भाई के पहले छोटे भाई का विवाह न हो। इससे स्त्री की अभिलापा के कारण गृहकलह न होंगे । (निर्ऋत्यै परिविविदानम् ) निर्ऋति अर्थात् पृथिवी के लेने के लिये प्रवृत्त, परिविविदान बड़े भाई की उपेक्षा करके दाय भाग लेने वाले छोटे भाई को दूर करो। अर्थात् राजा नियम बना दे कि बड़े भाई की उपेक्षा करके छोटे भाई को जायदाद न मिले। इसी प्रकार ( अराध्यै एदिधिषुः पतिम् ) बड़ी कन्या के अविवाहित रहते हुए भी छोटी कन्या का विवाह करने वाले पुरुष को 'अराधि' अर्थात् अविद्यमान सिद्धि में प्रवृत्त जानकर उसे दूर करो । इसका तात्पर्य यह कि बड़ी कन्या के विवाह हो जाने पर यदि कोई पुरुष अप्राप्तकाला छोटी कन्या से ही विवाह करने में प्रवृत्त हो तो राजा उसको दूर करे अर्थात् राजा ऐसा नियम बना दे कि प्राप्त- काल बड़ी कन्या के होते हुए अप्राप्तकाल छोटी कन्या को कोई विवाह न करें । (४६) (निष्कृत्यै) प्रायश्चित, संताप आदि द्वारा मलशोधन करना, 'निष्कृति' है उसके लिये ( पेशकारीम् ) सुवर्ण को तपा-तपा कर शुद्ध करने की शैली का प्रयोग करो । महर्षि के मत से - प्रायश्चित के लिये (प्रवृत्त) 'पेशकारी' अर्थात् रूप बनाकर बैठने वाली व्यभिचारिणी स्त्री को दूर करो अर्थात् प्रायश्चितों द्वारा मानसिक मलों को दूर करने के लिये ( पेशकारीम् ) रूप बना कर लुभा लेने वाली स्त्रियों को दूर करे, उनके प्रलोभनों से बचे । (४७) ( संज्ञानाय स्मरकारीम् ) ज्ञान को भली प्रकार प्राप्त करने के लिये स्मरण, अनुचिन्तन, पुनः पुनः मनन क्रिया का अभ्यास करो। बार-बार अभ्यास और मनन करने से उत्तम ज्ञान हो जाता महर्षि के मत में - (संज्ञानाय प्रवृताम् स्मरकारी परासुव ) भली प्रकार कामचेष्टा को जगाने में लगी स्मरकारी अर्थात् काम जानने वाली दूती को दूर करो। इससे काम - प्रबोध न होगा । (४८) (प्रकामोद्याय) उत्तमः कामना से कहने के लिये (उपसदम् ) निकटतम व्यक्ति को ही प्राप्त करे । अर्थ -- उत्तम इच्छाओं के कथन वा यथेष्ट विषयों पर विवाद द्वारा निर्णय करने के लिये ( उपसदम् ) समीप स्थित होकर विचार करने वाली उपसमिति को प्रयुक्त करो अथवा यथेष्ट बातचीत करने के लिये निकटतम मित्र को प्राप्त करो । ( ४९) (वर्णाय ) किसी बात को स्वीकार करा देने के लिये ( अनुरुधम् ) अनुरोध करने वाले पुरुष की नियुक्ति करो। (५०) ( बलाय उपदाम् ) बल अर्थात् सैन्य बल की वृद्धि के लिये उनमें अधिक, उत्साह बढ़ाने के लिये ( उपदाम् ) भेट पुरस्कार देने वाले पुरुष को नियुक्त करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वराडत्यष्टिः । गांधारः ॥
विषय
सन्धि के लिए जार को
