अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 38/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - गुल्गुलुः
छन्दः - चतुष्पदोष्णिक्
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
47
विष्व॑ञ्च॒स्तस्मा॒द्यक्ष्मा॑ मृ॒गा अश्वा॑ इवेरते। यद्गु॑ल्गु॒लु सै॑न्ध॒वं यद्वाप्यसि॑ समु॒द्रिय॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठविष्व॑ञ्चः। तस्मा॑त्। यक्ष्माः॑। मृ॒गाः। अश्वाः॑ऽइव। ई॒र॒ते॒। यत्। गु॒ल्गु॒लु। सै॒न्ध॒वम्। यत्। वा॒। अपि॑। असि॑। स॒मु॒द्रिय॑म् ॥३८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
विष्वञ्चस्तस्माद्यक्ष्मा मृगा अश्वा इवेरते। यद्गुल्गुलु सैन्धवं यद्वाप्यसि समुद्रियम् ॥
स्वर रहित पद पाठविष्वञ्चः। तस्मात्। यक्ष्माः। मृगाः। अश्वाःऽइव। ईरते। यत्। गुल्गुलु। सैन्धवम्। यत्। वा। अपि। असि। समुद्रियम् ॥३८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(तस्मात्) उस [पुरुष] से (विष्वञ्चः) सब ओर फैले हुए (यक्ष्माः) राजरोग, (मृगाः) हरिण [वा] (अश्वा इव) घोड़ों के समान (ईरते) दौड़ जाते हैं। (यत्) जहाँ पर तू (सैन्धवम्) नदी से उत्पन्न, (वा) अथवा (यत्) जहाँ पर (समुद्रियम्) समुद्र से उत्पन्न हुआ (अपि) ही (गुल्गुलु) गुल्गुलु [गुग्गुल] (असि) होता है ॥२॥
भावार्थ
गुग्गुल नदी वा समुद्र के पास के वृक्ष विशेष का निर्यास अर्थात् गोंद होता है, उसको अग्नि पर जलाने से सुगन्ध उठता है, जिससे अनेक रोग नष्ट होते हैं ॥२, ३॥
टिप्पणी
२−(विष्वञ्चः) विष्वगञ्चनाः नाना देशव्याप्ताः (तस्मात्) पुरुषात् (यक्ष्माः) राजरोगाः (मृगाः) जन्तुविशेषाः (अश्वाः) तुरङ्गाः (इव) यथा (ईरते) धावन्ति (यत्) यत्र (गुल्गुलु) म०१। गुग्गुलु (सैन्धवम्) नदीप्रदेशजम् (यत्) यत्र (वा) अथवा (अपि) एव (असि) अस्ति (समुद्रियम्) समुद्रभवम् ॥
भाषार्थ
(यद्) जो (गुल्गुलु) गुग्गुल (सैन्धवम्) नदीप्रदेशोत्पन्न, (अपि वा) अथवा (यद्) जो गुग्गुल (समुद्रियम्) समुद्रदेशोत्पन्न (असि=अस्ति) है, (उभयोः) इन दोनों का (नाम) नाम (अस्मै) इस व्यक्ति के लिये (अरिष्टतातये) क्षेमविस्तारार्थ, (अग्रभम्) मैं=चिकित्सक ने लिया है। गुग्गुल का सेवन करनेवाले (तस्मात्) उस व्यक्ति से (विष्वञ्चः) नाना देशव्यापी (यक्ष्माः) यक्ष्मा रोग ऐसे (ईरते) कम्पित हो जाते हैं, (इव) जैसे कि [वन्य हिंस्र जन्तु से] (मृगाः अश्वाः) मृग और अश्व कम्पित हो जाते हैं।[ईरते= ईर कम्पने। नाम अग्रभम्=नामनिर्देश करना, ओषध का कथन करना, यक्ष्मरोग की निवृत्ति के लिये।
विषय
यक्ष्मा-विनाश
पदार्थ
१. (यत्) = जो (गुल्गुलु) = गुग्गुल (सैन्धवम्) = नदी के तट पर उत्पन्न होनेवाला है, (यद् वा) = अथवा जो (समुद्रियम्) = समुद्र के किनारे (अपि असि) = भी उत्पन्न होनेवाला है। (तस्मात) = उसके प्रयोग से (यक्ष्मा:) = रोग (विष्वञ्च:) = विविध दिशाओं में गतिवाले होते हुए (अश्वा:) = मार्गों का शीघ्रता से व्यापन करनेवाले (मृगा: इव) = मृगों के समान (ईरते) = भाग खड़े होते हैं। २. (अस्मै) = इस रोगी के लिए (आरिष्टतातये) = कल्याण के विस्तार के लिए (उभयो:) = सैन्धव व समुद्रिय दोनों ही गुग्गुलों के (नाम अग्रभम्) = स्वरूप [form] को प्रतिपादित करता हूँ।
भावार्थ
गुग्गुल चाहे नदी तट पर उद्भुत हो, चाहे समुद्र तट पर, दोनों ही गुग्गुल यक्ष्मा रोग को भागने में समर्थ हैं। अगले सूक्त में ऋषि 'भृगु अंगिरा:' है-तपस्याग्नि में अपने को परिपक्व करनेवाला अंग-प्रत्यंग में रस के संचारवाला! यह 'कुष्ठ' औषध के प्रयोग से रोगनाश का प्रतिपादन करता है -
विषय
राजयक्ष्मा नाशक गुलगुलु औषधि।
भावार्थ
(यद्) जो (गुलगुलु) गूगल (सैन्धवं) सिन्धु से उत्पन्न है अर्थात् नदी के तटों पर उत्पन्न होता है और (यद् वा अपि) और जो (समुद्रियम् असि) समुद्र के तट पर उत्पन्न होता है। (उभयोः) उन दोनों के (नाम) नाम, स्वरूप का (अस्मै) इस पुरुष के (अरिष्टतातये) कल्याण के लिये (अग्रभम्) उपदेश करता हूं।
टिप्पणी
‘गुग्गुलु’, ‘यद्वाप्यसि’ इति क्वचित्। ‘यक्ष्माद् भृगायसाय वेधसे’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता गुलगुलुर्देवता। १ अनुष्टुप्। २ चतुष्पदा उष्णिक्। ३ एकावसाना प्राजापत्यानुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Disease
Meaning
All cancerous diseases run away from him, fast as deer and horses, whether the gulgulu is from the river or from the sea.
Translation
Away from it scatter all the wasting diseases like fast-fleeing antelopes; O guggulu, even if you are (procured) from a river, or if you are from the sea.
Translation
Neither consumption encompasses not the curse of any disease touches him whom the delicious color of Bdellium (the gum of Borassus Flebellifermis) panetrates.
Translation
All kinds of consumptive disease run away like the fast-running deer, from this medicine, which is called gugglu, from the trees grown by the river-side or even by the sea-coast.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(विष्वञ्चः) विष्वगञ्चनाः नाना देशव्याप्ताः (तस्मात्) पुरुषात् (यक्ष्माः) राजरोगाः (मृगाः) जन्तुविशेषाः (अश्वाः) तुरङ्गाः (इव) यथा (ईरते) धावन्ति (यत्) यत्र (गुल्गुलु) म०१। गुग्गुलु (सैन्धवम्) नदीप्रदेशजम् (यत्) यत्र (वा) अथवा (अपि) एव (असि) अस्ति (समुद्रियम्) समुद्रभवम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal