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यजुर्वेद अध्याय - 6

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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 29
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भूरिक् आर्षी गायत्री, स्वरः - षड्जः
    77

    यम॑ग्ने पृ॒त्सु मर्त्य॒मवा॒ वाजे॑षु॒ यं जु॒नाः। स यन्ता॒ शश्व॑ती॒रिषः॒ स्वाहा॑॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम्। अ॒ग्ने॒। पृत्स्विति॑ पृ॒त्ऽसु। मर्त्य॑म्। अवाः॑। वाजे॑षु। यम्। जु॒नाः। सः। यन्ता॑। शश्व॑तीः। इषः॑। स्वाहा॑ ॥२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमग्ने पृत्सु मर्त्यमवा वाजेषु यञ्जुनाः । स यन्ता शश्वतीरिषः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यम्। अग्ने। पृत्स्विति पृत्ऽसु। मर्त्यम्। अवाः। वाजेषु। यम्। जुनाः। सः। यन्ता। शश्वतीः। इषः। स्वाहा॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 29
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    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ स विद्वांसं किमाहेत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे अग्ने त्वं! पृत्सु यं मर्त्यमवा यं च वाजेषु जुनाः स शश्वतीरिषो यन्ता स्यात्॥२९॥

    पदार्थः

    (यम्) (अग्ने) सर्वगुणवर! (पृत्सु) संग्रामेषु। पृत्स्विति संग्रामनामसु पठितम्। (निघं॰२।१७) (मर्त्यम्) मनुष्यम् (अवाः) रक्षेः (वाजेषु) अन्ननिमित्तक्षेत्रादिषु (यम्) (जुनाः) गमयेः (सः) (यन्ता) (शश्वतीः) अविनश्वराः (इषः) इष्यन्ते यास्ताः प्रजाः (स्वाहा) उत्साहिकया वाचा॥ अयं मन्त्रः (शत॰३। ९। ३। ३१-३२) व्याख्यातः॥२९॥

    भावार्थः

    गुरुशिक्षया सर्वस्य सुखं वर्द्धत एव॥२९॥

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    विषयः

    अथ स विद्वांसं किमाहेत्युपदिश्यते॥

    सपदार्थान्वयः

    हे अग्ने सर्वगुणवर! त्वं पृत्सु सङ्ग्रामेषु यं मर्त्यं मनुष्यम् अवाःरक्षेः, यं च वाजेषु अन्ननिमित्तक्षेत्राऽऽदिषु जुनाः गमयेः सः शश्वती: अविनश्वराः इषः इष्यन्ते यास्ताः प्रजा: [स्वाहा] उत्साहिकया वाचा यन्ता स्यात् ।। ६ । २९॥ [हे अग्ने! त्वं पृत्सु यं मर्त्यमवा....स शश्वतीरिषः [स्वाहा] यन्ता स्यात्]

    पदार्थः

    (यम्) (अग्ने) सर्वगुणवर! (पृत्सु) संग्रामेषु। पृत्स्विति संग्रामनामसु पठितम्।। निघं० २ । १७ ॥ ( मर्त्यम्) मनुष्यम् (अवाः) रक्षेः (वाजेषु) अन्ननिमित्तक्षेत्रादिषु (यम्) (जुना:) गमये: (सः) (यन्ता) (शश्वतीः) अविनश्वराः (इषः) इष्यन्ते यास्ताः प्रजा: (स्वाहा) उत्साहिकया वाचा॥ अयं मन्त्रः श० ३ । ९। ३ । ३१-३२ व्याख्यातः ॥ २९॥

    भावार्थः

    गुरुशिक्षया सर्वस्य सुखं वर्द्धत एव ।। ६ । २९।।

    विशेषः

    मधुच्छन्दाः। अग्निः=सर्वगुणसम्पन्नो विद्वान्॥ भुरिगार्षी गायत्री। षड्जः॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब वह अध्यापक को क्या कहता है, यह अगले मन्त्र में उपदेश किया है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) सब कभी विवेक के करने वाले आप! (पृत्सु) संग्रामों में (यम्) जिस मनुष्य की (अवाः) रक्षा करते और (वाजेषु) अन्न आदि पदार्थों की सिद्धि करने के निमित्त (यम्) जिसको (जुनाः) नियुक्त करते हो (सः) वह (शश्वतीः) निरन्तर अनादिरूप (इषः) अपनी प्रजाओं का (यन्ता) निर्वाह करने हारा होता है अर्थात् उन के नियमों को पहुंचाता है॥२९॥

