अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
सीसा॒याध्या॑ह॒ वरु॑णः॒ सीसा॑या॒ग्निरुपा॑वति। सीसं॑ म॒ इन्द्रः॒ प्राय॑च्छ॒त्तद॒ङ्ग या॑तु॒चात॑नम् ॥
स्वर सहित पद पाठसीसा॑य । अधि॑ । आ॒ह॒ । वरु॑ण: । सीसा॑य । अ॒ग्नि: । उप॑ । अ॒व॒ति॒ । सीस॑म् । मे॒ । इन्द्र॑: । प्र । अ॒य॒च्छ॒त् । तत् । अ॒ङ्ग । या॒तु॒ऽचात॑नम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सीसायाध्याह वरुणः सीसायाग्निरुपावति। सीसं म इन्द्रः प्रायच्छत्तदङ्ग यातुचातनम् ॥
स्वर रहित पद पाठसीसाय । अधि । आह । वरुण: । सीसाय । अग्नि: । उप । अवति । सीसम् । मे । इन्द्र: । प्र । अयच्छत् । तत् । अङ्ग । यातुऽचातनम् ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विघ्न के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(वरुणः) चाहने योग्य, समुद्रादि का जल (सीसाय) बन्धन काटनेवाले सामर्थ्य [ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति] के लिये (अधि) अधिकारपूर्वक (आह) कहता है, (अग्निः) व्यापक, सूर्य, बिजुली आदि अग्नि (सीसाय) बन्धन काटनेवाले सामर्थ्य [ब्रह्मज्ञान] के लिये (उप) समीप रह कर (अवति) रक्षा करता है। (इन्द्रः) महाप्रतापी परमेश्वर ने (सीसम्) बन्धन काटनेवाला सामर्थ्य [ब्रह्मज्ञान] (मे) मुझको (प्र-अयच्छत्) दिया है, (अङ्ग) हे भाई (तत्) वह सामर्थ्य (यातुचातनम्) पीडानाशक है ॥२॥
भावार्थ
जल, अग्नि, वायु आदि पदार्थ ईश्वर की आज्ञा से परस्पर मिलकर हमारे लिये बाहिर और भीतर से उपकारी होते हैं। वह ब्रह्मज्ञान प्रत्येक मनुष्य आदि प्राणी को परमेश्वर ने दिया है, उस ज्ञान को साक्षात् करके प्राणी दुःखों से छूट कर शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक आनन्द पाते हैं ॥२॥
टिप्पणी
टिप्पणी−(सीस) शब्द का धात्वर्थ [षिञ् बाँधना−क्विप्+षो नाश करना−क प्रत्यय] बन्धन का काटनेवाला है। लोक में वस्तुविशेष, सीसा को कहते हैं। सायणभाष्य में (सीस) का अर्थ “नदी के फेन आदि रूप द्रव्य” और ग्रिफ़िथ साहिब ने (lead) सीसा धातुविशेष किया है ॥ २−सीसाय। षिञ् बन्धने−क्विप्+षो नाशने-क। पृषोदरादित्वात् तुक् लोपे दीर्घः। सीं सितं बन्धं प्रतिबन्धं स्यति नाशयतीति सीसम्। प्रतिबन्धस्य विघ्नस्य नाशकसामर्थ्याय। ब्रह्मज्ञानप्राप्तये। अधि। अधिकारेण। आह। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि-लट्। ब्रवीति। वरुणः। १।३।३। वरणीयं समुद्रादिजलम्। अग्निः। १।६।२। व्यापकः। सूर्यविद्युदादिरूपोऽग्निः। उप। उपेत्य। अवति। रक्षति। व्याप्नोति। इन्द्रः। १।२।३। महाप्रतापी परमेश्वरः। प्र-अयच्छत्। पाघ्राध्मास्थाम्नादाण्। पा० ७।३।७८। इति दाण् दाने−यच्छादेशः−लङ्। प्रादात्। तत्। निर्दिष्टं सीसम्। अङ्ग। सम्बोधने। हे सखे। यातु-चातनम्। कृवापाजिमि०। उ० १।१। यत ताडने-उण्। चातयति नाशने−निरु० ६।३०। पीडानाशकम्। राक्षसनाशकम् ॥
विषय
सीसे की गोली
