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यजुर्वेद अध्याय - 6

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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 27
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - निचृत् आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    देवी॑रापोऽअपां नपा॒द्यो व॑ऽऊ॒र्मिर्ह॑वि॒ष्यऽइन्द्रि॒यावा॑न् म॒दिन्त॑मः। तं दे॒वेभ्यो॑ देव॒त्रा द॑त्त शुक्र॒पेभ्यो॒ येषां॑ भा॒ग स्थ॒ स्वाहा॑॥२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देवीः॑। आ॒पः। अ॒पा॒म्। नपा॒त्। यः। वः॒। ऊ॒र्म्मिः। ह॒वि॒ष्यः॒। इ॒न्द्रि॒यावा॑न्। इ॒न्द्रि॒यवा॒निती॑न्द्रिय॒ऽवा॑न्। म॒दिन्त॑म॒ इति॑ म॒दिन्ऽत॑मः। तम्। दे॒वेभ्यः॑। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। द॒त्त॒। शु॒क्र॒पेभ्य इति॑ शुक्र॒ऽपेभ्यः॑। येषा॑म्। भा॒गः। स्थ। स्वाहा॑ ॥२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवीरापो अपान्नपाद्यो व ऊर्मिर्विष्य इन्द्रियावान्मदिन्तमः । तन्देवेभ्यो देवत्रा दत्त शुक्रपेभ्यो येषाम्भाग स्थ स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवीः। आपः। अपाम्। नपात्। यः। वः। ऊर्म्मिः। हविष्यः। इन्द्रियावान्। इन्द्रियवानितीन्द्रियऽवान्। मदिन्तम इति मदिन्ऽतमः। तम्। देवेभ्यः। देवत्रेति देवऽत्रा। दत्त। शुक्रपेभ्य इति शुक्रऽपेभ्यः। येषाम्। भागः। स्थ। स्वाहा॥२७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 27
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरेते कथं वर्तेरन्नित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे आपो देवीर्देव्यः प्रजा! यूयं राजभक्ता स्थ भवत, शुक्रपेभ्यो देवेभ्यो येषां वो युष्माकमपां नपादूर्मिरिवेन्द्रियावान् मदिन्तमो हविष्यो भोगोऽस्ति, तं स्वाहा सद्वाचा गृह्णीत। तथा राजादयः सभ्या जना देवत्रा दिव्यान् भोगान् युष्मभ्यं प्रददति तथैतेभ्यो यूयमपि दत्त॥२७॥

    पदार्थः

    (देवीः) दिव्याः (आपः) आप्ताः प्रजाः (अपां नपात्) अविनश्वरः (यः) (वः) युष्माकम् (ऊर्मिः) जलतरङ्ग इव (हविष्यः) हविर्भ्यो हितः (इन्द्रियावान्) प्रशस्तानीन्द्रियाणि यस्मिन् सः (मदिन्तमः) मदयतीति मदी सोऽतिशयितः। नाद् घस्य। (अष्टा॰८।२।१७) इति ‘मदिन्’ शब्दान्नुडागमः। (तम्) (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (देवत्रा) दिव्यान् गुणान् (दत्त) (शुक्रपेभ्यः) शुक्रं वीर्यं रक्षन्ति तेभ्यः (येषाम्) (भागः) (स्थ) (स्वाहा)॥ अयं मन्त्रः (शत॰३। ९। ३। २५) व्याख्यातः॥२७॥

    भावार्थः

    प्रजाजनानामिदमुचितमुत्कृष्टगुणं सभापतिं मत्वा राज्यपालनाय करं दत्त्वा न्यायं प्राप्नुयुरिति॥२७॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर राजा और प्रजा कैसे वर्त्ताव को वर्तें, यह अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (आपः) श्रेष्ठ गुणों में व्याप्त (देवीः) शुभकर्मों से प्रकाशमान प्रजालोगो! तुम राजसेवी (स्थ) हो, (शुक्रपेभ्यः) शरीर और आत्मा के पराक्रम के रक्षक (देवेभ्यः) दिव्यगुणयुक्त विद्वानों के लिये (येषाम्) जिन (वः) तुम्हारा बली रूप विद्वानों का (यः) जो (अपां नपात्) जलों के नाशरहित स्वाभाविक (ऊर्मिः) जलतरंग के सदृश प्रजारक्षक (इन्द्रियावान्) जिस में प्रशंसनीय इन्द्रियां होती हैं और (मदिन्तमः) आनन्द देने वाला (हविष्यः) भोग के योग्य पदार्थों से निष्पन्न (भागः) भाग हैं, वे तुम सब (तम्) उसको (स्वाहा) आदर के साथ ग्रहण करो, जैसे राजादि सभ्यजन (देवत्रा) दिव्य भोग देते हैं, वैसे तुम भी इसको आनन्द (दत्त) देओ॥२७॥

