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यजुर्वेद अध्याय - 37
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  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 20
    ऋषिः - आथर्वण ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - निचृदतिजगती स्वरः - निषादः
    77

    पि॒ता नो॑ऽसि पि॒ता नो॑ बोधि॒ नम॑स्तेऽअस्तु॒ मा मा॑ हिꣳसीः। त्वष्टृ॑मन्तस्त्वा सपेम पु॒त्रान् प॒शून् मयि॑ धेहि प्र॒जाम॒स्मासु॑ धे॒ह्यरि॑ष्टा॒हꣳ स॒ह प॑त्या भूयासम्॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पि॒ता। नः॒। अ॒सि॒। पि॒ता। नः॒। बो॒धि॒। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। मा। मा॒। हिं॒सीः॒ ॥ त्वष्टृ॑मन्त॒ इति॒ त्वष्टृ॑ऽमन्तः। त्वा॒। स॒पे॒म॒। पु॒त्रान्। प॒शून्। मयि॑। धे॒हि॒। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। अ॒स्मासु॑। धे॒हि॒। अरि॑ष्टा। अ॒हम्। स॒हप॒त्येति॑ स॒हऽप॑त्या। भू॒या॒स॒म् ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पिता नोसि पिता नो बोधि नमस्तेऽअस्तु मा मा हिँसीः । त्वष्टृमन्तस्त्वा सपेम पुत्रान्पशून्मयि धेहि प्रजामस्मासु धेह्यरिष्टाहँ सहपत्या भूयासम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पिता। नः। असि। पिता। नः। बोधि। नमः। ते। अस्तु। मा। मा। हिंसीः॥ त्वष्टृमन्त इति त्वष्टृऽमन्तः। त्वा। सपेम। पुत्रान्। पशून्। मयि। धेहि। प्रजामिति प्रऽजाम्। अस्मासु। धेहि। अरिष्टा। अहम्। सहपत्येति सहऽपत्या। भूयासम्॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे जगदीश्वर! त्वं नः पिताऽसि पिता सन्नोऽस्मान् बोधि ते नमस्तु त्वं मा मा हिंसीस्त्वष्टृमन्तो वयं त्वा सपेम। त्वं पुत्रान् पशून् मयि धेहि, अस्मासु प्रजां धेहि, यतोहमरिष्टा सती सहपत्या भूयासम्॥२०॥

    पदार्थः

    (पिता) जनक इव (नः) अस्माकम् (असि) (पिता) राजेव पालकः (नः) अस्मान् (बोधि) बोधय (नमः) (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (मा) निषेधे (मा) माम् (हिंसीः) हिंसया युक्तं कुर्य्याः (त्वष्टृमन्तः) बहवस्त्वष्टारः प्रकाशात्मानः पदार्था विद्यन्ते येषु ते (त्वा) त्वाम् (सपेम) सम्बन्धं कुर्य्याम (पुत्रान्) पवित्रगुणकर्मस्वभावान् (पशून्) गवादीन् (मयि) (धेहि) (प्रजाम्) राष्ट्रम् (अस्मासु) (धेहि) (अरिष्टा) अहिंसिता (अहम्) (सहपत्या) स्वामिना सह (भूयासम्)॥२०॥

    भावार्थः

    हे जगदीश्वर! भवान् नोऽस्माकं पिता स्वामी बन्धुर्मित्रो रक्षकोऽसि, तस्मात् त्वां वयं सततमुपास्महे। हे स्त्रियो! यूयं परमात्मन एवोपासनां नित्यं कुरुत, यतः सर्वाणि सुखानि प्राप्नुत॥२०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे जगदीश्वर! आप (नः) हमारे (पिता) पिता के समान (असि) हैं, (पिता) राजा के तुल्य रक्षक हुए (नः) हमको (बोधि) बोध कराइये (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, आप (मा) मुझको (मा, हिंसीः) मत हिंसायुक्त कीजिये (त्वष्टृमन्तः) बहुत स्वच्छ प्रकाशरूप पदार्थों वाले हम (त्वा) आप से (सपेम) सम्बन्ध करें। आप (पुत्रान्) पवित्र गुण-कर्म-स्वभाव वाले सन्तानों को तथा (पशून्) गौ आदि पशुओं को (मयि) मुझमें (धेहि) धारण कीजिये तथा (अस्मासु) हममें (प्रजाम्) प्रजा को (धेहि) धारण कीजिये, जिससे (अहम्) मैं (अरिष्टा) अहिंसित हुई (सहपत्या) पति के साथ (भूयासम्) होऊं॥२०॥

    भावार्थ

    हे जगदीश्वर! आप हमारे पिता, स्वामी, बन्धु, मित्र और रक्षक हैं, इससे आपकी हम निरन्तर उपासना करते हैं। हे स्त्रियो! तुम परमेश्वर ही की उपासना नित्य किया करो, जिससे सब सुखों को प्राप्त होओ॥२०॥

