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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 17
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - भुरिक्छक्वरी स्वरः - धैवतः
    842

    द्यौः शान्ति॑र॒न्तरि॑क्ष॒ꣳ शान्तिः॑ पृथि॒वी शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोषध॑यः॒ शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑ दे॒वाः शान्ति॒र्ब्रह्म॒ शान्तिः॒ सर्व॒ꣳ शान्तिः॒ शान्ति॑रे॒व शान्तिः॒ सा मा॒ शान्ति॑रेधि॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यौः। शान्तिः॑। अ॒न्तरि॑क्षम्। शान्तिः॑। पृ॒थि॒वी। शान्तिः॑। आपः॑। शान्तिः॑। ओष॑धयः। शान्तिः॑ ॥ वन॒स्पत॑यः। शान्तिः॑। विश्वे॑। दे॒वाः। शान्तिः॑। ब्रह्म॑। शान्तिः॑। सर्व॑म्। शान्तिः॑। शान्तिः॑। ए॒व। शान्तिः॑। सा। मा॒। शान्तिः॑। ए॒धि॒ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यौः शान्तिरन्तरिक्षँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वँ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    द्यौः। शान्तिः। अन्तरिक्षम्। शान्तिः। पृथिवी। शान्तिः। आपः। शान्तिः। ओषधयः। शान्तिः॥ वनस्पतयः। शान्तिः। विश्वे। देवाः। शान्तिः। ब्रह्म। शान्तिः। सर्वम्। शान्तिः। शान्तिः। एव। शान्तिः। सा। मा। शान्तिः। एधि॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    मनुष्यैः कथं प्रयतितव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! या द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिर्मैधि सा शान्तिर्युष्माकमपि प्राप्नोतु॥१७॥

    पदार्थः

    (द्यौः) प्रकाशयुक्तः पदार्थः (शान्तिः) शान्तिकरः (अन्तरिक्षम्) उभयलोकयोर्मध्यस्थमाकाशम् (शान्तिः) (पृथिवी) भूमिः (शान्तिः) (आपः) जलानि प्राणा वा (शान्तिः) (ओषधयः) सोमाद्याः (शान्तिः) (वनस्पतयः) वटादयः (शान्तिः) (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (शान्तिः) (ब्रह्म) परमेश्वरो वेदो वा (शान्तिः) (सर्वम्) अखिलं वस्तु (शान्तिः) (शान्तिः) (एव) (शान्तिः) (सा) (मा) माम् (शान्तिः) (एधि) भवतु॥१७॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! यथा प्रकाशादयः पदार्थाः शान्तिकराः स्युस्तथा यूयं प्रयतध्वम्॥१७॥

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    विषयः

    ईश्वरविषयः

    व्याख्यानम्

    ( द्यौः शान्तिः० ) हे सर्वशक्तिमन् परमेश्वर! त्वद्भक्त्या त्वत्कृपया च द्यौरन्तरिक्षं पृथिवी जलमोषधयो वनस्पतयो विश्वे देवाः सर्वे विद्वांसो ब्रह्म वेदः सर्वं जगच्चास्मदर्थं शान्तं निरुपद्रवं सुखकारकं सर्वदाऽस्तु। अनुकूलं भवतु नः। येन वयं वेदभाष्यं सुखेन विदधीमहि। हे भगवन्! एतया सर्वशान्त्या विद्याबुद्धिविज्ञानारोग्यसर्वोत्तमसहायैर्भवान् मां सर्वथा वर्धयतु तथा सर्वं जगच्च।

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    हिन्दी (6)

