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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 103 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 103/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भर्गः देवता - अग्निः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०३
    43

    अग्न॒ आ या॑ह्य॒ग्निभि॒र्होता॑रं त्वा वृणीमहे। आ त्वाम॑नक्तु॒ प्रय॑ता ह॒विष्म॑ती॒ यजि॑ष्ठं ब॒र्हिरा॒सदे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । आ । या॒हि॒ । अ॒ग्निऽभि॑: । होता॑रम् । त्वा॒ । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥ आ । त्वाम् । अ॒न॒क्तु॒ । प्रऽय॑ता । ह॒विष्म॑ती । वजि॑ष्ठम् । ब॒र्हि:। आ॒ऽसदे॑ ॥१०३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्न आ याह्यग्निभिर्होतारं त्वा वृणीमहे। आ त्वामनक्तु प्रयता हविष्मती यजिष्ठं बर्हिरासदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । आ । याहि । अग्निऽभि: । होतारम् । त्वा । वृणीमहे ॥ आ । त्वाम् । अनक्तु । प्रऽयता । हविष्मती । वजिष्ठम् । बर्हि:। आऽसदे ॥१०३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 103; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्नि ! [प्रकाशस्वरूप परमेश्वर] (अग्निभिः) ज्ञानप्रकाशों के साथ (आ याहि) तू प्राप्त हो, (होतारम्) दानी (त्वा) तुझको (वृणीमहे) हम स्वीकार करते हैं। (प्रयता) नियमयुक्त (हविष्मती) भक्तिवाली प्रजा (बर्हिः) वृद्धि (आसदे) पाने के लिये (यजिष्ठम्) अत्यन्त संयोग-वियोग करनेवाले (त्वा) तुझको (आ) सब प्रकार से (अनक्तु) प्राप्त होवे ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा की आज्ञा में रहकर सदा वृद्धि करें ॥२॥

    टिप्पणी

    मन्त्र २, ३ ऋग्वेद में हैं-८।६० [सायणभाष्य ४९]।१, २; सामवेद-उ० ७।२।७ ॥ २−(अग्ने) हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर (आ याहि) प्राप्तो भव (अग्निभिः) ज्ञानप्रकाशैः (होतारम्) दातारम् (त्वा) त्वाम् (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (आ) समन्तात् (त्वाम्) परमेश्वरम् (अनक्तु) अञ्जू गतौ। प्राप्नोतु (प्रयता) यम-क्त। नियमयुक्त (हविष्मती) भक्तिमती प्रजा (यजिष्ठम्) यष्टृ-इष्ठन्। अतिशयेन यष्टारं संयोगवियोगकर्तारम् (बर्हिः) वृद्धिम् (आसदे) प्राप्तुम् ॥

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    विषय

    अग्नियों के साथ 'अग्नि'

    पदार्थ

    १.हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो! आप (अग्निभिः) = उत्तम मातारूप दक्षिणाग्नि, उत्तम पितारूप गाईपत्याग्नि तथा उत्तम आचार्यरूप (आह्वानीय) = अग्नि के साथ (आयाहि) = हमें प्राप्त होइए। (होतारम्) = सब-कुछ देनेवाले (त्वा) = आपको (वृणीमहे) = हम वरते हैं। आपकी प्राप्ति से सब-कुछ प्रास हो ही जाता है। २. (यजिष्ठम्) = अतिशयेन पूजनीय (त्वाम्) = आपको (बर्हिः आसदे) = हदयासन पर बिठाने के लिए हविष्मती-हवि से युक्त यह प्रयता-पवित्र वेदवाणी अनक्तु हमारे जीवनों में प्राप्त कराए। यज्ञ व ज्ञान हमें प्रभु के समीप प्राप्त करानेवाले हों।

    भावार्थ

    उत्तम माता-पिता व आचार्य को प्राप्त करके, ज्ञान को प्राप्त करते हुए, हम प्रभु के समीप पहुँचते हैं। यज्ञों से युक्त पवित्र वेदवाणी हमें प्रभु की समीपता में प्राप्त कराती है।

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे प्रकाशस्वरूप जगन्नेता! आप अपने (अग्निभिः) प्रज्वलित तेजों के साथ (आ याहि) प्रकट हूजिए। (त्वा होतारम्) आप दानी का (वृणीमहे) हम वरण करते हैं। (प्रयता) संयम-सम्पन्न हमारी बुद्धि (हविष्मती) समपर्णरूपी हवि की भेंट लेकर, (यजिष्ठम्) यज्ञों को सफल करनेवाले (त्वा) आपको (आ अनक्तु) पूर्णतया अभिव्यक्त करे, ताकि (बर्हिः) हृदयासनों पर आप (आसदे) आ विराजें।