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    भावार्थ

    हे राजन् ! हे परमेश्वर ! ( नः पिता असि) तू हमारे पिता के समान पालक है । (नः) पिता एवं गुरु के समान ही (बोधि) हमें ज्ञानवान्,शिक्षित कर । (ते नमः अस्तु) तुझे नमस्कार हो । ( मा मा हिंसी:) मुझ प्रजाजन को मत मार, विनष्ट मत कर। हम समस्त प्रजाजन (स्वष्टृमन्तः) स्वष्टा, तेजस्वी, प्रजापति रूप स्वामी वाले होकर (त्वा सपेम) तुझे प्राप्त हों । तू ( पुत्रान् पशुन् ) पुत्रों और पशुओं को (मयि धेहिः) मुझ में पालक पतिवत् धारण करा । ( अस्मान् ) हम में (प्रजाम् ) उत्तम सन्तान, प्रजा को धारण करा । मैं प्रजा (अरिष्टा) मङ्गलमयी - स्त्री के समान सब गुणों वाली होकर (सह पत्या) पति के साथ भार्या के समान तुझ प्रजापति के साथ (भूयासम् ) रहूँ । (२) परमेश्वर हमारा पिता है,गुरु है, हमें ज्ञानवान् बनाता है । विनष्ट न करे । हम उत्तम गुणवान् उत्तमः पदार्थों और शिल्पों से युक्त होकर उसे प्राप्त हों, हमें पशु प्रदान करे,. प्रजा दे। उसकी प्रजा होकर स्वामी से युक्त होकर रहे । ( ३ ) गृहस्था में-हे पितः ! हे श्वशुर ! तू हमारा पिता है हमें सचेत कर । हमें कष्ट: मत दे । हे पते ! हम स्त्री जन प्रजननसामर्थ्य से युक्त होकर पति को प्राप्त हों। हमें सन्तान धारण कर । मैं स्त्री सुमङ्गली होकर पति के साथ रहूँ ।

    टिप्पणी

    १ शून्यपि धेह्यरिष्टा० इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ईश्वरः । निचृदतिजगती । निषादः ॥

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    पदार्थ

    गृहपत्नी विशेषरूप से प्रभु-प्रार्थना करती है कि [१] हे प्रभो! (पिता नः असि) = आप ही हमारे पिता - रक्षक हैं। [२] (पिता नः बोधि) = हमारे पिता आप हमें ज्ञान दीजिए। पिता का पहला काम पुत्र को योग्य बनाना है। [३] (नमः ते) = हम आपके प्रति नतमस्तक होते हैं। पुत्र का कर्त्तव्य है कि वह धृष्ट न हों। [४] (मा मा हिंसी:) = आप हमें हिंसित मत कीजिए। ज्ञान के अभाव में ही हमारी हिंसा होती है। खान-पान में अज्ञानवश गलतियों से स्वास्थ्य बिगड़ता है तो अज्ञानवश परस्पर द्वेष से लड़ाई-झगड़े बढ़कर हिंसा होती है । [५] (त्वष्टृमन्तः) = वेदवाणीवाले [वाग्वै त्वष्टा । ऐ० २।४], ज्ञान की वाणियों को प्राप्त होनेवाले हम (त्वा) = आपकी (सपेम) = पूजा करें [To honour, to worship ], आपकी आज्ञा का पालन करें [to obey] और आपको प्राप्त करें [to obtain ] [६] (मयि) = आपके वेद के आदेश के अनुसार चलनेवाली मुझमें पुत्रान् पशून् पुत्रों को व पशुओं को (धेहि) = स्थापित कीजिए । आपकी कृपा से हमें उत्तम सन्तान प्राप्त हों और उनके पालन के लिए हमें उत्तम पशु भी प्राप्त हों। गौवों के दूध से उनके मस्तिष्क का सुन्दर पोषण हो और घोड़ों से व्यायाम के द्वारा उनके शरीर सबल हों। [७] अस्मासु हमारे जीवनों में भी (प्रजाम्) = प्रकृष्ट विकास को (धेहि) = धारण कीजिए। हमारी शक्तियों का उत्तम विकास हो और [८] अन्त में (अहम् पत्या सह) = अपने पति के साथ (अरिष्टा) = अहिंसित (भूयासम्) = होऊँ। मेरा शरीर रोगों से हिंसित न हो और मन द्वेष से आविष्ट न हो। हम पति पत्नी परस्पर हाथ पकड़कर सुविधा से इस भवसागर को पार कर जाएँ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु को पिता जानते हुए हम उससे ज्ञान प्राप्त करें। ज्ञानवाले होकर प्रभु के उपासक बनें। इहिलौकिक साफल्य के साथ हम इस भवसागर को तैरने का भी ध्यान करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे जगदीश्वरा ! तू आमचा पिता, स्वामी, बंधू, मित्र, रक्षक आहेस म्हणून आम्ही सतत तुझी उपासना करतो. हे स्रियांनो ! परमेश्वराचीच सतत उपासना करा. ज्यामुळे सर्व सुख प्राप्त होईल.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे जगदीश्‍वरा, तू (नः) आमचा (पिता) पित्याप्रमाणे (असि) आहेस. तू (पिता) राजाप्रकारे आमचा रक्षक होऊन (नः) आम्हाला (बोधि) मान दे, प्रेरणा दे. (ते) तुला आमचे (नमः) नमस्कार (अस्तु) असोत. तू (मा) मला (मा, हिंसी) कधीही हिंसामय होऊ देऊ नकोस (माझ्या हातून कोणाची हिंसा वा हानी होऊ नये) (त्वष्टृमन्तः) स्वच्छ शुद्ध प्रकाश म्हणजे आचरण असणारे आम्ही (त्वा) तुझ्याशी (सपेम) नाते जोडत आहोत (तू पिता आम्ही तुझे पुत्र आहोत) (माझ्या स्वामित्वा माझ्या (पुत्रान्) पवित्र गुण, कर्म, स्वभाव असलेली संतती (मयि) मला (धेहि) दे तसेच (पशून्) गौ आदी पशू माझ्या स्वामित्वाखाली असतील, असे कर. (अस्मासु) आमच्यात (प्रजाम्) प्रजा म्हणजे असावेत) अशाप्रकारे मी (एक गृहिणी) (अरिष्टा) हिंसा वा हानीपासून दूर राहून (सहपत्या) माझ्या पतीसह (भूयासम्) सुखा-आनंदाने राहीन. ॥20॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे जगदीश्‍वर, आपण आमचे पिता, स्वामी, बन्धु, मित्र आणि रक्षक आहात. याकरिता आम्ही तुमची उपासना सदैव करतो. हे स्त्रियांनो, तुम्हीदेखील केवळ त्या परमेश्‍वराचीच उपासना करीत जा आणि अशाप्रकारे सर्वथा सुख-समाधान मिळवा ॥20॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O God Thou art our Father, King-like instruct us fatherly. Obeisance be to thee. Do not Thou harm me. May we, the masters of material objects win Thee. Vouchsafe me sons and cattle. Grant us offspring. Safe may I remain together with my husband.