    विषय

    मनुष्यों को कैसे प्रयत्न करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो (द्यौः, शान्तिः) प्रकाशयुक्त पदार्थ शान्तिकारक (अन्तरिक्षम्) दोनों लोक के बीच का आकाश (शान्तिः) शान्तिकारी (पृथिवी) भूमि (शान्तिः) सुखकारी निरुपद्रव (आपः) जल वा प्राण (शान्तिः) शान्तिदायी (ओषधयः) सोमलता आदि ओषधियां (शान्तिः) सुखदायी (वनस्पतयः) वट आदि वनस्पति (शान्तिः) शान्तिकारक (विश्वे, देवाः) सब विद्वान् लोग (शान्तिः) उपद्रवनिवारक (ब्रह्म) परमेश्वर वा वेद (शान्तिः) सुखदायी (सर्वम्) सम्पूर्ण वस्तु (शान्तिः) शान्तिकारक (शान्तिरेव) शान्ति ही (शान्तिः) शान्ति (मा) मुझको (एधि) प्राप्त होवे (सा) वह (शान्तिः) शान्ति तुम लोगों के लिये भी प्राप्त होवे॥१७॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे प्रकाश आदि पदार्थ शान्ति करनेवाले होवें, वैसे तुम लोग प्रयत्न करो॥१७॥

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    विषय

    ईश्वरविषयः

    व्याख्यान

    ( द्यौः शान्तिः ) हे सर्वशक्तिमन् भगवन्! आपकी भक्ति और कृपा से ही ‘द्यौः’ जो सूर्यादि लोकों का प्रकाश और विज्ञान है, यह सब दिन हमको सुखदायक हो तथा जो आकाश में पृथिवी जल औषधि वनस्पति वट आदि वृक्ष, जो संसार के सब विद्वान्, ब्रह्म जो वेद, ये सब पदार्थ और इनसे भिन्न भी जो जगत् है, वे सब सुख देनेवाले हमको सब काल में हों कि सब पदार्थ सब दिन हमारे अनुकूल रहें, जिससे इस वेदभाष्य के काम को सुखपूर्वक हम लोग सिद्ध करें। हे भगवन्! इस सब शान्ति से हमको विद्या, बुद्धि, विज्ञान, आरोग्य और सब उत्तम सहाय को कृपा से दीजिये तथा हम लोगों और सब जगत् को उत्तम गुण और सुख के दान से बढ़ाइये।

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    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे सर्वदुःखों की शान्ति करनेवाले ! (द्यौः शान्तिः)  सब लोकों के ऊपर जो आकाश सो सर्वदा हम लोगों के लिए शान्त [निरुपद्रव] सुखकारक ही रहे, (अन्तरिक्षम् शान्तिः) अन्तरिक्ष=मध्यस्थलोक और उसमें स्थित वायु आदि पदार्थ, (पृथिवी शान्तिः)  पृथिवी, पृथिवीस्थ पदार्थ, (आपः शान्तिः)  जल, जलस्थ पदार्थ, (ओषधयः शान्तिः)  ओषधि, तत्रस्थ गुण, (वनस्पतयः शान्तिः)  वनस्पति, तत्रस्थ पदार्थ, (विश्वे देवाः शान्तिः)  विश्वेदेव जगत् के सब विद्वान् तथा विश्वद्योतक वेदमन्त्र, इन्द्रिय, सूर्यादि, उनकी किरण, तत्रस्थ गुण, (ब्रह्म) शान्तिः ब्रह्म=परमात्मा तथा वेदशास्त्र, स्थूल और सूक्ष्म, चराचर जगत् – ये सब पदार्थ हमारे लिए हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन्! आपकी कृपा से (शान्तिः एव शान्तिः)  शान्त [निरुपद्रव] सदानुकूल और सुखदायक हों। (सा मा शान्तिः एधि)  मुझको भी वह शान्ति प्राप्त हो, जिससे मैं भी आपकी कृपा से शान्त, दुष्टक्रोधादि उपद्रवरहित होऊँ तथा सब संसारस्थ जीव भी दुष्टक्रोधादि उपद्रवरहित ही हों ॥ २५ ॥

