यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 7
ऋषिः - आदित्या देवा वा ऋषयः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
68
परं॑ मृत्यो॒ऽ अनु॒ परे॑हि॒ पन्थां॒ यस्ते॑ऽ अ॒न्यऽ इत॑रो देव॒याना॑त्।चक्षु॑ष्मते शृण्व॒ते ते॑ ब्रवीमि॒ मा नः॑ प्र॒जा री॑रिषो॒ मोत वी॒रान्॥७॥
स्वर सहित पद पाठपर॑म्। मृत्यो॒ऽइति॒ मृत्यो॑। अनु॑। परा॑। इ॒हि॒। पन्था॑म्। यः। ते॒। अ॒न्यः। इत॑रः। दे॒व॒याना॒दिति॑ देव॒ऽयाना॑त् ॥ चक्षु॑ष्मते। शृ॒ण्व॒ते। ते॒। ब्र॒वी॒मि॒। मा। नः॒। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। री॒रि॒षः॒। री॒रि॒ष॒ऽइति॑ रिरिषः। मा। उ॒त। वी॒रान् ॥७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
परम्मृत्योऽअनु परेहि पन्थाँयस्तेऽअन्य इतरो देवयानात् । चक्षुष्मते शृण्वते ते ब्रवीमि मा नः प्रजाँ रीरिषो मोत वीरान् ॥
स्वर रहित पद पाठ
परम्। मृत्योऽइति मृत्यो। अनु। परा। इहि। पन्थाम्। यः। ते। अन्यः। इतरः। देवयानादिति देवऽयानात्॥ चक्षुष्मते। शृण्वते। ते। ब्रवीमि। मा। नः। प्रजामिति प्रऽजाम्। रीरिषः। रीरिषऽइति रिरिषः। मा। उत। वीरान्॥७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्य! यस्ते देवयानादितरोऽन्यो मार्गोऽस्ति, तं पन्थां मृत्यो परेहि मृत्युः परैतु, यतस्त्वं परं देवयानमन्विहि। अत एव चक्षुष्मते शृण्वतेऽहं ते ब्रव्रीमि, यथा मृत्युर्नः प्रजां न हिंस्यादुतापि वीरान्न हन्यात्, तथा त्वं प्रजां मा रीरिष उतापि वीरान् मा रीरिषः॥७॥
पदार्थः
(परम्) प्रकृष्टम् (मृत्यो) मृत्युः। अत्र व्यत्ययः। (अनु) (परा) (इहि) दूरं गच्छतु (पन्थाम्) मार्गम् (यः) (ते) तव (अन्यः) (इतरः) भिन्नः (देवयानात्) देवा विद्वांसो यान्ति यस्मिंस्तस्मात् (चक्षुष्मते) प्रशस्तं चक्षुर्विद्यते यस्य तस्मै (शृण्वते) यः शृणोति तस्मै (ते) तुभ्यम् (ब्रवीमि) उपदिशामि (मा) (नः) अस्माकम् (प्रजाम्) (रीरिषः) हिंस्याः (मा) (उत) अपि (वीरान्) प्राप्तविद्यान् शरीरबलयुक्तान्॥७॥
भावार्थः
मनुष्यैर्यावज्जीवनं तावद्विद्वन्मार्गेण गत्वा परमायुर्लब्धव्यम्। कदाचिद् विना ब्रह्मचर्येण स्वयंवरं कृत्वाऽल्पायुषीः प्रजा नोत्पादनीया, न चैतासां ब्रह्मचर्यानुष्ठानेन वियोगः कर्त्तव्यः॥७॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्य! (या) जो (ते) तेरा (देवयानात्) जिस मार्ग से विद्वान् लोग चलते उससे (इतरः) भिन्न (अन्यः) और मार्ग है, उस (पन्थाम्) मार्ग को (मृत्यो) मृत्यु (परा, इहि) दूर जावे, जिस कारण तू (परम्) उत्तम देवमार्ग को (अनु) अनुकूलता से प्राप्त हो, उसी से (चक्षुष्मते) उत्तम नेत्रवाले (शृण्वते) सुनते हुए (ते) तेरे लिये (ब्रवीमि) उपदेश करता हूं, जैसे मृत्यु (नः) हमारी प्रजा को न मारे और वीर पुरुषों को भी न मारे, वैसे तू (प्रजाम्) सन्तानादि को (मा, रीरिषः) मत मार वा विषयादि से नष्ट मत कर (उत) और (वीरान्) विद्या और शरीर के बल से युक्त वीर पुरुषों को (मा) मत नष्ट कर॥७॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि जीवन पर्यन्त विद्वानों के मार्ग से चल के उत्तम अवस्था को प्राप्त हों और ब्रह्मचर्य के विना स्वयंवर विवाह करके कभी न्यून अवस्था की प्रजा सन्तानों को न उत्पन्न करें और न इन सन्तानों को ब्रह्मचर्य के अनुष्ठान से अलग रक्खें॥७॥
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी आजीवन विद्वानाच्या मार्गाने जावे व उत्तम अवस्था प्राप्त करून घ्यावी. ब्रह्मचर्याखेरीज व स्वयंवर विवाहाखेरीज विवाह करू नये. दुर्बल प्रजा उत्पन्न करू नये व संतानांनाही ब्रह्मचर्य पालन करावयास लावावे.
विषय
मनुष्यांनी काय केले पाहिजे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्य (ते) तुजा (देवयानात्) विद्वज्जन अनुसरत असलेल्या पेक्षां (यः) जो (इतरः) भिन्न (अन्यः) वेगळा असा (यः) जो मार्ग आहे, त्या (पन्थाम्) मार्गावर तू जाऊ नकोस (अर्थात्) विद्वानांच्या मार्गावर जा) त्यामुळे (मृत्यो) मृत्यूला (परा, इहि) तू दूर जा असे म्हणू शकतोस. याप्रकारे तू (परम उत्तम देवमार्गावर (अनु) व्यवस्थितपणे मार्गक्रमण कर (चक्षुष्मते) उत्तम नेत्र असलेल्या आणि (शृण्वते) ऐकू शकणार्या (ते) तुज्यासाठी मी हा (ब्रवीमि) उपदेश करीत आहे. माझी इच्छा आहे की मृत्याने (नः) आमच्या प्रजेची (संतानादीची) हिंसा करू नये. आणि आमच्या वीर पुरुषांपर्यंतही मृत्यू येऊ नये. तू देखील आपल्या (प्रजाम्) संतान आदींची (मा, रीरिषः) हिंसा करू नये. म्हणजे (तू स्वत विषयवासनेत लिप्त होऊ नकोस व संतानांनाही लिप्त होऊ देऊ नकोस) (उत) आणि मृत्यूने अथवा तूदेखील (वीरान्) विद्या, शरीर आणि आत्मिक शक्तीने संपन्न वीर पुरूषांना (मा) नष्ट होऊ देऊ नये. ॥7॥^(अनुवादकाचे वक्तव्य - या मंत्रात काव्यदृष्टीने पाहिल्यास सुंदर असा आलंकारिक अर्थ निघतो, असे मला वाटते. एक योगी वा निष्ठावान ईश्वरभक्त मृत्यूला दरडावून सांगत आहे. अरे मृत्यू, तू दूर जा. आम्हां ईश्वरभक्तांकडे येऊ नकोस. तू दुर्जनांच्या, दुराचार्यांच्या वाटेवर जा. ईश्वरभक्तांकडे तुझे काही चालणार नाही. अरे तुला डोळे आहेत ना? कान आहेत ना? ऐकतेस ना मी सांगितलेलं? पाहतेस ना की हा मार्ग वा हे स्थान सज्जनांचे वा ईश्वरनिष्ठांचे आहे?) हे (वाक्प्रयोग लक्षत शब्दशक्तीद्वारे अर्थ घ्यावा लागतो.) नीट ऐक, आमच्या संततीला आणि आमच्या वीरपुरुषांना तू मारू नकोस वा तू मारू शकत नाहीस. जा इथून दूर जा ॥ हा असा काव्यात्मक आलंकारिक अर्थ घेतल्यास मंत्रातील भाव प्रभावकारी होत आहे.)