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    विषय

    परमेश्वर, विद्वान्, राजा।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्ने ! विद्वन् ! हे राजन् ! नेतः ! तू (अग्निभिः) अन्य ज्ञानवान् विद्वानों के साथ और तू अन्य नेताओं के साथ (आयाहि) हमें प्राप्त हो। हे परमेश्वर ! तू हमें अन्य ज्ञानवान् विद्वानों सहित प्राप्त हो। (होतारं त्वा वृणीमहे) तुझे होता स्वरूप से वरण करते हैं। तुझ सर्वदानी को हम स्वीकार करते हैं, तेरी स्तुति करते हैं। (यजिष्ठं त्वाम्) यज्ञशील, सबसे अधिक दानशील, संगतिकारक तुझको (प्रयता) उत्तम नियम में वह (हविष्मती) अन्नादि से समृद्ध (बर्हिः) प्रजा या आसन (आसदे) विराजने के लिये (अनक्तु) प्राप्त हो तुझे प्रकाशित करे। परमात्मा के पक्ष में—(प्रयता) उत्तम नियमों में बँधी (हविष्मती) अन्नादि से युक्र (बर्हिः) बृहती द्यौ और पृथिवी (आसदे) तुझ अधिष्ठाता को अपने पर शासन करने के लिये (त्वाम् अनक्तु) तुझे प्रकाशित करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ सुदीतिपुरुमीढौ। २-३ भर्ग ऋषिः। अग्निर्देवता। १, २ बृहत्यौ, ३ सतो बृहती। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    Agni, universal fire of life, come with other fires such as the sun. We opt to worship you alone, the cosmic yajamana. The yajaka people holding ladlefuls of havi would honour and celebrate you and seat you on the holy grass.

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    Translation

    We choose this fire as the source of integration and disintegration. Let it come to our uses with its heating and impellent forces. Let the populaes disciplined and possessing oblational substances for knowing it entirely take it in to use.

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    Translation

    We choose this fire as the source of integration and disintegration. Let it come to our uses with its heating and impeIlent forces. Let the populaes disciplined and possessing oblation substances for knowing it entirely take it in to use.

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    Translation

    O Energiser of all powers and strength, shining like the Sun, all ladlesmove well in the non-violent sacrifice for Thy sake. We pray Thee, the Infallible source of power, Full of rays or brilliant light, foremost of all. Source of all knowledge and light.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र २, ३ ऋग्वेद में हैं-८।६० [सायणभाष्य ४९]।१, २; सामवेद-उ० ७।२।७ ॥ २−(अग्ने) हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर (आ याहि) प्राप्तो भव (अग्निभिः) ज्ञानप्रकाशैः (होतारम्) दातारम् (त्वा) त्वाम् (वृणीमहे) स्वीकुर्मः (आ) समन्तात् (त्वाम्) परमेश्वरम् (अनक्तु) अञ्जू गतौ। प्राप्नोतु (प्रयता) यम-क्त। नियमयुक्त (हविष्मती) भक्तिमती प्रजा (यजिष्ठम्) यष्टृ-इष्ठन्। अतिशयेन यष्टारं संयोगवियोगकर्तारम् (बर्हिः) वृद्धिम् (आसदे) प्राप्तुम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে অগ্নি! [প্রকাশস্বরূপ পরমেশ্বর] (অগ্নিভিঃ) জ্ঞানপ্রকাশের সহিত (আ যাহি) তুমি প্রাপ্ত হও, (হোতারম্) দাতা (ত্বা) তোমাকে (বৃণীমহে) আমরা গ্রহণ/স্বীকার করি। (প্রয়তা) নিয়মযুক্ত (হবিষ্মতী) ভক্তিমতী প্রজা (বর্হিঃ) বৃদ্ধি (আসদে) প্রাপ্তির জন্য (যজিষ্ঠম্) অত্যন্ত সংযোগ-বিয়োগ কর্তা (ত্বা) তোমাকে (আ) সর্বতোভাবে (অনক্তু) প্রাপ্ত হোক ॥২॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পরমাত্মার আজ্ঞায় সর্বদা বৃদ্ধি করুক ॥২॥ মন্ত্র ২, ৩ ঋগ্বেদে আছে-৮।৬০ [সায়ণভাষ্য ৪৯]।১, ২; সামবেদ-উ০ ৭।২।৭ ॥

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    भाषार्थ

    (অগ্নে) হে প্রকাশস্বরূপ জগন্নেতা! আপনি নিজের (অগ্নিভিঃ) প্রজ্বলিত তেজ সহিত (আ যাহি) প্রকট হন। (ত্বা হোতারম্) আপনার [দানীর] (বৃণীমহে) আমরা বরণ করি। (প্রয়তা) সংযম-সম্পন্ন আমাদের বুদ্ধি (হবিষ্মতী) সমপর্ণরূপী হবি গ্রহণ করে, (যজিষ্ঠম্) যজ্ঞ সফলকারী (ত্বা) আপনাকে (আ অনক্তু) পূর্ণরূপে অভিব্যক্ত করে, যাতে (বর্হিঃ) হৃদয়াসনে আপনি (আসদে) এসে বিরাজ করেন।

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