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    विषय

    शान्तिकरण ।

    भावार्थ

    (द्यौः) महान् आकाश या सूर्य (शान्तिः) शान्ति देने वाला हो (अन्तरिक्षम् ) अन्तरिक्ष, (पृथिवी) पृथिवी, (आपः) जल, (ओषधयः) ओषधिगण, ( वनस्पतयः ) वट आदि बड़े वृक्ष, ( विश्वेदेवाः ) समस्तः विद्वान्गण और तेजोमय पदार्थ और (ब्रह्म) चारों वेद और परमेश्वर और अन्न ये सभी (शान्तिः) शान्ति के देने वाले होने से शान्तिमय हों । (सर्वं शान्तिः) सब पदार्थ शान्तिप्रद हों। (शान्तिः एव शान्तिः) शान्तिः स्वयं हृदय को शान्ति दे, दुःखों का शमन करे । (सा) वह परम (शान्तिः) शान्ति (मा एधि) मुझे प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ईश्वरः । भुरिक् शक्वरी । धैवतः ॥

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    विषय

    शान्ति-पाठ

    पदार्थ

    १. प्रस्तुत मन्त्र 'शान्ति पाठ' का मन्त्र कहलाता है। सब यज्ञ कार्यों की समाप्ति पर इस मन्त्र का पाठ किया जाता है। प्रारम्भ में लोकत्रयी से शान्ति की याचना इस प्रकार है (द्यौः शान्तिः) = द्युलोक शान्ति देनेवाला हो, (अन्तरिक्षम् शान्तिः) = अन्तरिक्ष शान्ति दे और (पृथिवी शान्तिः) = पृथिवीलोक शान्ति प्राप्त कराए। तीनों ही लोक हमारे साथ शान्ति में हो, हमारी इनसे प्रतिकूलता न हो। द्युलोक का सूर्य शान्ति कर होकर तपे, अन्तरिक्षलोक का पर्जन्य अतिवृष्टि व अनावृष्टि का कारण न बनता हुआ हमें शान्ति दे और यह दृढ़ पृथिवीलोक हमारा धारण करनेवाला हो। अध्यात्म में ये ही तीनों लोक क्रमशः मस्तिष्क, हृदय व शरीर हैं। हमारा मस्तिष्क ज्ञान के सूर्य से चमकता हुआ हमें शान्ति दे, हमारा हृदय करुणा के पर्जन्य से युक्त हुआ हुआ हमारे स्वभाव को शान्त बनाये तथा यह हमारा पृथिवीरूप शरीर अत्यन्त दृढ़ हो। इस प्रकार स्पष्ट है कि सच्ची शान्ति के लिए दीप्तमस्तिष्क, करुणाद्र चित्त तथा दृढ़ शरीर की आवश्कयता है। २. (आपः शान्तिः) = जल हमें शान्ति दें। इस पृथिवी पर सर्वप्रथम तत्त्व जल ही है। ये नीरोगता के द्वारा हमें शान्ति देनेवाले हैं। ये जल ही शरीर में 'आपो रेतो भूत्वा = वीर्यशक्ति के रूप में रहते हैं। यह वीर्य सब रोगों को कम्पित कर दूर भगाकर हमें शान्ति प्राप्त कराता है। सौम्य भोजनों से उत्पन्न यह सोम सचमुच ही हमें 'सौम्य' बनाता है। ३. इन जलों से ओषधि वनस्पतियों का जन्म होता है, अतः कहते हैं कि (ओषधयः) = ओषधियाँ (शान्तिः) = शान्ति दें। (वनस्पतयः शान्तिः) = वनस्पतियाँ शान्ति दें। ओषधि व वनस्पति में यह अन्तर है कि ओषधियाँ फलपाकान्त होती हैं जबकि वनस्पतियाँ अगले अगले वर्षों में भी फल देती हैं। सब अन्न ओषधि हैं और शाक-फल 'वनस्पति' हैं। अन्न ओषधि की भाँति ही प्रयुक्त होगा तो क्यों शान्ति न देगा? अन्न को क्षुधा - रोग का औषध समझना, तब यह औषधवत् मात्रा में प्रयुक्त हुआ हुआ कल्याण ही करेगा। वनस्पतियाँ भी ( वन = शरीर, पति = रक्षक) शरीर की रक्षक हैं। शरीर की रक्षा के उद्देश्य से ही इनका सेवन होना चाहिए। ओषधियाँ, वनस्पतियाँ अध्यात्म में 'लोम' हैं, ये लोम शरीर के रक्षक हैं। नासिका छिद्र के बाल श्वास के साथ धूल आदि को अन्दर नहीं जाने देते, एवं ये लोम शरीर की शान्ति के कारण बनते हैं। ४. (विश्वेदेवाः शान्तिः) = प्रकृति के ये सभी देव मुझे शान्ति देनेवाले हों, परन्तु ये शान्ति देनेवाले तभी होंगे जब मुझे इनका ज्ञान होगा, अतः अगली प्रार्थना करते हैं - (ब्रह्म शान्तिः) = ज्ञान मुझे शान्ति दे। जिस पदार्थ के गुण-धर्म का ज्ञान नहीं होता वही हानिप्रद हो जाता है। प्रायः उसका गलत प्रयोग हो जाता है? इस ज्ञान को प्राप्त कर (सर्वम् शान्तिः) = सब पदार्थ हमें शान्ति देनेवाले हों । ५. (शान्तिः एव शान्तिः) = शान्ति भी शान्ति ही हो। कहीं मेरी शान्ति अशान्ति का कारण न बन जाए। वस्तुतः शान्ति के लिए शरीर का अत्यन्त अशान्त, अर्थात् क्रियाशील होना आवश्यक है। सामने आग लगी हो और मैं शान्त बैठा हुआ हाथ-पैर न हिलाऊँ तो ऐसी शान्ति महान् अनर्थ का हेतु बन अशान्ति को ही पैदा करेगी। मेरे सामने कोई मेरे पिताजी से दुर्व्यहार करता है और मैं शान्त बैठा रहूँ, यह शान्ति मुझे पापभाक् बनाकर अशान्त ही करेगी। 'शरीर अधिक-से-अधिक अशान्त और मन पूर्ण शान्त' ऐसी शान्ति तो शान्ति है, परन्तु जिसमें 'शरीर शान्त है और मन अशान्त' वह शान्ति का आभास है, शान्ति नहीं । (सा शान्तिः) = वह सच्ची शान्ति (मा) = मुझे (एधि) = प्राप्त हो ६. इस प्रकार शान्त वातावरण में निवासवाला व्यक्ति ही ध्यान लगा सकता है और 'दध्यङ' नामवाला बनता है। इसका मन विह्वल व डाँवाँडोल नहीं, अतः यह 'आथर्वण' है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब प्राकृतिक देव मेरे अनुकूल हों, वे मेरे साथ शान्ति में हों। उनके ठीक ज्ञान से मेरा उनके साथ सम्बन्ध मधुर हो। मैं उनके प्रति आसक्त न होकर सदा उनका ठीक उपयोग करूँ।