पदार्थ
४१. (सन्धये जारम्) = सन्धि के लिए वृद्ध [जीर्ण] पुरुष को प्राप्त करे। ये वृद्ध पुरुष शान्ति से बात कर सकते हैं और इन्हें एक लम्बा अनुभव प्राप्त हो चुका होता है, अतः ये सन्धि के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं। ४२. (गेहाय) = घर की रक्षा के लिए (उपपतिम्) = एक उपसंरक्षक [Assistant Guard] को नियुक्त करे। स्वयं तो राजा राजकार्यों में व्यस्त रहेगा न कि घर की ही रक्षा करता रहेगा। ४३. (आर्त्यै) = पीड़ा को दूर करने के लिए परिवित्तम्सब प्रकार से ज्ञान प्राप्त करनेवाले को प्राप्त करे। सब प्रकार का सच्चा ज्ञान [true information] प्राप्त करके कष्ट के समय पर उसका उपयोग करके लोगों का कष्टों से संरक्षण करना इसका काम होगा। ४४. (निर्ऋत्यै) = भूख, महामारी आदि कष्टों को दूर करने के लिए (परिविविदानम्) = सब ओर से साधनों को प्राप्त करनेवाले को नियुक्त करे। ४५. (अराद्धयै) = दरिद्रता को दूर करने के लिए (एदिधिषुः पतिम्) = सबसे प्रमुख धारण करने योग्य सम्पत्ति के पालक को प्राप्त करे [अग्रे दिधिषति धारयितुमिच्छति ] पिछले तीन वाक्यों का अर्थ इस रूप में भी होता है कि बड़े भाई के अविवाहित होते हुए विवाहित होनेवाले छोटे भाई को पीड़ा [परिवित्तम् ] के लिए प्राप्त करता है। बड़े भाई की उपेक्षा करके दायभाग लेनेवाले छोटे भाई को [परिविविदानम्] निर्ऋति महान् कष्ट के लिए जाने। बड़ी कन्या के रहते छोटी के साथ विवाह करनेवाले (एदिधिषुः पतिम्) = व्यक्ति को असमृद्धि के लिए जाने। इसलिए राजा कानून द्वारा इन तीनों स्थितियों पर प्रतिबन्ध लगाये । ४६. (निष्कृत्यै) = सुधारने के लिए (पेशस्कारीम्) = सौन्दर्य बढ़ाने के साधनों को बनानेवाले को प्राप्त करे। ४७. (संज्ञानाय) = उत्तम ज्ञान के लिए (स्मरकारीम्) = स्मरण करानेवाली क्रिया को प्राप्त करे। ४८ (प्रकामोद्याय) = यथेष्ठ बातचीत करने के लिए, जी खोलकर बात करने के लिए (उपसदम्) = निकटतम मित्र को प्राप्त करे। ४९. (वर्णाय अनुरुधम्) = किसी बात को स्वीकार करा देने के लिए उचित ढंग से अनुरोध करनेवाले पुरुष को नियत करे। ५०. (बलाय उपदाम्) = बल की वृद्धि के लिए भेंट व पुरस्कार देनेवाले को प्राप्त करे । पुरस्कार देने से सैनिकों का उत्साह निश्चितरूप से बढ़ेगा।
भावार्थ
भावार्थ - राजा राष्ट्र में सन्धि आदि कार्यों के लिए उपयुक्त व्यक्तियों को नियत करे ।
मराठी (2)
भावार्थ
हे राजा ! परमेश्वर जसा व्यभिचारी व दुष्ट पुरुषांना दंड देतो तसे तू ही त्यांना दंड दे पापापासून दूर राहणाऱ्यावर ईश्वर कृपा करतो तसा तूही धार्मिक माणसांवर अनुग्रह कर.
विषय
पुन्हा, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे जगदीश्वर वा हे राजन आपण (सन्धये) परस्त्रीगमनाकरितां आसुसलेल्या (जारम्) व्यभिचारी व्यक्तीला (त्या कर्मापासून परावृत्त करा) (गेहाय) गृहपत्नीच्या समागमासाठी प्रवृत्त (उपपतिम्) व्यभिचारी मनुष्याला की जो स्त्रीचा पती जीवित असूनही त्या स्त्रीवर कुदृष्टि ठेवतो, त्याला (त्या वृत्तीपासून पृथक करा) (आर्त्यैः) कामवासनेमुळे अंध झालेल्या (परिवित्तम्) मोठा भाऊ की जो अविवाहित असून धाकट्या भावाच्या विवाहात काममूढ झाला आहे, (भावाच्या पत्नीवर कुदृष्टी ठेवतो आहे) अशा ज्येष्ठ भावाला (सद्बुद्धी द्या) (निऋत्यै) जमिनीसाठी (परिविविदानम्) ज्येष्ठ भावाला डावलून जो धाकटा भाऊ दायभाग म्हणजे पितृसंपत्ती बळकावू पाहत आहे (त्या भावाला (तसे करण्यापासून परावृत्त करा) (अराध्यै) अविद्यमान संपत्तीला विद्यमान दाखवून कपट करण्यासाठी प्रवृत्त (एदिधिषुः षतिम्) ज्येष्ठ पुत्री विवाह होण्याआधीच धाकटी पुत्रीच्या पतीला (तसे दुष्कर्म करण्यापासून ऐका) (निष्कृत्य) प्रायश्चित्तासाठी प्रवृत्त (पेशस्कारीम्) श्रृंगार विशेष करून जी व्यभिचारिणी लोकांना मोहवीत होती, तिला पुन्हा ते दुराचार करण्यापासून परावृत्त करा.) (सम्, ज्ञानाय)-कमादेव जागृत करण्यासाठी प्रवृत्त झालेल्या माणसासाठी (स्मरकारीम्) कामदेव शांत करण्याची व्यवस्था करणार्या दूतीला (त्या घृणित कार्यापासून परावृत्त करा) (प्रकामोद्याय) उत्कृष्ट कार्य करणार्या व्यक्तीपासून (उपसदम्) आळशी वा निराश माणसाला दूर करा. (वर्णाय) नवीन उद्यम करणार्या उत्साही व्यक्तीपासून (अनुरूधम्) त्याला मागे ओढणार्या निराशावादी माणसाला पृथक करा आणि (बलाय) शक्ती वा आपले सामर्थ्य वाढविण्यासाठी धडपडणार्या व्यक्तीपासून (उपदाम्) भेटवस्तू वा लाच सारखी प्रलोभनें दूर ठेवा ॥9॥
भावार्थ
भावार्थ - हे राजन् जसा परमेश्वर जार आदी दुष्टजनांना दंडित करतो, तसे आपणही करा, तसेच ज्याप्रमाणे ईश्वर पाप करण्यापासून दूर जाऊ इच्छिणार्यांवर कृपा करतो तसे आपणही धार्मिकजनांवर अनुग्रह करा. ॥9॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, cast aside a lover, who cohabits with anothers wife ; a paramour having illicit connection with a domestic woman ; an unmarried elder brother suffering from the pangs of passion ; younger brother who has married before his elder to inherit his fathers property ; the husband of a younger sister whose elder sister has not been married, for ulterior motives of greed ; a licentious adorned woman who pretends for penance; a lustful go-between woman bent on arousing passions; a by-sitter for garrulity, an obstinate man who insists upon acceptance ; and him who offers presents in the shape of bribe, to gain strength.
Meaning
Keep off the paramour out to meet his mistress; the adulterer heading to the house of his married love; the unmarried elder brother with his eye on the wife of his younger brother; the younger brother grabbing and encroaching upon the elder brother’s share of land; the husband of younger sister entertaining love for the unmarried elder sister-in-law; the self-decorated sex- doll impatient to make up for lost opportunities; the amorous woman excited for sex; the inmate intending to abuse the house-mate; the solicitor trying for acceptance; the corrupt official in search of gratification for work.
