यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 18
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - ईश्वरो देवता
छन्दः - भुरिग् जगती
स्वरः - निषादः
291
दृते॒ दृꣳह॑ मा मि॒त्रस्य॑ मा॒ चक्षु॑षा॒ सर्वा॑णि भू॒तानि॒ समी॑क्षन्ताम्।मि॒त्रस्या॒ऽहं चक्षु॑षा॒ सर्वा॑णि भू॒तानि॒ समी॑क्षे।मि॒त्रस्य॒ चक्षु॑षा॒ समी॑क्षामहे॥१८॥
स्वर सहित पद पाठदृते॑। दृꣳह॑। मा॒। मि॒त्रस्य॑। मा॒। चक्षु॑षा। सर्वा॑णि। भू॒तानि॑। सम्। ई॒क्ष॒न्ता॒म् ॥ मि॒त्रस्य॑। अ॒हम्। चक्षु॑षा। सर्वा॑णि। भू॒तानि॑। सम्। ई॒क्षे॒। मि॒त्रस्य॑। चक्षु॑षा। सम्। ई॒क्षा॒म॒हे॒ ॥१८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दृते दृँह मा मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् । मित्रस्याहञ्चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे । मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥
स्वर रहित पद पाठ
दृते। दृꣳह। मा। मित्रस्य। मा। चक्षुषा। सर्वाणि। भूतानि। सम्। ईक्षन्ताम्॥ मित्रस्य। अहम्। चक्षुषा। सर्वाणि। भूतानि। सम्। ईक्षे। मित्रस्य। चक्षुषा। सम्। ईक्षामहे॥१८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ के धर्मात्मान इत्याह॥
अन्वयः
हे दृते! येन सर्वाणि भूतानि मित्रस्य चक्षुषा मा समीक्षन्तामहं मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे एवं वयं सर्वे परस्परान् मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे तत्रास्मान् दृंह॥१८॥
पदार्थः
(दृते) अविद्यान्धकारनिवारक जगदीश्वर विद्वन् वा (दृꣳह) दृढीकुरु (मा) माम् (मित्रस्य) सुहृदः (चक्षुषा) दृष्ट्या (सर्वाणि) (भूतानि) प्राणिनः (सम्) सम्यक् (ईक्षन्ताम्) प्रेक्षन्तां पश्यन्तु (मित्रस्य) (अहम्) (चक्षुषा) (सर्वाणि) (भूतानि) (सम्) (ईक्षे) पश्येयम् (मित्रस्य) (चक्षुषा) (सम्) (ईक्षामहे) पश्येम॥१८॥
भावार्थः
त एव धर्मात्मानो मनुष्या ये स्वात्मवत् सर्वान् प्राणिनो मन्येरन्, कञ्चिदपि न द्विषेयुर्मित्रवत् सर्वान् सदोपकुर्य्युरिति॥१८॥
हिन्दी (1)
विषय
अब कौन मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (दृते) अविद्यारूपी अन्धकार के निवारक जगदीश्वर वा विद्वन्! जिससे (सर्वाणि) सब (भूतानि) प्राणी (मित्रस्य) मित्र की (चक्षुषा) दृष्टि से (मा) मुझको (सम्, ईक्षन्ताम्) सम्यक् देखें (अहम्) मैं (मित्रस्य) मित्र की (चक्षुषा) दृष्टि से (सर्वाणि, भूतानि) सब प्राणियों को (समीक्षे) सम्यक् देखूं, इस प्रकार सब हम लोग परस्पर (मित्रस्य) मित्र की (चक्षुषा) दृष्टि से (समीक्षामहे) देखें इस विषय में हमको (दृंह) दृढ़ कीजिये॥१८॥
भावार्थ
वे ही धर्मात्मा जन हैं जो अपने आत्मा के सदृश सम्पूर्ण प्राणियों को मानें, किसी से भी द्वेष न करें और मित्र के सदृश सबका सदा सत्कार करें॥१८॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक आपल्या आत्म्याप्रमाणेच संपूर्ण प्राण्यांना मानतात तेच धार्मिक समजले जातात. ते कुणाचाही द्वेष करीत नाहीत व मित्राप्रमाणे सर्वांशी वागतात.
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, the Dispeller of ignorance and darkness, strengthen, me, May all beings regard me with the eye of a friend. May I regard all beings with the eye of a friend. With the eye of a friend do we regard one another.
Meaning
Lord of light and power, strengthen us for a place of honour and respect. May all the living beings view me with the eye of a friend. May I look at all the living beings with the eye of a friend. May we all view all with friendly eyes of love and understanding.
बंगाली (1)
विषय
অথ কে ধর্মাত্মান ইত্যাহ ॥
এখন কোন্ মনুষ্য ধর্মাত্মা হইতে পারে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (দৃতে) অবিদ্যারূপী অন্ধকারের নিবারক জগদীশ্বর বা বিদ্বান্ ! যাহাতে (সর্বাণি) সকল (ভূতানি) প্রাণী (মিত্রস্য) মিত্রের (চক্ষুষা) দৃষ্টি দিয়া (মা) আমাকে (সম, ঈক্ষতাম্) সম্যক্ দেখুক, (অহম্) আমি (মিত্রস্য) মিত্রের (চক্ষুষা) দৃষ্টি দিয়া (সর্বাণি, ভূতানি) সকল প্রাণিদিগকে (সমীক্ষে) সম্যক্ দেখি, এইভাবে সব আমরা পরস্পর (মিত্রস্য) মিত্রের (চক্ষুষা) দৃষ্টি দিয়া (সমীক্ষামহে) দেখি, এই বিষয়ে আমাদেরকে (দৃংহ) দৃঢ় করুন ॥ ১৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- তাহারাই ধর্মাত্মা যাহারা স্বীয় আত্মার সদৃশ সম্পূর্ণ প্রাণিদিগকে মান্য করে, কাহারও প্রতি দ্বেষ না করে এবং মিত্রের সদৃশ সকলের সৎকার করে ॥ ১৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
দৃতে॒ দৃꣳহ॑ মা মি॒ত্রস্য॑ মা॒ চক্ষু॑ষা॒ সর্বা॑ণি ভূ॒তানি॒ সমী॑ক্ষন্তাম্ ।
মি॒ত্রস্যা॒ऽহং চক্ষু॑ষা॒ সর্বা॑ণি ভূ॒তানি॒ সমী॑ক্ষে ।
মি॒ত্রস্য॒ চক্ষু॑ষা॒ সমী॑ক্ষামহে ॥ ১৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
দৃত ইত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । ঈশ্বরো দেবতা । ভুরিগ্ জগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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