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार 'तुरीय अग्नि' ज्ञानोपदेश के द्वारा चोरों को परिवर्तित करने का प्रयत्न करता है। उसी समय इन्द्र, अर्थात् राजा भी दण्ड-भयादि के द्वारा उन्हें ठीक मार्ग पर लाने के लिए प्रयत्नशील होता है और वरुण न्यायाधीश राष्ट्र में दुष्टों को उचित दण्ड देता हुआ चोरों को समाप्त करता है, परन्तु जब ये प्रयत्न विफल हो जाते हैं तब (वरुण:) = बुराइयों का निवारण करनेवाला न्यायाधीश (सीसाय) = सीसे की गोली के लिए (अध्याह) = कहता है, अर्थात् यही विधान करता है कि इन्हें गोली से उड़ा दो। (अनि:) = उपदेष्टा ब्राह्मण भी (सीसाय) सीसे की गोली के लिए ही (उपावति) = [अव-कान्ति, इच्छा] इच्छा करता है। २. ऐसी स्थिति में औरों से रक्षा के लिए (इन्द्रः) = राजा मे मेरे लिए (सीसम्) = इन सीसे की गोलियों को (प्रायच्छत) = देता है और कहता है कि हे (अङ्ग) = प्रिय प्रजाजन! (तत्) = यह गोली ही (यातुचातनम्) = दैत्यों को, चोर आदि को नष्ट करनेवाली है, अर्थात् आवश्यक होने पर राजा की ओर से बन्दूक आदि का लाइसेंस मिल जाता है और उसके द्वारा इन यातुओं का नाश करना अभीष्ट होता है।
भावार्थ
न्यायाधीश, ब्राह्मण व राजा सभी न सुधरनेवाले चोरों को गोली मार देने का आदेश देते हैं।
भाषार्थ
(सीसाय) सीसे के प्रयोग के लिये (वरुणः१) राष्ट्र के पति ने ( अध्याह) अधिकारपूर्वक कहा है, (सीसाय) सीसे के प्रयोग के लिये (अग्निः) अग्रणी अर्थात् प्रधानमन्त्री (उपावति) स्वयं उपस्थित होकर हमारी रक्षा करता है। (इन्द्रः१) सम्राट् ने (मे) मुझ प्रजाजन को (सीसम्, प्रायच्छत्) सीसा प्रदान किया है, (अङ्ग) हे प्रिय ! (तत्) वह सीसा (यातुचातनम्) यातनाकारियों का नाशक है। (चातयतिर्नाशने), (यास्क ६। ३०) सीस= Lead धातु।
टिप्पणी
[१. इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा (यजु० ८।३७) । सम्राट् है संयुक्त राष्ट्रों का अधिपति और वरुण है एक राष्ट्र का अधिपति और अग्नि है अग्रणी प्रधानमन्त्री ।]
विषय
दुष्टों के नाश का उपाय।
भावार्थ
( वरुणः ) वरुण, शत्रु के नाश के लिये (सीसाय) सीसे का (अधि आह) उपदेश करता है ( अग्निः ) अग्नि भी ( सीसाय ) सीसे के प्रयोग द्वारा ही प्रजाओं की ( उपावति ) रक्षा करता है। ( इन्द्रः) इन्द्र अर्थात् ऐश्वर्यवान् राजा ने (मे) मुझे (सीसं) सीसा ( प्र अयच्छत् ) रक्षार्थ दिया है, ( अङ्ग ) हे पुरुषो ! ( तद् ) वह सीसा ही ( यातुचातनम् ) पीड़ाजनक दुष्ट पुरुषों का विनाशक है।
टिप्पणी
‘वरुण’ राष्ट्र के कष्टों का वारण करने वाला राज्य का अधिकारी जो समस्त प्रजाओं की रक्षा करता रहे अर्थात् राजा । अग्निः=राज्य प्रबन्ध का अग्रणी अर्थात मुख्य मंत्री, इन्द्र सेनापति ये सीसे के बलपर शत्रुओं का नाश करते हैं। अथवा वारुणास्त्र अग्नियास्त्र और ऐन्द्रास्त्र तीनों में सीसा की ही गोलियां चलाकर शत्रु का नाश किया जाय । अर्थात जल के वेग से अग्नि या बारूद के वेग से और विद्युत् के वेग से सीसे के छरें ही चलाकर शत्रु का नाश करना उचित है।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चातन ऋषिः । अग्नीन्द्रो, वरुणः, सीसश्च देवताः। १-३ अनुष्टुभः ४ ककुम्मती अनुष्टुप्। चतुऋचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Elimination of Thieves
Meaning
Varuna, powers of law and order, speak of the efficiency of lead. By lead, Agni, fire power, protects the people. May Indra, the ruling power, give me the lead for protection. O dear friend, lead is the destroyer of antisocials, thieves and robbers.
