यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 8
ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
157
शं वातः॒ शꣳ हि ते॒ घृणिः॒ शं ते॑ भव॒न्त्विष्ट॑काः।शं ते॑ भवन्त्व॒ग्नयः॒ पार्थि॑वासो॒ मा त्वा॒भि शू॑शुचन्॥८॥
स्वर सहित पद पाठशम्। वातः॑। शम्। हि। ते॒। घृणिः॑। शम्। ते॒। भ॒व॒न्तु॒। इष्ट॑काः ॥ शम्। ते॒। भ॒व॒न्तु॒। अ॒ग्नयः॑। पार्थि॑वासः। मा। त्वा॒। अ॒भि। शू॒शु॒च॒न् ॥८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं वातः शँ हि ते घृणिः शन्ते भवन्त्विष्टकाः । शन्ते भवन्त्वग्नयः पार्थिवासो मा त्वाभिशूशुचन् ॥
स्वर रहित पद पाठ
शम्। वातः। शम्। हि। ते। घृणिः। शम्। ते। भवन्तु। इष्टकाः॥ शम्। ते। भवन्तु। अग्नयः। पार्थिवासः। मा। त्वा। अभि। शूशुचन्॥८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
सृष्टिस्थाः पदार्थाः कथं मनुष्याणां सुखकारिणः स्युरित्याह॥
अन्वयः
हे जीव! ते वातः शं भवतु, घृणिः शं हि भवतु, इष्टकास्ते शं भवन्तु, पार्थिवासोऽग्नयस्ते शं भवन्त्वेते त्वा माभि शूशुचन्॥८॥
पदार्थः
(शम्) सुखकरः (वातः) वायुः (शम्) (हि) यतः (ते) (घृणिः) रश्मिवान् सूर्य्यः (शम्) (ते) (भवन्तु) (इष्टकाः) वेद्यां चिताः (शम्) (ते) (भवन्तु) (अग्नयः) पावकाः (पार्थिवासः) विदिताः (मा) (त्वा) (अभि) (शूशुचन्) भृशं शोकं कुर्य्युः॥८॥
भावार्थः
हे जीवास्तथैव युष्माभिर्धर्म्ये व्यवहारे वर्त्तितव्यं यथा जीवतां मृतानां च युष्माकं सृष्टिस्था वाय्वादयः पदार्थाः सुखकराः स्युः॥८॥
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टि के पदार्थ मनुष्यों को कैसे सुखकारी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे जीव! (ते) तेरे लिये (वातः) वायु (शम्) सुखकारी हो, (घृणिः) किरणयुक्त सूर्य्य (शम्, हि) सुखकारी हो, (इष्टकाः) वेदी में चयन की हुई र्इंटें (ते) तेरे लिये (शम्) सुखदायिनी (भवन्तु) हों, (पार्थिवासः) पृथिवी पर प्रसिद्ध (अग्नयः) विद्युत् आदि अग्नि (ते) तेरे लिये (शम्) कल्याणकारी (भवन्तु) होवें, ये सब (त्वा) तुझको (मा, अभि, शूशुचन्) सब ओर से शीघ्र शोककारी न हों॥८॥
भावार्थ
हे जीवो! वैसे ही तुमको धर्मयुक्त व्यवहार मे वर्त्तना चाहिये, जैसे जीने वा मरने के बाद भी तुमको सृष्टि के वायु आदि पदार्थ सुखकारी हों॥८॥
पदार्थ
पदार्थ = हे जीव! ( वात: ) = वायु ( शम् ) = सुखकारी हो। ( ते ) = तेरे लिए ( घृणि: ) = सूर्य ( हि ) = भी ( शम् ) = सुखकर हो। ( ते ) = तेरे लिए ( इष्टका: ) = वेदों में चयन की हुई ईंटें अथवा ईंटों से बने हुए स्थान ( शम् ) = सुखप्रद ( भवन्तु ) = हो ( ते ) = तेरे लिए ( पार्थिवासः अग्रयः ) = इस पृथिवी की अग्नि और बिजली आदि ( शम् भवन्तु ) = सुखकारक हो। ये सब अग्रि, वायु, सूर्य, बिजली आदि पदार्थ ( त्वा ) = तुमको ( मा अभिशूशुचन् ) = न दग्ध करें, न सतावें, दुःख और शोक के कारण न हों।
भावार्थ
भावार्थ = दयामय परमपिता परमात्मा, हम सबको वेद द्वारा उपदेश करते हैं कि- हे मेरे प्यारे पुत्रो! आप सबको चाहिये कि आप लोग ऐसे अच्छे धार्मिक काम करो और मेरी भक्ति, प्रार्थना उपासना में लग जाओ, जिससे अग्नि बिजली सूर्यादि सब दिव्य देव, आपको सुखदायक हो। प्यारे पुत्र ये सब पदार्थ आप लोगों को सुख देने के लिए ही मैंने बनाए हैं. दुःख देने के लिए नहीं। दुःख तो अपनी अविद्या, मूर्खता, अधर्म करने और प्रभु से विमुख होने से होता है। आप, पापों को छोड़कर मुझ प्रभु की शरण में आकर सदा सुखी हो जाओ।