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    मन्त्रार्थ

    (द्यौः शान्तिः) सूर्य आदि ग्रहों वाला द्युलोक शान्तिकर हो दिन रात में शान्ति करने वाला प्रकाश को प्रदान करे (अन्तरिक्षं शान्तिः) अन्तरिक्ष-वायु मेघ का सदन शान्ति हो यथा काल वायु को चलावे मेघ बर्सावे (पृथिवी शान्तिः) पृथिवी शान्ति हो- समुत्रति आश्रयं प्रदान करे आवश्यक भोग्य वस्तु दे (आपः शान्तिः) जल शान्ति करने वाले हों स्नान आदि उपयोगों से (ओषधयः शान्तिः) गेहूँ आदि औषधियां सुभोज्य हों तथा सोम आदि औषधियां रोगनिवृत्तिकर दों (वनस्पतयः शान्तिः) फलवान् वृक्ष शान्तिप्रद हों (विश्वेदेवाः शान्तिः) अन्य दिव्यगुण पदार्थ भी शान्तिकर हों (ब्रह्म शान्तिः) इन द्युलोकादि का स्वामी ब्रह्मात्मा भी 'शान्तिरूप हो (सर्व शान्तिः) सब साधारण वस्तुमात्र शान्तिप्रद हो (शान्तिः-एव शान्तिः) सब ओर से शान्ति ही शान्ति हो- शान्तिप्रद हो (सा शान्तिः-मा-एधि) वह सर्वविषयक शान्ति प्रार्थना से या वैसे हमारी उत्कृष्ट कर्मप्रवृत्ति से हमें प्राप्त हो ॥१७॥