    भावार्थ

    प्रजाजनों को यह उचित है कि आपस में सम्मति कर किसी उत्कृष्ट गुणयुक्त सभापति को राजा मान कर राज्य-पालन के लिये कर देकर न्याय को प्राप्त हों॥२७॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेने आपापसात विचारविनिमय करून एखाद्या उत्कृष्ट व गुणवान सभापतीला राजा निवडावे व राज्याचे पालन होण्यासाठी कर द्यावा आणि त्याच्याकडून न्याय प्राप्त करून घ्यावा.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O noble and virtuous subjects, select as your king for the benefit of the learned persons and Brahmcharis who preserve their semen, one, born out of you, who is high like the flood in water, fit for service with food, endowed with strength, capable of subduing his foes, and completely capable of adding to the happiness of his kingdom. Ye too constitute a part of those learned persons.

    Meaning

    Noble and intelligent people, to one who, among you, is of good and constant character, strong of sense and will, happiest and most inspiring, like a wave on the ocean of existence, worthy of reverence and homage, defender and supporter of the virtuous, to him, for the gods among men, the noblest preservers, protectors and promoters of life’s vitalities, give your share of the social yajnic offering. You too are a part of the noble ones. Accept him in good grace with words of love and reverence — the one of you and for all of you.

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনরেতে কথং বর্তেরন্নিত্যুপদিশ্যতে ॥
    পুনরায় রাজা ও প্রজা কেমন ব্যবহার করিবে, ইহা পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (আপঃ) শ্রেষ্ঠ গুণে ব্যাপ্ত (দেবীঃ) শুভকর্ম দ্বারা প্রকাশমান প্রজাগণ! তোমরা রাজসেবী (স্থ) হও । (শুক্রপেভ্যঃ) শরীর ও আত্মার পরাক্রমের রক্ষক (দেবেভ্যঃ) দিব্যগুণযুক্ত বিদ্বান্দিগের জন্য (য়েষাম্) যে সব (বঃ) তোমাদের বলবান্ বিদ্বান্দিগের (য়ঃ) যাহারা (অপাং নপাৎ) জলের নাশরহিত স্বাভাবিক (ঊর্মিঃ) জলতরঙ্গ সদৃশ প্রজারক্ষক (ইন্দ্রিয়াবান্) যাহাতে প্রশংসনীয় ইন্দ্রিয় হয় এবং (মদিন্তমঃ) আনন্দ প্রদাতা (হবিষ্যঃ) ভোগের যোগ্য পদার্থ দ্বারা (ভাগঃ) নিষ্পন্ন অংশ তোমরা সকলে (তম্) তাহা (স্বাহা) আদরের সহিত গ্রহণ কর যেমন রাজাদি সভ্যগণ (দেবত্রা) দিব্য ভোগ প্রদান করেন সেইরূপ তোমরাও ইহাকে আনন্দ (দত্ত) প্রদান কর ॥ ২৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- প্রজাগণের উচিত যে, পারস্পরিক সম্মতি দ্বারা কোন উৎকৃষ্ট গুণযুক্ত সভাপতিকে রাজা মানিয়া রাজ্য পালন হেতু কর দিয়া ন্যায় প্রাপ্ত হউক ॥ ২৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    দেবী॑রাপোऽঅপাং নপা॒দ্যো ব॑ऽঊ॒র্মির্হ॑বি॒ষ্য᳖ऽইন্দ্রি॒য়াবা॑ন্ ম॒দিন্ত॑মঃ ।
    তং দে॒বেভ্যো॑ দেব॒ত্রা দ॑ত্ত শুক্র॒পেভ্যো॒ য়েষাং॑ ভা॒গ স্থ॒ স্বাহা॑ ॥ ২৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    দেবীরাপ ইত্যস্য মেধাতিথির্ঋষিঃ । আপো দেবতাঃ । নিচৃদার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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