विषय
शान्ति की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे पुरुष ! हे जीव ! हे प्रजाजन ! (वात) वायु ( ते शम् ) तुझे सुखकारी और कल्याणकारी हो, ( घृणिः ते शम् ) सूर्य तुझे सुखकर हो (इष्टकाः) ईटों से बने गृह आदि, तथा यज्ञ कर्म वा इष्ट अभिलषित पदार्थ और प्रिय सम्बन्धी जन (ते शं भवन्तु) तुझे शान्तिदायक हों । (पार्थिवास: अग्नयः) पृथिवी पर के प्रसिद्ध अग्नि, विद्युत् आदि सभी (ते शं भवन्तु) तुझे शान्ति प्रदान करें, वे (त्वा) तुझे ( मा अभि शूशुचन् ) न सतावें, दुग्ध न करें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वेदेवाः । अनुष्टुप । गान्धारः ।
विषय
आधिदैविक शान्ति
पदार्थ
गतमन्त्र के अनुसार जब मनुष्य देवयानमार्ग पर चलता है तब उसे किसी प्रकार की आधिदैविक आपत्ति प्राप्त नहीं होती। उसके लिए सब प्राकृतिक देव अनुकूल होते हैं। इस विषय को आठवें व नौवें मन्त्र में इस प्रकार कहते हैं कि १. (वातः शम्) = वायु तेरे लिए शान्ति देनेवाली हो । २. (घृणि:) = [घृ-दीप्ति, A ray of light, sunshine, the sun ] सूर्यकिरणें, धूप तथा स्वयं सूर्य (ते) = तेरे लिए (हि) = निश्चयपूर्वक (शम्) = शान्ति देनेवाला हो । ३. (घृणि:) = [A wave, water] जलतरंगें तथा जल तेरे लिए शान्तिदायक हो। ४. (इष्टकाः) = यज्ञवेदी में चयन की गई ईंटें अथवा दिन तथा रात्रि [अहोरात्राणि वा इष्टकाः - श० ९।१।२।१९] (ते) = तेरे लिए (शं भवन्तु) = शान्ति देनेवाले हों । ५. (ते) = तेरे लिए (पार्थिवासः अग्नयः) = ये पृथिवीलोक की अग्नियाँ (शम् भवन्तु) = शान्ति देनेवाली हों। यहाँ 'अग्नयः' यह बहुवचन पृथिवी के ग्यारह देवों का ध्यान करके रखा गया है। अग्नि इनका मुखिया है, अतः सभी को 'अग्नि' कह दिया है। ६. ये सबके सब (त्वा) = तुझे (मा) = मत (अभिशूशुचन्) = शोकयुक्त करनेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ- हम सातवें मन्त्र के अनुसार मन को मार लेने- [पूर्णरूप से काबू कर लेने] - वाले मृत्यु बनेंगे और देवयानमार्ग को अपनाएँगे तो सब देव हमारे लिए शान्तिकर होंगे।
मराठी (2)
भावार्थ
हे जीवांनो ! जिवंत असेपर्यंत किंवा मृत्यूनंतरही सृष्टीतील वायू इत्यादी पदार्थ तुम्हाला सुखकारक व्हावेत यासाठी धर्मयुक्त व्यवहारात राहा.
विषय
सृष्टीतील पदार्थ मनुष्यांसाठी कशाप्रकारे सुखकारी होतील, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे जीवात्मा (ते) तुझ्यासाठी (वातः) वायू (शम्) सुखकारी होवो (घृणिः) किरणांचा स्वामी सूर्य तुझ्यासाठी (शम्, हि) सुखदायक होवो. (इेष्टकाः) वेदीत चयन केलेल्या विटा (शम्) सुखकारी (भवन्तु) व्हाव्यात. (पार्थिवासः) पृथ्वीवर असणारे (अग्नयः) विविध प्रकारचे अग्नी (भौतिक अग्नी, विद्युत, सूर्यप्रकाश आदी) (ते) तुझ्याकरिता (शम्) कल्याणकारी (भवन्तु) व्हावेत. हे सर्व (त्वा) तुझ्यासाठी (मा, अभि, शूशुचन्) सर्वथा शोकदायक होऊ नयेत. ॥8॥
भावार्थ
भावार्थ - हे जीवात्मानो, तुम्ही नेहमी अशीच धर्ममय कार्यें करावीत की ज्यायोगे जिवंत असतांना अथवा मृत्यू नंतरही तुम्हाला सृष्टीतील वायू आदी पदार्थ सुखकारी व्हावेत. ॥8॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Pleasant to thee be wind and Sun, and pleasant be the bricks to thee. Pleasant to thee be the terrestrial fires : let not these things put thee to grief.
