अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 101/ मन्त्र 2
अ॒ग्निम॑ग्निं॒ हवी॑मभिः॒ सदा॑ हवन्त वि॒श्पति॑म्। ह॑व्य॒वाहं॑ पुरुप्रि॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निम्ऽअ॑ग्निम् । हवी॑ऽभि: । सदा॑ । ह॒व॒न्त॒ । वि॒श्पति॑म् ॥ ह॒व्य॒ऽवाह॑म् । पु॒रु॒ऽप्रि॒यम् ॥१०१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निमग्निं हवीमभिः सदा हवन्त विश्पतिम्। हव्यवाहं पुरुप्रियम् ॥
स्वर रहित पद पाठअग्निम्ऽअग्निम् । हवीऽभि: । सदा । हवन्त । विश्पतिम् ॥ हव्यऽवाहम् । पुरुऽप्रियम् ॥१०१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्यो !] (हवीमभिः) ग्रहण करने योग्य व्यवहारों से (विश्पतिम्) प्रजाओं के पालनेवाले, (हव्यवाहम्) देने-लेने योग्य पदार्थों के पहुँचानेवाले, (पुरुप्रियम्) बहुत प्रिय करनेवाले (अग्निमग्निम्) अग्नि-अग्नि [अर्थात् पृथिवी की आग, बिजुली और सूर्य] को (सदा) सदा (हवन्त) तुम ग्रहण करो ॥२॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि प्रसिद्ध अग्नि, बिजुली और सूर्य को कला यन्त्र आदि में प्रयुक्त करके सदा सुख की वृद्धि करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(अग्निमग्निम्) प्रत्येकप्रकारं विद्युत्सूर्यपार्थिवाग्निरूपम् (हवीमभिः) अथ० २०।७२।३। ग्राह्यव्यवहारैः (सदा) (हवन्त) गृह्णीत (विश्पतिम्) प्रजानां पालकम् (हव्यवाहम्) दातव्यग्राह्यपदार्थप्रापकम् (पुरुप्रियम्) बहुहितकरम् ॥
विषय
'पुरु प्रिय' प्रभु का आह्वान
पदार्थ
१. जो भी संसार में समझदारी से चलते हैं वे (अग्निम्) = उस अग्रणी प्रभु को और (अग्निम्) = उस प्रभु को ही (हवीमभि:) = आह्वान के साधनभूत मन्त्रों से (सदा) = हमेशा (हवन्त) = पुकारते हैं। प्राकृति का चुनाव करने से मनुष्य घाटे में ही रहता है। ठीक-ठीक बात तो यह है कि कुछ अपने ज्ञान को भी खो बैठता है। २. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि प्रभु ही (विश्पतिम्) = सब प्रजाओं के पति-पालक व रक्षक हैं और जब प्रभु रक्षक हैं तब हमें भय किस बात का? वे प्रभु (हव्यवाहम्) = सब हव्य-पवित्र यज्ञिय पदार्थों को प्राप्त करानेवाले हैं, वे (पुरुप्रियम्) = पालक व पूरक हैं और अतएव प्रिय हैं। प्रभु को प्राप्त करने पर उपासक को एक ऐसा अवर्णनीय आनन्द प्राप्त होता है कि और सब-कुछ उसे हेय-सा प्रतीत होता है।
भावार्थ
प्रभु 'विश्पति, हव्यवाह व पुरुप्रिय' हैं। हम उस अग्नि नामक प्रभु को पुकारते हैं।
भाषार्थ
(विश्पतिम्) सब प्रजाओं के स्वामी तथा रक्षक, (हव्यवाहम्) भक्तिरसरूपी हवि के स्वीकर्त्ता, या खान-पान के योग्य पदार्थ प्राप्त करानेवाले, (पुरुप्रियम्) सर्वप्रिय (अग्निम्) आगे ले जानेवाले, तथा (अग्निम्) सर्वाग्रणी का, (हवीमभिः) आह्वान-मन्त्रों द्वारा, उपासक (सदा हवन्त) सदा आह्वान करते हैं।
टिप्पणी
[अग्निः अग्रणीर्भवति (निरु০ ७.४.१४)। तथा “अग्ने नय सुपथा” (यजुः০ ४०.१६)।]
विषय
विद्वान् राजा।
भावार्थ
हम (हवीमभिः) स्तुतियों और उत्तम उपायों से (विश्पतिम्) प्रजा के पालक राजा (अग्निम्) अग्नि के समान तेजस्वी और ज्ञानवान्,नेता (हव्यवाहम्) प्राप्तव्य उद्देश्य तक ले जाने वाले (पुरुप्रियम्) बहुतों के प्रिय, सर्वप्रिय, लोकप्रिय, पुरुष को (सदा हवचन्त) सदा आदर करो, भेंट आदि उत्तम पदार्थ प्रदान करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेधातिथिर्ऋषिः। अग्निर्देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
India Devata
Meaning
We choose Agni visible and invisible, and invoke it with faith and holy action, Agni which is the protector of the people, carrier of yajnic fragrance, and favourite of the wise.
Translation
O people, you ever take into use this refulgent and impellent fire with oblatory substances. This is the protector of creatures, carrier of oblations and operator of many favourable performances.
Translation
O people, you ever take into use this refulgent and impellent fire with oblatory substances. This is the protector of creatures, carrier of oblations and operator of many favorable performances.
Translation
O Splendorous Lord, king, leader, learned person or fire (light) latest Thee provide the divine powers or forces, revealing Thyself in this vast universe or nation. Thou art the worship-worthy Benefactor of us all.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(अग्निमग्निम्) प्रत्येकप्रकारं विद्युत्सूर्यपार्थिवाग्निरूपम् (हवीमभिः) अथ० २०।७२।३। ग्राह्यव्यवहारैः (सदा) (हवन्त) गृह्णीत (विश्पतिम्) प्रजानां पालकम् (हव्यवाहम्) दातव्यग्राह्यपदार्थप्रापकम् (पुरुप्रियम्) बहुहितकरम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
ভৌতিকাগ্নিগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে মনুষ্যগণ!] (হবীমভিঃ) গ্রহণযোগ্য ব্যবহার দ্বারা (বিশ্পতিম্) প্রজাদের পালনকারী, (হব্যবাহম্) প্রদান-গ্রহণ/আদান-প্রদান যোগ্য পদার্থসমূহের প্রেরক, (পুরুপ্রিয়ম্) বহু হিতকর (অগ্নিমগ্নিম্) অগ্নি-অগ্নি [অর্থাৎ পার্থিবাগ্নি, বিদ্যুৎ এবং সূর্য]-কে (সদা) সর্বদা (হবন্ত) তোমরা গ্রহণ করো ॥২॥
भावार्थ
মানুষের উচিৎ, এই প্রসিদ্ধ অগ্নি, বিদ্যুৎ এবং সূর্যকে কলা যন্ত্র আদিতে প্রযুক্ত করে সর্বদা সুখ বৃদ্ধি করা ॥২॥
भाषार्थ
(বিশ্পতিম্) সকল প্রজাদের স্বামী তথা রক্ষক, (হব্যবাহম্) ভক্তিরসরূপী হবির স্বীকর্ত্তা, বা খাদ্য-পানীয় যোগ্য পদার্থ প্রেরণকারী, (পুরুপ্রিয়ম্) সর্বপ্রিয় (অগ্নিম্) অগ্রণী, তথা (অগ্নিম্) সর্বাগ্রণীর, (হবীমভিঃ) আহ্বান-মন্ত্র-সমূহ দ্বারা, উপাসক (সদা হবন্ত) সদা আহ্বান করে।
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