यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 8
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - इन्द्रो देवता
छन्दः - द्विपादद्विराड् गायत्री
स्वरः - षड्जः
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इन्द्रो॒ विश्व॑स्य राजति।शन्नो॑ऽअस्तु द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे॥८॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑। विश्व॑स्य। रा॒ज॒ति॒ ॥ शम्। नः॒। अ॒स्तु॒। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदे॑। शम्। चतु॑ष्पदे। चतुः॑पद॒ इति॑ चतुः॑ऽपदे ॥८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रो विश्वस्य राजति । शन्नो अस्तु द्विपदे शञ्चतुष्पदे ॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रः। विश्वस्य। राजति॥ शम्। नः। अस्तु। द्विपद इति द्विऽपदे। शम्। चतुष्पदे। चतुःपद इति चतुःऽपदे॥८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर! यो भवानिन्द्र इव विश्वस्य राजति, तस्य भवतः कृपया नो द्विपदे शमस्तु नश्चतुष्पदे शमस्तु॥८॥
पदार्थः
(इन्द्रः) विद्युदिवेश्वरः (विश्वस्य) संसारस्य मध्ये (राजति) प्रकाशते (शम्) सुखम् (नः) अस्माकम् (अस्तु) (द्विपदे) पुत्राद्याय (शम्) (चतुष्पदे) गवाद्याय॥८॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे जगदीश्वर! यतो भवान् सर्वत्राऽभिव्यापकः मनुष्यपश्वादीनां सुखमिच्छुरसि, तस्मात् सर्वैरुपासनीयोऽसि॥८॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर! जो आप (इन्द्रः) बिजुली के तुल्य (विश्वस्य) संसार के बीच (राजति) प्रकाशमान हैं, उन आपकी कृपा से (नः) हमारे (द्विपदे) पुत्रादि के लिये (शम्) सुख (अस्तु) होवे और हमारे (चतुष्पदे) गौ आदि के लिये (शम्) सुख होवे॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे जगदीश्वर! जिससे आप सर्वत्र सब ओर से अभिव्याप्त मनुष्य, पश्वादि को सुख चाहनेवाले हैं, इससे सबको उपासना करने योग्य हैं॥८॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. (विद्युतप्रमाणे) या जगात प्रकाशमान असणाऱ्या परमेश्वरा ! तू सर्वत्र व्याप्त आहेस व मनुष्य आणि पशू इत्यादींचे सुख इच्छितोस त्यामुळेच सर्वांनी उपासना करावी असा आहेस.
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, like lightning Thou shinest in the universe, may weal attend our bipeds and our quadrupeds.
Meaning
Indra, lord of light, power and glory, rules the world. By His grace, may all be peace and joy with the humans and with the animals.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে জগদীশ্বর ! আপনি (ইন্দ্র) বিদ্যুতের ন্যায় (বিশ্বস্য) সংসারের মধ্যে (রাজতি) প্রকাশমান, সেই আপনার কৃপা বলে (নঃ) আমাদের (দ্বিপদে) পুত্রাদির জন্য (শম্) সুখ (অস্তু) হউক এবং আমাদের (চতুষ্পদে) গো আদির জন্য (শম্) সুখ হউক ॥ ৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে জগদীশ্বর ! যদ্দ্বারা আপনি সর্বত্র সব দিক দিয়া অভিব্যাপ্ত মনুষ্য, পশ্বাদির সুখ কামনাকারী, এইজন্য সকলের উপাসনা করিবার যোগ্য ॥ ৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ইন্দ্রো॒ বিশ্ব॑স্য রাজতি ।
শন্নো॑ऽঅস্তু দ্বি॒পদে॒ শং চতু॑ষ্পদে ॥ ৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ইন্দ্র ইত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । দ্বিপাদ্বিরাড্ গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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