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यजुर्वेद अध्याय - 6

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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 6
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - आर्षी उष्णिक्,भूरिक् साम्नी बृहती स्वरः - ऋषभः,मध्यमः
    41

    प॒रि॒वीर॑सि॒ परि॑ त्वा॒ दैवी॒र्विशो॑ व्ययन्तां॒ परी॒मं यज॑मान॒ꣳ रायो॑ मनु॒ष्याणाम्। दि॒वः सू॒नुर॑स्ये॒ष ते॑ पृथि॒व्याँल्लो॒कऽआ॑र॒ण्यस्ते॑ प॒शुः॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒रि॒वीरिति॑ परि॒ऽवीः। अ॒सि॒। परि॑। त्वा॒। दैवीः॑। विशेः॑। व्य॒य॒न्ता॒म्। परि॑। इ॒मम्। यज॑मानम्। रायः॑। म॒नुष्या᳖णाम्। दि॒वः। सू॒नुः। अ॒सि॒। ए॒षः। ते। पृथि॒व्याम्। लो॒कः। आ॒र॒ण्यः। ते॒। प॒शुः ॥६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परिवीरसि परि त्वा दैवीर्विशो व्ययन्ताम्परीमँयजमानँ रायो मनुष्याणाम् । दिवः सूनुरस्येष ते पृथिव्याँल्लोक आरण्यस्ते पशुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    परिवीरिति परिऽवीः। असि। परि। त्वा। दैवीः। विशेः। व्ययन्ताम्। परि। इमम्। यजमानम्। रायः। मनुष्याणाम्। दिवः। सूनुः। असि। एषः। ते। पृथिव्याम्। लोकः। आरण्यः। ते। पशुः॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनरेतदुपासकः सभाध्यक्षः कीदृगित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे सभाध्यक्ष राजन्! त्वं परिवीः सर्वाविद्याव्यापकवदसि त्वा त्वां दैवीर्विशः परिव्ययन्ताम्। त्वं दिवः सूनुरिवासि, पृथिव्यामेष ते तव लोकोऽस्तु, आरण्यः पशुः सिंहादिरप्यधीनोऽस्तु॥६॥

    पदार्थः

    (परिवीः) यथा परितः सर्वतः सर्वा विद्याव्येति व्याप्नोति तथा (असि) (परि) सर्वतः (त्वा) त्वां सभाध्यक्षम् (दैवीः) देवानां विदुषामिमाः (विशः) प्रजाः (व्ययन्ताम्) विशिष्टतया प्राप्नुवन्तु जानन्तु वा (परि) सर्वतः (इमम्) प्रत्यक्षम् (यजमानम्) यज्ञानुष्ठातारम् (रायः) धनानि (मनुष्याणाम्) (दिवः) प्रकाशमयात् सूर्यात् सूयत उत्पद्यते किरणसमूह इव (असि) (एषः) (ते) तव (पृथिव्याम्) (लोकाः) राष्ट्रं राज्यस्थानम् (आरण्यः) अरण्ये भवः (ते) तव (पशुः) पश्यकश्चतुष्पात् सिंहादिः॥ अयं मन्त्रः (शत॰३। ७। १-२१) व्याख्यातः॥६॥

    भावार्थः

    राज्यमाचरन्तं राजानं प्रजाजना अभ्याश्रित्य करं विनयन्तु, स राजा प्रजापालनाय सिंहादिपशून् दस्युप्रभृतीञ्च निहत्य स्वप्रजा यथायोग्यं धर्मे संस्थापयेत्॥६॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर यह उपासना करने वाला सभाध्यक्ष किस प्रकार का होता है, यह अगले मन्त्र में उपदेश किया है॥

    पदार्थ

    हे सभाध्यक्ष राजन्! तू (परिवीः) सब विद्याओं में अच्छे आप्त होने वाले के समान (असि) है, (त्वाम्) तुझे (दैवीः) विद्वानों के (विशः) सन्तान के समान प्रजा (परि) (व्ययन्ताम्) सर्वव्याप्त अर्थात् सब ठिकाने व्याप्त हुए तेरे कार्यकारी हों (दिवः) प्रकाश के पुञ्ज सूर्य से (सूनुः) उत्पन्न हुए किरण समुदाय के तुल्य तू (असि) है, (ते) तेरा (पृथिव्याम्) पृथिवी में (लोकः) राजधानी का देश हो और (आरण्यः) बनैले सिंहादि दुष्ट पशु तेरे वश्य भी हों॥६॥