    भावार्थ

    गुरुजनों की शिक्षा से सब का सुख बढ़ता ही है॥२९॥

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    विषय

    युद्ध के समय भी वैश्यवर्ग की कृषि आदि में व्यापृतता

    पदार्थ

    पिछले मन्त्र की समाप्ति ‘समोषधीभिरोषधीः’ पर हुई थी कि ओषधियाँ ओषधियों से सङ्गत हों, अर्थात् ओषधियों की कमी न हो जाए। उसी प्रकरण को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि राजा का कर्त्तव्य है कि संग्रामों के समय भी वैश्यवर्ग को पीड़ित न होने दे और ऐसी व्यवस्था करे कि उस समय भी ये अपने कृषि आदि कार्यों में लगे रह सकें। यदि युद्धों के आधिक्य के कारण वैश्य युवकों का भी सेना में प्रवेश वाच्छनीय हुआ तब कृषि आदि कार्य कैसे हो सकेंगे, अतः कहते हैं कि ( अग्ने ) = राष्ट्र का नेतृत्व करनेवाले राजन्! आप ( यं मर्त्यम् ) = जिस मनुष्य को ( पृत्सु ) = संग्रामों में ( अवाः ) = सुरक्षित रखते हो और ( यम् ) = जिसे ( वाजेषु ) = [ अन्ननिमित्त-क्षेत्रादिषु—द० ] अन्न आदि पदार्थों की सिद्धि करने के निमित्त [ क्षेत्रादि ] में ( जुनाः ) = [ गमयेः—द० ] नियुक्त करते हो ( सः ) = वह ( शश्वतीः ) = नष्ट न होनेवाले ( इषः ) = अन्नों को ( यन्ता ) = प्राप्त करता है, इसप्रकार उस राजा के राष्ट्र में अन्नों की कमी नहीं आती। ( स्वाहा ) = यह बात [ सु+आह ] वेद में उत्तमता से कही गई है।

    भावार्थ

    भावार्थ — राजा ऐसी व्यवस्था करे कि युद्ध के समय भी खेती आदि कार्य निर्बाधरूप से चलते रहें।

    टिप्पणी

    सूचना — अध्यात्म प्रकरण में अर्थ यह होगा—हे ( अग्ने ) = उन्नति साधक प्रभो! ( पृत्सु ) = काम- क्रोधादि से संग्रामों में ( यं मर्त्यम् ) = जिस मनुष्य की ( अवाः ) = आप रक्षा करते हो और ( यम् ) =  जिसको ( जुनाः ) = प्रेरणा प्राप्त कराते हो ( सः ) = वह ( शश्वतीः ) = क्रियामय अथवा सनातन ( इषः ) = प्रेरणाओं को ( यन्ता ) = प्राप्त होता है, अर्थात् हृदयस्थ आपकी प्रेरणाओं को सुनता है।

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    विषय

    योद्धाओं का वृति बन्धन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने )अग्रणी  नेतः ! राजन्(यम् मर्त्यम्  जिस पुरुष को तू ( पत्लु ) संग्रामों में (अव) रक्षा करता है और ( वाजेपु) संग्रामो मैं ( ) जिसको ( जुना: ) भेजता है ( सः ) वह पुरुष ही ( शक्तीः ) निरन्तर आजीवन प्राप्त होने योग्य ( इष: ) अन्न आदि वृत्तियोग्य पदार्थों को यन्ता ) प्राप्त हो । ( स्वाहा ) यह सबसे उत्तम व्यवस्था है । अर्थात् जो पुरुष संग्रामों में बचकर आजाय और जो संग्रामों में भेजे जाएँ राजा उनकी चिरकालिक या आजीवन या पुश्तैनी वृत्ति बांध दे । यह उत्तम व्यवस्था है | पेन्शन आदि देने का यही वैदिक आदेश है ॥ शत० ३ । ७ । ३ । ३२ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा ऋषिः । अग्निदेवता । भुरिगार्षी गायत्री। षड्जः ॥

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    विषय

    अब वह अध्यापक को क्या कहता है, यह उपदेश किया है॥

    भाषार्थ

    हे (अग्ने) सब गुणों का वरण करने वाले विद्वान् ! तू (पृत्सु) युद्धों में (यम्) जिस (मर्त्यम्) मनुष्य की (अवाः) रक्षा करता है और (यम्) जिसे (वाजेषु) अन्न के हेतु क्षेत्र आदि में (जुनाः) पहुँचाता है, वह मनुष्य (शश्वतीः) अविनाशी (इषः) कामना के योग्य प्रजा को [स्वाहा] उत्साहित करने वाली वाणी से (यन्ता) प्राप्त करने वाला हो ॥ ६। २९॥