    टिप्पणी

    "वेत्थ पश्चभ्यामाहुतावापः पुरुषवचसो भवन्ति"

    विशेष

    ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥

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    मराठी (4)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जसे प्रकाशयुक्त पदार्थ, आकाश, भूमी, जल, सोमलता इत्यादी औषधे, वनस्पती, विद्वान लोक, परमेश्वर, वेद इत्यादी शांती देणारे असतात तशी शांती प्राप्त करण्याचा प्रयत्न तुम्हीही करा.

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    विषय

    मनुष्यासाठी कोणते व कशासाठी यत्न केला पाहिजे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो ज्याप्रमाणे मला (एक योगी साधकाला वा उपासकाला) (द्यौः शान्तिः) सर्व प्रकाश युक्त (आकाशातील ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र आदी प्रकाशमान पदार्थ शान्तिकारक असावेत आणि (अन्तरिक्षम्) दोन्ही लोकामधील (द्युलोक आणि भूलोकमधील अवकाश) अकाश (शान्तिः) शांतिकारक असावा (तसे तुमच्यासाठीही तो असावा) (पृथिवी) ही पृथ्वी (शान्तिः) सुखकारी व निरुपद्रवी असावी (आपः) जल व प्राण (शान्तिः) शान्तिदायी असावेत. (ओषधयः) सोमलता आदी औषधी (शान्तिः) शांतिकारक असाव्यात. (वनस्प्यः) वट आदी वृक्ष-वनस्पती (शान्तिः) शांतिकारक असाव्यात. (विश्‍वे देवाः) सर्व विद्वज्जन (शान्तिः) उपद्रवनिवारक आणि (ब्रह्म) परमेश्‍वर वा वेद (शान्तिः) सुखकारक असावेत. (सर्वम्) समस्त पदार्थ (शान्तिरेव) शान्ति ही शांति देणारे असावेत. हे सर्व (मा) (एधि) प्राप्त व्हावेत. (सा) ती (शान्तिः) शान्ति तुम्ही सर्व जनांनाही प्राप्त व्हावी. ॥17॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्या प्रकारे प्रकाश आदी पदार्थ शांती देणारे व्हावेत, तुम्ही सर्व तसे यत्न केले पाहिजेत. ॥17॥

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    विषय

    प्रार्थना

    व्याखान

    हे सर्व दुःख नष्ट करणाऱ्या शान्तिप्रद ईश्वरा! सर्व गोलांवर पसरलेले आकाश आमच्यासाठी निरूपद्रवी, शांत व सुखकारक असावे. हे सर्वशांतिमान ईश्वरा । अन्तरिक्षातील वायु इत्यादी पदार्थ पृथ्वीवरील व जलीय पदार्थ, औषधी व त्यांचे गुण, वनस्पती व त्यांचे पदार्थ, विश्वातील विद्वान लोक विश्वाला प्रकाश देणारे वेदमंत्र, सूर्य व त्याची किरणे, इंद्रिये, ब्रह्म, परमेश्वरा व वेदेशास्त्र, स्थूल व सूक्ष्म चराचर जगत हे सर्व पदार्थ आमच्यासाठी सदैव शांत व अनुकूल बनावेत. मलाही ती शांतता प्राप्त व्हावी त्यामुळे तुझी कृपा होऊन मी महषी दयानंद सरस्वती दुष्टपणा व क्रोध सोडून देऊन शांत बनावे व जगातील सर्व जीवांचा दुष्टपणाही नाहीसा होऊन ते क्रोधरहित बनावेत.॥२५॥