Meaning
May the winds be good and kind to you, cool and refreshing. May the sun be good and kind, warm and soothing. May the vedi and the home be happy and blissful. May the fires of the hearth and yajna be good and fragrant. May nothing on earth cause you sorrow and suffering.
Translation
May the wind be propitious; may the glare of the sun be pleasing to you; may all the desirable things be helpful to you; may the terrestrial fires be auspicious to you and may they not scorch you. (1)
Notes
Ghrnih, glare. घृणिरित्यहर्नाम, the day: सूर्यकिरणः, sunrays. Pārthiväso agnayah, terrestrial fires. Mã tvā abhi śūśucan, may not scorch you.
बंगाली (2)
विषय
সৃষ্টিস্থাঃ পদার্থাঃ কথং মনুষ্যাণাং সুখকারিণঃ স্যুরিত্যাহ ॥
সৃষ্টির পদার্থ মনুষ্যদিগকে কেমন সুখকারী হয়, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে জীব ! (তে) তোমার জন্য (বাতঃ) বায়ু (শম্) সুখকারী হউক (ঘৃণিঃ) কিরণযুক্ত সূর্য্য (শম্), (হি) সুখকারী হউক, (ইষ্টকাঃ) বেদীতে চয়নকৃত ইটগুলি তোমার জন্য (শম্) সুখদায়িনী (ভবন্তু) হউক (পার্থিবাসঃ) পৃথিবীর উপর প্রসিদ্ধ (অগ্নয়ঃ) বিদ্যুতাদি অগ্নি তোমার জন্য (শম্) কল্যাণকারী (ভবন্তু) হউক, এই সব (ত্বা) তোমাকে (মা, অভি শূশুচন্) সকল দিক দিয়া শীঘ্র শোককারী না হয় ॥ ৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- হে জীবগণ ! তোমাকে সেইরূপ ধর্মযুক্ত ব্যবহারে আচরণ করা উচিত, যেমন বাঁচিবার ও মরিবার পরেও তোমার জন্য সৃষ্টির বায়ু আদি পদার্থ সুখকারী হয় ॥ ৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
শং বাতঃ॒ শꣳ হি তে॒ ঘৃণিঃ॒ শং তে॑ ভব॒ন্ত্বিষ্ট॑কাঃ ।
শং তে॑ ভবন্ত্ব॒গ্নয়ঃ॒ পার্থি॑বাসো॒ মা ত্বা॒ভি শূ॑শুচন্ ॥ ৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
শং বাত ইত্যস্য আদিত্যা দেবা বা ঋষয়ঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
পদার্থ
শং বাতঃ শংহি তে ঘৃণিঃ শং তে ভবন্ত্বিষ্টকাঃ ।
শং তে ভবন্ত্বগ্নয়ঃ পার্থিবাসো মা ত্বাভিশূশুচন্।।২৪।।
(যজু ৩৫।৮)
পদার্থঃ হে জীব! (বাতঃ) বায়ু (শম্) সুখকারী হোক। (তে) তোমাদের জন্য (ঘৃণিঃ) সূর্য (হি) ও (শম্) সুখকর হোক। (তে) তোমাদের জন্য (ইষ্টকাঃ) বেদীতে চয়নকৃত ইট অথবা ইট দ্বারা নির্মিত স্থান (শম্ ) সুখপ্রদ (ভবন্তু) হোক । (তে) তোমাদের জন্য (পার্থিবাসঃ অগ্নয়ঃ) এই পৃথিবীর অগ্নি এবং বিদ্যুৎ (শম্ ভবন্তু) সুখকারক হোক। (স্বঃ) এই সকল অগ্নি, বায়ু, সূর্য, বিদ্যুৎ সহ সকল পদার্থ (ত্বা) তোমাদের (মা অভিশূশুচন্ ) না দগ্ধ করুক, না সন্তপ্ত করুক, দুঃখ এবং শোকের কারণ না হোক।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ দয়াময় পরমপিতা পরমাত্মা, আমাদের সবাইকে বেদ দ্বারা উপদেশ করেছেন যে, হে আমার প্রিয় পুত্র! তোমরা সবাই এরূপ উত্তম ধার্মিক কার্য করো এবং আমার ভক্তি প্রার্থনা উপাসনাতে যুক্ত হও, যাতে অগ্নি বিদ্যুৎ সূর্যাদি সকল দিব্য দেব তোমাদের সুখদায়ক হয়। প্রিয় পুত্র! এই সকল পদার্থ তোমাদের সুখ প্রদানের জন্য সৃষ্টি করেছি, দুঃখ দানের জন্য নয়। দুঃখ তো নিজের অবিদ্যা, মূর্খতা, অধর্মাচরণ এবং আমার দিক থেকে বিমুখ হওয়ার কারণে হয়। তোমরা পাপ পরিত্যাগ করে আমার শরণে এসে সর্বদা সুখী হও।।২৪।।
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