    भावार्थ

    गुरुजनों की शिक्षा से सब का सुख बढ़ता ही है ॥ ६। २९ ॥

    प्रमाणार्थ

    (पृत्सु) यह शब्द निघं० (२।२७) में सङ्ग्राम-नामों में पढ़ा है। इस मन्त्र की व्याख्या (३।९।३। ३१-३२) में की गई है।। ६। २९।।

    भाष्यसार

    प्रत्येक व्यक्ति विद्वान् अध्यापक को क्या कहे--हे सब गुणों का वरण करने वाले विद्वान् अध्यापक! आप युद्धों में मनुष्यों की रक्षा करते हो, अन्न के उत्पत्ति-स्थान खेतों आदि में निर्बुद्धि जनों को ले जाते हो, जो वहाँ नाना प्रकार की औषधियों को उत्पन्न करते हैं। औषधियों से यज्ञ और यज्ञ से वर्षा, और वर्षा से सबको सुख होता है। इसलिये आप शाश्वत कमनीय प्रजा को प्राप्त करो।। ६। २९॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    गुरुजनांच्या शिकवणुकीमुळे सर्वांच्या सुखात वाढ होते.

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    विषय

    आता तो (वैश्य किंवा शिष्य) अध्यापकास काय म्हणतो, पुढील मंत्रात याविषयी वर्णन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) विवेकशील गुरुदेव, आपण (पृत्सु) संग्रामामधे (यम्) मनुष्याची (अवाः) रक्षा करतो आणि (वाजेषु) अन्न-धान्याच्या उत्पादनासाठी (यम्) ज्या मनुष्याची (जुनाः) नियुक्ती करता, (सः) तो (शश्‍वतीः) निरंतर व सातत्याने (इषः) आपल्या (राष्ट्रातील) प्रजाजनांच्या (यन्ता) जीवननिर्वाहासाठी साहाय्यकारी होतो अर्थात त्यांच्यापर्यंत नियमपूर्वक सर्व पदार्थ पोहचवितो. (गुरूकडून युद्धात वीरत्वाची आणि व्यापारात वैश्य कर्माची ज्या ज्या शिष्याने दीक्षा घेतली आहे, त्या क्षत्रियाने प्रजेचे रक्षण करावे आणि वैश्याने अन्न-धान्य, धन-संपदेची वृद्धी करून समाजाचे पोषण करावे) ॥29॥

    भावार्थ

    भावार्थ - गुरूजनांकडून प्राप्त शिक्षा-दीक्षा सर्वांसाठी (शिष्यासाठी व नागरिकासाठी) उपकारक ठरत असते. ॥29॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O farmer, thou art fit to cultivate the land, I uplift thee for the purification of space. Get waters from waters, and medicinal plants from plants.

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    Meaning

    Agni, lord of power and virtue, the man you protect in battles and the man you send to the fields for farming, such a man gets lasting food and progeny.

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    Translation

    O adorable Lord, that mortal, whom you protect in battles and whom you favour in struggles, gets the neverexhausting strength. Svaha. (1)

    Notes

    Prtsu, іп battles. Vajesu, in struggles. isah, strength, also food.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ স বিদ্বাংসং কিমাহেত্যুপদিশ্যতে ॥
    এখন সে অধ্যাপককে কী বলিতেছে, ইহা পরবর্ত্তী মন্ত্রে উপদেশ দেওয়া হইতেছে ।

    पदार्थ

    পদার্থ–হে (অগ্নে) সর্বগুণবর ! (পৃৎসু) সংগ্রামে (য়ম্) যে মনুষ্যের (অবাঃ) রক্ষা করেন এবং (বাজেষু) অন্নাদি পদার্থের সিদ্ধি করিবার নিমিত্ত (য়ম্) যাহাকে (জুনাঃ) নিযুক্ত করেন (সঃ) তিনি (শশ্বতীঃ) নিরন্তর অনাদিরূপ (ইষঃ) স্বীয় প্রজাদিগের (য়ন্তা) নির্বাহকারী হয় অর্থাৎ তাহাদের নিয়মগুলিকে পৌঁছাইয়া থাকে ॥ ২ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- গুরুজনদিগের শিক্ষা দ্বারা সকলের সুখ বৃদ্ধি হইয়া থাকে ॥ ২ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ম॑গ্নে পৃ॒ৎসু মর্ত্য॒মবা॒ বাজে॑ষু॒ য়ং জু॒নাঃ ।
    স য়ন্তা॒ শশ্ব॑তী॒রিষঃ॒ স্বাহা॑ ॥ ২ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়মগ্ন ইত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগার্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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