    भावार्थ

    राज्य का आचरण करते हुए राजा को प्रजा लोग प्राप्त होकर अपने पदार्थों का कर चुकावें और वह राजा उन प्रजाओं की रक्षा करने के लिये सिंह और शूकर वा अन्य और दुष्ट जीव तथा डाकू, चोर उठाईगीरे और गांठ कटे आदि दुष्ट जनों को दण्ड से वश में कर अपनी प्रजा को यथायोग्य धर्म में प्रवृत्त करे॥६॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेने राज्यव्यवस्थेप्रमाणे राजाला वस्तूंवरील कर द्यावा व राजानेही प्रजेचे रक्षण करण्यासाठी सिंह, वराह व इतर दुष्ट प्राणी आणि चोर, डाकू, लुटारू इत्यादी दुष्ट लोकांना दंड देऊन नियंत्रणात ठेवावे व प्रजेला धर्मात प्रवृत्त करावे.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O king, thou art the repository of knowledge like a sage. The learned subjects obey thee in all directions. May riches fit for men be secured by this intelligent devotee. Thou art lustrous like the beams of the sun. May all people on the earth and all beasts of the forest be under thy control.

    Meaning

    You are the centre of attraction, reverence and homage. You are the child of heaven like the sun. May the brilliant in knowledge and merit come to you in reverence. Yajamana as you are of the social yajna of this dominion, may the people of wealth all round be at your command in homage. The people of this land and the foresters are yours, so is the animal wealth of the land.

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনরেতদুপাসকঃ সভাধ্যক্ষঃ কীদৃগিত্যুপদিশ্যতে ॥
    পুনরায় এই উপাসনাকারী সভাধ্যক্ষ কী প্রকারের হয়, ইহা পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে সভাধ্যক্ষ রাজন্ । তুমি (পরিবীঃ) সর্ব বিদ্যাগুলির মধ্যে ভাল আপ্ত হওয়ার সমান (অসি) হও, (ত্বাম) তোমাকে (দৈবীঃ) বিদ্বান্দিগের (বিশঃ) সন্তান সম প্রজা (পরি) (ব্যয়ন্তাম্) সর্বব্যাপ্ত অর্থাৎ সকল দিক্ ব্যাপ্ত হইয়া তোমার কার্যকারী হউক, (দিবঃ) প্রকাশ পুঞ্জ সূর্য্য হইতে (সূনুঃ) উৎপন্ন কিরণ সমুদায়ের তুল্য তুমি (অসি) হও, (তে) তোমার (পৃথিব্যাম্) পৃথিবী তে (লোকঃ) রাজধানীর দেশ হউক এবং (আরণ্যঃ) বন্য সিংহাদি দুষ্ট পশু তোমার বশ্যও হউক ॥ ৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- রাজ্যের আচরণ মানিয়া রাজাকে প্রজাগণ প্রাপ্ত হইয়া নিজ বস্তুগুলির কর চুকাইবে এবং সেই রাজা সেই সব প্রজাদিগের রক্ষা করিবার জন্য সিংহ ও শূকর বা অন্যান্য দুষ্ট জীব তথা চোর-ডাকাইত, দস্যু ইত্যাদি দুষ্ট লোকদিগকে দন্ড দ্বারা বশ করিয়া প্রজাকে যথাযোগ্য ধর্মে প্রবৃত্ত করিবেন ॥ ৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    প॒রি॒বীর॑সি॒ পরি॑ ত্বা॒ দৈবী॒র্বিশো॑ ব্যয়ন্তাং॒ পরী॒মং য়জ॑মান॒ꣳ রায়ো॑ মনু॒ষ্যা᳖ণাম্ । দি॒বঃ সূ॒নুর॑স্যে॒ষ তে॑ পৃথি॒ব্যাঁল্লো॒কऽআ॑র॒ণ্যস্তে॑ প॒শুঃ ॥ ৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    পরিবীরিত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । আর্ষ্যুণিক্ ছন্দঃ । ঋষভঃ স্বরঃ । দিবঃ সূনুরসীত্যস্য ভুরিক্সাম্নী বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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