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    Meaning

    You are our father. As father, enlighten us. Homage and worship to you. Pray injure me not. Lord maker of the world, we are your children blest with brilliant gifts, and we wish to be with you. Bless us with children and animal wealth. Bless us with a noble community, I pray, unhurt and untarnished, I may always abide by you, my lord and protector.

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    Translation

    You are our father. May you enlighten us as father. We bow in reverence to you. May you not harm me. (1) Filled with creative impulse, may we approach you. May you bestow sons as well as cattle on me. May you bestow progeny on me. May I remain uninjured along with my husband. (2)

    Notes

    This mantra is to be recited by the sacrificer's wife. Tvaştrmantaḥ, filled with creative impulse. Also, accom panied by Tvastr. Tvā sapema, may we approach you; may we win over you. Ariṣṭā, uninjured; unharmed.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে জগদীশ্বর ! আপনি (নঃ) আমাদের (পিতা) পিতার ন্যায় (অসি) আছেন,(পিতা) রাজার তুল্য রক্ষক (নঃ) আমাদেরকে (বোধি) বোধ করান (তে) আপনার জন্য (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হউক । আপনি (মা) আমাকে (মা, হিংসী) হিংসাযুক্ত করিবেন না, (ত্বষ্ট্রমন্তঃ) বহু স্বচ্ছ প্রকাশরূপ পদার্থ যুক্ত আমরা (ত্বা) আপনার সঙ্গে (সপেম) সম্পর্ক করি । আপনি (পু্ত্রান্) পবিত্র গুণ-কর্ম-স্বভাব সম্পন্ন সন্তানদিগকে তথা (পশুন্) গাভি আদি পশুদিগকে (ময়ি) আমাতে (ধেহি) ধারণ করুন তথা (অস্মাসু) আমাদের মধ্যে (প্রজাম্) প্রজাকে (ধেহি) ধারণ করুন যাহাতে (অহম্) আমি (অরিষ্টা) অহিংসিত (সপত্যা) পতিসহ (ভূয়াসম্) হই ॥ ২০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে জগদীশ্বর ! আপনি আমাদের পিতা-স্বামী, বন্ধু, মিত্র ও রক্ষক, এইজন্য আপনাকে আমরা নিরন্তর উপাসনা করি । হে স্ত্রীগণ ! তোমরা পরমেশ্বররেই উপাসনা নিত্য করিতে থাক যাহাতে সর্ব সুখ লাভ কর ॥ ২০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    পি॒তা নো॑ऽসি পি॒তা নো॑ বোধি॒ নম॑স্তেऽঅস্তু॒ মা মা॑ হিꣳসীঃ । ত্বষ্টৃ॑মন্তস্ত্বা সপেম পু॒ত্রান্ প॒শূন্ ময়ি॑ ধেহি প্র॒জাম॒স্মাসু॑ ধে॒হ্যরি॑ষ্টা॒হꣳ স॒হপ॑ত্যা ভূয়াসম্ ॥ ২০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    পিতা ন ইত্যস্যাথর্বণ ঋষিঃ । ঈশ্বরো দেবতা । নিচৃদতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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