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यजुर्वेद अध्याय - 6

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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 5
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - विष्णुर्देवता छन्दः - आर्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
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    तद्विष्णोः॑ पर॒मं प॒दꣳ सदा॑ पश्यन्ति सूरयः॑। दि॒वीव॒ चक्षु॒रात॑तम्॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत्। विष्णोः॑। प॒र॒मम्। प॒दम्। सदा॑। प॒श्य॒न्ति॒। सू॒रयः॑। दि॒वी᳕वेति॑ दिविऽइ॑व। चक्षुः॑। आत॑त॒मित्यात॑तम् ॥५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्विष्णोः परमं पदँ सदा पश्यन्ति सूरयो दिवीव चक्षुराततम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तत्। विष्णोः। परमम्। पदम्। सदा। पश्यन्ति। सूरयः। दिवीवेति दिविऽइव। चक्षुः। आततमित्याततम्॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तदनुष्ठानेन किं फलमित्याह

    अन्वयः

    भो सभ्यजना! येन पूर्वोक्तेन कर्मणा सूरयः स्तोतारः विष्णोर्यत् परमं पदं दिवि आततं चक्षुरिव सदा पश्यन्ति, तेनैव तद् यूयमपि सततं पश्यत॥५॥

    पदार्थः

    (तत्) (विष्णोः) पूर्वमन्त्रप्रतिपादितस्य जगदुत्पत्तिस्थितिसंहृतिविधातुः परमेश्वरस्य (परमम्) सर्वोत्कृष्टम् (पदम्) प्राप्तुमर्हम् (सदा) सर्वस्मिन् काले (पश्यन्ति) अवलोकन्ते (सूरयः) वेदविदः स्तोतारः। सूरिरिति स्तोतृनामसु पठितम्। (निघं॰३।१६) (दिवीव) आदित्यप्रकाश इव (चक्षुः) चष्टेऽनेन तत् (आततम्) व्याप्तिमत्॥ अयं मन्त्रः (शत॰३। ७। १। ८) व्याख्यातः॥५॥

    भावार्थः

    अत्र मन्त्रे पूर्वमन्त्रान् (पश्यत) इत्यस्य पदस्यानुवृत्तिः क्रियते। पूर्णोपमालङ्कारश्चास्ति। निर्धूतमला विद्वांसः स्वविद्याप्रकाशेन यथेश्वरगुणान् दृष्ट्वा विशुद्धचरणशीला जायन्ते, तथाऽस्मिाभिरपि भवितव्यम्॥५॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    उक्त मन्त्र के विषय में जो अनुष्ठान कहा है, उससे क्या सिद्ध होता है, यह अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे सभ्यजनो! जिस पूर्वोक्त कर्म से (सूरयः) स्तुति करने वाले वेदवेत्ता जन (विष्णोः) संसार की उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले परमेश्वर के जिस (परमम्) अत्यन्त उत्तम (पदम्) प्राप्त होने योग्य पद को (दिवि) सूर्य के प्रकाश में (आततम्) व्याप्त (चक्षुः) नेत्र के (इव) समान (सदा) सब समय में (पश्यन्ति) देखते हैं (तत्) उस को तुम लोग भी निरन्तर देखो॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में पूर्व मन्त्र में (पश्यत) इस पद का अनुवर्त्तन किया जाता है और पूर्णोपमालङ्कार है। निर्धूत अर्थात् छूट गये हैं पाप जिन के वे विद्वान् लोग अपनी विद्या के प्रकाश से जैसे ईश्वर के गुणों को देख के सत्य धर्माचरयुक्त होते हैं, वैसे हम लोगों को भी होना चाहिये॥५॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात पूर्वीच्या मंत्रातील (पश्यत) या पदाची अनुवृत्ती झालेली आहे व पूर्णोपमालंकार आहे. पापरहित विद्वान लोक आपल्या ज्ञानयुक्त प्रकाशाने जसे ईश्वराचे गुण जाणून सत्यधर्माचे आचरण करतात तसे सर्व लोकांनी करावे.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The learned scholars of the Vedas realise the lofty attributes of God, as the extended eye gazes at the sun.

    Meaning

    Men of courage and divine knowledge, the Veda, always have a vision of that highest glory of Vishnu manifested everywhere and blazing like the light of the sun in heaven, which you too should see.

    बंगाली (1)

    विषय

    তদনুষ্ঠানেন কিং ফলমিত্যাহ ॥
    উক্ত মন্ত্রের বিষয়ে যে অনুষ্ঠান বলা হইয়াছে তদ্দ্বারা কী সিদ্ধ হয়, ইহা পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে সভ্যগণ ! যে পূর্বোক্ত কর্ম দ্বারা (সূরয়ঃ) স্তুতিকারী বেদবেত্তাগণ (বিষ্ণোঃ) সংসারের উৎপত্তি, পালন ও সংহারকারী পরমেশ্বরের যে (পরমম্) অত্যন্ত উত্তম (পদম্) প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য পদকে (দিবি) সূর্য্যের প্রকাশে (আততম্) ব্যাপ্ত (চক্ষুঃ) নেত্রের (ইব) সমান (সদা) সর্বদা (পশ্যন্তি) দেখিয়া থাকেন (তৎ) তাঁহাকে তোমরাও নিরন্তর দেখিতে থাক ॥ ৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে পূর্ব মন্ত্র হইতে (পশ্যত) এই পদের অনুবর্তন করা হইয়াছে এবং পূর্ণোপমালঙ্কার আছে । নির্দ্ধূত অর্থাৎ মুক্ত হইয়াছে পাপ যাহাদের সে সব বিদ্বান্গণ তাহারা স্বীয় বিদ্যার আলোক দ্বারা যেমন ঈশ্বরের গুণসকল দেখিয়া সত্য ধর্মাচারযুক্ত হন সেইরূপ আমাদিগকেও হওয়া প্রয়োজন ॥ ৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    তদ্বিষ্ণোঃ॑ পর॒মং প॒দꣳ সদা॑ পশ্যন্তি সূ॒রয়ঃ॑ ।
    দি॒বী᳖ব॒ চক্ষু॒রাত॑তম্ ॥ ৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    তদ্বিষ্ণোরিত্যস্য মেধাতিথির্ঋষিঃ । বিষ্ণুর্দেবতা । আর্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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