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यजुर्वेद अध्याय - 9

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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 1
    ऋषि: - इन्द्राबृहस्पती ऋषी देवता - सविता देवता छन्दः - स्वराट आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
    125

    देव॑ सवितः॒ प्रसु॑व य॒ज्ञं प्रसु॑व य॒ज्ञप॑तिं॑ भगा॑य। दि॒व्यो ग॑न्ध॒र्वः के॑त॒पूः केतं॑ नः पुनातु वा॒चस्पति॒र्वाजं॑ नः स्वदतु॒ स्वाहा॑॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देव॑। स॒वि॒त॒रिति॑ सवितः। प्र। सु॒व॒। य॒ज्ञम्। प्र। सु॒व॒। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। भगा॑य। दि॒व्यः। ग॒न्ध॒र्वः। के॒त॒पूरिति॑ केत॒ऽपूः। केत॑म्। नः॒। पु॒ना॒तु॒। वा॒चः। पतिः॑। वाज॑म्। नः॒। स्व॒द॒तु॒। स्वाहा॑ ॥१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देव सवितः प्रसुव यज्ञम्प्रसुव यज्ञपतिम्भगाय । दिव्यो गन्धर्वः केतुपूः केतन्नः पुनातु वाचस्पतिर्वाजन्नः स्वदतु स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देव। सवितरिति सवितः। प्र। सुव। यज्ञम्। प्र। सुव। यज्ञपतिमिति यज्ञऽपतिम्। भगाय। दिव्यः। गन्धर्वः। केतपूरिति केतऽपूः। केतम्। नः। पुनातु। वाचः। पतिः। वाजम्। नः। स्वदतु। स्वाहा॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    विद्वद्भिश्चक्रवर्त्ती कथं कथमुपदेष्टव्य इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे देव सवितस्त्वं भगाय स्वाहा यज्ञं प्रसुव, यज्ञपतिं प्रसुव, यतो दिव्यो गन्धर्वः केतपूर्वाचस्पतिः स्वाहा नः केतं पुनातु, नः स्वाहा वाजं स्वदतु॥१॥

    पदार्थः

    (देव) दिव्यगुणसम्पन्न (सवितः) सकलैश्वर्यसंयुक्त सम्राट्! (प्र) (सुव) ईर्ष्व (यज्ञम्) सर्वेषां सुखजनकं राजधर्मम् (प्र) (सुव) (यज्ञपतिम्) राजधर्मपालकम् (भगाय) समग्रैश्वर्य्याय (दिव्यः) प्रकाशमानेषु क्षत्रगुणेषु भवः (गन्धर्वः) गां पृथिवीं धरतीति, पृषोदरादिना गोशब्दस्य गम्भावः (केतपूः) यः केतं प्रज्ञां पुनाति पवित्रीकरोति सः (केतम्) प्रज्ञाम्। केतमिति प्रज्ञानामसु पठितम्। (निघं॰३।९) (नः) अस्माकं प्रजाराजपुरुषाणाम् (पुनातु) शुन्धतु (वाचस्पतिः) अध्ययनाध्यापनोपदेशैर्वाण्याः पालकः (वाजम्) अन्नम् (नः) अस्माकम् (स्वदतु) आभुनक्तु स्वाहा) वेदवाचा। अयं मन्त्रः (शत॰५। १। १। १६) व्याख्यातः॥१॥

    भावार्थः

    न्यायेन प्रजापालनं विद्याप्रदानकरणमेव राज्ञां यज्ञोऽस्ति॥१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    विद्वान् लोग चक्रवर्ती राजा को कैसा-कैसा उपदेश करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (देव) दिव्यगुणयुक्त (सवितः) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य वाले राजन्! आप (भगाय) सब ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (स्वाहा) वेदवाणी से (यज्ञम्) सब को सुख देने वाले राजधर्म का (प्र) (सुव) प्रचार और (यज्ञपतिम्) राजधर्म के रक्षक पुरुष को (प्र) (सुव) प्रेरणा कीजिये, जिससे (दिव्यः) प्रकाशमान दिव्य गुणों में स्थित (गन्धर्वः) पृथिवी को धारण और (केतपूः) बुद्धि को शुद्ध करने वाला (वाचस्पतिः) पढ़ने-पढ़ाने और उपदेश से विद्या का रक्षक सभापति राजपुरुष है, वह (नः) हमारी (केतम्) बुद्धि को (पुनातु) शुद्ध करे और हमारे (वाजम्) अन्न को सत्य वाणी से (स्वदतु) अच्छे प्रकार भोगे॥१॥

    भावार्थ

    न्याय से प्रजा का पालन और विद्या का दान करना ही राजपुरुषों का यज्ञ करना है॥१॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजपुरुषांचा यज्ञ म्हणजे न्यायाने प्रजापालन व विद्येचा प्रसार होय.

    English (2)

    Meaning

    O’ virtuous and prosperous king, preach through Vedas, the art of administration conducive to comfort and wealth. Direct duly the man at the helm of affairs. May thou, the embodiment of noble qualities, the sustainer of earth, and purifier of our wisdom, the protector of knowledge through the spread of education, improve our intellect, and share our wealth as directed by the Vedas.

    Meaning

    Deva Savita, lord of life, light the yajna (of Raj Dharma), consecrate and promote yajna, inspire, consecrate and promote the yajnapati (ruler of the land) for honour and prosperity. Brilliant sustainer of the earth, lord of the divine voice, purifier of intelligence, purify and inspire our intelligence with the divine voice of Veda. Generous purifier of food, purify and consecrate our yajnic food and taste it with favour and pleasure.

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