Translation
To illegitimate connections a paramour. (1) To cohabitation an illicit lover. (2) To sexual mania the unmarned elder brother of a married younger brother. (3) To misery the married younger brother of an unmarried elder brother. (4) To misfortune the husband of a married younger sister (of an unmarried sister). (5) To neglect a lady who embroiders. (6) To rendezvous a woman dealing in love-charms. (7) To rouse sexual instinct a by-sitter. (8) To acceptance an obstinate person. (9) To strength a briber. (10)
Notes
Sandhi, illegitimate connection. Parivittam, ऊढे कनिष्ठे अनूढं, unmarried person, while his younger brother is married. Parivividānam, अनूठे ज्येष्ठे ऊढवंतंa married person while his elder brother is unmarried. Edidhiṣuḥ patim, husband of a married woman, whose elder sister is unmarried. Peśaskārim, रूपकर्त्रीं, a woman who embroiders. Sainjñānam, rendezvous. Prakämodyāya, for rous ing sexual instinct. Varṇāya, for acceptance, or convassing. Upadām, briber.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে জগদীশ্বর বা সভাপতি রাজন্! আপনি (সন্ধয়ে) পরস্ত্রীগমনের জন্য প্রবৃত্ত (জারম্) ব্যভিচারীকে (গেহায়) গৃহপত্নীর সঙ্গের জন্য প্রবৃত্ত (উপপতিম্) পতির বিদ্যমানতায় অন্য ব্যভিচারী পতিকে (আর্ত্যৈ) কামপীড়ার জন্য প্রবৃত্ত (পরিবিত্তম্) কনিষ্ঠ ভ্রাতার বিবাহ হওয়ায় কিন্তু জেষ্ঠ ভ্রাতার বিবাহ না হওয়াকে (নিরৃত্যৈ) পৃথিবীর জন্য প্রবৃত্ত (পরিবিবাদনম্) জ্যেষ্ঠ ভ্রাতার দায় অপ্রাপ্ত হওয়ায় কিন্তু দায়প্রাপ্ত কনিষ্ঠ ভ্রাতাকে (অরাধ্যৈ) অবিদ্যমান পদার্থকে সিদ্ধ করিতে প্রবৃত্ত (এদিধিষুপতিম্) জ্যেষ্ঠা কন্যার বিবাহের পূর্বে বিবাহিত । কনিষ্ঠা কন্যার পতিকে (নিষ্কৃত্যৈ) প্রায়শ্চিত্তের জন্য প্রবৃত্ত (পেশস্কারীম্) শৃঙ্গার বিশেষ দ্বারা রূপকর্ত্রী ব্যভিচারিণীকে (সম, জ্ঞানায়) উত্তম কামদেবকে জাগ্রত করিবার জন্য প্রবৃত্ত (স্মরকারীম্) কামদেবকে চেতন করাইয়া থাকে যে দূতী তাহাকে (প্রকামোদ্যায়) উৎকৃষ্ট কর্ম্মে উদ্যত, তাহাদের জন্য (উপসদম্) সঙ্গীকে (বর্ণায়) স্বীকারের জন্য প্রবৃত্ত (অনুরুধম্) পিছন হইতে অবরুদ্ধ করে যে তাহাকে (বলায়) বল বৃদ্ধি করার জন্য (উপদাম্) উপহার, উপটোকন বা উৎকোচ কে পৃথক করুন ॥ ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে রাজন্! যেমন পরমেশ্বর জারাদি দুষ্টজনকে দন্ড প্রদান করেন সেইরূপ আপনিও ইহাদেরকে দন্ড দিন এবং যেমন ঈশ্বর পাপ ত্যাগকারীদের উপর কৃপা করেন সেইরূপ আপনি ধার্মিক দিগের উপর অনুগ্রহ করিতে থাকুন ॥ ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
স॒ন্ধয়ে॑ জা॒রং গে॒হায়ো॑পপ॒তিমার্ত্যৈ॒ পরি॑বিত্তং॒ নির্ঋ॑ত্যৈ পরিবিবিদা॒নমরা॑দ্ধ্যাऽ এদিধিষুঃ প॒তিং নিষ্কৃ॑ত্যৈ পেশস্কা॒রীᳬं সং॒জ্ঞানা॑য় স্মরকা॒রীং প্র॑কা॒মোদ্যা॑য়োপ॒সদং॒ বর্ণা॑য়ানু॒রুধং॒ বলা॑য়োপ॒দাম্ ॥ ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
সন্ধয় ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । ভুরিগত্যষ্টিশ্ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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