Subject
Varuna, Agni and Indra
Translation
The venerable Lord (Varuna) has said about sisa (a metal). The adorable Lord (Agni) approves the use of lead. The resplendent Lord (Indra) has given lead (the metal) to me. O dear one, that lead is the dispeller of robbers.
Translation
Varuna, the scientist tell us highly of the lead, the commander protects the subjects by the use of lead and the Indrah, the heat present in the recess of earth creates and give it us. O ye men; this lead is the most destructive means to dispel wickeds and foes.
Translation
The king advises the use of lead, the Prime Minister protects the subjects through the use of lead bullets, the commander-in-chief has given me lead bullets for safety. O dear, lead verily repels the fiends.
Footnote
Pt. Khem Karan Das Trivedi has translated ‘for the attainment of divine knowledge’. This knowledge averts all miseries, and misfortunes.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
टिप्पणी−(सीस) शब्द का धात्वर्थ [षिञ् बाँधना−क्विप्+षो नाश करना−क प्रत्यय] बन्धन का काटनेवाला है। लोक में वस्तुविशेष, सीसा को कहते हैं। सायणभाष्य में (सीस) का अर्थ “नदी के फेन आदि रूप द्रव्य” और ग्रिफ़िथ साहिब ने (lead) सीसा धातुविशेष किया है ॥ २−सीसाय। षिञ् बन्धने−क्विप्+षो नाशने-क। पृषोदरादित्वात् तुक् लोपे दीर्घः। सीं सितं बन्धं प्रतिबन्धं स्यति नाशयतीति सीसम्। प्रतिबन्धस्य विघ्नस्य नाशकसामर्थ्याय। ब्रह्मज्ञानप्राप्तये। अधि। अधिकारेण। आह। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि-लट्। ब्रवीति। वरुणः। १।३।३। वरणीयं समुद्रादिजलम्। अग्निः। १।६।२। व्यापकः। सूर्यविद्युदादिरूपोऽग्निः। उप। उपेत्य। अवति। रक्षति। व्याप्नोति। इन्द्रः। १।२।३। महाप्रतापी परमेश्वरः। प्र-अयच्छत्। पाघ्राध्मास्थाम्नादाण्। पा० ७।३।७८। इति दाण् दाने−यच्छादेशः−लङ्। प्रादात्। तत्। निर्दिष्टं सीसम्। अङ्ग। सम्बोधने। हे सखे। यातु-चातनम्। कृवापाजिमि०। उ० १।१। यत ताडने-उण्। चातयति नाशने−निरु० ६।३०। पीडानाशकम्। राक्षसनाशकम् ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(বরুণঃ) সমুদ্রাদির জল (সীসায়) বন্ধন কাটিবার সামর্থের জন্য (অধি) অধিকার পূর্বক (আহ) বলে। (অগ্নিঃ) বিদ্যুৎ (সীসায়) বন্ধন কাটিবার সামর্থের জন্য (উপ) নিকটে অবস্থান করিয়া (অবতি) রক্ষা করে। (ইন্দ্রঃ) ঐশ্বর্যবান পরমেশ্বর (সীসম্) বন্ধন কাটিবার সামর্থ (মে) আমাকে (প্র অয়চ্ছৎ) দিয়াছেন (অঙ্গ) হে মনুষ্য! (তৎ) তাহা (য়াতুচাতনম্) পীড়া নাশক।।