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    व्याख्यान

    (द्यौ. शा.) हे सर्वशक्तिमान भगवान! तुझ्या भक्ती व कृपेनेच ‘द्यौ’ सूर्य इत्यादी गोलांचा प्रकाश व विज्ञान सदैव आम्हाला सुखदायक ठरो व आकाश, पृथ्वी, जल, औषधी, वनस्पती, वट इत्यादी वृक्ष, जगातील सर्व विद्वान, वेदब्रह्म हे सर्व पदार्थ व याहूनही भिन्न असलेले जग आम्हाला सदैव सुख देवो. हे सर्व पदार्थ आम्हाला सदैव अनुकूल असावे, ज्यामुळे हे वेदभाष्य आम्ही सुखपूर्वक करू शकू. या प्रकारे विद्या, बुद्धी, विज्ञान, आरोग्य व उत्तम साह्य तुझ्या कृपेने शांतिपूर्वक प्राप्त व्हावे व आम्हाला व सर्व जगाला उत्तम गुण व सुखाचे दान दे. ॥६॥

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    May sky be peaceful. May atmosphere be peaceful. May Earth be peaceful. May waters be peaceful. May medicinal herbs be peaceful. May plants be peaceful. May all the learned persons be peaceful. May God and the Vedas be peaceful. May all the objects be peaceful; May peace itself be peaceful. May that peace come unto me.

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    Meaning

    May the heavens bring us peace. May peace be with the skies, and may the skies shower us with peace. May there be peace on earth, and may the earth mother bring us peace. May there be peace with the waters, and may the waters bring us peace. May there be peace in the herbs, and may the herbs bring us peace. May peace be with the trees and may the trees bring us peace. Peace be with the divinities of the world, and may they bless us with peace. May the Great Lord of the universe bless us with peace, and may the Veda inspire us with peace. May all existence be at peace and may peace come from all existence to all. May there be peace only, universal peace for all. May that heavenly peace come and bless me. May It bless all.

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    Purport

    Pacifier of all miseries and troubles O God! The firmament [heavenly world, sky, celestial region] which is beyond all the planetary bodies should always be peaceful, free from troubles and a source of happiness and comforts to us. The middle region [the space inbetween heaven and the earth] and the air etc. which there in it, the earth and its objects, their properties with it its objects, the medicinal herbs, vegetables with all their properties, should be quiet, calm, without trouble, bestower of peace and conducive to our well-being by your grace. All the learned persons of the of world, Vedic hymns which and their world, the sense-organs, the sun, its swaters with re properties should by Your grace be peaceful, calm and bestower of happiness for us.

    O Omnipotent Supreme Soul! By your grace the whole world- subtle and and all its objects by your grace be always peaceful, favourable and peace-giving. O God! By your grace, I should acquire that calmness by which I may be peaceful and free from evil passions like anger etc. May all living beings of this world be also free form evil passions like lust, anger etc. 

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    Translation

    May the sky be peaceful; may the mid-space be peaceful; may the earth be peaceful; may the waters be peaceful; may the annual plants be peaceful; may the forests be peaceful;may all the bounties of Nature be peaceful; may the knowledge be peaceful; may all the things be peaceful; may there be peace and peace only; may such a peace come to me. (1)

    Notes

    A comprehensive prayer for peace and alleviation. A similar verse is found in the Atharva Veda XIX. 9. 14, which ends with the addition: 'By these alleviations, these universal allevia tions, I allay all that is terrific here, all that is cruel, all that is wicked. This hath been calmed, this is now auspicious. Let all be favourable to us. ' (Griffith).

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    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যৈঃ কথং প্রয়তিতব্যমিত্যাহ ॥
    মনুষ্যদিগকে কেমন প্রচেষ্টা করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে (দ্যৌঃ, শান্তিঃ) প্রকাশযুক্ত পদার্থ শান্তিকারক (অন্তরিক্ষম্) উভয় লোকের মধ্যেকার আকাশ (শান্তিঃ) শান্তিকারী (পৃথিবী) ভূমি (শান্তিঃ) সুখকারী নিরুপদ্রব (আপঃ) জল বা প্রাণ (শান্তি) শান্তিদায়ী (ওষধয়ঃ) সোমলতাদি ওষধিসকল (শান্তিঃ) সুখদায়ী (বনস্পতয়ঃ) বটাদি বনস্পতি (শান্তিঃ) শান্তিকারক (বিশ্বে, দেবাঃ) সব বিদ্বান্গণ (শান্তি) উপদ্রবনিবারক (ব্রহ্ম) পরমেশ্বর বা বেদ (শান্তিঃ) সুখদায়ী (সর্বম্) সম্পূর্ণ বস্তু (শান্তিঃ) শান্তিকারক (শান্তিরেব) শান্তিই (শান্তিঃ) শান্তি (মা) আমাকে (এধি) প্রাপ্ত হউক (সা) সেই (শান্তিঃ) শান্তি তোমাদের জন্যও প্রাপ্ত হউক ॥ ১৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন প্রকাশাদি পদার্থ শান্তিকারী হইবে, সেইরূপ তোমরা প্রচেষ্টা কর ॥ ১৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    দ্যৌঃ শান্তি॑র॒ন্তরি॑ক্ষ॒ꣳ শান্তিঃ॑ পৃথি॒বী শান্তি॒রাপঃ॒ শান্তি॒রোষ॑ধয়ঃ॒ শান্তিঃ॑ । বন॒স্পত॑য়ঃ॒ শান্তি॒র্বিশ্বে॑ দে॒বাঃ শান্তি॒র্ব্রহ্ম॒ শান্তিঃ॒ সর্ব॒ꣳ শান্তিঃ॒ শান্তি॑রে॒ব শান্তিঃ॒ সা মা॒ শান্তি॑রেধি ॥ ১৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    দ্যৌরিত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । ঈশ্বরো দেবতা । ভুরিক্ছক্বরী ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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    नेपाली (1)

    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे समस्त दुःख हरु लाई शान्ति प्रदागर्नु हुने प्रभो ! द्यौः शान्तिः सबै लोक हरु भन्दा माथि जुन आकाश छ त्यो हाम्रा लागी सर्वदा शान्त [निरुपद्रव] सुख कारक नै रहोस् । अन्तरिक्षम् शान्तिः अन्तरिक्ष=मध्यस्थलोक र तेसमा रहने वायु आदि पदार्थ, पृथिवी शान्तिः पृथिवी र पृथिवीस्थ पदार्थ, = आपः शान्तिः = जल र जलस्थ पदार्थ, ओषधयः शान्तिः = औषधी र तेसमा रहने गुण हरु, वनस्पतयः शान्तिः = वनस्पति र वनस्पतिस्थ गुण हरु, विश्वेदेवाः शान्तिः = जगत् का सबै विद्वान् तथा विश्वद्योतक वेदमन्त्र हरु, इन्द्रिय, सूर्यादि र तिनका किरण र तत्रस्थ गुण हरु ब्रह्म शान्तिः= ब्रह्म=परमात्मा तथा वेदशास्त्र, स्थूल तथा सूक्ष्म चराचर जगत् ई सबै पदार्थ हाम्रा लागी शान्ति प्रदायक हुन्, हे सर्व शक्ति मन् परमात्मन् ! तपाईंका कृपा ले शान्तिः एव शान्तिः = 'शान्ति अर्थात् निरुपद्रव सदा अनुकूल र सुखदायक हुन् । सा मा शान्तिः एधि = साथै मँलाई पनि त्यो शान्ति प्राप्त होस् जसले मँ पनि हजुर को कृपा ले शान्त, दुष्टक्रोधादि उपद्रव रहित हूँ तथा समस्त संसारस्थ जीव हरु पनि दुष्टक्रोधादि उपद्रव रहित हुन् ॥ २५ ॥
     

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