भावार्थ
भावार्थ - हेच मनुष्यांच्या हिताचे आहे की त्यांनी आजीवन विद्वानांच्या मार्गाचे अनुसरण करावे आणि त्याद्वारे उत्तम अवस्था प्राप्त करावी. ब्रह्मचर्य धारण पूर्ण करून स्वयंवर विवाह करावा. लहान वयात विवाह करू नये. तसेच लहान वयात विवाह करून संतान आदींना जन्म देऊ नये. स्वतःच्या संततीलाही ब्रह्मचर्य-धारणाविषयी प्रवृत्त करावे. ॥7॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Go hence, O Death, pursue thy special pathway apart from that which the virtuous are wont to tread. To thee that sees and hears, I say, Kill not our offspring, injure not our heroes.
Meaning
Yama, lord of death and reckoning, keep off the path that is other than the divine. Come following the path that is supreme. Lord of vision, lord of the ear, I speak to you in prayer: Do not hurt our children, do not strike the brave.
Translation
O death, go away. Take that read of yours which is different from the path along which the enlightened ones travel. To you, with eyes to see and ears to hear, I say : “Do not destroy our progeny, nor our brave sons. " (1)
Notes
Prajām, offspring; progeny. Sāyaṇa suggests that it means female offsprings here; daughters and granddaughters. Virãn, sons and grandsons. Mrtyu, Death, which is different from Yama, the control ler of death.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মনুষ্যৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
পুনঃ মনুষ্যদিগকে কী করা উচিত এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্য ! (য়ঃ) (তে) তোমার (দেবয়ানাৎ) যে মার্গ দিয়া বিদ্বান্গণ চলে তাহা হইতে (ইতরঃ) ভিন্ন (অন্যঃ) অন্য মার্গ আছে, সেই (পন্থাম্) মার্গ হইতে (মৃত্যো) মৃত্যু (পরা, ইহি) দূরে যাউক, যে কারণে তুমি (পরম্) উত্তম দেবমার্গকে (অনু) আনুকূল্য দ্বারা প্রাপ্ত হও, তদ্দ্বারা (চক্ষুষ্মতে) উত্তম নেত্রবিশিষ্ট (শৃণ্বতে) শ্রবণ করিয়া (তে) তোমার জন্য (ব্রবীমি) উপদেশ করি যেমন মৃত্যু (নঃ) আমাদের প্রজাকে না মারে এবং বীর পুরুষদিগকেও না মারে সেইরূপ তুমি (প্রজাম্) সন্তানাদিকে (মা, রীরিষ) মারিও না বা বিষয়াদি দ্বারা নষ্ট করিও না (উত) এবং (বীরান্) বিদ্যা ও শরীরের বলের সহিত যুক্ত বীর পুরুষদিগকে (মা) নষ্ট করিও না ॥ ৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, সমস্ত জীবন বিদ্বান্দিগের মার্গে চলিয়া উত্তম আয়ু প্রাপ্ত হও এবং ব্রহ্মচর্য্য ব্যতীত স্বয়ম্বর বিবাহ করিয়া কখনও নূ্যন আয়ুর প্রজা সন্তানদিগকে উৎপন্ন করিবে না এবং না এই সব সন্তানদিগকে ব্রহ্মচর্য্যের অনুষ্ঠান হইতে পৃথক রাখিবে ॥ ৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
পরং॑ মৃত্যো॒ऽ অনু॒ পরে॑হি॒ পন্থাং॒ য়স্তে॑ऽ অ॒ন্যऽ ইত॑রো দেব॒য়ানা॑ৎ ।
চক্ষু॑ষ্মতে শৃণ্ব॒তে তে॑ ব্রবীমি॒ মা নঃ॑ প্র॒জাᳬं রী॑রিষো॒ মোত বী॒রান্ ॥ ৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
পরমিত্যস্য সঙ্কসুক ঋষিঃ । য়মো দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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