भावार्थ
সমুদ্রের জল বন্ধন ছেদনের সামর্থ ঘোষণা করে, বিদ্যুৎ বন্ধন ছেদনের সামর্থ রূপে নিকটে অবস্থান করিয়া আমাদিগকে রক্সা করে। প্রতাপশালী পরমাত্মা আমার মধ্যে বন্ধন ছেদনের সামর্থকে দান করিয়াছেন। হে মনুষ্য! সে সামর্থে দুঃখ শে বিদূরিত হয়।
ভৌতিক পদার্থ সমূহ ঈশ্বরের বিধানানুসারে পরস্পর মিলিত হইয়া আমাদিগকে রক্ষা করিতেছে।।
मन्त्र (बांग्ला)
সীসায়াধ্যাহ বরুণঃ সীসায়াগ্নিরূপাবতি। সীসং ম ইন্দ্ৰঃ প্রায়চ্ছৎ তদঙ্গ য়াতুচাতনম্ ।।
ऋषि | देवता | छन्द
চাতনঃ। বরুণঃ, অগ্নিঃ ইন্দ্ৰশ্চ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(বিঘ্ননাশনোপদেশঃ) বিঘ্ন নাশের উপদেশ।
भाषार्थ
(বরুণঃ) কাঙ্ক্ষিত/কামানাযোগ্য, সমুদ্রাদির জল (সীসায়) বন্ধন ছিন্নকারী সামর্থ্যের [ব্রহ্মজ্ঞানের প্রাপ্তির] জন্য (অধি) অধিকারপূর্বক (আহ) বলে, (অগ্নিঃ) ব্যাপক, সূর্য, বিদ্যুৎ আদি অগ্নি (সীসায়) বন্ধন ছিন্নকারী সামর্থ্য [ব্রহ্মজ্ঞান] এর জন্য (উপ) সমীপে থেকে (অবতি) রক্ষা করে। (ইন্দ্রঃ) মহাপ্রতাপী পরমেশ্বর (সীসম্) বন্ধন ছিন্নকারী সামর্থ্য [ব্রহ্মজ্ঞান] (মে) আমাকে (প্র-অয়চ্ছৎ) প্রদান করেছেন, (অঙ্গ) হে ভ্রাতা (তৎ) সেই সামর্থ্য (যাতুচাতনম্) পীড়ানাশক॥২॥
भावार्थ
জল, অগ্নি, বায়ু আদি পদার্থ ঈশ্বরের আজ্ঞা দ্বারা পরস্পর মিলিত হয়ে আমাদের জন্য বাইরে এবং ভেতর থেকে উপকারী হয়। সেই ব্রহ্মজ্ঞান প্রত্যেক মনুষ্য আদি প্রাণীকে পরমেশ্বর প্রদান করেছেন, সেই জ্ঞানকে সাক্ষাৎ করে প্রাণী দুঃখসমূহ থেকে মুক্ত হয়ে শারীরিক, আত্মিক এবং সামাজিক আনন্দ প্রাপ্ত হয়॥২॥ (সীস) শব্দের ধাত্বর্থ [ষিঞ্ বাঁধা−ক্বিপ্+ষো নাশ করা−ক প্রত্যয়] বন্ধনছিন্নকারী। সংসারে বস্তুবিশেষ, সীসাকে বলা হয়। সায়ণভাষ্যে (সীস) এর অর্থ "নদীর ফেন আদি রূপ দ্রব্য" এবং গ্রিফিথ সাহেব (lead) সীসা ধাতুবিশেষ করেছেন॥
भाषार्थ
(সীসায়) সীসার প্রয়োগের জন্য (বরুণঃ) রাষ্ট্রের পতি (অধ্যাহ) অধিকারপূর্বক বলেছেন, (সীসায়) সীসার প্রয়োগের জন্য (অগ্নিঃ) অগ্রণী অর্থাৎ প্রধানমন্ত্রী (উপাবতি) স্বয়ং উপস্থিত হয়ে আমাদের রক্ষা করেন। (ইন্দ্রঃ১) সম্রাট্ (মে) [আমাদের] প্রজাদের (সীসম্, প্রায়চ্ছৎ) সীসা প্রদান করেছেন, (অঙ্গ) হে প্রিয় ! (তৎ) সেই সীসা (যাতুচাতনম) যাতনাদায়কদের বিনাশক হয়। (চাতয়তির্নাশনে), (যাস্ক ৬।৬।৩০) সীসা=Lead ধাতু।
टिप्पणी
[১. ইন্দ্রশ্চ সম্রাড বরুণশ্চ রাজা (যজু০ ৮।৩৭)। সম্রাট হলেন সংযুক্ত রাষ্ট্রের অধিপতি এবং বরুণ হলেন এক রাষ্ট্রের অধিপতি এবং অগ্নি হলো অগ্রণী প্রধানমন্ত্রী ।]
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